रविवार, 12 अगस्त 2012

kya hai vastu

वास्तु पुरुष मंडल: वास्तु ‘पुरुष मंडल’ वास्तु शास्त्र का अटूट हिस्सा है। इसमें मकान की बनावट की उत्पत्ति गणित और चित्रों के आधार पर की जाती है। जहां ‘पुरुष’ ऊर्जा, आत्मा और ब्रह्मांडीय व्यक्ति का प्रतिनिधित्व करता है। वहीं ‘मंडल’ किसी भी योजना के लिए जातिगत नाम है। वास्तु ‘पुरुष मंडल’ वास्तु शास्त्र में प्रयोग किया जाने वाला विशेष मंडल है। यह किसी भी भवन/मन्दिर/भूमि की आध्यात्मिक योजना है जोकि आकाशीय संरचना और अलौकिक बल को संचालित करती है।

दिशा और देवता: हर दिशा एक विशेष देव द्वारा संचालित होती है। यह देव हैं: -उत्तरी पूर्व- यह दिशा भगवान शिव द्वारा संचालित की जाती है। -पूर्व- इस दिशा में सूर्य भगवान का वास होता है। -दक्षिण पूर्व- इस दिशा में अग्नि का वास होता है। -दक्षिण- इस दिशा में यम का वास होता है। -दक्षिण पश्चिम- इस दिशा में पूर्वजों का वास होता है। -पश्चिम- वायु देवता का वास होता है। -उत्तर- धन के देवता का वास होता है। -केन्द्र- ब्रह्मांड के उत्पन्नकर्ता का वास होता है।
वास्तु और योग: वास्तुशास्त्र योग के सिद्धांत से काफी मिलता-जुलता है। जिस प्रकार किसी योगी के शरीर से प्राण (ऊर्जा) मुक्त रूप से प्रवाहित होता है। उसी प्रकार वास्तु गृह भी इस तरह से बनाया जाता है कि उसमें ऊर्जा का मुक्त प्रवाह हो। वास्तु शास्त्र के अनुसार एक आदर्श ढांचा वह होता है जहां ऊर्जा के प्रवाह में गतिशील साम्य हो। यदि यह साम्य नहीं बैठता है तो जीवन में भी उचित तालमेल नहीं बैठ पाता है। -वास्तु शास्त्र का दृढ़ता से मानना है कि प्रत्येक भवन चाहे वह घर हो, गोदाम हो, फैक्टरी हो या फिर कार्यालय हो, वहां अविवेकपूर्ण विस्तार तथा फेरबदल आदि नहीं होने चाहिए।
मुख्य द्वार: भवन में ‘प्राण’ (जीवन-ऊर्जा) के प्रवेश के लिए द्वार की स्थिति और उसके खुलने की दिशा वास्तु की विशेष गणना द्वारा चुनी जाती है। इसके सही चयन से सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह बढ़ाया जा सकता है। घर का अगला व पिछला द्वार एक ही सीध में होना चाहिए, जिससे ऊर्जा का प्रवाह बिना किसी रुकावट के चलता रहे। - ऊर्जा के इस मार्ग को ‘वम्स दंडम’ कहा जाता है जिसका मानवीकरण करने पर उसे रीढ़ की संज्ञा दी जाती है। इसका ताथ्यिक लाभ घर में शुद्ध हवा का आवागमन है, जबकि आत्मिक महत्व के तहत सौर्य ऊर्जा का मुख्य द्वार से प्रवेश और पिछले द्वार से निर्गम होने से, घर में ऊर्जा का प्रवाह बिना रुकावट निरंतर बना रहता है।
घर और वास्तु शास्त्र: घर केवल रहने की जगह मात्र नहीं होता है। यह हमारे मानसिक पटल का विस्तार और हमारे व्यक्तित्व का दर्पण भी होता है। - जिस प्रकार हम अपनी पसन्द के अनुसार इसकी बनावट व आकार देते हैं, सजाते और इसकी देखभाल करते हैं, उसी प्रकार यह हमारे स्वभाव, विचार, जैव ऊर्जा, निजी और सामाजिक जीवन, पहचान, व्यावसायिक सफलता और वास्तव में हमारे जीवन के हर पहलू से गहराई से जुड़ा हुआ होता है।
ऑफिस और वास्तु शास्त्र: जब वास्तु को सही तरह से लागू किया जाता है तो वह व्यापारिक वृद्धि में भी खासा मददगार सिद्ध होता है। भवन विस्तार या जगह का उपयोग करते समय वास्तु को ध्यान में रखना चाहिए, जिससे भवन में आने वाली नकारात्मक ऊर्जा को काफी हद तक कम किया जा सके।
con. vinay kumar jain mo. 9910938969

शनिवार, 11 अगस्त 2012

धन के लिए लक्ष्मीजी की कृपा कैसे पाएं

धन के लिए लक्ष्मीजी की कृपा कैसे पाएं गुरु-पुष्य नक्षत्र में करें धन प्राप्ति के जतन Share on facebookShare on twitterMore Sharing Services ND
गुरु-पुष्य नक्षत्र के दिन अपने घर के पूजा स्थान में श्रद्धापूर्वक मां लक्ष्मी के श्रीविग्रह के सामने चौमुखा घी का दीपक जलाकर पंचोपचार पूजन करने के उपरांत 108 पाठ करें। ऐसा करने से मां लक्ष्मी शीघ्र ही प्रसन्न होती हैं। गुरु-पुष्य के शुभ संयोग वाले दिन अपने पूजा स्थान में पूर्व दिशा में मुंह करके बैठ जाएं। स्वच्छ पात्र में 7 लौंग फूल सहित, 7 कपूर की डली रख दें। मां गायत्री का ध्यान करते हुए कपूर और लौंग को जला लें। साथ ही गायत्री मंत्र का जाप करते रहें। फिर तिलक लगा लें। सफलता जरूर मिलेगी। व्यापार चल निकलेगा : ND
अगर आपको कारोबार में नुकसान हो रहा हो तो रवि-पुष्प योग के दिन श्रद्धापूर्वक अमलतास के वृक्ष का पूजन करें। घी का दीपक जलाएं और संकल्प करें कि कल मैं इस वृक्ष की जड़ ले आऊंगा। जड़ लाकर उसे सोने के ताबीज में गढ़वा लें। आपकी समस्याओं का समाधान हो जाएगा और आपका व्यापार चल निकलेगा।

सही वास्तु दिलाएगा धन-समृद्धि...

सही वास्तु दिलाएगा धन-समृद्धि...
लक्ष्मी प्राप्ति के लिए रखें वास्तु का ख्याल यूं तो किसी को किस्मत से ज्यादा नहीं मिलता लेकिन कई बार अनेक बाधाओं के कारण किस्मत में लिखी धन-समृद्धि भी प्राप्त नहीं होती। वास्तु को मानने वाले अगर इसके मुताबिक काम करें तो उन्हें वो मिल सकता है जो अब तक नहीं मिला है। - पूर्व दिशा : यहां घर की संपत्ति और तिजोरी रखना बहुत शुभ होता है और उसमें बढ़ोतरी होती रहती है। - पश्चिम दिशा : यहां धन-संपत्ति और आभूषण रखे जाएं तो साधारण ही शुभता का लाभ मिलता है। परंतु घर का मुखिया अपने स्त्री-पुरुष मित्रों का सहयोग होने के बाद भी बड़ी कठिनाई के साथ धन कमा पाता है। - उत्तर दिशा : घर की इस दिशा में कैश व आभूषण जिस अलमारी में रखते हैं, वह अलमारी भवन की उत्तर दिशा के कमरे में दक्षिण की दीवार से लगाकर रखना चाहिए। इस प्रकार रखने से अलमारी उत्तर दिशा की ओर खुलेगी, उसमें रखे गए पैसे और आभूषण में हमेशा वृद्धि होती रहेगी। - दक्षिण दिशा : इस दिशा में धन, सोना, चाँदी और आभूषण रखने से नुकसान तो नहीं होता परंतु बढ़ोत्तरी भी विशेष नहीं होती है। - ईशान कोण : यहां पैसा, धन और आभूषण रखे जाएं तो यह दर्शाता है कि घर का मुखिया बुद्धिमान है और यदि यह उत्तर ईशान में रखे हों तो घर की एक कन्या संतान और यदि पूर्व ईशान में रखे हों तो एक पुत्र संतान बहुत बुद्धिमान और प्रसिद्ध होता है। - आग्नेय कोण : यहां धन रखने से धन घटता है, क्योंकि घर के मुखिया की आमदनी घर के खर्चे से कम होने के कारण कर्ज की स्थिति बनी रहती है।
- नैऋत्य कोण : यहां धन, महंगा सामान और आभूषण रखे जाएं तो वह टिकते जरूर है, किंतु एक बात अवश्य रहती है कि यह धन और सामान गलत ढंग से कमाया हुआ होता है। - वायव्य कोण : यहां धन रखा हो तो खर्च जितनी आमदनी जुटा पाना मुश्किल होता है। ऐसे व्यक्ति का बजट हमेशा गड़बड़ाया रहता है और कर्जदारों से सताया जाता है। - सीढ़ियों के नीचे तिजोरी रखना शुभ नहीं होता है। सीढ़ियों या टायलेट के सामने भी तिजोरी नहीं रखना चाहिए। तिजोरी वाले कमरे में कबाड़ या मकड़ी के जाले होने से नकारात्मक ऊर्जा उत्पन्न होती है। - घर की तिजोरी के पल्ले पर बैठी हुई लक्ष्मीजी की तस्वीर जिसमें दो हाथी सूंड उठाए नजर आते हैं, लगाना बड़ा शुभ होता है। तिजोरी वाले कमरे का रंग क्रीम या ऑफ व्हाइट रखना चाहिए।

वास्तु और ईशान दिशा

वास्तु और ईशान दिशा कैसे पाएं ईशान दिशा के शुभ परिणाम
किसी भी भवन की ईशान दिशा सर्वाधिक महत्वपूर्ण होती है। इसमें वास्तु अनुरूप भवन का निर्माण हमारी प्रगति में चार चांद लगा देता है। आइए जानते हैं किस प्रकार से भवन निर्माण कराने से आप शुभ परिणाम प्राप्त करेंगे :- * ईशान दिशा अन्य दिशाओं की तुलना में बड़ी हो तो गृह के निवासी धन-संपत्ति से युक्त रहेंगे। उनके ऐश्वर्य में वृद्धि होगी तथा उनकी संतानें मेधावी होंगी। * ईशान दिशा में जल का स्थल हो तो गृह के रहवासी निरंतर प्रगति करेंगे। * ईशान दिशा नीचे हो तो गृह स्वामी अष्टविध संपत्ति के अधिकारी होंगे। * ईशान ब्लाक में पूर्व की तरफ ढलान पुरुषों के लिए तथा उत्तर की तरफ वाला ढलान स्त्रियों के सर्वांगीण विकास के लिए श्रेष्ठतम होता है।
* ईशान दिशा में पूर्व तथा उत्तर वाली दीवारें पश्चिम तथा दक्षिण दिशा वाली दीवारों की तुलना में नीची होने से चिरकाल तक आरोग्य, सुख-संपत्ति तथा धन लाभ होता है। * गृह का समस्त जल इस दिशा से बाहर निकलना चाहिए। वर्षा का जल भी इस दिशा से बाहर निकले तो गृह स्वामी के सुख में वृद्धि होती है।

हत्ता जोडी

अद्भुत एवं चमत्कारी वनस्पति ‘‘हत्ता जोडी’’ हत्ता जोडी एक वनस्पति है एक विशेष जाति के पौधे की जड़ खोदने पर उसमे मानव भुजा जैसी दो शाखाये दिखाई पड़ती है इसके सिरे पर पंजा जैसा बना होता है, उंगलियों के रूप में उस पंजे की आकृति ठीक इस तरह होती है जैसे कोई मुट्ठी बंाधे हो, जड़ निकलकर उसकी दोनों शाखाओं को मोडकर परस्पर मिला देने से यह हाथो के जैसी दिखने लगती हे यही हत्ता जोड़ी है। इसकी पौधे प्रायः मध्यप्रदेश में होते हैं।
हत्ता जोडी बहुत ही शक्तिषाली व प्रभावकारी वस्तु है यह एक जंगली पौधे की जड़ होती है। इसका चमत्कार मुकदमा, शुत्रु संघर्ष, दरिद्रता को दूर करने व दुर्लभ व्याधियों आदि के निवारण में इसकी जैसी चमत्कारी वस्तु आज तक देखने में नही आई इसमे वशीकरण को भी अद्भुत शक्ति है। इसको पास मे रखने से भूत, प्रेत आदि का भय नहीं रहता है यदि इसे तांत्रिक विधि से सिद्ध कर दिया जाए तो साधक निश्चित पद्यमावति का कृपा पात्र हो जाता है। यह जिसके पास होती है उसे हर कार्य मे सफलता मिलती है धन संपत्ति देने वाली यह बहुत चमत्कारी साबित हुई है। तंत्र मे इसका महत्वपूर्ण स्थान है। हत्ता जोड़ी में अद्भुत प्रभाव निहित रहता है, यह साक्षात पद्यमावति का प्रतिरूप है यह जिसके पास भी होगा वह अद्भुत रूप से प्रभावकारी होगा, सम्मोहन, वशीकरण, अनुकूलन, सुरक्षा मे अत्यंत गुणकारी होता है, इससे प्रयोग से भी शीघ्र ही धन लाभ होने लगता है। मंत्र से पूजने के बाद इलायची तथा तुलसी के पत्तों के साथ एक चंादी की डिब्बी मे रख दें। इससे धन लाभ होता है। हत्था जोडी जो की एक महातंत्र में उपयोग में लायी जाती है और इसके प्रभाव से शुत्रु दमन तथा मुकदमों में विजय हासिल होती है।
मेहनत और लगन से काम करके धनोपार्जन करते है फिर भी आपको आर्थिक परेशानियों का सामना करना पड रहा है तो आपको अपनी आर्थिक स्थिती सुधारने के लिए उपाय करना चाहिए। इसके लिए किसी भी शनिवार अथवा मंगलवार के दिन हत्ता जोडी घर लाएं। इसे लाल रंग के कपडे में बांधकर घर मे किसी सुरक्षित स्थान मे अथवा तिजोरी मे रख दें। इससे आय में वृद्धि होगी एवं धन का व्यय कम होगा। तिजोरी में सिन्दुर युक्त जोडी रखने से आर्थिक लाभ में वृद्धि होने लगती है। संपर्क करे विनय जैन 9910938969

गुरुवार, 26 जुलाई 2012

ज्ञान गंगा महोत्सव बारहवां दिन जिन्हें खुद भगवान नहीं मिले वे दूसरो को भगवान सौपने लगे है- मुनि पुलकसागर दिल्ली 26 जुलाई 2012 किसी ष्मसान के पास एक सूत्र लिखा था कि मंजिल तो यही थी पर देर हो गई आते आते। सौ साल के जीवन मे इंसान कितनी भागदौड करता है, सुबह से षाम तक भागता रहता है लेकिन जीवनपर्यंत यह भागदौड़ समाप्त नहीं होती है। दुनिया मे आए हो तो मरना जरूर पडेगा । उक्त प्रेरणादायी विचार मुनिश्री पुलकसागर जी महाराज ने गुरूवार को कड़कड़डूमा कोर्ट के सामने निर्मित जिनषरणं सभागार मे आयोजित ज्ञान गंगा महोत्सव के बारहवे दिवस पर अथाह जनसमुदाय को संबोधित करते हुए व्यक्त किए। उन्होंने धर्मसभा को संबोधित करते हुए कहा कि सामान सौ बरस का पल की खबर नहीं। मनुश्य ने कितने सामान पैदा कर लिए अपने लिए इस छोटे से जीवन में। इस जीवन मे कितनी दुआएं बददुआएं लेकर जीते हो। मुनिश्री ने जीवन की परिभाशा देते हुए कहा कि सांसो का नाम ही जीवन हुआ करता है। ध्यान रखना जब तुम पैदा हुए थे तो तुम्हारी सबसे पहले ष्वास देखी गई थी और मरते वक्त भी ष्वास देखी जाती है। केवल ष्वास चलने का नाम जीवन होता है। चंद सांसे मिली है हमे इस जीवन में इनहें आनंद में जीओ ना कि मातम मे परिवर्तित करके। ष्वास की कीमत समझो। ध्यान रखना तुम्हारे पास सब कुछ रहे लेकिन ष्वास चली जाए तो सब पडा का पड रह जाएगा। घर, परिवार, जमीन जायजाद, आंखो के मूंदते सब रिष्ते छूट जाया करते है। मुनिश्री ने जीवन की परिवर्तनषीलता को परिलक्षित करते हुए कहा कि जीवन की प्रकृति परिवर्तनषील है जो आज है वह कल नहीं रहेगा। और जो आज है वो कल नही रहेगा। इसे प्रकृति की व्यवस्था या भाग्य का उठा पटक कह सकते है। एक समय कृश्णचंद भाग गये आधी रात एक समय कंस को पछाड दिया रण में एक समय अर्जुन ने जीत लिया महाभारत एक समय कौल भील लूट लिये वन मे आदमी बिचारे की बात यहां कौन करे सूरज की तीन गति होत एक दिन मे। मुनिश्री ने कहा कि ऐसा कोई नहीं होगा जिसके जीवन मे उतार चढाव ना हो। जीवन मे कभी उचंाई कभी ढलान पर आ जाती है। जिंदगी में कभी कुछ हासिल हो जाये तो गुमान मत करना और अगर कुछ खो जाये तो कभी गम मत करना। मुनिश्री ने कहा कि आपने अभी देखा कि राश्टपति प्रतिभा पाटलि देष की राश्टपति थी अब प्रणव दादा आ गये उनसे राश्टपति ंभवन खाली करवा लिया। वे अब भूतपूर्व राश्टपति हो गई। याद रखना जीवन सतत परिवर्तनषील है यहां सुख और दुख दोनो का आना जाना लगा रहता है। मुनिश्री ने कहा कि हमे कभी किसी को कम नहीं समझना चाहिए। वर्शो से सडको पर पडा पत्थर जब उसकी किस्मत बदलती है तो वह मंदिर का भगवान भी बन जाया करता है। इस जीवन मे भले और बुरे दोनो प्रकार के दिन आते है। कभी दुख की धूप रहती है तो कभी सुख की छांव हम पर छाया करती है। यह सब विधी का विधान परमात्मा के द्वारा रचा जाता है। मुनिश्री ने कहा कि जब जीवन मे उन्नति मिले तो ज्यादा खुष मत होना और असफलता मिले तो गम मत करना इसी का नाम प्रसन्नता हुआ करता है। एक सफलता के पीछे हजार असफलताएं होती है। महान आदमी उंचाईयों पर आसानी से नहीं पहुंच पाते है अपितु हजारो बार गिरते है, ठोकरे खाते है संभाल जाते है और आगे बढ़ जाते है। मुनिश्री ने कहा कि गिरना ही है तो गेंद की तरह गिरना सीखो जो गिरते ही फिर उछल जाती है मिट्टी के गीले लोदे की तरह मत गिरो जो जमीन का पकड कर ही रह जाता है। मुनिश्री ने कहा कि कितना नादान है यह आदमी जो जीवन का सुख किताबो मे खोजता है। आदमी को किताबो से ंिजंदगी नहीं मिला करती है अपितु आदमी से ही किताबों का जन्म हुआ करता है। आज पोथी पत्रा पढ़ पढकर लोग भगवान पर व्याख्याएं कर रहे है, हकिकत मे जितने लोग जो बोल रहे है जो खुद भटके हुए लोग है। वो क्या किसी को भगवान सौपेगे जिन्हें खुद भगवान नहीं मिले। एकं भिखारी दूसरे भिखारी को क्या दे सकता है। इसलिए मैने भगवान की चर्चा बंद कर दी है क्यांेकि मुझे खुद भगवान नही मिले है। लेकिन मै इतना दावे के साथ कह सकता हॅू कि मै तुम्हें भगवान बना पाउ या ना पाउं लेकिन तुम सच्चे इंसान जरूर बन सकते हो मेरा विष्वास है जो सच्चा इंसान बन जाता है वह एक दिन भगवान बन जाता है। पुलक वचन आज का युवा कथा पुराणो से नहीं उसे जीते जागते महावीर चाहिए। मरने के बाद नही जीते जी आनंद को ग्रहण करो कल के चक्कर मे आज को दुखी मत करो। जिनको खुद को भगवान नही मिला दूसरो को भगवान सौप रहे है। घबराओ मत यह समय भी कट जायेगा यह सुखी जीवन जीने का राज है। मौत से पहले कभी ना मरना। मौत एक ही बार आती है कब आएगी यह भी निष्चित है मरना। तो वक्त से पहले मरने की मत सोचना। बाहर की परिस्थितियॉ अगर अंतस को प्रभावित कर दे तो जीवन अच्छा नहीं जिया। प्रसन्न रहने के लिए उदास मत रहना। जब उदास हो तो एकांत मे मत जाओ जितने एंकात मे जाओगे उतनी चिंताएं तुम्हें घेरेगी। जो हंसता पुरूश जो हंसाता है वह महापुरूश होता है किसी रोते को हंसा देने कापुण्य मंदिर जाने से बराबर होता है। किसी को भीख देकर उसे भीखारी मत बनाओ बल्कि उसे पैरो पर खडा कर दो। वात्सल्य धारा वह परिवार है जिसमे निराश्रितो, षोशितो, को षिक्षा, सुस्वास्थ एवं आषियाना मिलेगा। विनय कुमार जैन 9910938969

वास्तुदोष का निवारण करने के उपाय


वास्तुदोष का निवारण करने के उपाय NDND अगर भवन में रहते हुए आपका कार्य सिद्ध नहीं हो रहा हो तथा इसमें कई तरह की बाधाएँ आ रही हैं, ऐसी स्थिति में वास्तुदोष शांति के लिए पांचजन्य शंख को भवन के मध्य हिस्से में अथवा भवन के पार्क आदि भाग में वास्तु पुरुष की तरह उल्टा गाढ़ दें, एक हफ्ते में ही लाभ मिलने लगेगा। अगर आपके घर-परिवार में मत भिन्नता है, गृहक्लेश रहता है, पति-पत्नी में सामंजस्य नहीं है, पिता का पुत्रों पर नियंत्रण नहीं है, व्यापार घाटे में जा रहा है, इस कारण से भी आप तनाव में रहते हैं तो इन सारी समस्याओं से मुक्ति पाने के लिए घर में लाफिंग बुद्धा की प्रतिमा की स्थापना करें, आपका मनोरथ सिद्ध होगा।

वास्तुदोष का निवारण करने के उपाय


वास्तुदोष का निवारण करने के उपाय NDND अगर भवन में रहते हुए आपका कार्य सिद्ध नहीं हो रहा हो तथा इसमें कई तरह की बाधाएँ आ रही हैं, ऐसी स्थिति में वास्तुदोष शांति के लिए पांचजन्य शंख को भवन के मध्य हिस्से में अथवा भवन के पार्क आदि भाग में वास्तु पुरुष की तरह उल्टा गाढ़ दें, एक हफ्ते में ही लाभ मिलने लगेगा। अगर आपके घर-परिवार में मत भिन्नता है, गृहक्लेश रहता है, पति-पत्नी में सामंजस्य नहीं है, पिता का पुत्रों पर नियंत्रण नहीं है, व्यापार घाटे में जा रहा है, इस कारण से भी आप तनाव में रहते हैं तो इन सारी समस्याओं से मुक्ति पाने के लिए घर में लाफिंग बुद्धा की प्रतिमा की स्थापना करें, आपका मनोरथ सिद्ध होगा।

वास्तुदोष का निवारण करने के उपाय


वास्तुदोष का निवारण करने के उपाय NDND अगर भवन में रहते हुए आपका कार्य सिद्ध नहीं हो रहा हो तथा इसमें कई तरह की बाधाएँ आ रही हैं, ऐसी स्थिति में वास्तुदोष शांति के लिए पांचजन्य शंख को भवन के मध्य हिस्से में अथवा भवन के पार्क आदि भाग में वास्तु पुरुष की तरह उल्टा गाढ़ दें, एक हफ्ते में ही लाभ मिलने लगेगा। अगर आपके घर-परिवार में मत भिन्नता है, गृहक्लेश रहता है, पति-पत्नी में सामंजस्य नहीं है, पिता का पुत्रों पर नियंत्रण नहीं है, व्यापार घाटे में जा रहा है, इस कारण से भी आप तनाव में रहते हैं तो इन सारी समस्याओं से मुक्ति पाने के लिए घर में लाफिंग बुद्धा की प्रतिमा की स्थापना करें, आपका मनोरथ सिद्ध होगा।

वास्तुदोष का निवारण करने के उपाय


वास्तुदोष का निवारण करने के उपाय NDND अगर भवन में रहते हुए आपका कार्य सिद्ध नहीं हो रहा हो तथा इसमें कई तरह की बाधाएँ आ रही हैं, ऐसी स्थिति में वास्तुदोष शांति के लिए पांचजन्य शंख को भवन के मध्य हिस्से में अथवा भवन के पार्क आदि भाग में वास्तु पुरुष की तरह उल्टा गाढ़ दें, एक हफ्ते में ही लाभ मिलने लगेगा। अगर आपके घर-परिवार में मत भिन्नता है, गृहक्लेश रहता है, पति-पत्नी में सामंजस्य नहीं है, पिता का पुत्रों पर नियंत्रण नहीं है, व्यापार घाटे में जा रहा है, इस कारण से भी आप तनाव में रहते हैं तो इन सारी समस्याओं से मुक्ति पाने के लिए घर में लाफिंग बुद्धा की प्रतिमा की स्थापना करें, आपका मनोरथ सिद्ध होगा।

वास्तुदोष का निवारण करने के उपाय


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वास्तुदोष का निवारण करने के उपाय


वास्तुदोष का निवारण करने के उपाय NDND अगर भवन में रहते हुए आपका कार्य सिद्ध नहीं हो रहा हो तथा इसमें कई तरह की बाधाएँ आ रही हैं, ऐसी स्थिति में वास्तुदोष शांति के लिए पांचजन्य शंख को भवन के मध्य हिस्से में अथवा भवन के पार्क आदि भाग में वास्तु पुरुष की तरह उल्टा गाढ़ दें, एक हफ्ते में ही लाभ मिलने लगेगा। अगर आपके घर-परिवार में मत भिन्नता है, गृहक्लेश रहता है, पति-पत्नी में सामंजस्य नहीं है, पिता का पुत्रों पर नियंत्रण नहीं है, व्यापार घाटे में जा रहा है, इस कारण से भी आप तनाव में रहते हैं तो इन सारी समस्याओं से मुक्ति पाने के लिए घर में लाफिंग बुद्धा की प्रतिमा की स्थापना करें, आपका मनोरथ सिद्ध होगा।

वास्तुदोष का निवारण करने के उपाय


वास्तुदोष का निवारण करने के उपाय NDND अगर भवन में रहते हुए आपका कार्य सिद्ध नहीं हो रहा हो तथा इसमें कई तरह की बाधाएँ आ रही हैं, ऐसी स्थिति में वास्तुदोष शांति के लिए पांचजन्य शंख को भवन के मध्य हिस्से में अथवा भवन के पार्क आदि भाग में वास्तु पुरुष की तरह उल्टा गाढ़ दें, एक हफ्ते में ही लाभ मिलने लगेगा। अगर आपके घर-परिवार में मत भिन्नता है, गृहक्लेश रहता है, पति-पत्नी में सामंजस्य नहीं है, पिता का पुत्रों पर नियंत्रण नहीं है, व्यापार घाटे में जा रहा है, इस कारण से भी आप तनाव में रहते हैं तो इन सारी समस्याओं से मुक्ति पाने के लिए घर में लाफिंग बुद्धा की प्रतिमा की स्थापना करें, आपका मनोरथ सिद्ध होगा।

वास्तु दोष निवारण के सफल/सामान्य उपाय/टोटके/तरीके


वास्तु दोष निवारण के सफल/सामान्य उपाय/टोटके/तरीके— —–वास्तु पूजन के पश्चात् भी कभी-कभी मिट्टी में किन्हीं कारणों से कुछ दोष रह जाते हैं जिनका निवारण कराना आवश्यक है। —–रसोई घर गलत स्थान पर हो तो अग्निकोण में एक बल्ब लगा दें और सुबह-शाम अनिवार्य रूप से जलाये। —–द्वार दोष और वेध दोष दूर करने के लिए शंख, सीप, समुद्र झाग, कौड़ी लाल कपड़े में या मोली में बांधकर दरवाजे पर लटकायें। —–बीम के दोष को शांत करने के लिए बीम को सीलिंग टायल्स से ढंक दें। —–बीम के दोनों ओर बांस की बांसुरी लगायें। —–घर के दरवाजे पर घोड़े की नाल (लोहे की) लगायें। यह अपने आप गिरी होनी चाहिए —–घर के सभी प्रकार के वास्तु दोष दूर करने के लिए मुख्य द्वार पर एक ओर केले का वृक्ष दूसरी ओर तुलसी का पौधा गमले में लगायें। —–दुकान की शुभता बढ़ाने के लिए प्रवेश द्वार के दोनों ओर गणपति की मूर्ति या स्टिकर लगायें। एक गणपति की दृष्टि दुकान पर पड़ेगी, दूसरे गणपति की बाहर की ओर। —–यदि दुकान में चोरी होती हो या अग्नि लगती हो तो भौम यंत्र की स्थापना करें। यह यंत्र पूर्वोत्तर कोण या पूर्व दिशा में, फर्श से नीचे दो फीट गहरा गङ्ढा खोदकर स्थापित किया जाता है। —–यदि प्लाट खरीदे हुये बहुत समय हो गया हो और मकान बनने का योग न आ रहा हो तो उस प्लाट में अनार का पौधा पुष्य नक्षत्र में लगायें। —–अगर आपका घर चारों ओर बड़े मकानों से घिरा हो तो उनके बीच बांस का लम्बा फ्लेग लगायें या कोई बहुत ऊंचा बढ़ने वाला पेड़ लगायें। —–फैक्ट्री-कारखाने के उद्धाटन के समय चांदी का सर्प पूर्व दिशा में जमीन में स्थापित करें। —–अपने घर के उत्तरकोण में तुलसी का पौधा लगाएं —-हल्दी को जल में घोलकर एक पान के पत्ते की सहायता से अपने सम्पूर्ण घर में छिडकाव करें। इससे घर में लक्ष्मी का वास तथा शांति भी बनी रहती है —-अपने घर के मन्दिर में घी का एक दीपक नियमित जलाएं तथा शंख की ध्वनि तीन बार सुबह और शाम के समय करने से नकारात्मक ऊर्जा घर से बहार निकलती है. —-घर में सफाई हेतु रखी झाडू को रस्ते के पास नहीं रखें. —-यदि झाडू के बार-बार पैर का स्पर्थ होता है, तो यह धन-नाश का कारण होता है. झाडू के ऊपर कोई वजनदार वास्तु भी नहीं रखें.। ध्यान रखें की बाहर से आने वाले व्यक्ति की दृष्टि झारू पड़ न परे। —–अपने घर में दीवारों पर सुन्दर, हरियाली से युक्त और मन को प्रसन्न करने वाले चित्र लगाएं. इससे घर के मुखिया को होने वाली मानसिक परेशानियों से निजात मिलती है. —–वास्तुदोष के कारण यदि घर में किसी सदस्य को रात में नींद नहीं आती या स्वभाव चिडचिडा रहता हो, तो उसे दक्षिण दिशा की तरफ सिर करके शयन कराएं.इससे उसके स्वभाव में बदलाव होगा और अनिद्रा की स्थिति में भी सुधार होगा. —-अपने घर के ईशान कोण को साफ़ सुथरा और खुला रखें. इससे घर में शुभत्व की वृद्धि होती है. —-अपने घर के मन्दिर में देवी-देवताओं पर चढ़ाए गए पुष्प-हार दूसरे दिन हटा देने चाहिए और भगवान को नए पुष्प-हार अर्पित करने चाहिए. —-घर के उत्तर-पूर्व में कभी भी कचरा इकट्ठा न होने दें और न ही इधर भारी मशीनरी रखें. —-अपने वंश की उन्नति के लिये घर के मुख्यद्वार पर अशोक के वृक्ष दोनों तरफ लगाएं. —-यदि आपके मकान में उत्तर दिशा में स्टोररूम है, तो उसे यहाँ से हटा दें. इस स्टोररूम को अपने घर के पश्चिम भाग या नैऋत्य कोण में स्थापित करें. —-घर में उत्पन्न वास्तुदोष घर के मुखिया को कष्टदायक होते हैं. इसके निवारण के लिये घर के मुखिया को सातमुखी रूद्राक्ष धारण करना चाहिए. —-यदि आपके घर का मुख्य द्वार दक्षिणमुखी है, तो यह भी मुखिया के के लिये हानिकारक होता है. इसके लिये मुख्यद्वार पर श्वेतार्क गणपति की स्थापना करनी चाहिए. —–अपने घर के पूजा घर में देवताओं के चित्र भूलकर भी आमने-सामने नहीं रखने चाहिए इससे बड़ा दोष उत्पन्न होता है. अपने घर के ईशान कोण में स्थित पूजा-घर में अपने बहुमूल्य वस्तुएँ नहीं छिपानी चाहिए. —–पूजाकक्ष की दीवारों का रंग सफ़ेद हल्का पीला अथवा हल्का नीला होना चाहिए. —–यदि आपके रसोई घर में रेफ्रिजरेटर नैऋत्य कोण में रखा है, तो इसे वहां से हटाकर उत्तर या पश्चिम में रखें. —–दीपावली अथवा अन्य किसी शुभ मुहूर्त में अपने घर में पूजास्थल में वास्तुदोशनाशक कवच की स्थापना करें और नित्य इसकी पूजा करें. इस कवच को दोषयुक्त स्थान पर भी स्थापित करके आप वास्तुदोषों से सरलता से मुक्ति पा सकते हैं. ——अपने घर में ईशान कोण अथवा ब्रह्मस्थल में स्फटिक श्रीयंत्र की शुभ मुहूर्त में स्थापना करें. यह यन्त्र लक्ष्मीप्रदायक भी होता ही है, साथ ही साथ घर में स्थित वास्तुदोषों का भी निवारण करता है. ——प्रातःकाल के समय एक कंडे पर थोड़ी अग्नि जलाकर उस पर थोड़ी गुग्गल रखें और ‘ॐ नारायणाय नमन’ मंत्र का उच्चारण करते हुए तीन बार घी की कुछ बूँदें डालें. अब गुग्गल से जो धूम्र उत्पन्न हो, उसे अपने घर के प्रत्येक कमरे में जाने दें. इससे घर की नकारात्मक ऊर्जा ख़त्म होगी और वातुदोशों का नाश होगा. —–प्रतीदिन शाम के समय घर मे कपूर जलाएं इससे घर मे मौजूद नकारात्मक ऊर्जा खत्म हो जाती है।

वास्तु दोष निवारण के कुछ सरल उपाय


>वास्तु दोष निवारण के कुछ सरल उपाय— कभी-कभी दोषों का निवारण वास्तुशास्त्रीय ढंग से करना कठिन हो जाता है। ऐसे में दिनचर्या के कुछ सामान्य नियमों का पालन करते हुए निम्नोक्त सरल उपाय कर इनका निवारण किया जा सकता है। * पूजा घर पूर्व-उत्तर (ईशान कोण) में होना चाहिए तथा पूजा यथासंभव प्रातः 06 से 08 बजे के बीच भूमि पर ऊनी आसन पर पूर्व या उत्तर की ओर मुंह करके बैठ कर ही करनी चाहिए। * पूजा घर के पास उत्तर-पूर्व (ईशान कोण) में सदैव जल का एक कलश भरकर रखना चाहिए। इससे घर में सपन्नता आती है। मकान के उत्तर पूर्व कोने को हमेशा खाली रखना चाहिए। * घर में कहीं भी झाड़ू को खड़ा करके नहीं रखना चाहिए। उसे पैर नहीं लगना चाहिए, न ही लांघा जाना चाहिए, अन्यथा घर में बरकत और धनागम के स्रोतों में वृद्धि नहीं होगी। * पूजाघर में तीन गणेशों की पूजा नहीं होनी चाहिए, अन्यथा घर में अशांति उत्पन्न हो सकती है। तीन माताओं तथा दो शंखों का एक साथ पूजन भी वर्जित है। धूप, आरती, दीप, पूजा अग्नि आदि को मुंह से फूंक मारकर नहीं बुझाएं। पूजा कक्ष में, धूप, अगरबत्ती व हवन कुंड हमेशा दक्षिण पूर्व में रखें। * घर में दरवाजे अपने आप खुलने व बंद होने वाले नहीं होने चाहिए। ऐसे दरवाजे अज्ञात भय पैदा करते हैं। दरवाजे खोलते तथा बंद करते समय सावधानी बरतें ताकि कर्कश आवाज नहीं हो। इससे घर में कलह होता है। इससे बचने के लिए दरवाजों पर स्टॉपर लगाएं तथा कब्जों में समय समय पर तेल डालें। * खिड़कियां खोलकर रखें, ताकि घर में रोशनी आती रहे। * घर के मुख्य द्वार पर गणपति को चढ़ाए गए सिंदूर से दायीं तरफ स्वास्तिक बनाएं। * महत्वपूर्ण कागजात हमेशा आलमारी में रखें। मुकदमे आदि से संबंधित कागजों को गल्ले, तिजोरी आदि में नहीं रखें, सारा धन मुदमेबाजी में खर्च हो जाएगा। * घर में जूते-चप्पल इधर-उधर बिखरे हुए या उल्टे पड़े हुए नहीं हों, अन्यथा घर में अशांति होगी। * सामान्य स्थिति में संध्या के समय नहीं सोना चाहिए। रात को सोने से पूर्व कुछ समय अपने इष्टदेव का ध्यान जरूर करना चाहिए। * घर में पढ़ने वाले बच्चों का मुंह पूर्व तथा पढ़ाने वाले का उत्तर की ओर होना चाहिए। * घर के मध्य भाग में जूठे बर्तन साफ करने का स्थान नहीं बनाना चाहिए। * उत्तर-पूर्वी कोने को वायु प्रवेश हेतु खुला रखें, इससे मन और शरीर में ऊर्जा का संचार होगा। * अचल संपत्ति की सुरक्षा तथा परिवार की समृद्धि के लिए शौचालय, स्नानागार आदि दक्षिण-पश्चिम के कोने में बनाएं। * भोजन बनाते समय पहली रोटी अग्निदेव अर्पित करें या गाय खिलाएं, धनागम के स्रोत बढ़ेंगे। * पूजा-स्थान (ईशान कोण) में रोज सुबह श्री सूक्त, पुरुष सूक्त एवं हनुमान चालीसा का पाठ करें, घर में शांति बनी रहेगी। * भवन के चारों ओर जल या गंगा जल छिड़कें। * घर के अहाते में कंटीले या जहरीले पेड़ जैसे बबूल, खेजड़ी आदि नहीं होने चाहिए, अन्यथा असुरक्षा का भय बना रहेगा। * कहीं जाने हेतु घर से रात्रि या दिन के ठीक १२ बजे न निकलें। * किसी महत्वपूर्ण काम हेतु दही खाकर या मछली का दर्शन कर घर से निकलें। * घर में या घर के बाहर नाली में पानी जमा नहीं रहने दें। * घर में मकड़ी का जाल नहीं लगने दें, अन्यथा धन की हानि होगी। * शयनकक्ष में कभी जूठे बर्तन नहीं रखें, अन्यथा परिवार में क्लेश और धन की हानि हो सकती है। * भोजन यथासंभव आग्नेय कोण में पूर्व की ओर मुंह करके बनाना तथा पूर्व की ओर ही मुंह करके करना चाहिए।

सोमवार, 16 जुलाई 2012

vastu

वास्तु दोश निवारण के उपाय
अपना मकान बनाते समय भूल या परिस्थितिवष कुछ वास्तुदोश रह जाते है। इन दोशों के निवारण के लिए यदि आप बताएं जा रहे उपाय कर लें, तो बिना तोड-फोड़ के ही वास्तुजनित दोशों से निजात पा सकते हैं। ऽ यदि आपके मकान के सामने किसी प्रकार का वेध यानी खंभा, बड़ा पेड़ या बहुमंजिला इमारत हो तो इसकी वजह से आपका स्वास्थ्य या आर्थिक स्थिति प्रभावित हो सकती है। यदि वेघ दोश हो तो निम्न उपाय करना कारगर होगा। ऽ अपने मकान के सामने लैम्प पोस्ट लगा लें। यदि संभव नहीं हो, तो घर के आगे अषोक का वृक्ष और सुगधित फूलों के पेड़ के गमले लगा दें। तुलसी का पौधा स्वास्थ्य के लिए षुभ होता है। ऽ यदि कोई बहुमंजिली इमारत आपके सामने हो, तो फेंगषुई के अनुसार अश्ट कोणीय दर्पण, किस्टल बाल तथा दिषा सूचक यंत्र लगा सकते है। ऽ बड़ा गोल आईना मकान की छत पर ऐसे लगाए कि मकान की संपूर्ण छाया उसमें दिखाई देती रहे। ऽ यदि मकान के पास फैक्टरी का धुआं निकलता हो, तो एग्जास्ट पंखा या वृक्ष लगा लें। ऽ यदि मकान में बीम ऐसी जगह हो जिसके कारण आप मानसिक तनाव महसूस करते हो तो बीम से उत्पन्न होने वाले दोशो से बचाव के लिए यह उपाय अपना सकते है। ऽ षयनकक्ष मे बीम हो तो इसके नीचे अपना बैड या डाइनिंग टेबल नहीं लगाएं। यदि ऑफिस हो तो मेज व कुर्सियां नहीं रखे। ऽ बीम के दोनों ओर बांसुरी लगा दें। इससे वास्तुदोश निवारण हो जाता है। ऽ पवन घंटी बीम के नीचे लटका दें या बीम को सीलिंग टायलस से ढक दें। ऽ यदि मकान का कोई कोना आपके मुख्य द्वार के सामने आए, तो स्पॉट लाइट लगाएं। जिससे प्रकाष आपके घर की ओर रहे तथा सीधा उंचा वृक्ष लगा दें। ऽ षयनकक्ष में घी का दीपक व अगरबत्ती करें जिससे मन प्रसन्न रहे। इस बात का ध्यान रखें कि झाडू षयनकक्ष में नहीं रखें। ऽ यदि मकान में दिषा संबंधी कोई दोश हो तो इससे बचने के लिए ये उपाय करने से लाभ मिलना संभव है। ऽ मकान में मुख्य द्वार पर देहरी बना लें। इससे बुरे व अन्य दोश घर मे प्रवेष नहीं कर पाते। ऽ ईषान कोण के दोश के लिए इस दिषा में पानी से भरा मटका रखे। इस कोण को साफ सुधरा रखे। ऽ अग्नि कोण दोश निवारण के लिए कोने में एक लाल रंग का बल्ब लगा दें जो दिन रात जलता रहें ऽ वायव्य कोण दोश निवारण के लिए इस ओर की खिड़कियां खुली रखें, ताकि वायु आ सके। एजॉस्ट पंखा भी लगा सकते है। ऽ नैऋत्य कोण दोश निवारण के लिए इस कोने को भारी बनाएं। स्टोर बनाना यहां षुभ होता है। ऽ षयनकक्ष में दर्पण का प्रतिबिंब पलंग पर न पडे तथा डबल बेड पर एक ही गद्दा रखें, तो ठीक रहेगा। ऽ पति पत्नि में प्रेम के लिए प्रेमी परिंदे का चित्र या मेडरिन बतख का जोड़ा रखे अथवा सपरिवार प्रसन्नचित मुद्रा वाला चित्र लगाएं। ऽ डायनिंग टेबल को प्रतिबिंबित करने वाला आईना आपके सद्भाव व भाग्य मंे वृद्धि करता है, इसे लगाएं। वास्तुषास्त्री विनय कुमार जैन मो 9910938969

सोमवार, 25 जून 2012

aarkshan ka vikram betal


आखिर कब तक ये आरक्षण का वेताल विक्रमादित्य के कंधे पर लटका रहेगा- विनय कुमार जैन जब सभी क्षेत्रो मे गुणवत्ता चाहिए फिल्मो में सुंदर नायिका चाहिए, कुष्ती में तगड़ा पहलवान चाहिए, क्रिकेट में जबरदस्त बल्लेबाज चाहिए, जब षादी में कमनीय पत्नी चाहिए तो एक डॉक्टर जो लोगो की जान बचाएगा और स्वास्थ्य रखा करेगा, बडे़ बडे़ षोध अनुसन्धान करेगा और देष का नाम उॅचा करेगा और मानवता को बहुत कुछ प्रदान भी करेगा, के लिए सबसे उच्च गुणवत्ता नहीं होना चाहिए? क्या ऐसे स्थानो पर आरक्षण को पूरी तरह हटा लिया नहीं जाना चाहिए और वहां पर आरक्षण के नाम पर राजनीति करने वालो पर कानूनी कार्यवाही नहीं करनी चाहिए? एक मौका मिलते ही चिकित्सको और स्वयं स्थापित समर्थ षिक्षिको को अपमानित करने का मौका न चूकने वाले मीडिया से मै ये पूछना चाहूॅगा कि ये गन्दी राजनीति षैक्षणिक केन्द्रों से दूर होगी या नहीं? पर जिस तरह से देष का हर कोना सड़ चुका है और लुहेड़ाबाजी करने वालो को कुछ भी मनमानी करने की छूट मिल गयी है अपने अलग ही पैमाने बनाने वाला मीडिया भ्रश्ट विचार फैलाने में पूरा योगदान कर रहा है उससे यही लगता है की हारे कुंठितो को अपनी भड़ास निकालने का मौका आगे भी मिलता रहेगा। आखिर देष के प्रबुद्ध, विचारषील और षिक्षितो को राज्य नीति एवं सामाजिक मार्गदर्षन के लिए वरीयता कब दी जाएगी? आखिर कब तक भ्रश्ट, गंवार, अपराधी और निकृश्ट राजनीतिज्ञ और उनके चेले चपाटे देष को पथभ्रश्ट करते रहेगे? आखिर कब तक ये आरक्षण का वेताल विक्रमादित्य के कंधे पर लटका रहेगा और समूचे देष को ष्मषान बनाये रहेगा? आखिर कब देष के अन्य प्रबुद्धो की ऑख खुलेगी। आखिर कब तक गुण और योग्यता का अपमान देष सहता रहेगा? आखिर कब तक एक अन्याय के नाम पर दूसरा बड़ा अन्याय किया जाता रहेगा? आखिर कब तक किसी परदादे के दोश की सजा उसके संतानो को दी जाती रहेगी? आखिर कब तक नेता और सरकारे अपनी अक्षमता को आरक्षण देकर जनता को मूर्ख बनाते रहेंगे? आखिर हम किस तरह की बराबरी चाहते है? या नेताओ के दुराग्रह से बराबरी आ जाएगी? आखिर कब बंद होगा ये षासकीय अत्याचार? विनय कुमार जैन ..............................................................................................................................................................................

रविवार, 24 जून 2012

janm jra mratu hai- muni pulaksagar


जन्म जरा मृत्यु बिमारी है -मुनि पुलकसागर
14 जून 2012 वे कर्म वर्गणाएॅ जो राग द्वेश के निमित्त से आत्मप्रदेषो के साथ मिलकर कर्म रूप परिणत होकर जीव के आत्म स्वभाव को ढक देती है। उन कार्माण वर्गणाओं को कर्म कहते है। उक्त पवित्र विचार राश्टसंत मुनिश्री पुलकसागर जी महाराज ने आज गुरूवार को न्यू रोहतक रोड मे नवहिंद पब्लिक स्कूल ऑडिटोरियम मे आयोजित मां जिनवाणी षिक्षण षिविर के पांचवे दिवस पर षिविरार्थियो को संबोधित करते हुए व्यक्त किए। मुनिश्री ने आगे षिविरार्थियों को संबोधित करते हुए कहा कि कर्म आठ प्रकार के होते है,ज्ञानावरणी,दर्षनावरणी,वेदनीय,मोहनीय,आयु,नाम,गोत्र और अंतराय। मुनिश्री ने कहा कि जिस कर्म के उदय से आत्मा के ज्ञान के गुण ढंक जाते है उन्हें ज्ञानावरणी कर्म कहते है। किसी ज्ञान के ज्ञान मे विघ्न डालने से पुस्तक फाडने से ,छिपा देने से ज्ञान का गर्व करने से जिनवाण मे संषय करने से ज्ञानावररणी कर्म का बंध होता है। जो कर्म आत्मा के दर्षन गुण को ढंकता है अर्थात प्रकट होने नहीं देता है उसे दर्षनावरणी कर्म कहते है,जिन दर्षन मे विघ्न डालना, किसी की आंख फोड देना, मुनियों को देखकर घृणा आदि करने से दर्षनावरणी के र्म का बंध होता है। मुनिश्री ने कहा कि जो कर्म हमे सुख दुख का वेदन करता है अर्थात अनुभव कराता है उसे वेदननीय कर्म कहते है। अपने व दूसरो के विशय में दुख करना,षोक करना रोग,पषुवध आदि असाता वेदनीय कर्म बंध के कारण है एवं दया करना,दान देना, संयम पालना, व्रत पालना, आदि साता वेदनीय कर्म के बंध के कारण है। मुनिश्री ने मोहनीय कर्म की परिभाशा देते हुए कहा कि जिस कर्म के उदय से आत्मा के सम्यक्त्व और चारित्र गुण का घात होता है। सच्चे देव षास्त्र गुरू और धर्म मे दोश लगाना मिथ्या देव षास्त्र गुरू की प्रषंसा करना, क्रोधादि कशाय करना, राग द्वेश करना मोहनीय कर्म के बंध का कारण है। मुनिश्री ने कहा कि जिस कर्म के उदय से जीव को चारो गतियों में से किसी एक गति में निष्चित समय तक रहना पडता है,उसे आयु कर्म कहते है। बहुत हिंसा करना, बहुत आरंभ करना,परिग्रह रखना,छल कपट करना, अषुभ आयु कर्म के बंध के कारण है, और व्रत पालन करना, षांतिपूर्वक दुख सहना आदि षुभ आयु कर्म के बंध के कारण है। नाम कर्म की को षिविरार्थियो को समझाते हुए कहा कि नाम कर्म के उदय से षरीर की प्राप्ती होती है। मन, वचन, काय को सरल रखना, धर्मात्मा को देखकर खुष होना, धोखा नहीं करना, षुभ नाम कर्म का कारण है। एवं त्रियोग कुटिल रखना, दूसरो को देखकर हंसना, उसी की नकल करना आदि अषुभ नामकर्म का कारण है। मुनिश्री ने गोत्र कर्म को समझाते हुए कहा कि गोत्र कर्म के उदय से प्राणी उच्च नीच कुल मे जन्म लेता है, उसे गोत्र कर्म कहते है। अपने गुण और दूसरों के अवगुण प्रकट करना, अश्ट मद करना, आदि नीच गोत्र का कारण है। एवं दूसरो के गुण और अपने अवगुण प्रकट करना अश्ट मद नहीं करना उच्च गोत्र कर्म का कारण है। मुनिश्री ने अंतिम कर्म अंतराय कर्म को समझाते हुए कहा कि जो कर्म दान,लाभ भोग,उपभोग, और षक्ति में विघ्न डालता है उसे अंतराय कर्म कहते है। मुनिश्री ने कहा कि दान देने से रोक देना, आश्रितों को धर्म साधन नहीं देना, किसी की मांगी वस्तु को नहीं देना, आदि अंतराय कर्म के कारण है।

ma jinwani sivir sampnna... muni pulaksagar ji


न्यू रोहतक रोड में सानंद सम्पन्न हुआ मां जिनवाणी षिक्षण षिविर जिनषरंण तीर्थ मे स्थापति होगी करोग बाग जैन समाज की ओर से 101 मूर्तियां
17 जून 2012 हिंसा, झूठ, चोरी, कुषील, परिग्रह, पाप, पुण्य, जीव, अजीव, सम्यक, मिथ्यात्व, रागी, द्वेशी और ऐसे ही जैन धर्म के अनेक विशयों की सूक्ष्म व्याख्या न्यू रोहतक रोड मे आयोजित सात दिवसीय मां जिनवाणी षिक्षण षिविर में पूज्य गुरूदेव मुनिश्री पुलकसागर जी गुरूदेव के मुखारविंद से षिविरार्थियों ने अर्जित की। वैसे तो जैन धर्मालम्बी इन विशयो को जानते है लेकिन मुनिश्री ने इन सबको जो गहराई से वर्णन किया है निष्चित ही यह ज्ञान समस्त षिविरार्थियो के लिए जीवन पर्यंत प्रेरणा प्रदायी बना रहेगा। षिविर सानंद सम्पन्नः- न्यू रोहतक रोड मे मुनिश्री के सानिध्य मे आयोजित 10 जून से 17 जून तक आठ दिवसीय मां जिनवाणी षिक्षण षिविर का आज सानंद समापन हो गया। इस अवसर पर विषेश योग्यता अर्जित करने वाले षिविरार्थियों को सम्मानित किया गया। इस षिविर के दोनो सत्रो मे करीब 550 षिविरार्थियों ने भाग लिया। जिनषरणं तीर्थ में दानदातारो की लगी होडः- मुनिश्री की पावन प्रेरणा से मुम्बई सूरत मेगाहायवे पर उपलाट ग्राम के नजदीक निर्मित किए जा रहे जिनषरणं तीर्थ मे 101 मूर्तियां करोग बाग की समस्त दिगम्बर जैन समाज की ओर से प्रदान करने की घोशणा इस अवसर पर अध्यक्ष अनिल जैन की ओर से की गई। साथ ही न्यू रोहतक रोड निवासी श्रीमति सुशमा जैन, श्रीमति अलका जैन, श्री वीरचंद्र बडजात्या उशा जैन, गजेन्द्र गीता जैन, विनोद उशा जैन, सुभाश जी सगुन जैन, नवीन जैन, जी पी जैन अतुल जैन आदि अन्य श्रावकगणों ने एक एक मूर्ति तीर्थ मे अपनी तरफ से स्थापित करने की घोशण की समस्त दानदातारों का स्वागत समिति के द्वारा किया गया। मां जिनवाणी पत्राचार पाठ्यक्रम का लक्की डॉः- पूज्य गुरूदेव मुनिश्री पुलकसागर जी गुरूदेव की प्रेरणा एवं आषीर्वाद से संचालित मां जिनवाणी पत्राचार पाठ्यक्रम मे सम्मिलित हुए लगभग 50 हजार स्वाध्यायियों का लक्की डॉ किया गया जिसमे दो लाख रूपये की नगद पुरूस्कार वितरित किये गये। इस अवसर पुलक जन चेतना मंच के रा.षिक्षा मंत्री श्री सोहनलाल कलावत भी मौजूद थे। श्री कलावत जी ने इस अवसर पर बताया कि पूरे भारत वर्श मे 50 हजार से अधिक स्वाध्यायी प्रति वर्श इस पत्राचार परीक्षा मे सम्मिलित होते है। आज के मेगा डॉ में 100 से अधिक भाग्यषाली स्वाध्यायियों को दो लाख से अधिक के नगद पुरूस्कार वितरित किये गये। प्रथम पुरूस्कार राषी 21 हजार रूपये श्रीमति रजनी जैन ऋशभदेव राजस्थान, द्वितीय पुरूस्कार राषी 11 हजार रूपये प्रिन्सी अल्पेष जैन अंधरी मुम्बई तथा तृतीय पुरूस्कार नगर 5 हजार रूपये सुश्री हीरल जैन झाबुआ मध्यप्रदेष को प्राप्त हुए।

sant hi samaj ko akta me bandh sakta hai- muni pulaksagar


संत ही समाज को एकता के सूत्र मे बांध सकते है- मुनि पुलकसागर न्यू राजेन्द्र नगर में हुआ दिगम्बर एवं ष्वेताम्बर संतो का मिलन 21 जून 2012 भगवान ना मंदिर मे मिलता है ना मस्जिद मे मिलता है, भगवान को बाहर खोजने की आवष्यकता नहीं है वह तो तुम्हारे अंतस मे ही विराजमान है, बस जरूरत है अपने अंतस मे झांकने की और भगवान तुम्हें मिल जाएगा। उक्त विचार राश्टसंत मुनिश्री पुलकसागर जी महाराज ने न्यू राजेन्द्रनगर स्थित जैन मंदिर मे श्रावको को संबोधित करते हुए व्यक्त किए। इस अवसर पर ष्वेताम्बर जैनाचार्य डॉ लोकेष मुनि जी एवं आचार्य सुषीलकुमार जी महाराज साब के सुषिश्य विवेक मुनि जी एवं सिद्धेष्वर मुनिजी भी एक मंच पर उपस्थित थे। मुिनश्री पुलकसागर जी महाराज ने धर्मसभा को आगे संबोधित करते हुए कहा कि जहां तक मै समझता हॅू कि भगवान महावीर अपने जीवन मे किसी भी मंदिर मे नहीं गए होगे उन्होंने तो अपने मन को मंदिर बनाने का प्रयास किया और जो अपने मन को मंदिर बना लेता है सारी दुनिया उसके मंदिर बनाने लग जाती है। आओ अपने मन को ही मंदिर बनाने का प्रयास करे। मुनिश्री ने संतो को समाज का सर्वोसर्वा बताते हुए कहा कि समाज को तोड़ने वाला कौन है, नीचे जो आप लोगे बैठे हो या उपर मंच पर जो संतगण बैठे है। यह बड़ा अकाट्य सत्य है कि समाज को टुकड़ो मे बांटने वाले संत ही है, बेझक इसे स्वीकार करना पडेगा। दिगम्बर, ष्वेताम्बर, तेरह पंथी, बीस पंथी, स्थानकवासी किसने बनाएं । बेषक यह संतो की ही देन है। याद रखना उपर का बटन अगर गलत होता है तो नीचे की बटन अपने गलत लगते है लेकिन उपर का वटन सही होता है तो अपने आप ही सारे बटन सही हो जाया करते है। अगर आज हम संत एक तख्त पर एक साथ बैठे है तो उसका यह परिणाम है कि सारा समाज एक जाजम पर आकर बैठ गया है अगर हम यहां एक साथ नहीं बैठेगे तो समाज भी एक साथ बैठने को राजी नहीं होगी। मुनिश्री ने कहा कि हमारे बुजुर्गो, हमारे पूर्वजों ने गलती की है, हम एक भगवान, एक धर्म के उपासक आज चार टुकड़ो मे बंट गये। संतो की परम्परा की के कारण समाज टूट गई है। जब संतो के कारण समाज टूटी है तो अब संतो का यह जिम्मा है कि वह समाज को एकता के सूत्र मे बांधे। याद रखना जो काटना जानता है वह जोड़ना भी जानता है। जिसने टुकडे किए है समाज के उन्हें ही एक करना पड़ेगा। मुनिश्री ने कहा कि समाज को एकता के सूत्र मे बंधने की जरूरत नहीं है हम संतो को एक होने की जरूरत है समाज तो खुद व खुद एकता के सूत्र मे बंध जाएगी। आज मुझे बहुत खुषी हुई की एक मंच पर ष्वेताम्बर संत एवं दिगम्बर संत एक साथ बैठे। मुनिश्री के संघस्थ प्रवक्ता विनय कुमार जैन ने बताया कि पूज्य गुरूदेव मुनिश्री पुलकसागर जी महाराज के प्रवचन के पहले भी विवेक मुनि जी महाराज साब ने अपने उद्गार व्यक्त करते हुए कहा कि मुनिश्री पुलकसागर जी महाराज का इस आश्रम पधारना बहुत ही सौभाग्य की बात है और इससे सामाजिक एकता को बल मिलेगा। इस अवसर पर डॉ लोकेष मुनि जी ने अपने उद्गारो सामाजिक एकता व अखण्डता पर बल दिया। मुनिश्री पुलकसागर जी महाराज का 21 एवं 22 जून को न्यू राजेन्द्र नगर मे प्रवास रहेगा तत्पष्चात मुनिश्री 23 जून को लालमंदिर मे एक दिवसीय प्रवास रहेगा। 24 जून से 30 जून तक कैलाषनगर गली नं. 12 मे प्रवास रहेगा। मुनिश्री भोलानाथ नगर मे चातुर्मास हेतु 1 जुलाई को प्रवेष करेगे। 8 जुलाई को चातुर्मास मंगल कलष की स्थापना दोपहर 1 बजे से नेपाल ग्राउण्ड कड़कडडूमा कोर्ट के पास होगी। विनय कुमार जैन फोटो कैप्षन- बांए से सिद्धेष्वर मुनि जी, डॉ लोकेष मुनिश्री, विवेक मुनिजी, राश्टसत मुनिश्री पुलकसागर जी गुरूदेव, मुनिश्री प्रसंगसागर जी महाराज

mot jeewan ka atal satya- muni pulaksagar ji


मृत्यु जीवन का अटल व अंतिम सत्य- मुनि पुलकसागर 23 जून को मुनिश्री का लालमंदिर मे प्रवास
22 जून 2012 संयासी और संसारी दोनो इस संसार मे रहते है, संयासी संसार से पार होता है लेकिन संसारी इसमे उलझता जाता है। उक्त विचार राश्टसंत मुनिश्री पुलकसागर जी महाराज ने न्यू राजेन्द्रनगर स्थित जैन मंदिर मे श्रावको को संबोधित करते हुए व्यक्त किए। इस अवसर पर ष्वेताम्बर जैनाचार्य सुषीलकुमार जी महाराज साब के सुषिश्य विवेक मुनि जी एवं सिद्धेष्वर मुनिजी भी एक मंच पर उपस्थित थे। मुिनश्री पुलकसागर जी महाराज ने धर्मसभा को आगे संबोधित करते हुए कहा कि संयासी इस संसार मे इस तरह रहता है जैसे मख्खन मे सिर का बाल। मख्खन मे से अगर बाल को बाहर निकालना हो तो आराम से वह बाहर आ जाता है लेकिन संसारी संसार मे गोबर के उपले मे फंसे हुए बाल की तरह होता है जो टूट तो जाता है लेकिन उपले मे से बाल वापिस निकलता नहीं है। संसारी जीव भी संसार की विशय वासना मे ऐसा उलझ जाता है कि वह नहीं निकल पाता। दबे दबे पांव मौत आती है आने दो आफत मिट जाये तो मन मत घबराने दो मृत्यु से अंत नहीं, प्राण मुखर होते है देह बदल जाने दो खेल खेल मे जब खिलौनी टूट जाता है बालक रो देता है, ज्ञानी मुस्कुराता है है आत्मा के जौहरी को इस बात का फर्क कहां कौन जन्म लेता है, कौन मृत्यु पाता है। मुनिश्री कहा कि जीवन मे धन, दौलत, रूपया, पैसा, नौकरी कमा सको या ना कमो सको। जीवन मे उंचाईयो प्राप्त कर सको या ना करो लेकिन मौत जरूर आएगी। मौत सभी को एक ना दिन आएगी चाहे वो संसारी हो या संयासी। संयासी और संसारी मे केवल इतना ही अंतर है कि जब भी संयासी की मौत आती है तो उसकी मृत्यु साधना मे होती है लेकिन संसारी की मृत्यु वासना के संस्तर पर होती है। विनय कुमार जैन फोटो कैप्षन- बांए से सिद्धेष्वर मुनि जी,विवेक मुनिजी, राश्टसत मुनिश्री पुलकसागर जी गुरूदेव, मुनिश्री प्रसंगसागर जी महाराज

pulaksagar

राष्टसंत मुनिश्री पुलकसागर जी महाराज अभी कैलाषनगर गली नं.12 स्थित श्री दिगम्बर जैन मंदिर मे प्रवासरत है। मुनिश्री का यहां प्रवास 30 जून तक रहेगा। भोलानाथनगर मे चातुर्मास हेतु भव्य मंगल प्रवेष 1 जुलाई को प्रातः 7 बजे होगा। प्रस्तुत है मुनिश्री पुलकसागर जी गुरूदेव से भेटवार्ता
प्रष्नः- हथियार के प्रहार से भी ज्यादा पीड़ादायक क्या है? मुनिश्री:-उपेक्षाए प्रष्न:-सच्चा पछतावा कब होता है? मुनिश्री:- जब हमे पता चलता है कि हम गलत थे। प्रष्न:-क्या जहां लहू के संबंध होते है वहां प्रेम होता ही है? मुनिश्री:-प्रेम का संबंध लहू से नहीं आत्मीयता व विश्वास से होता है। प्रष्न:-अपने ऊपर होने वाले अन्याय से कैसे बचे? मुनिश्री:-यदि तुम्हें लगता है कि सचमुच ही मुझ पर अन्याय हो रहा है तो मेरी राय है अन्याय करना व सहना दोनो ही अपराध है उनका डटकर मुकाबला करो। प्रष्न:-अहंकार का मेरू कैसे पिघला सकते है? मुनिश्री:-दिन मे एक बार समय निकालकर किसी जलती चिता या अर्थी को देख लिया करो। प्रष्न:-माता पिता के भूतकाल के उपकार एवं वर्तमान के चिड़चिड़े स्वभाव के साथ स्वस्थतापूर्वक कैसे जिया जाये? मुनिश्री:-याद करो जब बचपन मे तुम चिड़चिड़े थे तब भी माता पिता तुम्हें प्यार करते थे आज जब वो चिड़चिडे है तब भी उनका तुम्हें सम्मान करना चाहिये। प्रष्न:-जीवन मे सतत प्रसन्नता का अनुभव करने हेतु क्या करना चाहिये? मुनिश्री:-हर परिस्थिती मे अपने आपको सौभाग्यशाली महसूस करे। सोचे कि मै किस्मत वाला हॅू जो मनुष्य बना हॅू। प्रष्न:-हृदय की भाषा व बुद्धि की भाषा मे क्या अंतर है?
मुनिश्री:-हृदय आदमी को भावुक करता है और बुद्धि तर्क पैदा करती है। प्रष्न:-अपने एकलव्य जैसे भक्तो के लिए आपका क्या संदेश हो सकता है? मुनिश्री:- मेरे एकलव्य भक्तो! मै तुम्हें विश्वास दिलाता हॅू कि मै वह द्रोणाचार्य नहीं बनूंगा जो तुमसे तुम्हारा अंगूठा मांग लूंगा। मगर हां तुम्हें जरूरत पड़े तो मेरा अंगूठा मांग लेना। प्रष्न:-व्यक्ति के मन मे पल-पल अत्यंत अशुभ विचार क्यो आते है? मुनिश्री:-जब किसी व्यक्ति का अतीत गहन अशुभ मे बीतता है तो वही अशुभ अतीत उसे अपनी ओर खीचता है और अशुभ विचार उठने लगते है। प्रष्न:-अच्छा लगना या चाहने मे क्या अंतर है? मुनिश्री:- चाहत का जन्म अच्छे की कोख से होता है इसलिए दोनो मे फर्क न करके आगाढ़ संबंध समझना चाहिये। प्रष्न:-माता पिता एवं गुरू को धन्यवाद किस प्रकार दिया जा सकता है? मुनिश्री:- जीवन भर माता पिता की सेवा एवं गुरू की आज्ञा का पालन करो। प्रष्न:-अदालत पर गीता पर हाथ रखकर कसम क्यो खिलाई जाती है? मुनिश्री:- अदालत मे सिवाय लड़ाई के कुछ नहीं होता और गीता का जन्म लड़ाई के मैदान मे ही हुआ है। प्रष्न:-समस्या ग्रसित वर्तमान सामाजिक परिवेश का सजीव चित्रण कैसे कर लेते है? मुनिश्री:- मै कैमरे की तरह समाज की समस्याओं को टकटकी लगाकर देखता हॅू और जब प्रवचन सभा रूपी डी.व्ही.डी. से मेरा कनेक्शन हो जाता है तो मै जो देखता हॅू उसे दिखा देता हॅू। प्रष्न:-आपके जीवन का अद्भुत व आद्वितीय क्षण कौन सा है? मुनिश्री:- मेरी साधना के हर पल आद्वितीय और अद्भुत है। प्रष्न:-भू-गर्भ से प्रतिमाओं का मिलना क्या वाकई चमत्कार है? मुनिश्री:- प्रतिमा चमत्कार है या नहीं ऐ तो नहीं कह सकता पर जो प्रतिमा निकालता है उसकी वाह-वाह का चमत्कार जरूर हो जाता है। प्रष्न:-इंसान को खाने व पीने जैसी कौन सी चीजे है? मुनिश्री:- आज के परिवेश मे खाने के लिए दूसरो की दोलत पीने के लिए अपनो का खून यह चाहिये कि खाने के लिए अपनी बुराईयां और पीने के लिए दूसरी की कमजोरियां होना चाहिये। प्रष्न:-लगातार पांच पंचकल्याणक क्या शतक लगाने की तैयारी? मुनिश्री:- शतक तो नहीं लगाना है पर मै यह सोचता हॅू कि शायद मै भगवान को अच्छा लगने लगा हॅू और उनका कृपा पात्र बन गया हॅू। प्रष्न:-गुरूदेव हमे जीवन मे क्या संग्रहण करना चाहिये? मुनिश्री:-हमे जीवन मे वह संग्रहण करना चाहिये जो दूसरो के लिए आदर्श बने। प्रष्न:-सच्चा तपस्वी आप किसे कहेगे? मुनिश्री:- जो समाज की नहीं अपनी नजरो मे ईमानदार हो। जो अपने संयास के प्रति वफादार हो। प्रष्न:-विचारो की उथल-पुथल को कैसे शांत करे? मुनिश्रीः- जिसके प्रति विचारो मे उथल-पुथल है उसके साथ पल भर भी देर किये बिना अपने विचारो को रखने से। gDw1tujNI/AAAAAAAAAcY/GWDWT5kr4og/s1600/1.jpg" imageanchor="1" style="clear:left; float:left;margin-right:1em; margin-bottom:1em"> ः-विनय कुमार जैन

बुधवार, 13 जून 2012

janam jra mratu bimari hai- muni pulaksagar

जन्म जरा मृत्यु बिमारी है -मुनि पुलकसागर 14 जून 2012 वे कर्म वर्गणाएॅ जो राग द्वेश के निमित्त से आत्मप्रदेशो के साथ मिलकर कर्म रूप परिणत होकर जीव के आत्म स्वभाव को ढक देती है। उन कार्माण वर्गणाओं को कर्म कहते है। उक्त पवित्र विचार राष्टसंत मुनिश्री पुलकसागर जी महाराज ने आज गुरूवार को न्यू रोहतक रोड मे नवहिंद पब्लिक स्कूल ऑडिटोरियम मे आयोजित मां जिनवाणी शिक्षण षिविर के पांचवे दिवस पर शिविरार्थियो को संबोधित करते हुए व्यक्त किए। मुनिश्री ने आगे शिविरार्थियों को संबोधित करते हुए कहा कि कर्म आठ प्रकार के होते है,ज्ञानावरणी,दर्शनावरणी,वेदनीय,मोहनीय,आयु,नाम,गोत्र और अंतराय। मुनिश्री ने कहा कि जिस कर्म के उदय से आत्मा के ज्ञान के गुण ढंक जाते है उन्हें ज्ञानावरणी कर्म कहते है। किसी ज्ञान के ज्ञान मे विघ्न डालने से पुस्तक फाडने से ,छिपा देने से ज्ञान का गर्व करने से जिनवाणी मे संशय करने से ज्ञानावररणी कर्म का बंध होता है। जो कर्म आत्मा के दर्शन गुण को ढंकता है अर्थात प्रकट होने नहीं देता है उसे दर्शनावरणी कर्म कहते है,जिन दर्शन मे विघ्न डालना, किसी की आंख फोड देना, मुनियों को देखकर घृणा आदि करने से दर्शनावरणी के कर्म का बंध होता है। मुनिश्री ने कहा कि जो कर्म हमे सुख दुख का वेदन करता है अर्थात अनुभव कराता है उसे वेदननीय कर्म कहते है। अपने व दूसरो के विषय में दुख करना,शोक करना रोग,पशुवध आदि असाता वेदनीय कर्म बंध के कारण है एवं दया करना,दान देना, संयम पालना, व्रत पालना, आदि साता वेदनीय कर्म के बंध के कारण है। मुनिश्री ने मोहनीय कर्म की परिभाषा देते हुए कहा कि जिस कर्म के उदय से आत्मा के सम्यक्त्व और चारित्र गुण का घात होता है। सच्चे देव शास्त्र गुरू और धर्म मे दोष लगाना मिथ्या देव शास्त्र गुरू की प्रशंसा करना, क्रोधादि कषाय करना, राग द्वेष करना मोहनीय कर्म के बंध का कारण है। मुनिश्री ने कहा कि जिस कर्म के उदय से जीव को चारो गतियों में से किसी एक गति में निश्चित समय तक रहना पडता है,उसे आयु कर्म कहते है। बहुत हिंसा करना, बहुत आरंभ करना,परिग्रह रखना,छल कपट करना, अशुभ आयु कर्म के बंध के कारण है, और व्रत पालन करना, शांतिपूर्वक दुख सहना आदि शुभ आयु कर्म के बंध के कारण है। नाम कर्म की को शिविरार्थियो को समझाते हुए कहा कि नाम कर्म के उदय से शरीर की प्राप्ती होती है। मन, वचन, काय को सरल रखना, धर्मात्मा को देखकर खुश होना, धोखा नहीं करना, शुभ नाम कर्म का कारण है। एवं त्रियोग कुटिल रखना, दूसरो को देखकर हंसना, उसी की नकल करना आदि अशुभ नामकर्म का कारण है। मुनिश्री ने गोत्र कर्म को समझाते हुए कहा कि गोत्र कर्म के उदय से प्राणी उच्च नीच कुल मे जन्म लेता है, उसे गोत्र कर्म कहते है। अपने गुण और दूसरों के अवगुण प्रकट करना, अष्ट मद करना, आदि नीच गोत्र का कारण है। एवं दूसरो के गुण और अपने अवगुण प्रकट करना अष्ट मद नहीं करना उच्च गोत्र कर्म का कारण है। मुनिश्री ने अंतिम कर्म अंतराय कर्म को समझाते हुए कहा कि जो कर्म दान,लाभ भोग,उपभोग, और शक्ति में विघ्न डालता है उसे अंतराय कर्म कहते है। मुनिश्री ने कहा कि दान देने से रोक देना, आश्रितों को धर्म साधन नहीं देना, किसी की मांगी वस्तु को नहीं देना, आदि अंतराय कर्म के कारण है। विनय कुमार जैन

मंगलवार, 12 जून 2012

pooja sadev adhik guno walo ki hoti hai -muni pulaksagar

पूजा सदैव अधिक गुणों वालो की होती है- मुनि पुलकसागर 12 जून 2012 दिल्ली, कभी अपने आप से प्रश्न करना की मै कौन हॅू आप चमडी हो, खून हो, मांस हो, हड्डी तुम हो। अगर इनमे से तुम कुछ हो तो इनके क्षतिग्रस्त हो जाने पर हम मरते नही है इसलिए इनमे से तुम कुछ भी नहीं हो। उक्त प्रेरक विचार राष्टसंत मुनिश्री पुलकसागर जी महाराज ने मंगलवार को न्यू रोहतक रोड स्थित नवहिंद पब्लिक स्कूल के ऑडिटोरियम मे आयोजित मां जिनवाणी शिक्षण शिविर के तृतीय दिवस पर शिविरार्थियों को संबोधित करते हुए व्यक्त किए। उन्होंने शिविरार्थियो को संबोधित करते हुए आगे कहा कि अपना हाथ किसी को क्षति पहुंचा सकता है और करूणा, आशीर्वाद भी बन जाता है, शरीर भी बोलता है केवल जुवान नही बोलती हैं। यही हाथ शराब भी ले सकता है और गंधोदक भी ले सकता है। हमारा हाथ क्या ग्रहण करेगा उसको जो यह आदेश देता है वह तुम हो। जो आंखे देख रही है वह तुम नही हो अपितु जो उन आंखो मे देखने की शक्ति प्रदान कर रहा है वह तुम हो। मुनिश्री ने आगे शिविरार्थियो को संबोधित करते हुए कहा कि याद रखना मुर्दे भोजन ग्रहण नहीं करते केवल जीवित इंसान ही भोजन ग्रहण कर सकते है। दुनिया मे सारा खेल शक्तियों का है और मानव शरीर मे सारी खेल आत्मा का है। शक्तिविहीन कुछ भी कार्य करने मे असमर्थ होता है उसी प्रकार जब आत्मा हमारे शरीर से निकल जाती है तो शरीर भी कुछ काम का नही होता है। मुनिश्री ने कहा कि संसारी भी मै हॅू, मोक्ष जाने वाला भी मै हॅू, मै ही नर्क गति, स्वर्ग गति को प्राप्त करता हॅू। मै ही कर्मो का बंध करने वाला और नाश करने वाला हॅू। भीतर जो शक्ति है पावर है वह आत्मा है। आत्मा अलग से कोई वस्तु नहीं है भीतर की उर्जा की आत्मा है। मै निज मे रहने वाला हूॅ पर से मेरा संबंध नहीं। मुनिश्री ने आत्मा के अस्तित्व को उदाहरण के द्वारा समझाते हुए कहा कि वायर के अंदर पावर है जिससे आपके टी व्ही पंखे कूलर चल रहे है लेकिन वह पावर दिखता नहीं है। दिखता नही है फिर भी होता है, वैसी ही हमारी आत्मा दिखती नहीं है लेकिन होती है, आत्मा से ही शरीर से उर्जा मिलती है, आत्मा के द्वारा ही हमे सुख, दुख, की अनुभूति होती है। मुनिश्री ने कहा कि अधिक गुण वाला कम गुण वाले को अपने जैसे बना लेता है। जिस प्रकार लोहे के टुकडे को चुम्बक बनाने के लिए उसको चुम्बक के पास रखना पडता है, जब तक लोहे का टुकडा चुम्बक की शरण मे नहीं आएगा तब तक वह चुम्बक नही बन पाएगा। इसी प्रकार जब तक तुम भगवान के निकट नहीं आओगे तो तुम भी भगवान नहीं बन पाओगे। दूर रहोगे तो उनकी पावर तुम तक नहीं आ पाएगी। मुनिश्री ने कहा कि तुम जैन तो लेकिन जैनी बनने के लिए तुम्हें भगवान जिनेन्द्र के पास जाना पडेगा।

गुरुवार, 7 जून 2012

adhmari samaj poori tarah se mar jaye- muni pulaksagar


अधमरी समाज पूरी तरह से मर जाए या जिंदा हो जाये- मुनि पुलकसागर कुछ काम करके जाना दुनिया मे आने वाले जाते है लाखो लोग बेकार खाने वाले। दिल्ली 8 जून 2012 जो समय एक बार हाथ से निकल जाता है वह दोबारा लौटकर नही आता, एक बार दिन गुजर जाता है या रात बीत जाती है तो वह फिर से वापिस नहीं आती। समय किसी का नौकर नही है बल्कि समय ने सारी दुनिया को अपना नौकर बना रखा है। उक्त प्रेरक विचार राष्टसंत मुनिश्री पुलकसागर जी महाराज ने शुक्रवार को नवहिन्द पब्लिक स्कूल के ऑडिटोरिय मे आयोजित तीन दिवसीय ज्ञान गंगा महोत्सव के द्वितीय दिवस पर श्रावको को संबोधित करते हुए व्यक्त किए। उन्हांेने धर्मसभा को संबोधित करते हुए आगे कहा कि लोग कहते हे कि मै समय काट रहा हॅू बल्कि सच तो यह है कि समय हमारी जिंदगी को काट रहा है। समय सोते जागते अपना काम करता रहता है हर पल हमारी मुठ्ठी से रेत की तरह खिसकता जा रहा है, इसलिए समय की कीमत समझो, नादान होते है वे लोग जो समय की कीमत नही समझते। मुनिश्री ने जीवन के तीन आयाम बचपन, जवानी और बुढापे की तुलना घडी के कांटो से करते हुए कहा कि आपने कभी ख्याल किया घडी मे तीन कांटे हाते है सेकेण्ड, मिनिट और घंटे का। सेकेण्ड का कांटा पतला होता है वह बहत तेज भागता, मिनिट का कांटा चलता है भागता नही है और तीसरा कांटा घंटे का होता है जो ना तो भागता है और ना चलते हुए दिखता है। हमारा बचपन भी सेकण्ड के कांटे की तरह होता है जो जल्दी बीत जाता है, बचपन कैसे बीत जाता है पता ही नहीं चलता है, जवानी मिनिट के कांटे की तरह होती है और बुढापा घंटे की कांटे की तरह होता है जो बहुत धीमा घिसकता है। बस घडी की तरह हमारी जिंदगी होती है। बचपन जवानी कब चली जाताी है पता नही चलता है लेकिन बुढापा घिसट घिसट कर अपनी यात्रा पूरी करती है। मुनिश्री ने जीवन जीवन को परीक्षा पेपर बताते हुए कहा कि आप जब कभी परीक्षा देने जाते तो वह पेपर तीन घंटे का होता है। पहला घंटा जब होता है तो घंटी बजती है वह हमे याद दिलाता है कि दो घंटे बचे है लिखने की स्पीट बढा दो। दो घंटे बीत जाने के बाद सिर्फ एक घंटे बाकी है रिविजन कर लो। और तीसरा घंटा बजने के बाद कुछ भी शेष नही बचता है, हमारी जिंदगी के परीक्षा मे भी तीन घंटे होते है बचपन जवानी और बुढापा जब हमारी तीसरे पन का घंटा बजता है तो यमराज रूपी परीक्षक आता है और जिंदगी का पेपर छीनकर ले जाता है। मुनिश्री ने कहा कि बचपन अपने साथ जवानी को लाता है, जवानी बुढ़ापे को साथ लाती है लेकिन ध्यान रखना बुढापे के बाद कुछ नहीं आता है केवल मौत ही आती है। इस दुनिया मे जिसने भी जन्म लिया है उसको एक दिन इस दुनिया से जाना पडेगा चाहे वह राजा हो या रंक। सभी को एक दिन इस दुनिया से जाना है। लेकिन आपने इस बात पर कभी गौर किया की किसी किसी के जीवन मे जन्म से लेकर मृत्यु तक के बीच मे ऐसा क्या घट जाता है कि उस व्यक्ति को सारी दुनिया जानती है। मुनिश्री ने जीवन मे सफलता के सूत्र के रहस्य का उद्घाटन करते हुए कहा कि जितना भी समय मिला है उसमे कुछ ऐसा कार्य करो ताकि दुनिया तुम्हें याद रखे। मुनिश्री ने उदाहरण के द्वारा समझाया कि आज से 2600 साल पहले हुए भगवान महावीर की मॉ त्रिशला को सभी जानते है, लेकिन आप लोग तो उनसे कभी नही मिले फिर उन्हें पूरा जानता हो जब की पडोस मे रहने वाले को नही जानते। दोनो मे अंतर इतना है कि उन्होने जीवन मे ऐसा कार्य किया है जिनसे सारी दुनिया जानती है। तुम भी अपने जीवन मे ऐसे कार्य करके जाओ कि दुनिया भी हजारो वर्षो तक याद रखे। मुनिश्री ने महापुरूषो के सुकृत्यों के माध्यम से श्रद्धालुओं को उपदेश देते हुए कहा कि डॉ भीमराव अम्बेडकर ने भारत का सविधान, आचार्य कुंदकुंद, गौतम गणधर को उनकी लेखनी के कारण दुनिया उन्हें याद किया करती है। भगवान महावीर, भगवान राम ने कुछ नहीं लिखा लेकिन उन्होंने ऐसे कृत्य किये है जिससे उनके चरित्र को समेटने के लिए हजारो पृष्ठ के ग्रंथ भी कम पडते है। दुनिया मे अपना नाम अमर करने का एक ही सूत्र है कि कुछ लिख जाओ या कुछ ऐसा करके जाओ कि दुनिया तुम पर कुछ लिखने लगे। दुनिया मे राम और रावण दोनो का याद किया जाता है लेकिन जब रावण को याद किया जाता है तो पुतले जलाएं जाते है और जब राम को याद किया जाता है तो मंदिर बनाएं जाते है। मुनिश्री ने अधमरे लोगो को समाज के विकास का अवरोध मानते हुए कहा कि अधमरा आदमी दुनिया का सबसे खतरनाक होता है आदमी अधमरा न जिएं उन्हें मर जाना चाहिए मर जाएंगे तो नई समाज का निर्माण हो जाएगा। आज समाज का विकास इन्हीं अधमरे लोगो के कारण ही रूका हुआ है। यह अधमरा समाज पूरी तरह से जिंदा हो जाये या पूरी तरह से मर जाये। परिवार, समाज व राष्ट का विकास तभी हो पाएगा जब समाज इन अधमरे लोगो से मुक्त होगी। याद रखना पानी 100 डिग्री के तापमान पर ही भाप बनती है गुनगुना पानी कभी भाप नही बनता है। विनय कुमार जैन संघस्थ प्रवक्ता 9910938969

arakshan band kro-vinay jain


बुधवार, 6 जून 2012

jeevan me moska pane ka lakshya banao- muni pulak sagar

जीवन मे मोक्ष पाने का लक्ष्य बनाओं-मुनि पुलकसागर 7 जून से 10 जून तक बहेगी ज्ञान गंगा न्यू रोहतक रोड मे जून 6 मई 2012 रात को भी दिन निकल सकता है,दिन को भी रात हो सकती है,लोग कहते है,समय से पहले और भाग्य से अधिक किसी को कुछ नहीं मिलता लेकिन मेरी श्रद्धा कहती है कि गुरू की कृपा हो जाए तो समय से पहले और भाग्य से अधिक भी मिल सकता है। उक्त विचार राष्टसंत मुनिश्री पुलकसागर जी महाराज ने आज छप्परवाला दिगम्बर जैन मंदिर के हॉल मे श्रावकों को संबोधित करते हुए व्यक्त किए। गुरू के महत्व को प्रतिपादित करते हुए मुनिश्री ने धर्मसभा को संबोधित करते हुए आगे कहा कि गुरू की कृपा से भौतिक सुख-संपदा तो छोड़ो मोक्ष लक्ष्मी को भी प्राप्त किया जा सकता है। मुनिश्री ने कहा कि भगवान की मूर्ति मौन है,शास्त्र मौन है आप जैसा चाहे अर्थ लगा सकते हो पर गुरू मौन नहीं होते है वे मुखर होते है जो तुम्हारे अहंकार पर चोट करते है। याद रखना साधू वही होता है जो तुम्हारे अहंकार पर चोट करे। साधू वह नहीं होता जो तुम्हारे अहंकार की पुश्टि करे। याद रखना मंदिर की मूर्ति कुछ समय पहले तक सड़क का पत्थर हुआ करता है लेकिन जब उस पर किसी शिल्पी की नजर पडती है तो मूर्ति का रूप ले लेता है लेकिन कोई सद्गुरू ही होता है जो उसमे भगवत्ता को प्रकट कर दिया करता है। मुनिश्री ने जीवन मे लक्ष्य बनाने की सीख देते हुए कहा कि हर व्यक्ति के जीवन मे एक न एक लक्ष्य अवश्य होना चाहिए,बिना लक्ष्य के जीवन मे उंचाईयॉ हासिल नहीं हो सकती है। यहां पर जितने भी लोग बैठे है सबका कोई ना कोई लक्ष्य अवश्य होगा। विद्यार्थीयों का लक्ष्य परीक्षा मे सफलता,व्यापारी का पैसा कमाना लक्ष्य हो सकता है लेकिन मै एक बात आपसे बड़ी विन्रमता के साथ कहना चाहता हॅू कि यह लक्ष्य तो चिता के साथ जलकर भस्म हो जाएगे,अगर जीवन मे लक्ष्य बनाना ही है तो निर्वाण को अपना लक्ष्य बनाओ, मोक्ष को अपना लक्ष्य बनाओ। संघस्थ प्रवक्ता विनय कुमार जैन ने बताया कि मुनिश्री पुलकसागर जी महाराज के सानिध्य मे न्यू रोहतक रोड मे 7 जून से 9 जून तक ज्ञान गंगा प्रवचन का आयोजन होगा तथा 10 जून से 17 जून मां जिनवाणी शिक्षण षिविर के तृतीय भाग का आयोजन किया जाएगा। मां जिनवाणी शिक्षण शिविर के फार्म श्री दिगम्बर जैन मंदिर न्यू रोहतक रोड मे प्राप्त किये जा सकते है।

रविवार, 3 जून 2012

santhi man ki sabse badi dolat- muni pulaksagar

षांति मन की सबसे बडी संपदा-मुनि पुलकसागर मुनिश्री 3 जून तक त्रिनगर मे
दिल्ली 3 जून 2012 मन की षांति संपदा सबसे बडी संपदा और अषांति सबसे बडी दरिद्रता है, षांति जीवन में है जीवन स्वर्ग नहीं तो नर्क के समान होता है, जीवन मे अगर षांति है तो अभावो मे आनंद बरसता है, यदि अषांति हुई तो साधन होने के बाद भी जीवन मे आनंद नही होता है। उक्त विचार राश्ट्रसंत मुनिश्री पुलकसागर जी महाराज ने त्रिनगर स्थित जैन धर्मषाला के हॉल मे रविवार को श्रावको को संबोधित करते हुए व्यक्त किए। इससे पूर्व षनिवार की षाम को षास्त्री नगर मे ष्वेताम्बर साध्वियो मे संसघ जैन धर्मषाला मे पधारकर मुनिश्री से आषीर्वाद प्राप्त कर तत्व चर्चा की। मुनिश्री ने धर्मसभा को संबोधित करते हुए आगे कहा कि जहां षांति होती है वही सच्चा धर्म होता है और जहां अषांति होती है वही अधर्म होता है। यदि आपके पास सब कुछ है और षांति नही है तो जीवन व्यर्थ है। मुनिश्री ने षांति को षीतलता का सरोवर बताते हुए कहा कि षांति तो षीतलता का वेा सरोवर है जिसके तट पर हर राहगीर बैठकर षीतलता प्राप्त करना चाहता है और अषंाति पेड के ठूंठ की तरह है जिस पर न तो पुश्प है और न हरी पत्तियॉ इसलिए कोई भी उसके पास जाना नही चाहता। मुनिश्री ने कहा कि सरोवर मे तपन के बाद सूख जाता है तो उसमे दरारे पड जाती है मन भी हमारा सरोवर के समान है अगर इसमे दरारे पड गई तो परिवार बिखर जाएगा। याद रखना सावन आने पर सरोवर की दरारें तो भर जाती है लेकिन मन मे आई दरारें कभी नहीं भरती। विनय कुमार जैन 9910938969

गुरुवार, 31 मई 2012

aarakshan ka nag.... vinay jain

योग्यता और सुपात्रता का जाति से कोई लेना देना नहीं है -विनय जैन आरक्षण का नाग भारत को डसता जा रहा है इसे वापिस पिटारे मे डालो
संविधान निर्माता बाबा भीमराव अम्बेडकर ने सपने मे भी नहीं सोचा होगा जिसस दलित पिछड़े दबे-कुचलों के लिए जीवन भर संघर्श कर संविधान मे विषेश प्रावधानों का उपयोग कर इन्हें मुख्यधारा मे लाने का संकल्प किया था। दलित तो आज दलितो के द्वारा षोशित हैः- आज उसी का दुरूपयोग उन्हीं के अनुयायी अम्बेडकर के नाम पर अपनी-अपनी निहितार्थो की रोटियॉ सेंकने में मषगूल होंगे। आज आरक्षण प्राप्त एक अभिजात्य वर्ग सांसद, मंत्री, विधायक आई. ए. एस, प्रोफेसर, इंजीनियर, डॉक्टर एवं अन्य प्रषासनिक अधिकारी तीन पीढ़ियो से आरक्षण पर अपना एकाधिकार जमाए बैठा है। अब ये वास्तविकों का हक मार उन्हें मुख्य धारा मे आने से रोकने के लिए उच्च वर्ग की तरह व्यवहार कर रहा है। उसे डर है कि कही ये आरक्षण का फल उससे छिन न जाये? आरक्षण-नेताओ के लालच और स्वार्थ सिद्धि का साधनः- आरक्षण को कुछ जातियों के प्रति समाज में व्याप्त भेदभाव को मिटाने के लिए संविधान मे बस आरंभ के मात्र दस पंद्रह वर्शो के लिए लाने की व्यवस्था की गयी थी,पर तब से आरक्षण व्यवस्था के रूप में नेताओं को राजनैतिक हथियार के रूप में देष की हर व्यवस्था से खेलने का मानो सर्वाधिकार मिल गया है। अब किन्ही जातियों को सहानुभूति के नाम पर देष के सारे संसाधनों, सारी व्यवस्थाओ मे सही योग्यता न होने पर भी खुली छूट बांटी जा रही है और ये सब सार्वभौमिक न्याय, नैतिकता और आदर्षो को ताक पर रखकर, देष के अधिसंख्य नागरिको के साथ अन्याय करके, योग्यता, कुषलता, मेहनत गुण और वास्तविक सामर्थय का अपमान करते हुए किया जा रहा है और जो अब राजनेताओं के लालच और स्वार्थ को सींचने का नियमित साधन बन गया है।
आरक्षण-देष के लिए खतराः- योग्यता और सुपात्रता का जाति से कोई लेना देना नहीं है और उसी तरह कुपात्रता और योग्यता का भी। जिस तरह से मात्र राजनैतिक हवस के लिए देष के भविश्य और समाज हित के साथ खुले आम खिलवाड़ चल रहा है वो राजनितिक डालो के लिए तो फायदेमंद है पर समूचे देष के लिए गहरा खतरनाक बनता जा रहा है। कम से कम इन्हें तो बख्ष दोः- आरक्षण के नाम पर देष के हर प्रतिश्ठित, विष्वनीय और निश्पक्ष षैक्षणिक संस्थान जैसे अखिल भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान या मैनेंजमेंनट बिजनेस संस्थानो इत्यादि अन्य सभी उच्च षिक्षा केन्द्रो को नेताओं के गंदे राजनीतिक खेल, सामाजिक कुंठा का बदला निकालने का, भीड़ जुटाकर नाजायज बात मनवाने और सरकारी जाति आधारित आयोगो के समर्थन से अवैध अधिकारों को पाने का अड्डा बना दिया गया है। अब षिक्षण संस्थानों को अपने चुनौतीपूर्ण महत्वपूर्ण कार्यो में कम और सरकारों और कोर्टो को सफाई देने मे अधिक व्यस्त रहना पड़ता है। आरक्षण-गुंडागर्दी एवं ब्लेकमेलिग का रास्ताः- आज कोई जातिवादी आयोग, कोई निकृश्ट नेता या मीडिया निर्धारित कर रहा है की एक षिक्षण संस्थान किस तरह काम करे। इसी का परिणाम है की वह छात्र जो सवर्ण छात्र के 90 परसंेट नही के अंको के मुकाबले 40 या 45 परसेंट पाकर विष्व में किसी भी सामान्य अभ्यर्थी के लिए अकल्पनीय और दुर्लभ विष्वप्रतिश्ठित डिग्री पा जाता है और उस चुनौती के योग्य न होने पर आगे चलकर अपने अक्षमता के जग जाहिर हो जाने पर उसे स्वीकार भी नही करता और उसे स्वीकार कर सुधरने की जगह गलत दिषा मे चला जाता है और उपलब्ध राजनैतिक संगठनो और दलो का संरक्षण लेकर राजनैतिक गुंडागर्दी और संवैधानिक ब्लैकमेल का रास्ता अपनाता है। नेताओ अपना इलाज इन्हीं अयोग्य डॉक्टरो से कराओः- सामान्य वर्ग के अभ्यर्थियो के योग्य होने के बावजूद सींटे नहीं भरी जाती भले ही उसमे संस्थान और जनता का अहित होता रहे। आज यही निम्नीकरण हर संस्थान, सरकारी महकमे, हर पद और सीट पर किया जा रहा है और वोट बैंक की राजनीति करके देष की कार्यकुषलता को घटिया बनाने का पूरा दूरगामी इंतेजाम किया जा रहा है,बड़े ही षर्म की बात है कि एक अयोग्य आरक्षित छात्र जो षायद किसी और क्षेत्र मे सफल हो सकता हो उसे जबरस्ती उच्च षैक्षणिक पदों और अधिकारों पर बिठाया जा रहा है। जबरदस्ती डॉक्टर बनाया जा रहा है, और अब तो आरक्षण की खैरात पाना भी अपना अधिकार बताया जा रहा है। और जब ये नेता इन अयोग्य आरक्षितो को डॉक्टर बना रहे है तो अपना इलाज इन्हीं से क्यो नही कराते क्यो विदेष चले जाते है?
आरक्षण-एक लौलिपौप हैः- आरक्षण का लौलिपौप वास्तव में नेताओं के लिए स्थाई बोटबैंक बनाने का एक तरीका है और जिसमे विभिन्न जातियों के लोग सामान्य स्तर पर श्रम करने और संघर्श मे स्वयं को विकसित नहीं कर पाते जिसे उन्हें पैरो पर खडा होने मे कोई वास्तविक मदद नही मिलती बस मुप्त सामान पाने के सुख और किसी को दान देने का दंभ यही इसका कुल परिणाम है, पर राश्टीय संपदा या अधिकार कोई मुप्त में बॉटने या यू ही देने की वस्तु नहीं है सभी देषवासियों को अपना कौषल दिखने, अपना परिवार चलाने और धन कमाने का जन्म सिद्ध अधिकार है पर देष को भी न्याय और राश्टहित को अक्षुण्य रखने का अधिकार है। विनय कुमार जैन 9910938969

बुधवार, 30 मई 2012

guru aadesh hi mere jivan ka aadhar- muni pulaksagar

गुरू आदेष ही मेरे जीवन का आधार-मुनि पुलकसागर भोलानाथनगर ने लगाई मुनिश्री के चातुर्मास की हैट्रिक 27 मई 2012 अभी तक मुझे विभिन्न कॉलोनियो से चातुर्मास हेतु निमंत्रण आए। मै चाहता तो यहां मजमा लगा सकता था, सबको यहां बुला सकता था लेकिन थोडी सी ख्याती के लिए एक को खुष करके नौ को दुखी करना मेरा स्वभाव नहीं है। मै ऐसा चातुर्मास नहीं करना चाहता जिससे कोई दुखी हो।
उक्त विचार राश्ट्रसंत मुनिश्री पुलकसागर जी महाराज ने षंकरनगर स्थित जैन मंदिर के हॉल मे रविवार को श्रावको को संबोधित करते हुए व्यक्त किए। इस अवसर पर मुनिश्री के आगामी चातुमार्स के लिए षंकरनगर जैन समाज की ओर से निवेदन किया गया। चातुर्मास के लिए क्या लॉटरी निकालनाः- मुनिश्री ने आगे कहा कि संतो का काम रूलाना नहीं हंसाना होता है। आज कल यह परम्पराएं हो रही है कि दस दस समाज से श्रीफल भेट करा लेते है फिर चातुर्मास के लिए लॉटरी निकाली जाती है यह सब नौटंकी है, हल्की पब्लिसिटी पाने का तरीका है। मै यह सब मे विष्वास नहीं करता हॅू। मेरे गुरूदेव आचार्य श्री पुश्पदंतसागर जी महाराज का आदेष जहां का होता है मै वही चातुर्मास करता हॅू। जहां दो किये वहां तीसरा भी:- मुनिश्री ने कहा कि जब तक मेरी सांसे चले तब तक मै भगवान महावीर से यही प्रार्थना करूंगा कि हे प्रभू मै जो भी कार्य करूं उन सब मे मेरे गुरूदेव का आषीर्वाद जरूर रहे। और आज उन्हीं गुरूदेव के द्वारा लिखित यह पत्र आया है जिसमे मुझे आगामी चातुर्मास के लिए आदेष दिया गया है कि जहां पहले दो चातुर्मास किये है वहां तीसरा भी करो। आगामी चातुर्मास भोलानाथ नगर मे करने का आदेष प्राप्त हुआ। गुरू की पाती षिश्य के नामः- इस अवसर पर जब मुनिश्री ने आचार्य श्री पुश्पदंतसागर जी महाराज द्वारा भेजे गए पत्र को पढा और आगामी चातुर्मास की घोशण की तो समूचा हॉल तालियों की गडगडाहट और जयकारों से गूंज गया। दिल्ली भारत की और यमुनापार जैन की राजधानी है क्योकि सबसे अधिक जैनो की आबादी इसी क्षेत्र मे निवासरत है। षंकरनगर मे आयोजित मां जिनवाणी षिक्षण षिविर जिस प्रभावना की उंचाई पर पहुंचा है उसका श्रेय बेषक जैन समाज षंकरनगर को ही जाता है। इस अवसर पर षिविर मे विषेश योग्यता अर्जित करने वाले षिविरार्थियो को पारितोशिक एवं प्रमाण पत्र देकर सम्मानित किया गया। भीड जुटा लेने का नाम चातुर्मास नहींः- चातुर्मास का महत्व बताते हुए मुनिश्री ने कहा कि चातुर्मास मे साधू को अपनी साधना मे उतरने का मौका देता है। जैन धर्म प्रभावना की उंचाईयो पर चढ़े। चातुर्मास का अर्थ यह नहीं है कि भीड जुटा लेना, करोडो की बोलिया लग जाना, बडे बडे पाण्डाल लग जाना, बेनर पोस्टर लग जाने जाना, अखबारबाजी हो जाना चातुर्मास का अर्थ होता है कि दिगम्बर जैन परम्परा मे जो साधू है उन्होंने अपने साधना काल मे कितनी साधना व विरक्ति को बढाया उसका नाम चातुर्मास होता है। साधना का चार्जर है चातुर्मासः- चातुर्मास साधना का काल है। चातुर्मास अध्ययन का काल है। साधू एक जगह स्थिर रहकर अध्ययन करते है। अपनी साधना को बढ़ाते है क्योकि विहारी आदि नहीं होता है। मुनिश्री ने कहा कि जिस प्रकार मोबाइल को चार घंटे चार्ज कर लो तो वह 12 घंटे तक चलता है उसी प्रकार साधू चार महिने तक साधना, तपस्या करते है और आठ महिने तक उसी त्याग, तपस्या के बल पर आठ महिने सर्वत्र विहार करके धर्म की प्रभावना किया करते है। चातुर्मास मेरा नहीं तुम्हारा होगाः- चातुर्मास मे आपको संयम का ध्यान रखना है, यह सोचना है कि हम कितनी साधना कर पाते है। कहीं ऐसा ना हो कि मुंह मे पान मसाला दबा हो और नारे लगा रहे हो कि हर मां का लाल कैसा हो पुलकसागर जैसा हो। ध्यान रखना यह चातुर्मास मेरा नहीं हकिकत मे तुम्हारा है। तुम कितनी साधना कर सकते हो, जैन धर्म का नाम कितना रौषन कर सकते हो यह चातुर्मास इसी समीक्षा का काल होता है।

jisse sansari jivo ki pahchan ho indriya kahlati hai. - muni pulak sagar

जिससे संसारी जीवो की पहचान हो इन्द्रिय कहलाती है-मुनि पुलकसागर कृश्णानगर मे आचार्य संमतिसागर जी से मिले मुनिश्री 23 मई 2012 जिससे संसारी जीवो की पहचान होती है उसे इन्द्र्रिय कहते है। इन्द्रिय पांच होती है। स्पर्षन इन्द्रिय,रसना इन्द्रिय, घ्राण इन्द्रिय, चक्षु इन्द्रिय और कर्ण इन्द्रिय। उक्त विचार राश्ट मुनिश्री पुलकसागर जी महाराज ने आज बुधवार को मां जिनवाणी षिेिवर के पांचवे दिन षिविरार्थियों को संबोधित करते हुए व्यक्त किए। उन्होंने षिविरार्थियों को इन्द्रियों की व्याख्या करते हुए कहा कि हल्का भारी, ठंडा गरम,कडा नरम,,रूखा चिकना आदि का ज्ञान होता है उसे स्पर्षन इन्द्रिय कहते है और जिससे खट्टा मीठा,कड़वा,कशायला,चरपरा आदि का ज्ञान हो उसे रसना इन्द्रिय कहते है। मुनिश्री ने घ्राण इन्द्रिय की परिभाशा को समझाते हुए कहा कि जिससे सुगंध एवं दुर्गंध का ज्ञान होता है उसे घ्राण इन्द्रिय कहते है तथा जिससे काला,नीला,लाल,हरा, सफेद आदि रंगो का ज्ञान होता है उसे चक्षु इन्द्रिय कहते है। सा, रे, गा, मा, प, ध, नि आदि स्वरो का ज्ञान कर्ण इन्द्रिय से होता है। मुनिश्री ने कहा कि मनुश्य पंचइन्द्रिय जीव है। पंचइन्द्रिय जीव दो प्रकार के होते है सैनाी और असैनी। जो जीव मन सहित होते है वे सैनी और मन से रहित होते है वे असैनी जीव कहलाते है।
संत मिलनः- कहते है संतो के दर्षन मात्र से पापो का नाष होता है आज ऐसा ही सौभाग्य कृश्णानगर जैन समाज को मिला जब आचार्य श्री संमतिसागर जी महाराज एवं मुनिश्री पुलकसागर जी महाराज का मिलन हुआ। आज प्रातःकाल 6 बजे मुनिश्री पुलकसागर जी महाराज अपने अनुज मुनिश्री प्रसंगसागर जी महाराज के साथ कृश्णानगर जैन मंदिर पहुंचे जहां पहले से विराजमान आचार्य रत्न संमतिसागर जी महाराज के दर्षन कर तत्त्व चर्चा की। मुनिश्री ने जैसे ही आचार्य श्री के चरणों मे नमोस्तु निवेदित किया तो उन्होंने विनय भाव का परिचय देते हुए मुनिश्री को गले से लगा लिया। मां जिनवाणी संग्रहालयः- संघस्थ प्रवक्ता विनय कुमार जैन ने बताया कि मुनिश्री के पावन आषीर्वाद एवं सद्प्रेरणा से पुलक जन चेतना मंच दिल्ली षाखा की ओर से विहारी कॉलोनी स्थित वात्सल्य भवन मे एक विषाल जिनवाणी संग्रहालय का निर्माण किया जा रहा है,जिसमे जिनागम की करीब 5000 षास्त्रो का संग्रह किया जाएगा। इस कार्य का षुभारंभ षंकरनगर से ही मां जिनवाणी के जन्म दिवस अर्थात श्रुत पंचमी से किया जा रहा है।

pooja hai jaruri- muni pulak sagar

भाव सहित अश्ट द्रव्य से पूजा करना ही ‘‘भाव पूजा’’-मुनि पुलकसागर 20 मई 2012 दिल्ली प्रभू पतितपावन मैं अपावन,चरन आयो सरन जी यो विरद आप निहार स्वामी,मेट जामन मरनजी।।
हे प्रभू,आप पतित पावन हो,पवित्र हो,मै अपावन हॅू,मै आपकी चरणों की षरण में आया हॅू,आप अपने विरद को,यष किर्ति को देखकर मेरे जन्म मरण को नश्ट करो। उक्त दर्षन स्तुति की समधुर व्याख्या आज रविवार को षंकरनगर जैन मंदिर मे आयोजित मां जिनवाणी षिक्षण षिविर मे राश्टसंत मुनिश्री पुलकसागर जी महाराज ने की। मुनिश्री के पावन सानिध्य मे आयोजित षिक्षण षिविर मे प्रथम वर्ग मे 450 षिविरार्थी एवं द्वितीय वर्ग मे 400 षिविरार्थी भाग ले रहे है। जरूरी है मूर्ति पूजाः- मुनिश्री ने मूर्ति पूजा को उचित बताते हुए कहा कि हम गुणों की पूजा करते है यह सत्य है लेकिन किसी को षरीर के महत्व को भी हम विस्मृत नहीं कर सकते है। केवल आत्मा संयास ग्रहण नहीं कर सकती है,षरीर को संयास ग्रहण करना पडता है क्योकि केवल आत्मा के पास षरीर नही होता है,सारे गुणो की उत्पत्ति षरीर से होता है। षरीर को हटाकर किसी की भी स्तुति नहीं कर सकते हो,इसलिए मूर्ति पूजा जरूरी है। भाव सहित पूजा भाव पूजा मुनिश्री ने भाव पूजा एवं द्रव्य पूजा मे अंतर बताते हुए कहा कि आज हमारे समाज मे भाव पूजा का अर्थ लोगो ने गलत लिया है लोग सोचते है कि बिना द्रव्य से भगवान की पूजा करना भाव पूजा है लेकिन यह सरासर गलत है बिना द्रव्य के पूजा करना गलत है,और आगम मे इसका निशेध है। मुनिश्री ने कहा कि अश्ट द्रव्य से पूजा करना तो द्रव्य पूजा कहलाता है जबकि अश्ट द्रव्य की पूजा मे अपने भावो को लगा देने को भाव पूजा कहते है अर्थात भाव सहित द्रव्य से पूजा करना ही भाव पूजा है। संघस्थ प्रवक्ता विनय कुमार जैन ने बताया कि मुनिश्री पुलकसागर जी महाराज के पावन सानिध्य मे दोपहर तीन बजे से मूलाचार की नियमित कक्षाएं ली जा रही है जिसमे भी बडी संख्या मे स्वाध्यायी उपस्थित होकर आगम का ज्ञान अर्जित कर रहे है। विनय कुमार जैन

dev sastra guru par viswas kro- muni pulaksagar

षंकरनगर मे गूॅज रही है जिनवाणी ‘पुलकवाणी’ मे 18 मई 2012 षुक्रवार की सुबह का वह वक्त आ ही गया जिसका बेसर्बी से षंकरनगर जैन समाज इंतजार कर रही थी यह अवसर था राश्टसंत मुनिश्री पुलकसागर जी महाराज के पावन सानिध्य मे आयोजित आठ दिवसीय मां जिनवाणी षिक्षण षिविर के षुभारंभ का।
कार्यक्रम का षुभारंभ श्रीमति सुधा कृश्णा जैन षंकरनगर ने षिविर का उद्घाटन फीता काटकर किया तत्तपष्चात मां जिनवाणी के समक्ष मंगल कलष की स्थापना एवं दीपप्रवज्ज्लन अतिथियों के द्वारा किया गया। आज के कार्यक्रम के मुख्य अतिथी दिल्ली सरकार के षिक्षा मंत्री लबली सिंह थे। उन्होंने इस अवसर पर मुनिश्री को श्रीफल भेटकर आषीर्वाद प्राप्त किया। षिविर के पहले दिन को परिचय का दिवस बताते हुए मुनिश्री ने कहा कि आज षिविर का पहला दिवस है,आज केवल आपको आपके कोर्स के बारे मे बताया जाएगा। मुनिश्री ने जैन धर्मालंबियों के देव,षास्त्र और गुरू के बारे मे अपने कर्त्तव्य के बारे मे विस्तार पूर्वक षिविरार्थियो को समझाया। उन्होंने बताया कि जैन षब्द की परिभाशा बताते हुए कहा कि जो भगवान जिनेन्द्र को मानता हो और उनके बताये गये मार्ग का अनुषरण करे वह जैन होता है। मुनिश्री ने धर्म का पालन की तुलना परीक्षा से करते हुए कहा कि आज लोग धर्म कर्म तो करते है लेकिन उन्हें पता नहीं कि हमे धर्म किस प्रकार करना चाहिए। उन्होंने उदाहरण के द्वारा षिविरार्थियों को समझाते हुए कहा कि जिस प्रकार हम परीक्षा मे पेपर मे कुछ नहीं लिखेगे,प्रष्नो के उत्तर क्रम मे नहीं देगे या उत्तर गलत लिखेगे तो नम्बर षून्य प्राप्त होगे उसी प्रकार हम धर्म को नहीं करेंगे,उल्टा सीधा करेगे या गलत तरीके से करेगे तो पुण्य नहीं मिलेगा। मुनिश्री ने जोर देते हुए कहा कि जीवन मे कुछ भी कार्य करो उन्हे सही करो,व्यवस्थित करो एवं पूरा करो तो सफलता अवष्य मिलेगी। विनय कुमार जैन 9910938969