बुधवार, 13 जून 2012
janam jra mratu bimari hai- muni pulaksagar
जन्म जरा मृत्यु बिमारी है -मुनि पुलकसागर
14 जून 2012 वे कर्म वर्गणाएॅ जो राग द्वेश के निमित्त से आत्मप्रदेशो के साथ मिलकर कर्म रूप परिणत होकर जीव के आत्म स्वभाव को ढक देती है। उन कार्माण वर्गणाओं को कर्म कहते है। उक्त पवित्र विचार राष्टसंत मुनिश्री पुलकसागर जी महाराज ने आज गुरूवार को न्यू रोहतक रोड मे नवहिंद पब्लिक स्कूल ऑडिटोरियम मे आयोजित मां जिनवाणी शिक्षण षिविर के पांचवे दिवस पर शिविरार्थियो को संबोधित करते हुए व्यक्त किए।
मुनिश्री ने आगे शिविरार्थियों को संबोधित करते हुए कहा कि कर्म आठ प्रकार के होते है,ज्ञानावरणी,दर्शनावरणी,वेदनीय,मोहनीय,आयु,नाम,गोत्र और अंतराय। मुनिश्री ने कहा कि जिस कर्म के उदय से आत्मा के ज्ञान के गुण ढंक जाते है उन्हें ज्ञानावरणी कर्म कहते है। किसी ज्ञान के ज्ञान मे विघ्न डालने से पुस्तक फाडने से ,छिपा देने से ज्ञान का गर्व करने से जिनवाणी मे संशय करने से ज्ञानावररणी कर्म का बंध होता है।
जो कर्म आत्मा के दर्शन गुण को ढंकता है अर्थात प्रकट होने नहीं देता है उसे दर्शनावरणी कर्म कहते है,जिन दर्शन मे विघ्न डालना, किसी की आंख फोड देना, मुनियों को देखकर घृणा आदि करने से दर्शनावरणी के कर्म का बंध होता है।
मुनिश्री ने कहा कि जो कर्म हमे सुख दुख का वेदन करता है अर्थात अनुभव कराता है उसे वेदननीय कर्म कहते है। अपने व दूसरो के विषय में दुख करना,शोक करना रोग,पशुवध आदि असाता वेदनीय कर्म बंध के कारण है एवं दया करना,दान देना, संयम पालना, व्रत पालना, आदि साता वेदनीय कर्म के बंध के कारण है।
मुनिश्री ने मोहनीय कर्म की परिभाषा देते हुए कहा कि जिस कर्म के उदय से आत्मा के सम्यक्त्व और चारित्र गुण का घात होता है। सच्चे देव शास्त्र गुरू और धर्म मे दोष लगाना मिथ्या देव शास्त्र गुरू की प्रशंसा करना, क्रोधादि कषाय करना, राग द्वेष करना मोहनीय कर्म के बंध का कारण है।
मुनिश्री ने कहा कि जिस कर्म के उदय से जीव को चारो गतियों में से किसी एक गति में निश्चित समय तक रहना पडता है,उसे आयु कर्म कहते है। बहुत हिंसा करना, बहुत आरंभ करना,परिग्रह रखना,छल कपट करना, अशुभ आयु कर्म के बंध के कारण है, और व्रत पालन करना, शांतिपूर्वक दुख सहना आदि शुभ आयु कर्म के बंध के कारण है।
नाम कर्म की को शिविरार्थियो को समझाते हुए कहा कि नाम कर्म के उदय से शरीर की प्राप्ती होती है। मन, वचन, काय को सरल रखना, धर्मात्मा को देखकर खुश होना, धोखा नहीं करना, शुभ नाम कर्म का कारण है। एवं त्रियोग कुटिल रखना, दूसरो को देखकर हंसना, उसी की नकल करना आदि अशुभ नामकर्म का कारण है।
मुनिश्री ने गोत्र कर्म को समझाते हुए कहा कि गोत्र कर्म के उदय से प्राणी उच्च नीच कुल मे जन्म लेता है, उसे गोत्र कर्म कहते है। अपने गुण और दूसरों के अवगुण प्रकट करना, अष्ट मद करना, आदि नीच गोत्र का कारण है। एवं दूसरो के गुण और अपने अवगुण प्रकट करना अष्ट मद नहीं करना उच्च गोत्र कर्म का कारण है।
मुनिश्री ने अंतिम कर्म अंतराय कर्म को समझाते हुए कहा कि जो कर्म दान,लाभ भोग,उपभोग, और शक्ति में विघ्न डालता है उसे अंतराय कर्म कहते है। मुनिश्री ने कहा कि दान देने से रोक देना, आश्रितों को धर्म साधन नहीं देना, किसी की मांगी वस्तु को नहीं देना, आदि अंतराय कर्म के कारण है।
विनय कुमार जैन
मंगलवार, 12 जून 2012
pooja sadev adhik guno walo ki hoti hai -muni pulaksagar
पूजा सदैव अधिक गुणों वालो की होती है- मुनि पुलकसागर
12 जून 2012 दिल्ली, कभी अपने आप से प्रश्न करना की मै कौन हॅू आप चमडी हो, खून हो, मांस हो, हड्डी तुम हो। अगर इनमे से तुम कुछ हो तो इनके क्षतिग्रस्त हो जाने पर हम मरते नही है इसलिए इनमे से तुम कुछ भी नहीं हो। उक्त प्रेरक विचार राष्टसंत मुनिश्री पुलकसागर जी महाराज ने मंगलवार को न्यू रोहतक रोड स्थित नवहिंद पब्लिक स्कूल के ऑडिटोरियम मे आयोजित मां जिनवाणी शिक्षण शिविर के तृतीय दिवस पर शिविरार्थियों को संबोधित करते हुए व्यक्त किए।
उन्होंने शिविरार्थियो को संबोधित करते हुए आगे कहा कि अपना हाथ किसी को क्षति पहुंचा सकता है और करूणा, आशीर्वाद भी बन जाता है, शरीर भी बोलता है केवल जुवान नही बोलती हैं। यही हाथ शराब भी ले सकता है और गंधोदक भी ले सकता है। हमारा हाथ क्या ग्रहण करेगा उसको जो यह आदेश देता है वह तुम हो। जो आंखे देख रही है वह तुम नही हो अपितु जो उन आंखो मे देखने की शक्ति प्रदान कर रहा है वह तुम हो।
मुनिश्री ने आगे शिविरार्थियो को संबोधित करते हुए कहा कि याद रखना मुर्दे भोजन ग्रहण नहीं करते केवल जीवित इंसान ही भोजन ग्रहण कर सकते है। दुनिया मे सारा खेल शक्तियों का है और मानव शरीर मे सारी खेल आत्मा का है। शक्तिविहीन कुछ भी कार्य करने मे असमर्थ होता है उसी प्रकार जब आत्मा हमारे शरीर से निकल जाती है तो शरीर भी कुछ काम का नही होता है।
मुनिश्री ने कहा कि संसारी भी मै हॅू, मोक्ष जाने वाला भी मै हॅू, मै ही नर्क गति, स्वर्ग गति को प्राप्त करता हॅू। मै ही कर्मो का बंध करने वाला और नाश करने वाला हॅू। भीतर जो शक्ति है पावर है वह आत्मा है। आत्मा अलग से कोई वस्तु नहीं है भीतर की उर्जा की आत्मा है। मै निज मे रहने वाला हूॅ पर से मेरा संबंध नहीं।
मुनिश्री ने आत्मा के अस्तित्व को उदाहरण के द्वारा समझाते हुए कहा कि वायर के अंदर पावर है जिससे आपके टी व्ही पंखे कूलर चल रहे है लेकिन वह पावर दिखता नहीं है। दिखता नही है फिर भी होता है, वैसी ही हमारी आत्मा दिखती नहीं है लेकिन होती है, आत्मा से ही शरीर से उर्जा मिलती है, आत्मा के द्वारा ही हमे सुख, दुख, की अनुभूति होती है।
मुनिश्री ने कहा कि अधिक गुण वाला कम गुण वाले को अपने जैसे बना लेता है। जिस प्रकार लोहे के टुकडे को चुम्बक बनाने के लिए उसको चुम्बक के पास रखना पडता है, जब तक लोहे का टुकडा चुम्बक की शरण मे नहीं आएगा तब तक वह चुम्बक नही बन पाएगा। इसी प्रकार जब तक तुम भगवान के निकट नहीं आओगे तो तुम भी भगवान नहीं बन पाओगे। दूर रहोगे तो उनकी पावर तुम तक नहीं आ पाएगी। मुनिश्री ने कहा कि तुम जैन तो लेकिन जैनी बनने के लिए तुम्हें भगवान जिनेन्द्र के पास जाना पडेगा।
गुरुवार, 7 जून 2012
adhmari samaj poori tarah se mar jaye- muni pulaksagar
बुधवार, 6 जून 2012
jeevan me moska pane ka lakshya banao- muni pulak sagar
जीवन मे मोक्ष पाने का लक्ष्य बनाओं-मुनि पुलकसागर
7 जून से 10 जून तक बहेगी ज्ञान गंगा न्यू रोहतक रोड मे
जून 6 मई 2012 रात को भी दिन निकल सकता है,दिन को भी रात हो सकती है,लोग कहते है,समय से पहले और भाग्य से अधिक किसी को कुछ नहीं मिलता लेकिन मेरी श्रद्धा कहती है कि गुरू की कृपा हो जाए तो समय से पहले और भाग्य से अधिक भी मिल सकता है। उक्त विचार राष्टसंत मुनिश्री पुलकसागर जी महाराज ने आज छप्परवाला दिगम्बर जैन मंदिर के हॉल मे श्रावकों को संबोधित करते हुए व्यक्त किए।
गुरू के महत्व को प्रतिपादित करते हुए मुनिश्री ने धर्मसभा को संबोधित करते हुए आगे कहा कि गुरू की कृपा से भौतिक सुख-संपदा तो छोड़ो मोक्ष लक्ष्मी को भी प्राप्त किया जा सकता है।
मुनिश्री ने कहा कि भगवान की मूर्ति मौन है,शास्त्र मौन है आप जैसा चाहे अर्थ लगा सकते हो पर गुरू मौन नहीं होते है वे मुखर होते है जो तुम्हारे अहंकार पर चोट करते है। याद रखना साधू वही होता है जो तुम्हारे अहंकार पर चोट करे। साधू वह नहीं होता जो तुम्हारे अहंकार की पुश्टि करे। याद रखना मंदिर की मूर्ति कुछ समय पहले तक सड़क का पत्थर हुआ करता है लेकिन जब उस पर किसी शिल्पी की नजर पडती है तो मूर्ति का रूप ले लेता है लेकिन कोई सद्गुरू ही होता है जो उसमे भगवत्ता को प्रकट कर दिया करता है।
मुनिश्री ने जीवन मे लक्ष्य बनाने की सीख देते हुए कहा कि हर व्यक्ति के जीवन मे एक न एक लक्ष्य अवश्य होना चाहिए,बिना लक्ष्य के जीवन मे उंचाईयॉ हासिल नहीं हो सकती है। यहां पर जितने भी लोग बैठे है सबका कोई ना कोई लक्ष्य अवश्य होगा। विद्यार्थीयों का लक्ष्य परीक्षा मे सफलता,व्यापारी का पैसा कमाना लक्ष्य हो सकता है लेकिन मै एक बात आपसे बड़ी विन्रमता के साथ कहना चाहता हॅू कि यह लक्ष्य तो चिता के साथ जलकर भस्म हो जाएगे,अगर जीवन मे लक्ष्य बनाना ही है तो निर्वाण को अपना लक्ष्य बनाओ, मोक्ष को अपना लक्ष्य बनाओ।
संघस्थ प्रवक्ता विनय कुमार जैन ने बताया कि मुनिश्री पुलकसागर जी महाराज के सानिध्य मे न्यू रोहतक रोड मे 7 जून से 9 जून तक ज्ञान गंगा प्रवचन का आयोजन होगा तथा 10 जून से 17 जून मां जिनवाणी शिक्षण षिविर के तृतीय भाग का आयोजन किया जाएगा। मां जिनवाणी शिक्षण शिविर के फार्म श्री दिगम्बर जैन मंदिर न्यू रोहतक रोड मे प्राप्त किये जा सकते है।
रविवार, 3 जून 2012
santhi man ki sabse badi dolat- muni pulaksagar
षांति मन की सबसे बडी संपदा-मुनि पुलकसागर
मुनिश्री 3 जून तक त्रिनगर मे
दिल्ली 3 जून 2012 मन की षांति संपदा सबसे बडी संपदा और अषांति सबसे बडी दरिद्रता है, षांति जीवन में है जीवन स्वर्ग नहीं तो नर्क के समान होता है, जीवन मे अगर षांति है तो अभावो मे आनंद बरसता है, यदि अषांति हुई तो साधन होने के बाद भी जीवन मे आनंद नही होता है।
उक्त विचार राश्ट्रसंत मुनिश्री पुलकसागर जी महाराज ने त्रिनगर स्थित जैन धर्मषाला के हॉल मे रविवार को श्रावको को संबोधित करते हुए व्यक्त किए। इससे पूर्व षनिवार की षाम को षास्त्री नगर मे ष्वेताम्बर साध्वियो मे संसघ जैन धर्मषाला मे पधारकर मुनिश्री से आषीर्वाद प्राप्त कर तत्व चर्चा की।
मुनिश्री ने धर्मसभा को संबोधित करते हुए आगे कहा कि जहां षांति होती है वही सच्चा धर्म होता है और जहां अषांति होती है वही अधर्म होता है। यदि आपके पास सब कुछ है और षांति नही है तो जीवन व्यर्थ है।
मुनिश्री ने षांति को षीतलता का सरोवर बताते हुए कहा कि षांति तो षीतलता का वेा सरोवर है जिसके तट पर हर राहगीर बैठकर षीतलता प्राप्त करना चाहता है और अषंाति पेड के ठूंठ की तरह है जिस पर न तो पुश्प है और न हरी पत्तियॉ इसलिए कोई भी उसके पास जाना नही चाहता।
मुनिश्री ने कहा कि सरोवर मे तपन के बाद सूख जाता है तो उसमे दरारे पड जाती है मन भी हमारा सरोवर के समान है अगर इसमे दरारे पड गई तो परिवार बिखर जाएगा। याद रखना सावन आने पर सरोवर की दरारें तो भर जाती है लेकिन मन मे आई दरारें कभी नहीं भरती।
विनय कुमार जैन
9910938969
गुरुवार, 31 मई 2012
aarakshan ka nag.... vinay jain
योग्यता और सुपात्रता का जाति से कोई लेना देना नहीं है -विनय जैन
आरक्षण का नाग भारत को डसता जा रहा है इसे वापिस पिटारे मे डालो
संविधान निर्माता बाबा भीमराव अम्बेडकर ने सपने मे भी नहीं सोचा होगा जिसस दलित पिछड़े दबे-कुचलों के लिए जीवन भर संघर्श कर संविधान मे विषेश प्रावधानों का उपयोग कर इन्हें मुख्यधारा मे लाने का संकल्प किया था।
दलित तो आज दलितो के द्वारा षोशित हैः-
आज उसी का दुरूपयोग उन्हीं के अनुयायी अम्बेडकर के नाम पर अपनी-अपनी निहितार्थो की रोटियॉ सेंकने में मषगूल होंगे। आज आरक्षण प्राप्त एक अभिजात्य वर्ग सांसद, मंत्री, विधायक आई. ए. एस, प्रोफेसर, इंजीनियर, डॉक्टर एवं अन्य प्रषासनिक अधिकारी तीन पीढ़ियो से आरक्षण पर अपना एकाधिकार जमाए बैठा है। अब ये वास्तविकों का हक मार उन्हें मुख्य धारा मे आने से रोकने के लिए उच्च वर्ग की तरह व्यवहार कर रहा है। उसे डर है कि कही ये आरक्षण का फल उससे छिन न जाये?
आरक्षण-नेताओ के लालच और स्वार्थ सिद्धि का साधनः-
आरक्षण को कुछ जातियों के प्रति समाज में व्याप्त भेदभाव को मिटाने के लिए संविधान मे बस आरंभ के मात्र दस पंद्रह वर्शो के लिए लाने की व्यवस्था की गयी थी,पर तब से आरक्षण व्यवस्था के रूप में नेताओं को राजनैतिक हथियार के रूप में देष की हर व्यवस्था से खेलने का मानो सर्वाधिकार मिल गया है। अब किन्ही जातियों को सहानुभूति के नाम पर देष के सारे संसाधनों, सारी व्यवस्थाओ मे सही योग्यता न होने पर भी खुली छूट बांटी जा रही है और ये सब सार्वभौमिक न्याय, नैतिकता और आदर्षो को ताक पर रखकर, देष के अधिसंख्य नागरिको के साथ अन्याय करके, योग्यता, कुषलता, मेहनत गुण और वास्तविक सामर्थय का अपमान करते हुए किया जा रहा है और जो अब राजनेताओं के लालच और स्वार्थ को सींचने का नियमित साधन बन गया है।
आरक्षण-देष के लिए खतराः-
योग्यता और सुपात्रता का जाति से कोई लेना देना नहीं है और उसी तरह कुपात्रता और योग्यता का भी। जिस तरह से मात्र राजनैतिक हवस के लिए देष के भविश्य और समाज हित के साथ खुले आम खिलवाड़ चल रहा है वो राजनितिक डालो के लिए तो फायदेमंद है पर समूचे देष के लिए गहरा खतरनाक बनता जा रहा है।
कम से कम इन्हें तो बख्ष दोः-
आरक्षण के नाम पर देष के हर प्रतिश्ठित, विष्वनीय और निश्पक्ष षैक्षणिक संस्थान जैसे अखिल भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान या मैनेंजमेंनट बिजनेस संस्थानो इत्यादि अन्य सभी उच्च षिक्षा केन्द्रो को नेताओं के गंदे राजनीतिक खेल, सामाजिक कुंठा का बदला निकालने का, भीड़ जुटाकर नाजायज बात मनवाने और सरकारी जाति आधारित आयोगो के समर्थन से अवैध अधिकारों को पाने का अड्डा बना दिया गया है। अब षिक्षण संस्थानों को अपने चुनौतीपूर्ण महत्वपूर्ण कार्यो में कम और सरकारों और कोर्टो को सफाई देने मे अधिक व्यस्त रहना पड़ता है।
आरक्षण-गुंडागर्दी एवं ब्लेकमेलिग का रास्ताः-
आज कोई जातिवादी आयोग, कोई निकृश्ट नेता या मीडिया निर्धारित कर रहा है की एक षिक्षण संस्थान किस तरह काम करे। इसी का परिणाम है की वह छात्र जो सवर्ण छात्र के 90 परसंेट नही के अंको के मुकाबले 40 या 45 परसेंट पाकर विष्व में किसी भी सामान्य अभ्यर्थी के लिए अकल्पनीय और दुर्लभ विष्वप्रतिश्ठित डिग्री पा जाता है और उस चुनौती के योग्य न होने पर आगे चलकर अपने अक्षमता के जग जाहिर हो जाने पर उसे स्वीकार भी नही करता और उसे स्वीकार कर सुधरने की जगह गलत दिषा मे चला जाता है और उपलब्ध राजनैतिक संगठनो और दलो का संरक्षण लेकर राजनैतिक गुंडागर्दी और संवैधानिक ब्लैकमेल का रास्ता अपनाता है।
नेताओ अपना इलाज इन्हीं अयोग्य डॉक्टरो से कराओः-
सामान्य वर्ग के अभ्यर्थियो के योग्य होने के बावजूद सींटे नहीं भरी जाती भले ही उसमे संस्थान और जनता का अहित होता रहे। आज यही निम्नीकरण हर संस्थान, सरकारी महकमे, हर पद और सीट पर किया जा रहा है और वोट बैंक की राजनीति करके देष की कार्यकुषलता को घटिया बनाने का पूरा दूरगामी इंतेजाम किया जा रहा है,बड़े ही षर्म की बात है कि एक अयोग्य आरक्षित छात्र जो षायद किसी और क्षेत्र मे सफल हो सकता हो उसे जबरस्ती उच्च षैक्षणिक पदों और अधिकारों पर बिठाया जा रहा है। जबरदस्ती डॉक्टर बनाया जा रहा है, और अब तो आरक्षण की खैरात पाना भी अपना अधिकार बताया जा रहा है। और जब ये नेता इन अयोग्य आरक्षितो को डॉक्टर बना रहे है तो अपना इलाज इन्हीं से क्यो नही कराते क्यो विदेष चले जाते है?
आरक्षण-एक लौलिपौप हैः-
आरक्षण का लौलिपौप वास्तव में नेताओं के लिए स्थाई बोटबैंक बनाने का एक तरीका है और जिसमे विभिन्न जातियों के लोग सामान्य स्तर पर श्रम करने और संघर्श मे स्वयं को विकसित नहीं कर पाते जिसे उन्हें पैरो पर खडा होने मे कोई वास्तविक मदद नही मिलती बस मुप्त सामान पाने के सुख और किसी को दान देने का दंभ यही इसका कुल परिणाम है, पर राश्टीय संपदा या अधिकार कोई मुप्त में बॉटने या यू ही देने की वस्तु नहीं है सभी देषवासियों को अपना कौषल दिखने, अपना परिवार चलाने और धन कमाने का जन्म सिद्ध अधिकार है पर देष को भी न्याय और राश्टहित को अक्षुण्य रखने का अधिकार है।
विनय कुमार जैन
9910938969
बुधवार, 30 मई 2012
guru aadesh hi mere jivan ka aadhar- muni pulaksagar
गुरू आदेष ही मेरे जीवन का आधार-मुनि पुलकसागर
भोलानाथनगर ने लगाई मुनिश्री के चातुर्मास की हैट्रिक
27 मई 2012 अभी तक मुझे विभिन्न कॉलोनियो से चातुर्मास हेतु निमंत्रण आए। मै चाहता तो यहां मजमा लगा सकता था, सबको यहां बुला सकता था लेकिन थोडी सी ख्याती के लिए एक को खुष करके नौ को दुखी करना मेरा स्वभाव नहीं है। मै ऐसा चातुर्मास नहीं करना चाहता जिससे कोई दुखी हो।
उक्त विचार राश्ट्रसंत मुनिश्री पुलकसागर जी महाराज ने षंकरनगर स्थित जैन मंदिर के हॉल मे रविवार को श्रावको को संबोधित करते हुए व्यक्त किए। इस अवसर पर मुनिश्री के आगामी चातुमार्स के लिए षंकरनगर जैन समाज की ओर से निवेदन किया गया।
चातुर्मास के लिए क्या लॉटरी निकालनाः-
मुनिश्री ने आगे कहा कि संतो का काम रूलाना नहीं हंसाना होता है। आज कल यह परम्पराएं हो रही है कि दस दस समाज से श्रीफल भेट करा लेते है फिर चातुर्मास के लिए लॉटरी निकाली जाती है यह सब नौटंकी है, हल्की पब्लिसिटी पाने का तरीका है। मै यह सब मे विष्वास नहीं करता हॅू। मेरे गुरूदेव आचार्य श्री पुश्पदंतसागर जी महाराज का आदेष जहां का होता है मै वही चातुर्मास करता हॅू।
जहां दो किये वहां तीसरा भी:-
मुनिश्री ने कहा कि जब तक मेरी सांसे चले तब तक मै भगवान महावीर से यही प्रार्थना करूंगा कि हे प्रभू मै जो भी कार्य करूं उन सब मे मेरे गुरूदेव का आषीर्वाद जरूर रहे। और आज उन्हीं गुरूदेव के द्वारा लिखित यह पत्र आया है जिसमे मुझे आगामी चातुर्मास के लिए आदेष दिया गया है कि जहां पहले दो चातुर्मास किये है वहां तीसरा भी करो। आगामी चातुर्मास भोलानाथ नगर मे करने का आदेष प्राप्त हुआ।
गुरू की पाती षिश्य के नामः-
इस अवसर पर जब मुनिश्री ने आचार्य श्री पुश्पदंतसागर जी महाराज द्वारा भेजे गए पत्र को पढा और आगामी चातुर्मास की घोशण की तो समूचा हॉल तालियों की गडगडाहट और जयकारों से गूंज गया। दिल्ली भारत की और यमुनापार जैन की राजधानी है क्योकि सबसे अधिक जैनो की आबादी इसी क्षेत्र मे निवासरत है। षंकरनगर मे आयोजित मां जिनवाणी षिक्षण षिविर जिस प्रभावना की उंचाई पर पहुंचा है उसका श्रेय बेषक जैन समाज षंकरनगर को ही जाता है। इस अवसर पर षिविर मे विषेश योग्यता अर्जित करने वाले षिविरार्थियो को पारितोशिक एवं प्रमाण पत्र देकर सम्मानित किया गया।
भीड जुटा लेने का नाम चातुर्मास नहींः-
चातुर्मास का महत्व बताते हुए मुनिश्री ने कहा कि चातुर्मास मे साधू को अपनी साधना मे उतरने का मौका देता है। जैन धर्म प्रभावना की उंचाईयो पर चढ़े। चातुर्मास का अर्थ यह नहीं है कि भीड जुटा लेना, करोडो की बोलिया लग जाना, बडे बडे पाण्डाल लग जाना, बेनर पोस्टर लग जाने जाना, अखबारबाजी हो जाना चातुर्मास का अर्थ होता है कि दिगम्बर जैन परम्परा मे जो साधू है उन्होंने अपने साधना काल मे कितनी साधना व विरक्ति को बढाया उसका नाम चातुर्मास होता है।
साधना का चार्जर है चातुर्मासः-
चातुर्मास साधना का काल है। चातुर्मास अध्ययन का काल है। साधू एक जगह स्थिर रहकर अध्ययन करते है। अपनी साधना को बढ़ाते है क्योकि विहारी आदि नहीं होता है। मुनिश्री ने कहा कि जिस प्रकार मोबाइल को चार घंटे चार्ज कर लो तो वह 12 घंटे तक चलता है उसी प्रकार साधू चार महिने तक साधना, तपस्या करते है और आठ महिने तक उसी त्याग, तपस्या के बल पर आठ महिने सर्वत्र विहार करके धर्म की प्रभावना किया करते है।
चातुर्मास मेरा नहीं तुम्हारा होगाः-
चातुर्मास मे आपको संयम का ध्यान रखना है, यह सोचना है कि हम कितनी साधना कर पाते है। कहीं ऐसा ना हो कि मुंह मे पान मसाला दबा हो और नारे लगा रहे हो कि हर मां का लाल कैसा हो पुलकसागर जैसा हो। ध्यान रखना यह चातुर्मास मेरा नहीं हकिकत मे तुम्हारा है। तुम कितनी साधना कर सकते हो, जैन धर्म का नाम कितना रौषन कर सकते हो यह चातुर्मास इसी समीक्षा का काल होता है।
jisse sansari jivo ki pahchan ho indriya kahlati hai. - muni pulak sagar
जिससे संसारी जीवो की पहचान हो इन्द्रिय कहलाती है-मुनि पुलकसागर
कृश्णानगर मे आचार्य संमतिसागर जी से मिले मुनिश्री
23 मई 2012 जिससे संसारी जीवो की पहचान होती है उसे इन्द्र्रिय कहते है। इन्द्रिय पांच होती है। स्पर्षन इन्द्रिय,रसना इन्द्रिय, घ्राण इन्द्रिय, चक्षु इन्द्रिय और कर्ण इन्द्रिय। उक्त विचार राश्ट मुनिश्री पुलकसागर जी महाराज ने आज बुधवार को मां जिनवाणी षिेिवर के पांचवे दिन षिविरार्थियों को संबोधित करते हुए व्यक्त किए।
उन्होंने षिविरार्थियों को इन्द्रियों की व्याख्या करते हुए कहा कि हल्का भारी, ठंडा गरम,कडा नरम,,रूखा चिकना आदि का ज्ञान होता है उसे स्पर्षन इन्द्रिय कहते है और जिससे खट्टा मीठा,कड़वा,कशायला,चरपरा आदि का ज्ञान हो उसे रसना इन्द्रिय कहते है। मुनिश्री ने घ्राण इन्द्रिय की परिभाशा को समझाते हुए कहा कि जिससे सुगंध एवं दुर्गंध का ज्ञान होता है उसे घ्राण इन्द्रिय कहते है तथा जिससे काला,नीला,लाल,हरा, सफेद आदि रंगो का ज्ञान होता है उसे चक्षु इन्द्रिय कहते है। सा, रे, गा, मा, प, ध, नि आदि स्वरो का ज्ञान कर्ण इन्द्रिय से होता है। मुनिश्री ने कहा कि मनुश्य पंचइन्द्रिय जीव है। पंचइन्द्रिय जीव दो प्रकार के होते है सैनाी और असैनी। जो जीव मन सहित होते है वे सैनी और मन से रहित होते है वे असैनी जीव कहलाते है।
संत मिलनः-
कहते है संतो के दर्षन मात्र से पापो का नाष होता है आज ऐसा ही सौभाग्य कृश्णानगर जैन समाज को मिला जब आचार्य श्री संमतिसागर जी महाराज एवं मुनिश्री पुलकसागर जी महाराज का मिलन हुआ। आज प्रातःकाल 6 बजे मुनिश्री पुलकसागर जी महाराज अपने अनुज मुनिश्री प्रसंगसागर जी महाराज के साथ कृश्णानगर जैन मंदिर पहुंचे जहां पहले से विराजमान आचार्य रत्न संमतिसागर जी महाराज के दर्षन कर तत्त्व चर्चा की। मुनिश्री ने जैसे ही आचार्य श्री के चरणों मे नमोस्तु निवेदित किया तो उन्होंने विनय भाव का परिचय देते हुए मुनिश्री को गले से लगा लिया।
मां जिनवाणी संग्रहालयः-
संघस्थ प्रवक्ता विनय कुमार जैन ने बताया कि मुनिश्री के पावन आषीर्वाद एवं सद्प्रेरणा से पुलक जन चेतना मंच दिल्ली षाखा की ओर से विहारी कॉलोनी स्थित वात्सल्य भवन मे एक विषाल जिनवाणी संग्रहालय का निर्माण किया जा रहा है,जिसमे जिनागम की करीब 5000 षास्त्रो का संग्रह किया जाएगा। इस कार्य का षुभारंभ षंकरनगर से ही मां जिनवाणी के जन्म दिवस अर्थात श्रुत पंचमी से किया जा रहा है।
pooja hai jaruri- muni pulak sagar
भाव सहित अश्ट द्रव्य से पूजा करना ही ‘‘भाव पूजा’’-मुनि पुलकसागर
20 मई 2012 दिल्ली
प्रभू पतितपावन मैं अपावन,चरन आयो सरन जी
यो विरद आप निहार स्वामी,मेट जामन मरनजी।।
हे प्रभू,आप पतित पावन हो,पवित्र हो,मै अपावन हॅू,मै आपकी चरणों की षरण में आया हॅू,आप अपने विरद को,यष किर्ति को देखकर मेरे जन्म मरण को नश्ट करो। उक्त दर्षन स्तुति की समधुर व्याख्या आज रविवार को षंकरनगर जैन मंदिर मे आयोजित मां जिनवाणी षिक्षण षिविर मे राश्टसंत मुनिश्री पुलकसागर जी महाराज ने की। मुनिश्री के पावन सानिध्य मे आयोजित षिक्षण षिविर मे प्रथम वर्ग मे 450 षिविरार्थी एवं द्वितीय वर्ग मे 400 षिविरार्थी भाग ले रहे है।
जरूरी है मूर्ति पूजाः-
मुनिश्री ने मूर्ति पूजा को उचित बताते हुए कहा कि हम गुणों की पूजा करते है यह सत्य है लेकिन किसी को षरीर के महत्व को भी हम विस्मृत नहीं कर सकते है। केवल आत्मा संयास ग्रहण नहीं कर सकती है,षरीर को संयास ग्रहण करना पडता है क्योकि केवल आत्मा के पास षरीर नही होता है,सारे गुणो की उत्पत्ति षरीर से होता है। षरीर को हटाकर किसी की भी स्तुति नहीं कर सकते हो,इसलिए मूर्ति पूजा जरूरी है।
भाव सहित पूजा भाव पूजा
मुनिश्री ने भाव पूजा एवं द्रव्य पूजा मे अंतर बताते हुए कहा कि आज हमारे समाज मे भाव पूजा का अर्थ लोगो ने गलत लिया है लोग सोचते है कि बिना द्रव्य से भगवान की पूजा करना भाव पूजा है लेकिन यह सरासर गलत है बिना द्रव्य के पूजा करना गलत है,और आगम मे इसका निशेध है। मुनिश्री ने कहा कि अश्ट द्रव्य से पूजा करना तो द्रव्य पूजा कहलाता है जबकि अश्ट द्रव्य की पूजा मे अपने भावो को लगा देने को भाव पूजा कहते है अर्थात भाव सहित द्रव्य से पूजा करना ही भाव पूजा है।
संघस्थ प्रवक्ता विनय कुमार जैन ने बताया कि मुनिश्री पुलकसागर जी महाराज के पावन सानिध्य मे दोपहर तीन बजे से मूलाचार की नियमित कक्षाएं ली जा रही है जिसमे भी बडी संख्या मे स्वाध्यायी उपस्थित होकर आगम का ज्ञान अर्जित कर रहे है।
विनय कुमार जैन
dev sastra guru par viswas kro- muni pulaksagar
षंकरनगर मे गूॅज रही है जिनवाणी ‘पुलकवाणी’ मे
18 मई 2012 षुक्रवार की सुबह का वह वक्त आ ही गया जिसका बेसर्बी से षंकरनगर जैन समाज इंतजार कर रही थी यह अवसर था राश्टसंत मुनिश्री पुलकसागर जी महाराज के पावन सानिध्य मे आयोजित आठ दिवसीय मां जिनवाणी षिक्षण षिविर के षुभारंभ का।
कार्यक्रम का षुभारंभ श्रीमति सुधा कृश्णा जैन षंकरनगर ने षिविर का उद्घाटन फीता काटकर किया तत्तपष्चात मां जिनवाणी के समक्ष मंगल कलष की स्थापना एवं दीपप्रवज्ज्लन अतिथियों के द्वारा किया गया। आज के कार्यक्रम के मुख्य अतिथी दिल्ली सरकार के षिक्षा मंत्री लबली सिंह थे। उन्होंने इस अवसर पर मुनिश्री को श्रीफल भेटकर आषीर्वाद प्राप्त किया।
षिविर के पहले दिन को परिचय का दिवस बताते हुए मुनिश्री ने कहा कि आज षिविर का पहला दिवस है,आज केवल आपको आपके कोर्स के बारे मे बताया जाएगा। मुनिश्री ने जैन धर्मालंबियों के देव,षास्त्र और गुरू के बारे मे अपने कर्त्तव्य के बारे मे विस्तार पूर्वक षिविरार्थियो को समझाया। उन्होंने बताया कि जैन षब्द की परिभाशा बताते हुए कहा कि जो भगवान जिनेन्द्र को मानता हो और उनके बताये गये मार्ग का अनुषरण करे वह जैन होता है।
मुनिश्री ने धर्म का पालन की तुलना परीक्षा से करते हुए कहा कि आज लोग धर्म कर्म तो करते है लेकिन उन्हें पता नहीं कि हमे धर्म किस प्रकार करना चाहिए। उन्होंने उदाहरण के द्वारा षिविरार्थियों को समझाते हुए कहा कि जिस प्रकार हम परीक्षा मे पेपर मे कुछ नहीं लिखेगे,प्रष्नो के उत्तर क्रम मे नहीं देगे या उत्तर गलत लिखेगे तो नम्बर षून्य प्राप्त होगे उसी प्रकार हम धर्म को नहीं करेंगे,उल्टा सीधा करेगे या गलत तरीके से करेगे तो पुण्य नहीं मिलेगा। मुनिश्री ने जोर देते हुए कहा कि जीवन मे कुछ भी कार्य करो उन्हे सही करो,व्यवस्थित करो एवं पूरा करो तो सफलता अवष्य मिलेगी।
विनय कुमार जैन
9910938969
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