बुधवार, 30 मई 2012

sharabak hi sandhna khandit karta hai - muni pulak sagar

समाज की विकृत मानसिकता पर अफसोस व्यक्त किया राश्ट्रसंत ने 29 मई 2012 भगवान ऋशभदेव के पास उच्च सहनन वाले थे वे जीवन भर एक बार भी आहार नहीं लेते तो उनका जीवन चल सकता था लेकिन उनके साथ अन्य राजागण जिन्होंने जिनेष्वरी दीक्षा ग्रहण की थी। भूख प्यास से आकुल व्याकुल हो गये और पथ भ्रश्ट होकर कोई पेड के फल खाना लगा तो कोई झरने का पानी पीने लगा। तभी आकाषवाणी हुई की आप इस वेष मे इस तरह अन्न जल ग्रहण नही कर सकते तो किसी ने पत्तो से अपना तन ढंक लिया तो किसी ने जटाएं बढ़ा ली। इस तरह चार हजार मुनि पथभ्रश्ट हो गये। उक्त मार्मिक विचार राश्ट्रसंत मुनिश्री पुलकसागर जी महाराज ने मॉडल बस्ती स्थित जैन मंदिर के हॉल मे सोमवार को श्रावको को संबोधित करते हुए व्यक्त किए। उन्होने धर्म सभा को संबोधित करते हुए आगे कहा कि उन्हें आहार चर्या के बारे मे ज्ञान नहीं था, और महामुनि ऋशभदेव भी आहार की विधी ने मिलने के कारण छह माह तक उपवास करते रहे। मुनिश्री ने कहा कि उस समय श्रावकगण आहार दान को जानते उसको समझते तो क्या चार हजार साधू पथ से भटकते? क्या साधू अपनी साधना से भ्रश्ट होता? या श्रावक सहयोग न करे तो भ्रश्ट हो जाता है? क्या सारी गलती मुनिराजो की हैः- आज महानगरो मे साधूओं को षौच जाने के लिए खुली जगह नहीं मिल पा रही है,श्रावक बोलते है महाराज जी फिलेष मे जाओगे क्या। हमारे यहां साफ करने वाले नहीं मिलते है। अब क्या करे साधू अगर फिलेष मे जाता है तो आगम मे लिखा है कि साधू षौच आदि के लिए जहां भी जाएं अपनी पिच्छी से उस जगह को अच्छी तरह से परिमार्जित कर ले। अब आप ही सोचो जहां पहले से ही पानी भरा पडा है उसमे हजारो जीव बिलबिला रहे है वहां कैसे...? अब यह बताओ जब श्रावक ही कह देगा कि हमारे यहां व्यवस्था नहीं है तो ऐसे मे कैसे मुनिधर्म पलेगा? तो क्या सारी गलती महाराजो की है या तुम नाराजों की है? मै कहीं भी रहूं सुविधा के लिए धर्म के सिद्धांतो के साथ खिलवाड नहीं कर सकता हॅू। संतो की साधना को खंडित किया श्रावक के प्रमाद नेः- मुनिश्री ने कहा कि चौथे से अब तक पंचम काल आते आते मुनि धर्म की चर्याए 10 प्रतिषत ही बची है अब आपके आलस्य व प्रमाद से क्या उसको भी खत्म कर ले। तुम क्या अपने बच्चो को बताओगे की अपने महाराज ऐसे होते है। मुनिश्री ने कहा कि मूलाचार मे लिखा है कि श्रावक अगर श्रमण की चर्या मे सहायक नहीं बनेगा, श्रावक नवद्या भक्ति भूल जाएगा तो साधू साधना कैसे करेगा। याद रखना दिगम्बर साधू भी आप सबके बीच मे से कोई बनता है,वह आकाष से टपका हुआ नहीं होता है। मुनि भी कभी समाज के बच्चे हुआ करते है उनको भी उनके माता पिता उतना ही प्यार करते होगे जितना तुम अपने बच्चो को करते हो। साधू संत कोई कचरे से ढेर से तो उठके आते नहीं है, जितने अरमान तुम्हारे है उतने ही अरमान साधूओं के माता पिता के भी होते है।
दिगम्बर साधू सदा परमार्थ के लिए जीता हैः- मुनिश्री ने कहा कि जब साधू अपना घर छोडता है तो उस साधू की जबावदारी सारी समाज की हो जाती है, अब समाज की क्या जबावदारी बनती है कि साधू को साधना के अनुकूल रखोगे की प्रतिकूल? मुनिश्री ने कहा कि साधू समाज से क्या लेता है? केवल एक बार आहार और इसके अलावा अपने लिए क्या लेता है? अगर कोई श्रावक मेरी चोकी पर एक लाख रूपये रख जाये तो मै अपने लिए क्या उपयोग करूंगा? क्या उस एक लाख रूपये से मै अपने लिए अच्छे कपडे लाउंगा, नहीं ना। क्या अपने लिए बाजार से कुछ खाने को लाउंगा नहीं ना। ना ही उन रूपयो से खुद घूमने के लिए गाडी घोडा लाउंगा,मैने तो जीवन भर दिगम्बर वाना और पद विहार का नियम लिया है। अगर मै बिमार भी पड जाउं तो मै उन रूपयो से दवाई भी नही खरीद सकता। मै उन रूपयो का व्यक्तिगत कुछ भी उपयोग नहीं कर सकता हॅू। हॉ उन रूपयो से समाज अपने लिए मंदिर व धर्मषाला बना ले तो बात अलग है। लेकिन मै स्वयं उन रूपयो का उपयोग नहीं करूंगा। तीर्थ भी समाज के लिए बनाता है मुनिः- मुनिश्री ने कहा कि साधू संतो के पास हीरे मोतियो का ढेर भी लगा दो तो उनके कोई काम का नहीं है। याद रखना अगर कोई साधू संत अपनी प्रेरणा से कोई तीर्थ का निर्माण करवाता है तो क्या समाधी के बाद वह उस तीर्थ को छाती पर बांधकर ले जाएगा। भव्य एयरकूल्ड धर्मषालाओं का निर्माण करवाता है तो उसका उपयोग कौन करता है? समाज ही तो उनका उपयोग करती है। स्वार्थ त्याग की कठिन तपस्या बिना खेद जो करते है ऐसे ज्ञानी साधू जगत की दुख समूह को हरते है। दिगम्बर संत तो स्वार्थ का त्याग करके अपनी तपस्या किया करते है। दिगम्बर संत जो भी करेगे परमार्थ के लिए करेंगे, उपकार के लिए करेंगें। अंत मे नवद्या भक्ति की विरासत सौपते जानाः- मुनिश्री ने कहा कि आप लोगो से एक ही निवेदन है कि दौलत कमाना तो हर मां बाप अपने बच्चो को सिखाते है लेकिन आप अपने बच्चो को नवद्या भक्ति भी सिखाइये। आज इक्सिवी सदी मे जीने वाले बच्चे बहुत ही होषियार व समझदार हो गये है। आज जिस बच्चे को चलना नही आता वह मोबाइल पकडना चाहता है, अब गुड्डे गुडियो का खेल नही बच्चे बिडियो गेम खेलने लगे है। अगर आप अपने बच्चो को नवद्या भक्ति सीखा के नहीं जाओगे तो आप लोगो के जाने के बाद जैन ंधर्म से दूर हो जायेगे। मुनि क्या होते है उनको बताने वाला कोई नहीं होगा। बच्चो को आगे लाएं नही तो वे पिच्छी को झाडू ही कहेगेः-
मुनिश्री ने बुजुर्गाे से निवेदन कि समझदार सास का कर्त्तव्य होता है कि वह अपने बेटे बहू को मुनियो के आहार मे भेजे ताकि वे आहार दान को सीख सके। अगर तुम्हारे मरने के पहले बच्चे नवद्या भक्ति सीख गये तो तुम्हारे घर पर संतो के चरण पडते रहेगे नही तो अभी तो यह हाल है कि मैने एक बच्चे से पूछा कि मेरे हाथ मे यह मोर पंख है इसे क्या कहते है तो वह बोला झाडू, मैने कहा कि इससे क्या करते है तो बोला जहां आप बैठते होगे वहां पहले झाडू लगा लेते होगे, मैने कमण्डल को दिखाते हुए कहा कि यह क्या है बोला थरमस मैने पूछा इसका साधू क्या करते है तो बोला जब प्यास लगती होगी तो पानी पी लेते होगें। सिखाईये अपने बच्चो को साधूओ की नवद्या भक्ति। अंत मे जब विरासत मे धन दौलत, जमीन जायजाद सौपो तो साथ मे संस्कार भी सौपाते जाना ताकि तुम्हारे जानेे के बाद तुम्हारा यह जैन धर्म जीवित रहे। एक साधू एक चौका की परम्परा बंद कर दोः- मुनिश्री ने बडे अफसोस के साथ कहा कि महानगरो मे मुनियो के आहार की परम्परा बहुत ही विकृत होती जा रही है,जितने साधू उतने चौके, क्या आप अपने साधूओ को निमत्रित करके आहार कराओगे। फिर वे कैसे नियम लेगे, कैसे अपनी सिहवृत्ति का पालन कर पायेगे। मै बडे ही गौरव के साथ कह सकता हॅू कि आज भी बुंदेलखंड मे एक एक साधू के लिए दस दस चौके लगते है। जब श्रावक ही संत की साधना मे सहयोग नहीं करेगा तो वह साधना कैसे कर पायेगा। विनय कुमार जैन संघस्थ प्रवक्ता 9910938969

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें