मंगलवार, 1 मई 2012

जन जागरण बहुत हो गया अब जैन जागरण की आवष्यकता

आज से लगभग 350 वर्श की पूर्व की ही तो बात है,जब हमारे भारतवर्श पर मुगलो की सत्ता थी। मुगल सल्तनत के द्वितीय षहंषाह अकबर के षासनकाल मे धर्म पर आधारित जनगणना की गई थी तब जैन मतालम्बियों की जनसंख्या साढ़े चार करोड़ के आसपास थी। चौक गए न आप....हॉ मै सच कह रहा हॅू उस समय हम साढ़े चार करोड़ थे लेकिन आज हम जनसंख्या के आंकड़ो पर नजर डाले तो हम सभी पंथो के जैन करीब 47 लाख ही बचे है। दुनिया मे कुछ और धर्म है जैसे फारसी,कन्फूयिस आदि जो अपना अस्तित्व को संभालने की जद्वोजहद मे लगे हुए है। गौर करने लायक बात तो यह है कि भगवान महावीर और महात्मा बौद्ध दोनो समकालीन थे लेकिन आपने कभी इस बात पर ध्यान दिया कि आज बौद्ध धर्म दुनिया के आठ से दष देषो का राश्टीय धर्म बन गया है लेकिन जैन धर्म हमारे देष मे ही टुकड़ो मे बॅट-बॅटकर लुप्त होने की कगार पर है। कहीं ऐसा न हो की षेर,मोर की तरह ही हमारे जैन धर्म को भारत सरकार संरक्षित धर्म का दर्जा न दे। लगातार कम होते जा रहे जैन धर्म को लोग इतिहास मे याद रखेंगे और लोग जब किताबो मे पढ़ेगे की जैन धर्म मे भगवान महावीर,आचार्य षांतिसागर,आचार्य संमतिसागर जी महाराज जैसे संत हुए है जो कठिन तपष्चरण करते थे,मासोपावासी थे। षायद इस पर भी लोग षंका करेंगे। वक्त रखते हुए जिसने अपने आपको नहीं संभाला इतिहास गवाह है उनका नाम गुम हो गया है। आखिर क्या किया जाए कि हम अपने गौरवषाली इतिहास और श्रमण संस्कृति को अक्षुण्य बनाएं रख सके। ऐसा नहीं है कि जैन समाज के संत मुनि इस दिषा मे कोई उत्कृश्ट कार्य नहंी कर रहे है। बेषक वे जैन धर्म को जीवंत बनाएं रखने के लिए मंदिर,मूर्तियो का जगह जगह निर्माण कर रहे है। इन सबसे बढ़कर एक संत भी जैन समाज में है जिन्होंने हमेषा दीन दुखियों एवं जैन धर्म की रक्षा के बारे मे ही चिंतन किया है। वे युवा है,युवाओं के आकर्शण के केन्द्र है, उनकी वाणी मे मिश्री घुली है और जिव्हा पर साक्षात सरस्वती विराजमान है ऐसे है संत है राश्टसंत मुनिश्री पुलकसागर जी गुरूदेव है। मुनिश्री पुलकसागर जी गुरूदेव का सोचना है कि आज हमारे देष मे बहुत तीर्थ है, मंदिर है लेकिन दुख की बात तो यह है कि उन तीर्थो पर भगवान जिनेन्द्र को अर्घ समर्पित करने के लिए श्रावक नहीं है,मंदिरो मे पूजा तो होती है लेकिन किराए के रखे हुए लोगो के द्वारा। जबकि षास्त्रो मे कहा कि चार पुरूशार्थ है अर्थ,दान,काम और मोक्ष व्यक्ति को स्वयं ही करने चाहिए। किराए पर रखे हुए लोगो के द्वारा हमारा धर्म कितने दिन जीवित रहेगा। मुनिश्री का मानना है अगर आप किसी मंदिर मे मूर्ति मे स्थापित करते हो तो रोज उस प्रतिमा की पूजा पाठ एवं अभिशेक करना चाहिए लेकिन दुर्भाग्य की बात तो यह है कि हमारी समाज मे 50 साल के बुजुर्ग को भी आठो अर्घ याद नहीं है,भगवान की पूजा किस प्रकार करना चाहिए उन्हें नहीं पता। ऐसे मे हम संतो का का कर्त्तव्य बनता है कि लोगो को जैन धर्म के मूल सिद्धंातो से अवगत कराएं। यह काम तो पंडितो को करना चाहिए लेकिन पंडित तो आजकल केवल मुनियों की बुराईयों एवं उनमे कमियों निकालने मे लगे हुए है। राश्टसंत मुनिश्री पुलकसागर जी महाराज ने वीणा उठाया है कि अब जैन समाज के हर बच्चे को मै बताएगे कि सच्चा जैन कौन होता है,जिनेन्द किसे कहते है, वे हर जैनी मे चाहते है कि उसे अपने धर्म पर गर्व होना चाहिए कि वह जैन है। मुनिश्री कहते है कि जन जागरण तो कर लिया अब वक्त आ गया है कि जैन जागरण हो। इसकी षुरूवात मुनिश्री ने मां जिनवाणी पत्राचार पाठ्यक्रम परीक्षा के माध्यम से कर दी है। पत्राचार पाठ्यक्रम मे प्रतिवर्श देष भर से पच्चीस से तीस हजार स्वाध्यायी परीक्षा देते है। आज महानगरो मे जैनो को धर्म के बारे मे ज्यादा जानकारी नहीं है इसके लिए मुनिश्री मां जिनवाणी षिक्षण का आयोजन दिल्ली की विभिन्न कॉलोनियों मे आगामी समय मे कर रहे है। 6 मई से 13 मई तक भोलानाथ नगर षाहदरा मे सात दिवसीय षिविर का आयोजन किया जा रहा है जिसमे करीब एक हजार से अधिक षिविरार्थी सम्मिलित हो रहे है। भोलानाथ नगर के पष्चात षंकर नगर मे एवं न्यू रोहतक रोड,नई दिल्ली मे भी षिविर का आयोजन किया जाएगा। इस बार मुनिश्री ने सोच लिया है कि दिल्ली को बदल के रख देंगे। विनय कुमार जैन सह संपादक पुलकवाणी 9910938969

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