शनिवार, 28 अप्रैल 2012
मुनिश्री पुलक सागर जी के सानिध्य में सूरजमल विहार में धूमधाम से निकली श्रीजी की रथयात्रा
एकता ही मेरा मिषन है-मुनि पुलकसागर
29 अप्रैल 2012 आज से 2600 वर्ष पूर्व इस धरती पर भगवान महावीर का अवतरण हुआ था जब से लेकर अब तक हम कई खण्डो मे विभाजित हो गये। कई पंथो,सम्प्रदायो मे बंट गये। इन 2600 वर्षो मे
जैन समाज टूटा ही है आज जरूरत है कि हम एकता का परिचय दे। उक्त विचार मुनिश्री पुलकसागर जी महाराज ने रविवार को सूरजमल विहार मे 7 वी रथयात्रा के अवसर पर श्रद्धालुओं को संबोधित करते हुए व्यक्त किए।
इस अवसर पर बैण्ड बाजों के साथ षोभायात्रा निकाली गई जिसमे रथ पर श्री जी को विराजमान किया गया। षोभयात्रा कॉलोनी के विभिन्न मार्गो से होते हुए वापिस जैन मंदिर के समीप निर्मित पाण्डाल मे पहुंची जहां जाकर धर्मसभा मे परिवर्तित हंो गई। इस अवसर पर मुनिश्री पुलकसागर जी गुरूदेव ने अपने अमृतमयी वचनों से लोगो की ज्ञान की प्यास को संतृत्प किया।
मुनिश्री आगे धर्मसभा को संबोधित करते हुए कहा कि अपने पंथ,सम्प्रदाय को मंदिरो तक सीमित रखे और जैन कहलाने मे गौरव महसूस करे। आए 2600 वर्षो मे जितना विखराव हुआ आगामी 2़6 वर्षो मे एकता के साथ रह ले। अगर हम 26 वर्ष तक एकता के साथ रह लिये तो 2600 वर्षो के विखराव के नुकसान की भरपाई आराम से कर पायेगे। मेरा यही मिशन है कि सब एक हो,एकता के सूत्र मे बंधे।
एकता का पाठ पढ़ाते हुए मुनिश्री ने कहा कि कहते है भगवान महावीर जहां तपस्या किया करते थे वहां शेर और गाय एक घाट पर पानी पिया करते थे। मुझमे इतना सक्षम तो नही लेकिन मै जिस शहर या नगर मे जाता हॅू,वहां पर होने वाली मेरी सभाओ मे कौन हिन्दु है कौन मुसलमान है और कौन जैन है इसकी पहचान मुश्किल हो जाया करती है। एकता ही मेरा मिशन है मेरा उद्देश्य है। अगर आपका दूसरे मजहब के प्रति आस्था या श्रद्धा के भाव नही है तो मत करो उनकी भक्ति मगर याद रखो जब भी किसी देवस्थान या आस्था के केन्द्र के सामने से गुजरो तो अपने अहंकार को त्यागकर के गुजरो क्योकि वो भी किसी की आस्था का,श्रद्धा का केन्द्र हुआ करता है। मुनिश्री ने कहा कि हमसे अच्छे तो वे पंरिेदे होते है जो कभी मंदिर पर तो कभी मस्जिद पर बैठा करते है।
मुनिश्री ने अहिंसा की सूक्ष्म परिभाशा देते हुए कहा कि केवल चिटी,कीड़े मकोड़े की रक्षा करना ही अहिंसा नही है। बल्कि वैचारिक अहिंसा का होना भी बहुत जरूरी है। भगवान महावीर ने द्रव्य हिंसा से ज्यादा भाव हिंसा को महत्व दिया है। मुनिश्री ने गांधी जी के तीन बंदरो का उदाहरण देते हुए कहा कि-गांधी जी के तीन बंदर थे जिनका कहना था कि बुरा मत देखो,बुरा मत सुनो,और बुरा मत बोलो। भगवान महावीर ने भी एक बंदर का जिक्र किया है जो अपनी छाती पर हाथ रखे हुए है और कहा रहा है बुरा मत सोचो। जो आदमी बुरा नही सोचता वो न तो बुरा देखेगा,न बुरा सुनेगा और न ही बुरा बोलेगा।
विनय कुमार जैन
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