बुधवार, 25 अप्रैल 2012

vinay jain se khas bat......... जन-जन में लोकप्रिय हो चुके विचार क्रांति,सुधार क्रांति व चरित्र क्रांति के अग्रदूत राश्टसंत मुनि श्री पुलकसागर जी गुरूदेव से आज किसी परिचय के मोहताज नहीं है। कई लोग उनसे मिल चुके है,कई लोग मिडिया अथवा अन्य किसी माध्यम से मुनिश्री से जुड़े है। लेकिन सभी उनके ब्राहृा रूप से परिचित है। उनके उदार दिल में बसी विराट संवेदनांए और भावनाएं अभी भी लोंगो के लिए जिज्ञासा का विशय है। इसी जिज्ञासा को षांत करने के लिए पेष है यह विषेश साक्षात्कार.... प्रष्न आपके जीवन की सबसे बडी खुषी? मुनिश्री- मैं मनुश्य हॅू,भारत मे जन्म मि
ला और संत बना। प्रष्न-जीवन मे सबसे ज्यादा किससे प्रभावित? मुनिश्री-मेरी जन्मदात्री मां गोपीबाई जिन्होंने मुझे धार्मिक संस्कार दिए। प्रष्न-आप किस बात से सबसे ज्यादा डरते है? मुनिश्री- जाने अनजाने मे किसी का अहित न हो जाये। किसी का दिल न दुख जाये। प्रष्न-आपका प्रिय स्वपन क्या है? मुनिश्री- सारी दुनिया परस्पर प्रेम मे रंग जाए। कोई किसी का दुष्मन न हो। प्रष्न-आप कैसे व्यक्ति को पसंद करते है? मुनिश्री-जो संकीर्ण विचारधारा से उपर उठकर उदात्त चिंतन रखता हो। प्रष्न- आप कभी झूठ बोलते है? मुनिश्री- अहिंसा धर्म की रक्षार्थ बोलना पड़े या पवित्र उद्देष्य की पूर्ति मे बोलना पड़ जाए तब, बाद मे अनिर्वाय रूप से प्रायष्चित भी होता है। अन्यथा नहीं। प्रष्न- क्या आप कभी रोते है? मुनिश्री- मैं स्वयं एक बहुत ही संवेदनषील व भावुक हृदय हॅू। संवेदनषीलता के क्षणों मे आंखे डबडबा जाती है। प्रष्न-जिंदगी मे कभी कोई अफसोस होता है? मुनिश्री-हॉ,जब जब स्वार्थ सामने आया,तब तब अफसोस हुआ। प्रष्न-फुर्सत के क्षणों मे आप क्या करते है? उत्तर-एकांत के,अवकाष क्षणों मे मै आत्मचिंतन मनन या मंथन करता हॅू। अपने भक्तगणों के साथ बाते करता हॅू या फिर किताबे पढता हॅू। प्रष्न- आपको किस बात पर हॅसी आती है? मुनिश्री-जब लोग मुझे भगवान मानने लगते हैं जबकि मै साधारण व्यक्ति हॅू। प्रष्न-आपको दूसरे के चरित्र मे क्या पसंद है? मुनिश्री-सच्चाई,ईमानदारी और सरलता। प्रष्न- भारतीय संस्कृति मे आपको कौन सा चरित्र पसंद है? मुनिश्री-प्रथम तीर्थंकर ऋशभदेव,मर्यादा पुरूर्शोत्तम राम,भगवान महावीर और महात्मा गांधी। प्रष्न-आप अपना आदर्ष किसे मानते है? मुनिश्री-आचार्य गुरूवर पुश्पदंतसागर जी महाराज एवं मुनिश्री तरूणसागर जी महाराज। प्रष्न-आध्यात्मिक क्षेत्र मे आप सबसे ज्यादा किससे प्रभावित है? मुनिश्री-आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज की जीवन चर्या और अर्न्तबाह्य एकता से। प्रष्न- देष का सबसे बड़ा दुष्मन किसे मानते है? मुनिश्री-देष के गद्दारो को। प्रष्न- किसी भी देष की उन्नति के लिए आप किन चीजो को महत्वपूर्ण मानेगे? मुनिश्री- चार चीजो को। 1 अपने देष अपनी भाशा और अपनी संस्कृति पर गर्व होना चाहिए। 2 विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी की अच्छी बुनियाद और जीवन के हर क्षेत्र मे इनका इस्तेमान । 3 अर्थव्यव्स्था मजबूत हो। 4 देष की सुरक्षा व्यवस्था मजबूत हो। प्रष्न- धर्म को किससे हानि हो सकती है? मुनिश्री-नकली धर्मात्माओं और कट्टरवाद से। प्रष्न-क्या आप साधना से संतुश्ट है? मुनिश्री-नहीं,हमेषा साधना अधूरी ही लगती है। प्रष्न- आपकी नजर मे आपकी सबसे बडी कमजोरी क्या है जिसने आपको दुखी किया है? मुनिश्री-सभी पर जल्दी विष्वास कर लेना और उसे अपना षुभचिंतक समझने लगना। प्रष्न-आप किस रूप मे याद किया जाना चाहेंगे? मुनिश्री- हर आदमी अपने आपको अच्छे भले आदमी के रूप मे किया जाना पसंद करना चाहूंगा। प्रष्न-पुनर्जन्म लेना हो तो किस रूप मे लेना चाहेगे? मुनिश्री- फिर मनुश्य बनूॅ,फिर संत बनूॅ। मददगार बनूॅ,मुक्तिदूत बनॅू और भारत मे ही पैदा होउॅ। प्रष्न-परेषानी मे किसकी बाते सुनते है? मुनिश्री-अपने दिल की। प्रष्न- आपकी सबसे बडी खासियत? मुनिश्री- आसानी से धोखा खा जाना। प्रष्न- क्या आप भाग्य पर भरोसा करते है? मुनिश्री- पुरूशार्थ के बाद भाग्य पर ही भरोसा करता हॅू। प्रष्न- सुख-दुख के पल किसके साथ बांटते है? मुनिश्री-अपने अच्छे भक्तो के साथं प्रष्न- आपके प्रवचनो का विशय खासकर सामाजिक होता है,क्यो? मुनिश्री- किसी भी आध्यात्मिक बात के लिए आदमी को मानसिक रूप से तैयार होना आवष्यक है,जब तक आदमी अपनी सामाजिक समस्याओं में उलझा रहेंगा पारिवारिक अषांति से ग्रस्त रहेगा,तब तक उसे अध्यात्म की बाते समझ नहीं आ सकती। प्रष्न- आपका मिषन? मुनिश्री- कॉपते अधरो को मुस्कान देना है,जिसके लिए वात्सल्य धाम का सृजन पुश्पगिरि तीर्थ में चल रहा है। प प्रष्न- आपके प्रवचनो का उद्देष्य क्या है? मुनिश्री- सर्वजन हिताय,सर्वजन सुखाय व सत्यम षिवमं सुन्दरम की स्थापना। तृश्णा मरीचिका के पीछे भटकती दुखी आहत मानवता को सुख की राह बताना। प्रष्न-आपकी नजरो मे संत कैसा होना चाहिए? मुनिश्री-समाज व राश्ट को दिषा देने वाला युगधर्म परिचायक होना चाहिए। प्रष्न-भौतिकवाद और आकर्शण के युग मे आप धर्म के क्षेत्र मे कैसे आयें? मुनिश्री- षुरू से ही मेरी रूचि धर्म मे रही है,मेरे पारिवारिक संस्कार से मुझे लगा मेरे जीवन का वास्तविक उद्देष्य धर्म और संस्कृति मे ही निहित है। प्रष्न-वर्तमान मे सामाजिक,सांस्कृतिक विघटन के लिए आप किसे जिम्मेदार मानते है? मुनिश्री- व्यक्तिवाद को। प्रष्न- समाज सुधार की दिषा मे आपके प्रयत्न? मुनिश्री- पदविहार द्वारा जनसंपर्क कर व्यक्तिषः सुधार,धर्मसभाओ व प्रवचनों संस्कार षिविरो व नैतिक षिक्षा द्वारा।

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