बुधवार, 18 अप्रैल 2012

mahaveer ka...

तीर्थकर का पद प्रसाद मे नहीं मिलता- मुनि पुलकसागर
दिल्ली 25 मार्च 2012 आज का यह बहुत पवित्र और पावन दिन है कि प्रथम तीर्थंकर भगवान ऋशभदेव का जन्म हुआ है। वे भगवान ऋशभदेव जिन्होंने जैन संस्कृति,श्रमण परम्परा और रत्नत्रय की ध्वजा आसमान मे लहराई। जब भी महापुरूश इस धरती पर जन्म लेते है तो वे भटकती मानवता को राह दिखाने के लिए आते है। याद रखना कि तीर्थकर कोई चमत्कार या माया नहीं होते है तीर्थकर तो तपस्या व साधना का नाम हुआ करता है। तीर्थकर का पद प्रसाद मे नहीं अपितु कठिन त्याग व साधना के बल पर मिला करता है। उक्त विचार राश्टसंत मुनिश्री पुलकसागर जी महाराज ने रविवार को बिहारी कॉलोनी स्थित अभिमन्यू पार्क मे आयोजित ज्ञान गंगा महोत्सव के समापन दिवस पर भगवान ऋशभदेव की जन्म जयंति के उपलक्ष्य मे प्रकट किए। मुनिश्री के प्रवचन के पष्चात एक विषाल विहारी कॉलोनी से निकाला गया जिसमे रथ पर श्रीजी को विराजमान किया गया जो यमुना पार के विभिन्न मार्गो से निकलता हुआ वापिस विहारी कॉलोनी पहुंचा जहां श्री जी की पूजा अर्चन की गई। जुलूस मे मुनिश्री ससंघ सम्मिलित हुए। तीर्थंकर जीवन जीने की कला सिखाते हैः- उन्होंने आगे कहा कि तीर्थकर धरती की ऐसी संपदा हुआ करती है,जो लोगो को कल्याण का मार्ग दिखाते है और निर्वाण का मार्ग दिखाते है। लोगो को जीवन जीने की कला सिखाते है। भगवान ऋशभदेव नहीं होते तो महावीर नहीं होते। महावीर नहीं होते तो आचार्य कुंदकुंद नहीं होते और आचार्य कुंद कुंद नहीं तो आचार्य षांतिसागर,आचार्य विद्यासागर,आचार्य पुश्पदंतसागर जी महाराज भी नहीं होते। नारी की पर्याय तभी सार्थक होगी जब...ः- मुनिश्री ने कहा कि आज के ही दिन नाभिराय के घर मरूदेवी की कोख से भगवान ऋशभदेव का जन्म हुआ था। ध्यान रखना सौ सौ नारी सौ सौ सुत को जनती रहती सौ सौ ठौर,तुम से सुत को जननी वाली जननी महती....। धन्य होती है वह मां जो तीर्थकर जैसे सुत को जन्म देती है। यदी किसी नारी की कोख से तीर्थकर का जन्म हो जाता है तो नारी की पर्याय सार्थक हो जाती है। मुनिश्री ने इस पखवाडे को पवित्र बताते हुए कहा कि यह पखवाडा बहुत ही पवित्र है क्योकि आज हम भगवान ऋशभदेव का जन्मोत्सव मना रहे है थोडे दिनो बाद राम नवमी,हनुमान जयंति फिर महावीर जयंति मनाएंगे। इस पखवाडे मे बडे बडे महापुरूश के जन्म हुए है। यह मेरा सौभाग्य है कि मुझे भगवान ऋशभदेव की जयंति और महावीर जयंति मनाने का सौभाग्य दिल्ली मे मिला। संयास लेने मे उम्र का बंधन नहींः- मुनिश्री ने भगवान ऋशभदेव और महावीर स्वामी के जीवन मे सूक्ष्म से सूक्ष्म अंतर बताते हुए कहा कि दोनो की मंजिल एक थी लेकिन रास्ते थोडे अलग थे। भगवान ऋशभदेव की आयू सबसे अधिक और सबसे कम आयू तीर्थंकर महावीर स्वामी की होती है। दोनो महापुरूशो ने सिखा दिया कि 84 लाख वर्श की आयू लेकर बुढापे मे भी संयास लिया जा सकता है और भगवान महावीर भरी जवानी मे संयास लेकर साबित कर देते हे कि संयास लेने के लिए उम्र का केाई बंधन नहीं होता है। दोनो महापुरूशों ने प्रकृति का बैलंेस बनाएं हुए है। जहां भगवान ऋशभदेव की दो षादियां हुई थी वही भगवान महावीर ब्रह्मचर्य का पालन करते हुए संयास को ग्रहण करते है। भगवान ऋशभदेव ऐसे तीर्थंकर हुए जिन्होंने सबसे पहले नारी षिक्षा की आवाज उठाई। भगवान ऋशभदेव को छह महिने तक आहार नहीं मिल पाया था वही भगवान महावीर स्वामी को विधि न मिलने के कारण आहार नहीं मिल पाया था। भगवान ऋशभदेव कैलाष पर्वत से मोक्ष जाते है जबकि भगवान महावीर समतल पावापुरी के उद्यान से मोक्ष जाते है,भगवान महावीर जहां से मोक्ष जाते है उस जगह की देवताओं ने इतनी भस्म लगाई की उस जगह आज सरोवर बन गया है। दोनो तीर्थकरों के जीवन को तो देखो जब दोनो का पारणा होता है तो भगवान ऋशभदेव को सरस इक्षु रस से पारणा कराया जाता है वही भगवान महावीर को नीरस उडद के छिल्लो से चंदना आहार कराती है। जैन कभी भिखारी नहीं होताः- मुनिश्री ने कहा कि जैसा जीवन तीर्थंकरो का होता है वैसा जीवन किसी का नहीं होता है। हम सौभाग्यषाली है कि हमने भगवान महावीर के वंष मे जन्म लिया है। हमारी परम्परा इतनी पवित्र पावन है कि जैन कुल मे जन्म लेना वाला जीव इतना पुण्यषाली तो होता है कि उसे भीख मांगकर गुजारा नहीं करना पड़ता हैं। आप देख घर व बाजार मे देख सकते हो कि इतने सारे भिखारियों मे से एक भी भिखारी जैन नहीं मिलेगा। जैन रिक्षा चलाकर मेहनत मजदूरी करके अपना गुजारा कर लेता है लेकिन कभी भीख नहीं मांगा करता है। कही आपके बच्चे अभक्ष्य तो नहीं खाने लगेः- याद रखना मानव तन र्मुिष्कल से मिलता है उससे ज्यादा मुष्किल से जैन कुल मिला करता है। ध्यान रखना कही आपके बच्चे अंडे जैसे अभक्ष्य चीजे यार दोस्तो के साथ नहीं खाने लगे है। मान्यवर ताली बजाने से काम नहीं चलेगा जैन के यहां पैदा हुए हो तो थोडा जैनत्व अपने आप मे पैदा करो। जैन घर मे पैदा होकर भी अगर तुम्हारे संस्कार गलत हो गए तो जैन कहलाने से कोई फायदा नहीं है। मुझे बहुत अफसोस होता है जब हमे अपनी धर्मसभा मे जैनो से रात्रि भोजन न करने का उपदेष देना पड़ता है और हैरानी इस बात की अब हमे जैन बच्चों को बताना पड़ता है कि अंडे मांसाहारी और इनका त्याग करना चाहिए।

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