मंगलवार, 24 अप्रैल 2012
संत श्रावक का मन संभालते है-
संत श्रावक का मन संभालते है-मुनि पुलकसागर
दिल्ली 24 अप्रैल 2012 श्रावक संत का तन और संत श्रावक का मन संभाले तभी हमारी श्रमण संस्कृति दीर्घ काल तक अक्षुण्य रह सकती है। साधू-संतो को आहार दान करना उनकी वैयावृत्ति करना श्रावक का परम कर्त्तव्य है एवं जब श्रावक का मन संसार की विशय वासनाओं मे जकड़ने लगे तो संतो का कर्त्तव्य है कि वे उसे सद्मार्ग दिखलायें।
उक्त विचार राश्टसंत मुनिश्री पुलकसागर जी महाराज ने मंगलवार को नवीन षाहदरा स्थित जैन धर्मषाला मे व्यक्त किए। मुनिश्री इस समय नवीन षाहदरा मे विराजमान है तथा उनका 25 अप्रैल तक यही प्रवास है। 26 अप्रैल को प्रातः 7 बजे मुनिद्वय ऋशभविहार के लिए मंगल विहार करेंगे।
उन्होंने धर्मसभा को संबोधित करते हुए कहा कि आज ही वह पवित्र व पावन दिवस है जब महामुनि ऋशभनाथ की प्रथम पारणा राजा श्रेयांस ने करवाई थी। लोगो को पता नहीं था कि दिगम्बर संत का पड़गाहन किस प्रकार किया जाना चाहिए इसलिए भगवान लगातार छह माह तक विधी न मिलने के कारण निराहार रहे। मुनिश्री ने कहा कि आज भी समाज लोग नवद्या भक्ति को भूलते जा रहे है। अपने बच्चों को वसियत सौपने के साथ साथ नवद्या भक्ति की नसियत भी सौपते जाना ताकि आने वाले समय मे तुम्हारे बच्चे जिनेन्द्र की पूजन एवं मुनियों की भक्ति करते रहे, उनकी सेवा करते रहे।
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