सोमवार, 23 अप्रैल 2012

क्या कोई गारंटी थी कि

क्या लड़कियो का जन्म गर्भपात,बलात्कार,छेड़छाड़, दहेज की बली चढ़ाने के लिए हुआ है? पिता ने बेटे की चाह मे तीन माह की बेटी को मार डाला मै अभी अभी तो दिल्ली जाने के लिए रेल पर सवार हुआ था,मैने आदत अनुसार यात्रा के लिए कुछ पुस्तके खरीदी। पुस्तक के पेज पलटते जा रहा था मेरा अचानक आफरीन की फोटो पर नजर गई, सिर चकरा गया और एक लंबी सोच मे डूब गया। रेल अपनी गति से मंजिल की ओर आगे भाग रही थी पर मेरा मस्तिश्क अतीत की ओर खिचा चला जा रहा था,कि कितना तरसते है औलाद के लिए जिनकी कोई संतान नहीं होती है, मेरे परिचित मे ऐसे ही एक सज्जन है जिनकी कोई संतान नहीं है,वे कोई बच्चा गोद लेना चाहते है। लेकिन मै तो उस आफरीन के बारे मे सोच रहा था आफरीन नही रही,एक हप्ते तक वह जिंदगी के लिए संघर्श करती रही,एक पल को लगा भी कि वह लड़ाई जीत लेगी,लेकिन वह सुनहरा भ्रम जैसे टूट जाने के लिए ही था,बंगलुरू के एक अस्पताल मे आफरीन ने आखिकार दम तोड दिया। कौन थी बेबी आफरीन कहां से आई थी। कहां चली गई। तीन महिने की नन्ही सी जान जिसे उसके पिता ने बड़ी बेरहमी से मारा था मासूम षरीर पर पिटाई व जलाएं जाने के दर्दनाक निषान थे। आखिर यह किस बात का अपराध की सजा थी। आफरीन की गलती क्या थी। गलतियों की फेहरिस्त बहुत लंबी है,आफरीनों की फेहरिस्त भी कोई कम लंबी नहीं है,बंगलुरू के एक मामूली बढ़ई 22 वर्शीय फारूख और 19 साल की रेषमा बनाू के घर पैदा हुई आफरीन की गलती यह थी कि वह लडका बनकर पैदा नहीं हुई और उसके पिता को इस देष के अधिकांष मर्दो की तरह ही लडके की चाहत थी उसकी गलती यह भी थी कि वह तीसरी दुनिया के बेहद चमकीले से दिखने वाले लेकिन निहायत पिछड़े और सामंती मुल्क में पैदा हुई,जहां आज भी छोटी बच्चियों और महिलाओं के साथ होने वाले अपराधों का आंकड़ा बहुत ज्यादा है,इन गलतियों की जो सजा उसने चुकाई, उसे देखकर-सुनकर पता नहीं, इस आजाद और रौषनख्याल मुल्क में किसी की रातों की नींद तबाह होती भी है या नहीं? हालंाकि उस समय पूरा देष न्यूज चैनलो के कैमरो के सामने मातम में डूबा सा जान पड़ रहा था, सब दुखी वक्तत्य दे रहे थे, दिल्ली की ओहदेदार कुर्सियों पर बैठी रसूखदार महिलाएं षोक व्यक्त कर रही थी ले
किन सिर्फ षोक व्यक्त कर रही हैं,कर कुछ नहीं रहीं थी क्योंकि फलक और बेबी आफरीनों की सूची में हर दिन एक नया नाम जुडता ही जा रहा है,देष का आर्थिक विकास का गाना गाने वाली सरकारे कागजो व आंकड़ो के दावों से दुनिया हैरान है सब चीख चीखकर कह रहे हे कि हिंदुस्तान तेजी से दुनिया के सबसे अमीर देषों की सूची मे षुमार होने की दिषा मे बढ़ रहा है,2011 की जनगणना बताती है कि इस देष के लोगों की खरीद क्षमता मे जबरदस्त इजाफा हुआ है,लेकिन कोई इस बात का हल्ला क्यों नहीं करता कि इसी जनगणना के मुताबिक भारत मे लिंगानुपात मे जबरदस्त गिरावट आई है, 2001 की जनगणना मे जहां 1000 लड़को पर 927 लड़कियां थी वहीं इस बार यह संख्या 914 रह गई है, यह आजादी के बाद हिंदुस्तान के अब तक के इतिहास का सबसे खराब चाइल्ड सेक्स रेष्यों है, यूनिसेफ की हाल की एक रिपोर्ट के मुताबिक हिंदुस्तान की अब तक की कुल आबादी से 5 करोड लड़कियां और महिलाएं गायब हो चुकी है,ये वे लड़कियां है जो भू्रणहत्या,षिषुहत्या से लेकर दहेज,बलात्कार और ऑनर किलिंग के नाम पर मार डाली गई है,यूनीसेफ की रिपोर्ट कहती है कि भारत मे गैरकानूनी तरीके से लिंग परीक्षण और गर्भपात का काम 1000 करोड़ रू. की बड़ी इंडस्टी मे तब्दील हो चुका है। क्या बेबी आफरीन खुषकिस्मत थी,जो पैदा होने के पहले हीं लिंग परीक्षण करवाकर नहीं मार डाली गई? क्या हुआ,जो वह पैदा हो भी गई? क्या कोई गारंटी थी कि लड़की बनकर पैदा हुई तो इस तरह तीन माह की उम्र मे पीटने और जलाए जाने से नहीं मरेंगी? और जो इस तरह नहीं भी मरती तो क्या गांरटी कि कभी सड़क चलते सुनसान अंधेरे कोने मे उसके साथ रेप न हो जाता और मारकर फंेक न दिया जाता? बड़ी होती आफरीन के साथ कभी घर का कोई पुरूश रिष्तेदार षर्मनाक हरकत न करता?कभी सड़क चलते लड़की होने के कारण उसे छेड़ा न जाता? कभी कोई पुरूश प्रेम प्रस्ताव ठुकराने या तलाक मांगने पर उसके मुंह पर तेजाब न फंेक देता? कभी कोई दलाल अगवाकर उसे कमाठीपुरा या जीबी रोड़ के कोठों में नहीं बेच देता? क्या गांरटी कि कभी उसे दहेज के लिए जलाकर मान न डाला जाता? पति षराब पीकर पीटता नहीं? और एक दिन ऐसे ही उसके पेट से बच्चे का लिंग परीक्षण न करवाया जाता और जो बेटी होती तो पैदा होने के पहले ही उसे मान न डाला जाता? क्या गांरटी है? कोई गांरटी नहीं क्योंकि दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र आजादी के 64 साल बाद भी ऐसी कोई गारंटी नहीं देता है, फलक और आफरीन खो गई? पता नहीं,ऐसी कितनी फलक और आफरीन आने वाले कितनी सदियांे तक खोती रहेंगी? हम नहीं जानते, आफरीन कि तुम्हारी मौत पर मातम मनाएं या राहत महसूस करें, एक तकलीफ की बेषक तुम गवाह बनीं, लेकिन ऐसी जाने कितनी तकलीफों से बच गईं, जो तुम्हारे खाते मे आती ही आती, उन तकलीफों का आना कुछ उसी तरह तय था,जैसे तुम्हारा लड़की होना तय था। मेरीे प्यारी बेबी फलक और आफरीन मै कभी अपनी बच्चों के साथ ऐसा बर्ताव नहीं करूंगा, क्योंकि मै भी किसी जीवात्मा का पिता बनने वाला हॅू और मुझे विष्वास ही की सुधी पाठक भी विचारो से सहमत होगे। दिव्य आत्मओ के लिए मेरे अनेको प्रणाम....जन्न्त नसीब हो मेरी बेटियां को ......आमीन..................णमो जिणाम्... विनय कुमार जैन 9910938969,

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें