गुरुवार, 31 मई 2012
aarakshan ka nag.... vinay jain
योग्यता और सुपात्रता का जाति से कोई लेना देना नहीं है -विनय जैन
आरक्षण का नाग भारत को डसता जा रहा है इसे वापिस पिटारे मे डालो
संविधान निर्माता बाबा भीमराव अम्बेडकर ने सपने मे भी नहीं सोचा होगा जिसस दलित पिछड़े दबे-कुचलों के लिए जीवन भर संघर्श कर संविधान मे विषेश प्रावधानों का उपयोग कर इन्हें मुख्यधारा मे लाने का संकल्प किया था।
दलित तो आज दलितो के द्वारा षोशित हैः-
आज उसी का दुरूपयोग उन्हीं के अनुयायी अम्बेडकर के नाम पर अपनी-अपनी निहितार्थो की रोटियॉ सेंकने में मषगूल होंगे। आज आरक्षण प्राप्त एक अभिजात्य वर्ग सांसद, मंत्री, विधायक आई. ए. एस, प्रोफेसर, इंजीनियर, डॉक्टर एवं अन्य प्रषासनिक अधिकारी तीन पीढ़ियो से आरक्षण पर अपना एकाधिकार जमाए बैठा है। अब ये वास्तविकों का हक मार उन्हें मुख्य धारा मे आने से रोकने के लिए उच्च वर्ग की तरह व्यवहार कर रहा है। उसे डर है कि कही ये आरक्षण का फल उससे छिन न जाये?
आरक्षण-नेताओ के लालच और स्वार्थ सिद्धि का साधनः-
आरक्षण को कुछ जातियों के प्रति समाज में व्याप्त भेदभाव को मिटाने के लिए संविधान मे बस आरंभ के मात्र दस पंद्रह वर्शो के लिए लाने की व्यवस्था की गयी थी,पर तब से आरक्षण व्यवस्था के रूप में नेताओं को राजनैतिक हथियार के रूप में देष की हर व्यवस्था से खेलने का मानो सर्वाधिकार मिल गया है। अब किन्ही जातियों को सहानुभूति के नाम पर देष के सारे संसाधनों, सारी व्यवस्थाओ मे सही योग्यता न होने पर भी खुली छूट बांटी जा रही है और ये सब सार्वभौमिक न्याय, नैतिकता और आदर्षो को ताक पर रखकर, देष के अधिसंख्य नागरिको के साथ अन्याय करके, योग्यता, कुषलता, मेहनत गुण और वास्तविक सामर्थय का अपमान करते हुए किया जा रहा है और जो अब राजनेताओं के लालच और स्वार्थ को सींचने का नियमित साधन बन गया है।
आरक्षण-देष के लिए खतराः-
योग्यता और सुपात्रता का जाति से कोई लेना देना नहीं है और उसी तरह कुपात्रता और योग्यता का भी। जिस तरह से मात्र राजनैतिक हवस के लिए देष के भविश्य और समाज हित के साथ खुले आम खिलवाड़ चल रहा है वो राजनितिक डालो के लिए तो फायदेमंद है पर समूचे देष के लिए गहरा खतरनाक बनता जा रहा है।
कम से कम इन्हें तो बख्ष दोः-
आरक्षण के नाम पर देष के हर प्रतिश्ठित, विष्वनीय और निश्पक्ष षैक्षणिक संस्थान जैसे अखिल भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान या मैनेंजमेंनट बिजनेस संस्थानो इत्यादि अन्य सभी उच्च षिक्षा केन्द्रो को नेताओं के गंदे राजनीतिक खेल, सामाजिक कुंठा का बदला निकालने का, भीड़ जुटाकर नाजायज बात मनवाने और सरकारी जाति आधारित आयोगो के समर्थन से अवैध अधिकारों को पाने का अड्डा बना दिया गया है। अब षिक्षण संस्थानों को अपने चुनौतीपूर्ण महत्वपूर्ण कार्यो में कम और सरकारों और कोर्टो को सफाई देने मे अधिक व्यस्त रहना पड़ता है।
आरक्षण-गुंडागर्दी एवं ब्लेकमेलिग का रास्ताः-
आज कोई जातिवादी आयोग, कोई निकृश्ट नेता या मीडिया निर्धारित कर रहा है की एक षिक्षण संस्थान किस तरह काम करे। इसी का परिणाम है की वह छात्र जो सवर्ण छात्र के 90 परसंेट नही के अंको के मुकाबले 40 या 45 परसेंट पाकर विष्व में किसी भी सामान्य अभ्यर्थी के लिए अकल्पनीय और दुर्लभ विष्वप्रतिश्ठित डिग्री पा जाता है और उस चुनौती के योग्य न होने पर आगे चलकर अपने अक्षमता के जग जाहिर हो जाने पर उसे स्वीकार भी नही करता और उसे स्वीकार कर सुधरने की जगह गलत दिषा मे चला जाता है और उपलब्ध राजनैतिक संगठनो और दलो का संरक्षण लेकर राजनैतिक गुंडागर्दी और संवैधानिक ब्लैकमेल का रास्ता अपनाता है।
नेताओ अपना इलाज इन्हीं अयोग्य डॉक्टरो से कराओः-
सामान्य वर्ग के अभ्यर्थियो के योग्य होने के बावजूद सींटे नहीं भरी जाती भले ही उसमे संस्थान और जनता का अहित होता रहे। आज यही निम्नीकरण हर संस्थान, सरकारी महकमे, हर पद और सीट पर किया जा रहा है और वोट बैंक की राजनीति करके देष की कार्यकुषलता को घटिया बनाने का पूरा दूरगामी इंतेजाम किया जा रहा है,बड़े ही षर्म की बात है कि एक अयोग्य आरक्षित छात्र जो षायद किसी और क्षेत्र मे सफल हो सकता हो उसे जबरस्ती उच्च षैक्षणिक पदों और अधिकारों पर बिठाया जा रहा है। जबरदस्ती डॉक्टर बनाया जा रहा है, और अब तो आरक्षण की खैरात पाना भी अपना अधिकार बताया जा रहा है। और जब ये नेता इन अयोग्य आरक्षितो को डॉक्टर बना रहे है तो अपना इलाज इन्हीं से क्यो नही कराते क्यो विदेष चले जाते है?
आरक्षण-एक लौलिपौप हैः-
आरक्षण का लौलिपौप वास्तव में नेताओं के लिए स्थाई बोटबैंक बनाने का एक तरीका है और जिसमे विभिन्न जातियों के लोग सामान्य स्तर पर श्रम करने और संघर्श मे स्वयं को विकसित नहीं कर पाते जिसे उन्हें पैरो पर खडा होने मे कोई वास्तविक मदद नही मिलती बस मुप्त सामान पाने के सुख और किसी को दान देने का दंभ यही इसका कुल परिणाम है, पर राश्टीय संपदा या अधिकार कोई मुप्त में बॉटने या यू ही देने की वस्तु नहीं है सभी देषवासियों को अपना कौषल दिखने, अपना परिवार चलाने और धन कमाने का जन्म सिद्ध अधिकार है पर देष को भी न्याय और राश्टहित को अक्षुण्य रखने का अधिकार है।
विनय कुमार जैन
9910938969
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