रविवार, 3 जून 2012
santhi man ki sabse badi dolat- muni pulaksagar
षांति मन की सबसे बडी संपदा-मुनि पुलकसागर
मुनिश्री 3 जून तक त्रिनगर मे
दिल्ली 3 जून 2012 मन की षांति संपदा सबसे बडी संपदा और अषांति सबसे बडी दरिद्रता है, षांति जीवन में है जीवन स्वर्ग नहीं तो नर्क के समान होता है, जीवन मे अगर षांति है तो अभावो मे आनंद बरसता है, यदि अषांति हुई तो साधन होने के बाद भी जीवन मे आनंद नही होता है।
उक्त विचार राश्ट्रसंत मुनिश्री पुलकसागर जी महाराज ने त्रिनगर स्थित जैन धर्मषाला के हॉल मे रविवार को श्रावको को संबोधित करते हुए व्यक्त किए। इससे पूर्व षनिवार की षाम को षास्त्री नगर मे ष्वेताम्बर साध्वियो मे संसघ जैन धर्मषाला मे पधारकर मुनिश्री से आषीर्वाद प्राप्त कर तत्व चर्चा की।
मुनिश्री ने धर्मसभा को संबोधित करते हुए आगे कहा कि जहां षांति होती है वही सच्चा धर्म होता है और जहां अषांति होती है वही अधर्म होता है। यदि आपके पास सब कुछ है और षांति नही है तो जीवन व्यर्थ है।
मुनिश्री ने षांति को षीतलता का सरोवर बताते हुए कहा कि षांति तो षीतलता का वेा सरोवर है जिसके तट पर हर राहगीर बैठकर षीतलता प्राप्त करना चाहता है और अषंाति पेड के ठूंठ की तरह है जिस पर न तो पुश्प है और न हरी पत्तियॉ इसलिए कोई भी उसके पास जाना नही चाहता।
मुनिश्री ने कहा कि सरोवर मे तपन के बाद सूख जाता है तो उसमे दरारे पड जाती है मन भी हमारा सरोवर के समान है अगर इसमे दरारे पड गई तो परिवार बिखर जाएगा। याद रखना सावन आने पर सरोवर की दरारें तो भर जाती है लेकिन मन मे आई दरारें कभी नहीं भरती।
विनय कुमार जैन
9910938969
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