मृत्यु जीवन का अटल व अंतिम सत्य- मुनि पुलकसागर
23 जून को मुनिश्री का लालमंदिर मे प्रवास
22 जून 2012 संयासी और संसारी दोनो इस संसार मे रहते है, संयासी संसार से पार होता है लेकिन संसारी इसमे उलझता जाता है। उक्त विचार राश्टसंत मुनिश्री पुलकसागर जी महाराज ने न्यू राजेन्द्रनगर स्थित जैन मंदिर मे श्रावको को संबोधित करते हुए व्यक्त किए।
इस अवसर पर ष्वेताम्बर जैनाचार्य सुषीलकुमार जी महाराज साब के सुषिश्य विवेक मुनि जी एवं सिद्धेष्वर मुनिजी भी एक मंच पर उपस्थित थे।
मुिनश्री पुलकसागर जी महाराज ने धर्मसभा को आगे संबोधित करते हुए कहा कि संयासी इस संसार मे इस तरह रहता है जैसे मख्खन मे सिर का बाल। मख्खन मे से अगर बाल को बाहर निकालना हो तो आराम से वह बाहर आ जाता है लेकिन संसारी संसार मे गोबर के उपले मे फंसे हुए बाल की तरह होता है जो टूट तो जाता है लेकिन उपले मे से बाल वापिस निकलता नहीं है। संसारी जीव भी संसार की विशय वासना मे ऐसा उलझ जाता है कि वह नहीं निकल पाता।
दबे दबे पांव मौत आती है आने दो
आफत मिट जाये तो मन मत घबराने दो
मृत्यु से अंत नहीं, प्राण मुखर होते है देह बदल जाने दो
खेल खेल मे जब खिलौनी टूट जाता है
बालक रो देता है, ज्ञानी मुस्कुराता है
है आत्मा के जौहरी को इस बात का फर्क कहां
कौन जन्म लेता है, कौन मृत्यु पाता है।
मुनिश्री कहा कि जीवन मे धन, दौलत, रूपया, पैसा, नौकरी कमा सको या ना कमो सको। जीवन मे उंचाईयो प्राप्त कर सको या ना करो लेकिन मौत जरूर आएगी। मौत सभी को एक ना दिन आएगी चाहे वो संसारी हो या संयासी। संयासी और संसारी मे केवल इतना ही अंतर है कि जब भी संयासी की मौत आती है तो उसकी मृत्यु साधना मे होती है लेकिन संसारी की मृत्यु वासना के संस्तर पर होती है।
विनय कुमार जैन
फोटो कैप्षन- बांए से सिद्धेष्वर मुनि जी,विवेक मुनिजी, राश्टसत मुनिश्री पुलकसागर जी गुरूदेव, मुनिश्री प्रसंगसागर जी महाराज
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