रविवार, 24 जून 2012
pulaksagar
राष्टसंत मुनिश्री पुलकसागर जी महाराज अभी कैलाषनगर गली नं.12 स्थित श्री दिगम्बर जैन मंदिर मे प्रवासरत है। मुनिश्री का यहां प्रवास 30 जून तक रहेगा। भोलानाथनगर मे चातुर्मास हेतु भव्य मंगल प्रवेष 1 जुलाई को प्रातः 7 बजे होगा। प्रस्तुत है मुनिश्री पुलकसागर जी गुरूदेव से भेटवार्ता
प्रष्नः- हथियार के प्रहार से भी ज्यादा पीड़ादायक क्या है?
मुनिश्री:-उपेक्षाए
प्रष्न:-सच्चा पछतावा कब होता है?
मुनिश्री:- जब हमे पता चलता है कि हम गलत थे।
प्रष्न:-क्या जहां लहू के संबंध होते है वहां प्रेम होता ही है?
मुनिश्री:-प्रेम का संबंध लहू से नहीं आत्मीयता व विश्वास से होता है।
प्रष्न:-अपने ऊपर होने वाले अन्याय से कैसे बचे?
मुनिश्री:-यदि तुम्हें लगता है कि सचमुच ही मुझ पर अन्याय हो रहा है तो मेरी राय है अन्याय करना व सहना दोनो ही अपराध है उनका डटकर मुकाबला करो।
प्रष्न:-अहंकार का मेरू कैसे पिघला सकते है?
मुनिश्री:-दिन मे एक बार समय निकालकर किसी जलती चिता या अर्थी को देख लिया करो।
प्रष्न:-माता पिता के भूतकाल के उपकार एवं वर्तमान के चिड़चिड़े स्वभाव के साथ स्वस्थतापूर्वक कैसे जिया जाये?
मुनिश्री:-याद करो जब बचपन मे तुम चिड़चिड़े थे तब भी माता पिता तुम्हें प्यार करते थे आज जब वो चिड़चिडे है तब भी उनका तुम्हें सम्मान करना चाहिये।
प्रष्न:-जीवन मे सतत प्रसन्नता का अनुभव करने हेतु क्या करना चाहिये?
मुनिश्री:-हर परिस्थिती मे अपने आपको सौभाग्यशाली महसूस करे। सोचे कि मै किस्मत वाला हॅू जो मनुष्य बना हॅू।
प्रष्न:-हृदय की भाषा व बुद्धि की भाषा मे क्या अंतर है?
मुनिश्री:-हृदय आदमी को भावुक करता है और बुद्धि तर्क पैदा करती है।
प्रष्न:-अपने एकलव्य जैसे भक्तो के लिए आपका क्या संदेश हो सकता है?
मुनिश्री:- मेरे एकलव्य भक्तो! मै तुम्हें विश्वास दिलाता हॅू कि मै वह द्रोणाचार्य नहीं बनूंगा जो तुमसे तुम्हारा अंगूठा मांग लूंगा। मगर हां तुम्हें जरूरत पड़े तो मेरा अंगूठा मांग लेना।
प्रष्न:-व्यक्ति के मन मे पल-पल अत्यंत अशुभ विचार क्यो आते है?
मुनिश्री:-जब किसी व्यक्ति का अतीत गहन अशुभ मे बीतता है तो वही अशुभ अतीत उसे अपनी ओर खीचता है और अशुभ विचार उठने लगते है।
प्रष्न:-अच्छा लगना या चाहने मे क्या अंतर है?
मुनिश्री:- चाहत का जन्म अच्छे की कोख से होता है इसलिए दोनो मे फर्क न करके आगाढ़ संबंध समझना चाहिये।
प्रष्न:-माता पिता एवं गुरू को धन्यवाद किस प्रकार दिया जा सकता है?
मुनिश्री:- जीवन भर माता पिता की सेवा एवं गुरू की आज्ञा का पालन करो।
प्रष्न:-अदालत पर गीता पर हाथ रखकर कसम क्यो खिलाई जाती है?
मुनिश्री:- अदालत मे सिवाय लड़ाई के कुछ नहीं होता और गीता का जन्म लड़ाई के मैदान मे ही हुआ है।
प्रष्न:-समस्या ग्रसित वर्तमान सामाजिक परिवेश का सजीव चित्रण कैसे कर लेते है?
मुनिश्री:- मै कैमरे की तरह समाज की समस्याओं को टकटकी लगाकर देखता हॅू और जब प्रवचन सभा रूपी डी.व्ही.डी. से मेरा कनेक्शन हो जाता है तो मै जो देखता हॅू उसे दिखा देता हॅू।
प्रष्न:-आपके जीवन का अद्भुत व आद्वितीय क्षण कौन सा है?
मुनिश्री:- मेरी साधना के हर पल आद्वितीय और अद्भुत है।
प्रष्न:-भू-गर्भ से प्रतिमाओं का मिलना क्या वाकई चमत्कार है?
मुनिश्री:- प्रतिमा चमत्कार है या नहीं ऐ तो नहीं कह सकता पर जो प्रतिमा निकालता है उसकी वाह-वाह का चमत्कार जरूर हो जाता है।
प्रष्न:-इंसान को खाने व पीने जैसी कौन सी चीजे है?
मुनिश्री:- आज के परिवेश मे खाने के लिए दूसरो की दोलत पीने के लिए अपनो का खून यह चाहिये कि खाने के लिए अपनी बुराईयां और पीने के लिए दूसरी की कमजोरियां होना चाहिये।
प्रष्न:-लगातार पांच पंचकल्याणक क्या शतक लगाने की तैयारी?
मुनिश्री:- शतक तो नहीं लगाना है पर मै यह सोचता हॅू कि शायद मै भगवान को अच्छा लगने लगा हॅू और उनका कृपा पात्र बन गया हॅू।
प्रष्न:-गुरूदेव हमे जीवन मे क्या संग्रहण करना चाहिये?
मुनिश्री:-हमे जीवन मे वह संग्रहण करना चाहिये जो दूसरो के लिए आदर्श बने।
प्रष्न:-सच्चा तपस्वी आप किसे कहेगे?
मुनिश्री:- जो समाज की नहीं अपनी नजरो मे ईमानदार हो। जो अपने संयास के प्रति वफादार हो।
प्रष्न:-विचारो की उथल-पुथल को कैसे शांत करे?
मुनिश्रीः- जिसके प्रति विचारो मे उथल-पुथल है उसके साथ पल भर भी देर किये बिना अपने विचारो को रखने से।
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ः-विनय कुमार जैन
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