बुधवार, 30 मई 2012

pooja hai jaruri- muni pulak sagar

भाव सहित अश्ट द्रव्य से पूजा करना ही ‘‘भाव पूजा’’-मुनि पुलकसागर 20 मई 2012 दिल्ली प्रभू पतितपावन मैं अपावन,चरन आयो सरन जी यो विरद आप निहार स्वामी,मेट जामन मरनजी।।
हे प्रभू,आप पतित पावन हो,पवित्र हो,मै अपावन हॅू,मै आपकी चरणों की षरण में आया हॅू,आप अपने विरद को,यष किर्ति को देखकर मेरे जन्म मरण को नश्ट करो। उक्त दर्षन स्तुति की समधुर व्याख्या आज रविवार को षंकरनगर जैन मंदिर मे आयोजित मां जिनवाणी षिक्षण षिविर मे राश्टसंत मुनिश्री पुलकसागर जी महाराज ने की। मुनिश्री के पावन सानिध्य मे आयोजित षिक्षण षिविर मे प्रथम वर्ग मे 450 षिविरार्थी एवं द्वितीय वर्ग मे 400 षिविरार्थी भाग ले रहे है। जरूरी है मूर्ति पूजाः- मुनिश्री ने मूर्ति पूजा को उचित बताते हुए कहा कि हम गुणों की पूजा करते है यह सत्य है लेकिन किसी को षरीर के महत्व को भी हम विस्मृत नहीं कर सकते है। केवल आत्मा संयास ग्रहण नहीं कर सकती है,षरीर को संयास ग्रहण करना पडता है क्योकि केवल आत्मा के पास षरीर नही होता है,सारे गुणो की उत्पत्ति षरीर से होता है। षरीर को हटाकर किसी की भी स्तुति नहीं कर सकते हो,इसलिए मूर्ति पूजा जरूरी है। भाव सहित पूजा भाव पूजा मुनिश्री ने भाव पूजा एवं द्रव्य पूजा मे अंतर बताते हुए कहा कि आज हमारे समाज मे भाव पूजा का अर्थ लोगो ने गलत लिया है लोग सोचते है कि बिना द्रव्य से भगवान की पूजा करना भाव पूजा है लेकिन यह सरासर गलत है बिना द्रव्य के पूजा करना गलत है,और आगम मे इसका निशेध है। मुनिश्री ने कहा कि अश्ट द्रव्य से पूजा करना तो द्रव्य पूजा कहलाता है जबकि अश्ट द्रव्य की पूजा मे अपने भावो को लगा देने को भाव पूजा कहते है अर्थात भाव सहित द्रव्य से पूजा करना ही भाव पूजा है। संघस्थ प्रवक्ता विनय कुमार जैन ने बताया कि मुनिश्री पुलकसागर जी महाराज के पावन सानिध्य मे दोपहर तीन बजे से मूलाचार की नियमित कक्षाएं ली जा रही है जिसमे भी बडी संख्या मे स्वाध्यायी उपस्थित होकर आगम का ज्ञान अर्जित कर रहे है। विनय कुमार जैन

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