बुधवार, 30 मई 2012
guru aadesh hi mere jivan ka aadhar- muni pulaksagar
गुरू आदेष ही मेरे जीवन का आधार-मुनि पुलकसागर
भोलानाथनगर ने लगाई मुनिश्री के चातुर्मास की हैट्रिक
27 मई 2012 अभी तक मुझे विभिन्न कॉलोनियो से चातुर्मास हेतु निमंत्रण आए। मै चाहता तो यहां मजमा लगा सकता था, सबको यहां बुला सकता था लेकिन थोडी सी ख्याती के लिए एक को खुष करके नौ को दुखी करना मेरा स्वभाव नहीं है। मै ऐसा चातुर्मास नहीं करना चाहता जिससे कोई दुखी हो।
उक्त विचार राश्ट्रसंत मुनिश्री पुलकसागर जी महाराज ने षंकरनगर स्थित जैन मंदिर के हॉल मे रविवार को श्रावको को संबोधित करते हुए व्यक्त किए। इस अवसर पर मुनिश्री के आगामी चातुमार्स के लिए षंकरनगर जैन समाज की ओर से निवेदन किया गया।
चातुर्मास के लिए क्या लॉटरी निकालनाः-
मुनिश्री ने आगे कहा कि संतो का काम रूलाना नहीं हंसाना होता है। आज कल यह परम्पराएं हो रही है कि दस दस समाज से श्रीफल भेट करा लेते है फिर चातुर्मास के लिए लॉटरी निकाली जाती है यह सब नौटंकी है, हल्की पब्लिसिटी पाने का तरीका है। मै यह सब मे विष्वास नहीं करता हॅू। मेरे गुरूदेव आचार्य श्री पुश्पदंतसागर जी महाराज का आदेष जहां का होता है मै वही चातुर्मास करता हॅू।
जहां दो किये वहां तीसरा भी:-
मुनिश्री ने कहा कि जब तक मेरी सांसे चले तब तक मै भगवान महावीर से यही प्रार्थना करूंगा कि हे प्रभू मै जो भी कार्य करूं उन सब मे मेरे गुरूदेव का आषीर्वाद जरूर रहे। और आज उन्हीं गुरूदेव के द्वारा लिखित यह पत्र आया है जिसमे मुझे आगामी चातुर्मास के लिए आदेष दिया गया है कि जहां पहले दो चातुर्मास किये है वहां तीसरा भी करो। आगामी चातुर्मास भोलानाथ नगर मे करने का आदेष प्राप्त हुआ।
गुरू की पाती षिश्य के नामः-
इस अवसर पर जब मुनिश्री ने आचार्य श्री पुश्पदंतसागर जी महाराज द्वारा भेजे गए पत्र को पढा और आगामी चातुर्मास की घोशण की तो समूचा हॉल तालियों की गडगडाहट और जयकारों से गूंज गया। दिल्ली भारत की और यमुनापार जैन की राजधानी है क्योकि सबसे अधिक जैनो की आबादी इसी क्षेत्र मे निवासरत है। षंकरनगर मे आयोजित मां जिनवाणी षिक्षण षिविर जिस प्रभावना की उंचाई पर पहुंचा है उसका श्रेय बेषक जैन समाज षंकरनगर को ही जाता है। इस अवसर पर षिविर मे विषेश योग्यता अर्जित करने वाले षिविरार्थियो को पारितोशिक एवं प्रमाण पत्र देकर सम्मानित किया गया।
भीड जुटा लेने का नाम चातुर्मास नहींः-
चातुर्मास का महत्व बताते हुए मुनिश्री ने कहा कि चातुर्मास मे साधू को अपनी साधना मे उतरने का मौका देता है। जैन धर्म प्रभावना की उंचाईयो पर चढ़े। चातुर्मास का अर्थ यह नहीं है कि भीड जुटा लेना, करोडो की बोलिया लग जाना, बडे बडे पाण्डाल लग जाना, बेनर पोस्टर लग जाने जाना, अखबारबाजी हो जाना चातुर्मास का अर्थ होता है कि दिगम्बर जैन परम्परा मे जो साधू है उन्होंने अपने साधना काल मे कितनी साधना व विरक्ति को बढाया उसका नाम चातुर्मास होता है।
साधना का चार्जर है चातुर्मासः-
चातुर्मास साधना का काल है। चातुर्मास अध्ययन का काल है। साधू एक जगह स्थिर रहकर अध्ययन करते है। अपनी साधना को बढ़ाते है क्योकि विहारी आदि नहीं होता है। मुनिश्री ने कहा कि जिस प्रकार मोबाइल को चार घंटे चार्ज कर लो तो वह 12 घंटे तक चलता है उसी प्रकार साधू चार महिने तक साधना, तपस्या करते है और आठ महिने तक उसी त्याग, तपस्या के बल पर आठ महिने सर्वत्र विहार करके धर्म की प्रभावना किया करते है।
चातुर्मास मेरा नहीं तुम्हारा होगाः-
चातुर्मास मे आपको संयम का ध्यान रखना है, यह सोचना है कि हम कितनी साधना कर पाते है। कहीं ऐसा ना हो कि मुंह मे पान मसाला दबा हो और नारे लगा रहे हो कि हर मां का लाल कैसा हो पुलकसागर जैसा हो। ध्यान रखना यह चातुर्मास मेरा नहीं हकिकत मे तुम्हारा है। तुम कितनी साधना कर सकते हो, जैन धर्म का नाम कितना रौषन कर सकते हो यह चातुर्मास इसी समीक्षा का काल होता है।
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