गुरुवार, 26 जुलाई 2012

ज्ञान गंगा महोत्सव बारहवां दिन जिन्हें खुद भगवान नहीं मिले वे दूसरो को भगवान सौपने लगे है- मुनि पुलकसागर दिल्ली 26 जुलाई 2012 किसी ष्मसान के पास एक सूत्र लिखा था कि मंजिल तो यही थी पर देर हो गई आते आते। सौ साल के जीवन मे इंसान कितनी भागदौड करता है, सुबह से षाम तक भागता रहता है लेकिन जीवनपर्यंत यह भागदौड़ समाप्त नहीं होती है। दुनिया मे आए हो तो मरना जरूर पडेगा । उक्त प्रेरणादायी विचार मुनिश्री पुलकसागर जी महाराज ने गुरूवार को कड़कड़डूमा कोर्ट के सामने निर्मित जिनषरणं सभागार मे आयोजित ज्ञान गंगा महोत्सव के बारहवे दिवस पर अथाह जनसमुदाय को संबोधित करते हुए व्यक्त किए। उन्होंने धर्मसभा को संबोधित करते हुए कहा कि सामान सौ बरस का पल की खबर नहीं। मनुश्य ने कितने सामान पैदा कर लिए अपने लिए इस छोटे से जीवन में। इस जीवन मे कितनी दुआएं बददुआएं लेकर जीते हो। मुनिश्री ने जीवन की परिभाशा देते हुए कहा कि सांसो का नाम ही जीवन हुआ करता है। ध्यान रखना जब तुम पैदा हुए थे तो तुम्हारी सबसे पहले ष्वास देखी गई थी और मरते वक्त भी ष्वास देखी जाती है। केवल ष्वास चलने का नाम जीवन होता है। चंद सांसे मिली है हमे इस जीवन में इनहें आनंद में जीओ ना कि मातम मे परिवर्तित करके। ष्वास की कीमत समझो। ध्यान रखना तुम्हारे पास सब कुछ रहे लेकिन ष्वास चली जाए तो सब पडा का पड रह जाएगा। घर, परिवार, जमीन जायजाद, आंखो के मूंदते सब रिष्ते छूट जाया करते है। मुनिश्री ने जीवन की परिवर्तनषीलता को परिलक्षित करते हुए कहा कि जीवन की प्रकृति परिवर्तनषील है जो आज है वह कल नहीं रहेगा। और जो आज है वो कल नही रहेगा। इसे प्रकृति की व्यवस्था या भाग्य का उठा पटक कह सकते है। एक समय कृश्णचंद भाग गये आधी रात एक समय कंस को पछाड दिया रण में एक समय अर्जुन ने जीत लिया महाभारत एक समय कौल भील लूट लिये वन मे आदमी बिचारे की बात यहां कौन करे सूरज की तीन गति होत एक दिन मे। मुनिश्री ने कहा कि ऐसा कोई नहीं होगा जिसके जीवन मे उतार चढाव ना हो। जीवन मे कभी उचंाई कभी ढलान पर आ जाती है। जिंदगी में कभी कुछ हासिल हो जाये तो गुमान मत करना और अगर कुछ खो जाये तो कभी गम मत करना। मुनिश्री ने कहा कि आपने अभी देखा कि राश्टपति प्रतिभा पाटलि देष की राश्टपति थी अब प्रणव दादा आ गये उनसे राश्टपति ंभवन खाली करवा लिया। वे अब भूतपूर्व राश्टपति हो गई। याद रखना जीवन सतत परिवर्तनषील है यहां सुख और दुख दोनो का आना जाना लगा रहता है। मुनिश्री ने कहा कि हमे कभी किसी को कम नहीं समझना चाहिए। वर्शो से सडको पर पडा पत्थर जब उसकी किस्मत बदलती है तो वह मंदिर का भगवान भी बन जाया करता है। इस जीवन मे भले और बुरे दोनो प्रकार के दिन आते है। कभी दुख की धूप रहती है तो कभी सुख की छांव हम पर छाया करती है। यह सब विधी का विधान परमात्मा के द्वारा रचा जाता है। मुनिश्री ने कहा कि जब जीवन मे उन्नति मिले तो ज्यादा खुष मत होना और असफलता मिले तो गम मत करना इसी का नाम प्रसन्नता हुआ करता है। एक सफलता के पीछे हजार असफलताएं होती है। महान आदमी उंचाईयों पर आसानी से नहीं पहुंच पाते है अपितु हजारो बार गिरते है, ठोकरे खाते है संभाल जाते है और आगे बढ़ जाते है। मुनिश्री ने कहा कि गिरना ही है तो गेंद की तरह गिरना सीखो जो गिरते ही फिर उछल जाती है मिट्टी के गीले लोदे की तरह मत गिरो जो जमीन का पकड कर ही रह जाता है। मुनिश्री ने कहा कि कितना नादान है यह आदमी जो जीवन का सुख किताबो मे खोजता है। आदमी को किताबो से ंिजंदगी नहीं मिला करती है अपितु आदमी से ही किताबों का जन्म हुआ करता है। आज पोथी पत्रा पढ़ पढकर लोग भगवान पर व्याख्याएं कर रहे है, हकिकत मे जितने लोग जो बोल रहे है जो खुद भटके हुए लोग है। वो क्या किसी को भगवान सौपेगे जिन्हें खुद भगवान नहीं मिले। एकं भिखारी दूसरे भिखारी को क्या दे सकता है। इसलिए मैने भगवान की चर्चा बंद कर दी है क्यांेकि मुझे खुद भगवान नही मिले है। लेकिन मै इतना दावे के साथ कह सकता हॅू कि मै तुम्हें भगवान बना पाउ या ना पाउं लेकिन तुम सच्चे इंसान जरूर बन सकते हो मेरा विष्वास है जो सच्चा इंसान बन जाता है वह एक दिन भगवान बन जाता है। पुलक वचन आज का युवा कथा पुराणो से नहीं उसे जीते जागते महावीर चाहिए। मरने के बाद नही जीते जी आनंद को ग्रहण करो कल के चक्कर मे आज को दुखी मत करो। जिनको खुद को भगवान नही मिला दूसरो को भगवान सौप रहे है। घबराओ मत यह समय भी कट जायेगा यह सुखी जीवन जीने का राज है। मौत से पहले कभी ना मरना। मौत एक ही बार आती है कब आएगी यह भी निष्चित है मरना। तो वक्त से पहले मरने की मत सोचना। बाहर की परिस्थितियॉ अगर अंतस को प्रभावित कर दे तो जीवन अच्छा नहीं जिया। प्रसन्न रहने के लिए उदास मत रहना। जब उदास हो तो एकांत मे मत जाओ जितने एंकात मे जाओगे उतनी चिंताएं तुम्हें घेरेगी। जो हंसता पुरूश जो हंसाता है वह महापुरूश होता है किसी रोते को हंसा देने कापुण्य मंदिर जाने से बराबर होता है। किसी को भीख देकर उसे भीखारी मत बनाओ बल्कि उसे पैरो पर खडा कर दो। वात्सल्य धारा वह परिवार है जिसमे निराश्रितो, षोशितो, को षिक्षा, सुस्वास्थ एवं आषियाना मिलेगा। विनय कुमार जैन 9910938969

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