गुरुवार, 31 मई 2012

aarakshan ka nag.... vinay jain

योग्यता और सुपात्रता का जाति से कोई लेना देना नहीं है -विनय जैन आरक्षण का नाग भारत को डसता जा रहा है इसे वापिस पिटारे मे डालो
संविधान निर्माता बाबा भीमराव अम्बेडकर ने सपने मे भी नहीं सोचा होगा जिसस दलित पिछड़े दबे-कुचलों के लिए जीवन भर संघर्श कर संविधान मे विषेश प्रावधानों का उपयोग कर इन्हें मुख्यधारा मे लाने का संकल्प किया था। दलित तो आज दलितो के द्वारा षोशित हैः- आज उसी का दुरूपयोग उन्हीं के अनुयायी अम्बेडकर के नाम पर अपनी-अपनी निहितार्थो की रोटियॉ सेंकने में मषगूल होंगे। आज आरक्षण प्राप्त एक अभिजात्य वर्ग सांसद, मंत्री, विधायक आई. ए. एस, प्रोफेसर, इंजीनियर, डॉक्टर एवं अन्य प्रषासनिक अधिकारी तीन पीढ़ियो से आरक्षण पर अपना एकाधिकार जमाए बैठा है। अब ये वास्तविकों का हक मार उन्हें मुख्य धारा मे आने से रोकने के लिए उच्च वर्ग की तरह व्यवहार कर रहा है। उसे डर है कि कही ये आरक्षण का फल उससे छिन न जाये? आरक्षण-नेताओ के लालच और स्वार्थ सिद्धि का साधनः- आरक्षण को कुछ जातियों के प्रति समाज में व्याप्त भेदभाव को मिटाने के लिए संविधान मे बस आरंभ के मात्र दस पंद्रह वर्शो के लिए लाने की व्यवस्था की गयी थी,पर तब से आरक्षण व्यवस्था के रूप में नेताओं को राजनैतिक हथियार के रूप में देष की हर व्यवस्था से खेलने का मानो सर्वाधिकार मिल गया है। अब किन्ही जातियों को सहानुभूति के नाम पर देष के सारे संसाधनों, सारी व्यवस्थाओ मे सही योग्यता न होने पर भी खुली छूट बांटी जा रही है और ये सब सार्वभौमिक न्याय, नैतिकता और आदर्षो को ताक पर रखकर, देष के अधिसंख्य नागरिको के साथ अन्याय करके, योग्यता, कुषलता, मेहनत गुण और वास्तविक सामर्थय का अपमान करते हुए किया जा रहा है और जो अब राजनेताओं के लालच और स्वार्थ को सींचने का नियमित साधन बन गया है।
आरक्षण-देष के लिए खतराः- योग्यता और सुपात्रता का जाति से कोई लेना देना नहीं है और उसी तरह कुपात्रता और योग्यता का भी। जिस तरह से मात्र राजनैतिक हवस के लिए देष के भविश्य और समाज हित के साथ खुले आम खिलवाड़ चल रहा है वो राजनितिक डालो के लिए तो फायदेमंद है पर समूचे देष के लिए गहरा खतरनाक बनता जा रहा है। कम से कम इन्हें तो बख्ष दोः- आरक्षण के नाम पर देष के हर प्रतिश्ठित, विष्वनीय और निश्पक्ष षैक्षणिक संस्थान जैसे अखिल भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान या मैनेंजमेंनट बिजनेस संस्थानो इत्यादि अन्य सभी उच्च षिक्षा केन्द्रो को नेताओं के गंदे राजनीतिक खेल, सामाजिक कुंठा का बदला निकालने का, भीड़ जुटाकर नाजायज बात मनवाने और सरकारी जाति आधारित आयोगो के समर्थन से अवैध अधिकारों को पाने का अड्डा बना दिया गया है। अब षिक्षण संस्थानों को अपने चुनौतीपूर्ण महत्वपूर्ण कार्यो में कम और सरकारों और कोर्टो को सफाई देने मे अधिक व्यस्त रहना पड़ता है। आरक्षण-गुंडागर्दी एवं ब्लेकमेलिग का रास्ताः- आज कोई जातिवादी आयोग, कोई निकृश्ट नेता या मीडिया निर्धारित कर रहा है की एक षिक्षण संस्थान किस तरह काम करे। इसी का परिणाम है की वह छात्र जो सवर्ण छात्र के 90 परसंेट नही के अंको के मुकाबले 40 या 45 परसेंट पाकर विष्व में किसी भी सामान्य अभ्यर्थी के लिए अकल्पनीय और दुर्लभ विष्वप्रतिश्ठित डिग्री पा जाता है और उस चुनौती के योग्य न होने पर आगे चलकर अपने अक्षमता के जग जाहिर हो जाने पर उसे स्वीकार भी नही करता और उसे स्वीकार कर सुधरने की जगह गलत दिषा मे चला जाता है और उपलब्ध राजनैतिक संगठनो और दलो का संरक्षण लेकर राजनैतिक गुंडागर्दी और संवैधानिक ब्लैकमेल का रास्ता अपनाता है। नेताओ अपना इलाज इन्हीं अयोग्य डॉक्टरो से कराओः- सामान्य वर्ग के अभ्यर्थियो के योग्य होने के बावजूद सींटे नहीं भरी जाती भले ही उसमे संस्थान और जनता का अहित होता रहे। आज यही निम्नीकरण हर संस्थान, सरकारी महकमे, हर पद और सीट पर किया जा रहा है और वोट बैंक की राजनीति करके देष की कार्यकुषलता को घटिया बनाने का पूरा दूरगामी इंतेजाम किया जा रहा है,बड़े ही षर्म की बात है कि एक अयोग्य आरक्षित छात्र जो षायद किसी और क्षेत्र मे सफल हो सकता हो उसे जबरस्ती उच्च षैक्षणिक पदों और अधिकारों पर बिठाया जा रहा है। जबरदस्ती डॉक्टर बनाया जा रहा है, और अब तो आरक्षण की खैरात पाना भी अपना अधिकार बताया जा रहा है। और जब ये नेता इन अयोग्य आरक्षितो को डॉक्टर बना रहे है तो अपना इलाज इन्हीं से क्यो नही कराते क्यो विदेष चले जाते है?
आरक्षण-एक लौलिपौप हैः- आरक्षण का लौलिपौप वास्तव में नेताओं के लिए स्थाई बोटबैंक बनाने का एक तरीका है और जिसमे विभिन्न जातियों के लोग सामान्य स्तर पर श्रम करने और संघर्श मे स्वयं को विकसित नहीं कर पाते जिसे उन्हें पैरो पर खडा होने मे कोई वास्तविक मदद नही मिलती बस मुप्त सामान पाने के सुख और किसी को दान देने का दंभ यही इसका कुल परिणाम है, पर राश्टीय संपदा या अधिकार कोई मुप्त में बॉटने या यू ही देने की वस्तु नहीं है सभी देषवासियों को अपना कौषल दिखने, अपना परिवार चलाने और धन कमाने का जन्म सिद्ध अधिकार है पर देष को भी न्याय और राश्टहित को अक्षुण्य रखने का अधिकार है। विनय कुमार जैन 9910938969

बुधवार, 30 मई 2012

guru aadesh hi mere jivan ka aadhar- muni pulaksagar

गुरू आदेष ही मेरे जीवन का आधार-मुनि पुलकसागर भोलानाथनगर ने लगाई मुनिश्री के चातुर्मास की हैट्रिक 27 मई 2012 अभी तक मुझे विभिन्न कॉलोनियो से चातुर्मास हेतु निमंत्रण आए। मै चाहता तो यहां मजमा लगा सकता था, सबको यहां बुला सकता था लेकिन थोडी सी ख्याती के लिए एक को खुष करके नौ को दुखी करना मेरा स्वभाव नहीं है। मै ऐसा चातुर्मास नहीं करना चाहता जिससे कोई दुखी हो।
उक्त विचार राश्ट्रसंत मुनिश्री पुलकसागर जी महाराज ने षंकरनगर स्थित जैन मंदिर के हॉल मे रविवार को श्रावको को संबोधित करते हुए व्यक्त किए। इस अवसर पर मुनिश्री के आगामी चातुमार्स के लिए षंकरनगर जैन समाज की ओर से निवेदन किया गया। चातुर्मास के लिए क्या लॉटरी निकालनाः- मुनिश्री ने आगे कहा कि संतो का काम रूलाना नहीं हंसाना होता है। आज कल यह परम्पराएं हो रही है कि दस दस समाज से श्रीफल भेट करा लेते है फिर चातुर्मास के लिए लॉटरी निकाली जाती है यह सब नौटंकी है, हल्की पब्लिसिटी पाने का तरीका है। मै यह सब मे विष्वास नहीं करता हॅू। मेरे गुरूदेव आचार्य श्री पुश्पदंतसागर जी महाराज का आदेष जहां का होता है मै वही चातुर्मास करता हॅू। जहां दो किये वहां तीसरा भी:- मुनिश्री ने कहा कि जब तक मेरी सांसे चले तब तक मै भगवान महावीर से यही प्रार्थना करूंगा कि हे प्रभू मै जो भी कार्य करूं उन सब मे मेरे गुरूदेव का आषीर्वाद जरूर रहे। और आज उन्हीं गुरूदेव के द्वारा लिखित यह पत्र आया है जिसमे मुझे आगामी चातुर्मास के लिए आदेष दिया गया है कि जहां पहले दो चातुर्मास किये है वहां तीसरा भी करो। आगामी चातुर्मास भोलानाथ नगर मे करने का आदेष प्राप्त हुआ। गुरू की पाती षिश्य के नामः- इस अवसर पर जब मुनिश्री ने आचार्य श्री पुश्पदंतसागर जी महाराज द्वारा भेजे गए पत्र को पढा और आगामी चातुर्मास की घोशण की तो समूचा हॉल तालियों की गडगडाहट और जयकारों से गूंज गया। दिल्ली भारत की और यमुनापार जैन की राजधानी है क्योकि सबसे अधिक जैनो की आबादी इसी क्षेत्र मे निवासरत है। षंकरनगर मे आयोजित मां जिनवाणी षिक्षण षिविर जिस प्रभावना की उंचाई पर पहुंचा है उसका श्रेय बेषक जैन समाज षंकरनगर को ही जाता है। इस अवसर पर षिविर मे विषेश योग्यता अर्जित करने वाले षिविरार्थियो को पारितोशिक एवं प्रमाण पत्र देकर सम्मानित किया गया। भीड जुटा लेने का नाम चातुर्मास नहींः- चातुर्मास का महत्व बताते हुए मुनिश्री ने कहा कि चातुर्मास मे साधू को अपनी साधना मे उतरने का मौका देता है। जैन धर्म प्रभावना की उंचाईयो पर चढ़े। चातुर्मास का अर्थ यह नहीं है कि भीड जुटा लेना, करोडो की बोलिया लग जाना, बडे बडे पाण्डाल लग जाना, बेनर पोस्टर लग जाने जाना, अखबारबाजी हो जाना चातुर्मास का अर्थ होता है कि दिगम्बर जैन परम्परा मे जो साधू है उन्होंने अपने साधना काल मे कितनी साधना व विरक्ति को बढाया उसका नाम चातुर्मास होता है। साधना का चार्जर है चातुर्मासः- चातुर्मास साधना का काल है। चातुर्मास अध्ययन का काल है। साधू एक जगह स्थिर रहकर अध्ययन करते है। अपनी साधना को बढ़ाते है क्योकि विहारी आदि नहीं होता है। मुनिश्री ने कहा कि जिस प्रकार मोबाइल को चार घंटे चार्ज कर लो तो वह 12 घंटे तक चलता है उसी प्रकार साधू चार महिने तक साधना, तपस्या करते है और आठ महिने तक उसी त्याग, तपस्या के बल पर आठ महिने सर्वत्र विहार करके धर्म की प्रभावना किया करते है। चातुर्मास मेरा नहीं तुम्हारा होगाः- चातुर्मास मे आपको संयम का ध्यान रखना है, यह सोचना है कि हम कितनी साधना कर पाते है। कहीं ऐसा ना हो कि मुंह मे पान मसाला दबा हो और नारे लगा रहे हो कि हर मां का लाल कैसा हो पुलकसागर जैसा हो। ध्यान रखना यह चातुर्मास मेरा नहीं हकिकत मे तुम्हारा है। तुम कितनी साधना कर सकते हो, जैन धर्म का नाम कितना रौषन कर सकते हो यह चातुर्मास इसी समीक्षा का काल होता है।

jisse sansari jivo ki pahchan ho indriya kahlati hai. - muni pulak sagar

जिससे संसारी जीवो की पहचान हो इन्द्रिय कहलाती है-मुनि पुलकसागर कृश्णानगर मे आचार्य संमतिसागर जी से मिले मुनिश्री 23 मई 2012 जिससे संसारी जीवो की पहचान होती है उसे इन्द्र्रिय कहते है। इन्द्रिय पांच होती है। स्पर्षन इन्द्रिय,रसना इन्द्रिय, घ्राण इन्द्रिय, चक्षु इन्द्रिय और कर्ण इन्द्रिय। उक्त विचार राश्ट मुनिश्री पुलकसागर जी महाराज ने आज बुधवार को मां जिनवाणी षिेिवर के पांचवे दिन षिविरार्थियों को संबोधित करते हुए व्यक्त किए। उन्होंने षिविरार्थियों को इन्द्रियों की व्याख्या करते हुए कहा कि हल्का भारी, ठंडा गरम,कडा नरम,,रूखा चिकना आदि का ज्ञान होता है उसे स्पर्षन इन्द्रिय कहते है और जिससे खट्टा मीठा,कड़वा,कशायला,चरपरा आदि का ज्ञान हो उसे रसना इन्द्रिय कहते है। मुनिश्री ने घ्राण इन्द्रिय की परिभाशा को समझाते हुए कहा कि जिससे सुगंध एवं दुर्गंध का ज्ञान होता है उसे घ्राण इन्द्रिय कहते है तथा जिससे काला,नीला,लाल,हरा, सफेद आदि रंगो का ज्ञान होता है उसे चक्षु इन्द्रिय कहते है। सा, रे, गा, मा, प, ध, नि आदि स्वरो का ज्ञान कर्ण इन्द्रिय से होता है। मुनिश्री ने कहा कि मनुश्य पंचइन्द्रिय जीव है। पंचइन्द्रिय जीव दो प्रकार के होते है सैनाी और असैनी। जो जीव मन सहित होते है वे सैनी और मन से रहित होते है वे असैनी जीव कहलाते है।
संत मिलनः- कहते है संतो के दर्षन मात्र से पापो का नाष होता है आज ऐसा ही सौभाग्य कृश्णानगर जैन समाज को मिला जब आचार्य श्री संमतिसागर जी महाराज एवं मुनिश्री पुलकसागर जी महाराज का मिलन हुआ। आज प्रातःकाल 6 बजे मुनिश्री पुलकसागर जी महाराज अपने अनुज मुनिश्री प्रसंगसागर जी महाराज के साथ कृश्णानगर जैन मंदिर पहुंचे जहां पहले से विराजमान आचार्य रत्न संमतिसागर जी महाराज के दर्षन कर तत्त्व चर्चा की। मुनिश्री ने जैसे ही आचार्य श्री के चरणों मे नमोस्तु निवेदित किया तो उन्होंने विनय भाव का परिचय देते हुए मुनिश्री को गले से लगा लिया। मां जिनवाणी संग्रहालयः- संघस्थ प्रवक्ता विनय कुमार जैन ने बताया कि मुनिश्री के पावन आषीर्वाद एवं सद्प्रेरणा से पुलक जन चेतना मंच दिल्ली षाखा की ओर से विहारी कॉलोनी स्थित वात्सल्य भवन मे एक विषाल जिनवाणी संग्रहालय का निर्माण किया जा रहा है,जिसमे जिनागम की करीब 5000 षास्त्रो का संग्रह किया जाएगा। इस कार्य का षुभारंभ षंकरनगर से ही मां जिनवाणी के जन्म दिवस अर्थात श्रुत पंचमी से किया जा रहा है।

pooja hai jaruri- muni pulak sagar

भाव सहित अश्ट द्रव्य से पूजा करना ही ‘‘भाव पूजा’’-मुनि पुलकसागर 20 मई 2012 दिल्ली प्रभू पतितपावन मैं अपावन,चरन आयो सरन जी यो विरद आप निहार स्वामी,मेट जामन मरनजी।।
हे प्रभू,आप पतित पावन हो,पवित्र हो,मै अपावन हॅू,मै आपकी चरणों की षरण में आया हॅू,आप अपने विरद को,यष किर्ति को देखकर मेरे जन्म मरण को नश्ट करो। उक्त दर्षन स्तुति की समधुर व्याख्या आज रविवार को षंकरनगर जैन मंदिर मे आयोजित मां जिनवाणी षिक्षण षिविर मे राश्टसंत मुनिश्री पुलकसागर जी महाराज ने की। मुनिश्री के पावन सानिध्य मे आयोजित षिक्षण षिविर मे प्रथम वर्ग मे 450 षिविरार्थी एवं द्वितीय वर्ग मे 400 षिविरार्थी भाग ले रहे है। जरूरी है मूर्ति पूजाः- मुनिश्री ने मूर्ति पूजा को उचित बताते हुए कहा कि हम गुणों की पूजा करते है यह सत्य है लेकिन किसी को षरीर के महत्व को भी हम विस्मृत नहीं कर सकते है। केवल आत्मा संयास ग्रहण नहीं कर सकती है,षरीर को संयास ग्रहण करना पडता है क्योकि केवल आत्मा के पास षरीर नही होता है,सारे गुणो की उत्पत्ति षरीर से होता है। षरीर को हटाकर किसी की भी स्तुति नहीं कर सकते हो,इसलिए मूर्ति पूजा जरूरी है। भाव सहित पूजा भाव पूजा मुनिश्री ने भाव पूजा एवं द्रव्य पूजा मे अंतर बताते हुए कहा कि आज हमारे समाज मे भाव पूजा का अर्थ लोगो ने गलत लिया है लोग सोचते है कि बिना द्रव्य से भगवान की पूजा करना भाव पूजा है लेकिन यह सरासर गलत है बिना द्रव्य के पूजा करना गलत है,और आगम मे इसका निशेध है। मुनिश्री ने कहा कि अश्ट द्रव्य से पूजा करना तो द्रव्य पूजा कहलाता है जबकि अश्ट द्रव्य की पूजा मे अपने भावो को लगा देने को भाव पूजा कहते है अर्थात भाव सहित द्रव्य से पूजा करना ही भाव पूजा है। संघस्थ प्रवक्ता विनय कुमार जैन ने बताया कि मुनिश्री पुलकसागर जी महाराज के पावन सानिध्य मे दोपहर तीन बजे से मूलाचार की नियमित कक्षाएं ली जा रही है जिसमे भी बडी संख्या मे स्वाध्यायी उपस्थित होकर आगम का ज्ञान अर्जित कर रहे है। विनय कुमार जैन

dev sastra guru par viswas kro- muni pulaksagar

षंकरनगर मे गूॅज रही है जिनवाणी ‘पुलकवाणी’ मे 18 मई 2012 षुक्रवार की सुबह का वह वक्त आ ही गया जिसका बेसर्बी से षंकरनगर जैन समाज इंतजार कर रही थी यह अवसर था राश्टसंत मुनिश्री पुलकसागर जी महाराज के पावन सानिध्य मे आयोजित आठ दिवसीय मां जिनवाणी षिक्षण षिविर के षुभारंभ का।
कार्यक्रम का षुभारंभ श्रीमति सुधा कृश्णा जैन षंकरनगर ने षिविर का उद्घाटन फीता काटकर किया तत्तपष्चात मां जिनवाणी के समक्ष मंगल कलष की स्थापना एवं दीपप्रवज्ज्लन अतिथियों के द्वारा किया गया। आज के कार्यक्रम के मुख्य अतिथी दिल्ली सरकार के षिक्षा मंत्री लबली सिंह थे। उन्होंने इस अवसर पर मुनिश्री को श्रीफल भेटकर आषीर्वाद प्राप्त किया। षिविर के पहले दिन को परिचय का दिवस बताते हुए मुनिश्री ने कहा कि आज षिविर का पहला दिवस है,आज केवल आपको आपके कोर्स के बारे मे बताया जाएगा। मुनिश्री ने जैन धर्मालंबियों के देव,षास्त्र और गुरू के बारे मे अपने कर्त्तव्य के बारे मे विस्तार पूर्वक षिविरार्थियो को समझाया। उन्होंने बताया कि जैन षब्द की परिभाशा बताते हुए कहा कि जो भगवान जिनेन्द्र को मानता हो और उनके बताये गये मार्ग का अनुषरण करे वह जैन होता है। मुनिश्री ने धर्म का पालन की तुलना परीक्षा से करते हुए कहा कि आज लोग धर्म कर्म तो करते है लेकिन उन्हें पता नहीं कि हमे धर्म किस प्रकार करना चाहिए। उन्होंने उदाहरण के द्वारा षिविरार्थियों को समझाते हुए कहा कि जिस प्रकार हम परीक्षा मे पेपर मे कुछ नहीं लिखेगे,प्रष्नो के उत्तर क्रम मे नहीं देगे या उत्तर गलत लिखेगे तो नम्बर षून्य प्राप्त होगे उसी प्रकार हम धर्म को नहीं करेंगे,उल्टा सीधा करेगे या गलत तरीके से करेगे तो पुण्य नहीं मिलेगा। मुनिश्री ने जोर देते हुए कहा कि जीवन मे कुछ भी कार्य करो उन्हे सही करो,व्यवस्थित करो एवं पूरा करो तो सफलता अवष्य मिलेगी। विनय कुमार जैन 9910938969

sharabak hi sandhna khandit karta hai - muni pulak sagar

समाज की विकृत मानसिकता पर अफसोस व्यक्त किया राश्ट्रसंत ने 29 मई 2012 भगवान ऋशभदेव के पास उच्च सहनन वाले थे वे जीवन भर एक बार भी आहार नहीं लेते तो उनका जीवन चल सकता था लेकिन उनके साथ अन्य राजागण जिन्होंने जिनेष्वरी दीक्षा ग्रहण की थी। भूख प्यास से आकुल व्याकुल हो गये और पथ भ्रश्ट होकर कोई पेड के फल खाना लगा तो कोई झरने का पानी पीने लगा। तभी आकाषवाणी हुई की आप इस वेष मे इस तरह अन्न जल ग्रहण नही कर सकते तो किसी ने पत्तो से अपना तन ढंक लिया तो किसी ने जटाएं बढ़ा ली। इस तरह चार हजार मुनि पथभ्रश्ट हो गये। उक्त मार्मिक विचार राश्ट्रसंत मुनिश्री पुलकसागर जी महाराज ने मॉडल बस्ती स्थित जैन मंदिर के हॉल मे सोमवार को श्रावको को संबोधित करते हुए व्यक्त किए। उन्होने धर्म सभा को संबोधित करते हुए आगे कहा कि उन्हें आहार चर्या के बारे मे ज्ञान नहीं था, और महामुनि ऋशभदेव भी आहार की विधी ने मिलने के कारण छह माह तक उपवास करते रहे। मुनिश्री ने कहा कि उस समय श्रावकगण आहार दान को जानते उसको समझते तो क्या चार हजार साधू पथ से भटकते? क्या साधू अपनी साधना से भ्रश्ट होता? या श्रावक सहयोग न करे तो भ्रश्ट हो जाता है? क्या सारी गलती मुनिराजो की हैः- आज महानगरो मे साधूओं को षौच जाने के लिए खुली जगह नहीं मिल पा रही है,श्रावक बोलते है महाराज जी फिलेष मे जाओगे क्या। हमारे यहां साफ करने वाले नहीं मिलते है। अब क्या करे साधू अगर फिलेष मे जाता है तो आगम मे लिखा है कि साधू षौच आदि के लिए जहां भी जाएं अपनी पिच्छी से उस जगह को अच्छी तरह से परिमार्जित कर ले। अब आप ही सोचो जहां पहले से ही पानी भरा पडा है उसमे हजारो जीव बिलबिला रहे है वहां कैसे...? अब यह बताओ जब श्रावक ही कह देगा कि हमारे यहां व्यवस्था नहीं है तो ऐसे मे कैसे मुनिधर्म पलेगा? तो क्या सारी गलती महाराजो की है या तुम नाराजों की है? मै कहीं भी रहूं सुविधा के लिए धर्म के सिद्धांतो के साथ खिलवाड नहीं कर सकता हॅू। संतो की साधना को खंडित किया श्रावक के प्रमाद नेः- मुनिश्री ने कहा कि चौथे से अब तक पंचम काल आते आते मुनि धर्म की चर्याए 10 प्रतिषत ही बची है अब आपके आलस्य व प्रमाद से क्या उसको भी खत्म कर ले। तुम क्या अपने बच्चो को बताओगे की अपने महाराज ऐसे होते है। मुनिश्री ने कहा कि मूलाचार मे लिखा है कि श्रावक अगर श्रमण की चर्या मे सहायक नहीं बनेगा, श्रावक नवद्या भक्ति भूल जाएगा तो साधू साधना कैसे करेगा। याद रखना दिगम्बर साधू भी आप सबके बीच मे से कोई बनता है,वह आकाष से टपका हुआ नहीं होता है। मुनि भी कभी समाज के बच्चे हुआ करते है उनको भी उनके माता पिता उतना ही प्यार करते होगे जितना तुम अपने बच्चो को करते हो। साधू संत कोई कचरे से ढेर से तो उठके आते नहीं है, जितने अरमान तुम्हारे है उतने ही अरमान साधूओं के माता पिता के भी होते है।
दिगम्बर साधू सदा परमार्थ के लिए जीता हैः- मुनिश्री ने कहा कि जब साधू अपना घर छोडता है तो उस साधू की जबावदारी सारी समाज की हो जाती है, अब समाज की क्या जबावदारी बनती है कि साधू को साधना के अनुकूल रखोगे की प्रतिकूल? मुनिश्री ने कहा कि साधू समाज से क्या लेता है? केवल एक बार आहार और इसके अलावा अपने लिए क्या लेता है? अगर कोई श्रावक मेरी चोकी पर एक लाख रूपये रख जाये तो मै अपने लिए क्या उपयोग करूंगा? क्या उस एक लाख रूपये से मै अपने लिए अच्छे कपडे लाउंगा, नहीं ना। क्या अपने लिए बाजार से कुछ खाने को लाउंगा नहीं ना। ना ही उन रूपयो से खुद घूमने के लिए गाडी घोडा लाउंगा,मैने तो जीवन भर दिगम्बर वाना और पद विहार का नियम लिया है। अगर मै बिमार भी पड जाउं तो मै उन रूपयो से दवाई भी नही खरीद सकता। मै उन रूपयो का व्यक्तिगत कुछ भी उपयोग नहीं कर सकता हॅू। हॉ उन रूपयो से समाज अपने लिए मंदिर व धर्मषाला बना ले तो बात अलग है। लेकिन मै स्वयं उन रूपयो का उपयोग नहीं करूंगा। तीर्थ भी समाज के लिए बनाता है मुनिः- मुनिश्री ने कहा कि साधू संतो के पास हीरे मोतियो का ढेर भी लगा दो तो उनके कोई काम का नहीं है। याद रखना अगर कोई साधू संत अपनी प्रेरणा से कोई तीर्थ का निर्माण करवाता है तो क्या समाधी के बाद वह उस तीर्थ को छाती पर बांधकर ले जाएगा। भव्य एयरकूल्ड धर्मषालाओं का निर्माण करवाता है तो उसका उपयोग कौन करता है? समाज ही तो उनका उपयोग करती है। स्वार्थ त्याग की कठिन तपस्या बिना खेद जो करते है ऐसे ज्ञानी साधू जगत की दुख समूह को हरते है। दिगम्बर संत तो स्वार्थ का त्याग करके अपनी तपस्या किया करते है। दिगम्बर संत जो भी करेगे परमार्थ के लिए करेंगे, उपकार के लिए करेंगें। अंत मे नवद्या भक्ति की विरासत सौपते जानाः- मुनिश्री ने कहा कि आप लोगो से एक ही निवेदन है कि दौलत कमाना तो हर मां बाप अपने बच्चो को सिखाते है लेकिन आप अपने बच्चो को नवद्या भक्ति भी सिखाइये। आज इक्सिवी सदी मे जीने वाले बच्चे बहुत ही होषियार व समझदार हो गये है। आज जिस बच्चे को चलना नही आता वह मोबाइल पकडना चाहता है, अब गुड्डे गुडियो का खेल नही बच्चे बिडियो गेम खेलने लगे है। अगर आप अपने बच्चो को नवद्या भक्ति सीखा के नहीं जाओगे तो आप लोगो के जाने के बाद जैन ंधर्म से दूर हो जायेगे। मुनि क्या होते है उनको बताने वाला कोई नहीं होगा। बच्चो को आगे लाएं नही तो वे पिच्छी को झाडू ही कहेगेः-
मुनिश्री ने बुजुर्गाे से निवेदन कि समझदार सास का कर्त्तव्य होता है कि वह अपने बेटे बहू को मुनियो के आहार मे भेजे ताकि वे आहार दान को सीख सके। अगर तुम्हारे मरने के पहले बच्चे नवद्या भक्ति सीख गये तो तुम्हारे घर पर संतो के चरण पडते रहेगे नही तो अभी तो यह हाल है कि मैने एक बच्चे से पूछा कि मेरे हाथ मे यह मोर पंख है इसे क्या कहते है तो वह बोला झाडू, मैने कहा कि इससे क्या करते है तो बोला जहां आप बैठते होगे वहां पहले झाडू लगा लेते होगे, मैने कमण्डल को दिखाते हुए कहा कि यह क्या है बोला थरमस मैने पूछा इसका साधू क्या करते है तो बोला जब प्यास लगती होगी तो पानी पी लेते होगें। सिखाईये अपने बच्चो को साधूओ की नवद्या भक्ति। अंत मे जब विरासत मे धन दौलत, जमीन जायजाद सौपो तो साथ मे संस्कार भी सौपाते जाना ताकि तुम्हारे जानेे के बाद तुम्हारा यह जैन धर्म जीवित रहे। एक साधू एक चौका की परम्परा बंद कर दोः- मुनिश्री ने बडे अफसोस के साथ कहा कि महानगरो मे मुनियो के आहार की परम्परा बहुत ही विकृत होती जा रही है,जितने साधू उतने चौके, क्या आप अपने साधूओ को निमत्रित करके आहार कराओगे। फिर वे कैसे नियम लेगे, कैसे अपनी सिहवृत्ति का पालन कर पायेगे। मै बडे ही गौरव के साथ कह सकता हॅू कि आज भी बुंदेलखंड मे एक एक साधू के लिए दस दस चौके लगते है। जब श्रावक ही संत की साधना मे सहयोग नहीं करेगा तो वह साधना कैसे कर पायेगा। विनय कुमार जैन संघस्थ प्रवक्ता 9910938969

गुरुवार, 17 मई 2012

जो धर्म से दूर भागते हो उन्हे एक बार मेरे पास लाओ-muni pulaksagar

18 मई से लगेगी शंकरनगर मे इंसान को इंसान बनाने की फैक्टरी जो धर्म से दूर भागते हो उन्हे एक बार मेरे पास लाओ- मुनि पुलकसागर 17 मई 2012 कौआ एक बार ज्ञान की गंगा मे नहा लेता है तो हंस बन जाता है और हंस नहा लेता है तो परमहंस बन जाता है। आपके वे करीबी लोग जो धर्म ध्यान,मंदिर व साधूओं से दूर भागते हो उन्हें एक बार मेरी सभा मे ले आएंये। एक बार लाने का काम आपका बार-बार बुलाने का काम मुझ पुलकसागर पर छोड दिजिए। उक्त विचार राष्टसंत मुनिश्री पुलकसागर जी महाराज ने बुधवार को शंकर नगर स्थित दिगम्बर जैन मंदिर मे श्रावको को संबोधित करते हुए व्यक्त किए। मुनिश्री ने धर्मसभा को संबोधित करते हुए आगे कहा कि षंकरनगर मे जहां भी देखो कपडा बनाने की फैक्टरी नजर आती है कही पेण्ट बनता है तो कहीं टीषर्ट लेकिन कल से यहां एक और फैक्टरी खुलेगी जिसमे इंसान को इंसान बनाया जाएगा। जिसमे जैन को जैन बनाने के संस्कार रोपित किये जाएगे। मुनिश्री के संघस्थ प्रवक्ता विनय कुमार जैन ने बताया कि मुनिश्री पुलकसागर जी महाराज एवं मुनिश्री प्रसंगसागर जी महाराज के पावन सानिध्य मे भोलानाथ नगर मे आयोजित मां जिनवाणी षिक्षण षिविर के पष्चात इसी षिविर के द्वितीय भाग का आयोजन यहां षंकरनगर मे कल से षुरू होने जा रहा है। जिसमे करीब 800 लोग भाग ले रहे है। मां जिनवाणी षिक्षण ष्वििर की षुरूवात 18 मई से 25 मई तक जैन धर्मषाला मे हो रही है। जिसमे दो वर्गो मे षिक्षा प्रदान की जाएगी। सुबह की कक्षा 8ः30 से 9ः30 तक जिसमे 15 साल से 100 साल के श्रद्धालूजन भाग लेगे साथ ही षाम को 6ः30 से 7ः30 तक द्वितीय वर्ग जिसमे 5 साल से 15 साल तक के बच्चो को जिनवाणी कि षिक्षा प्रदान की जाएगी। श्री जैन ने कहा कि इस षिविर मे भाग लेने वाले प्रत्येक षिविरार्थी को नाममात्र के षुल्क पर एक किट समाज के द्वारा मुहैया कराई जा रही है जिसमे बुक,पेन,किट एवं कॉपी है। षिविरार्थीयो को अल्पहार की व्यवस्था भी समाज के द्वारा रखी गई है। विनयकुमार जैन 9910938969

गुरुवार, 10 मई 2012

पुलक वाणी अप्रैल माह


वीतरागता मे ही सच्चा सुख- muni pulak sagar

वीतरागता मे ही सच्चा सुख-मुनि पुलकसागर अनुषासन की मिषाल बना मां जिनवाणी षिक्षण षिविर
दिल्ली 10 मई 2012 आत्मा के दो गुण होते है स्वभाव गुण व विभाव गुण । ऐसे परिणाम जो पर द्रव्य के निमित्त से होते है वह विभाव गुण होते है जैसे सुख दुख,राग द्वेश,लोभ, मान,माया लोभ खाना पीना आदि विभाव गुण के उदाहरण है और जो स्व निमित्त से होते है अर्थात पर द्रव्य के निमित्त से नहीं होते है स्वभाव गुण कहलाते है जैसे क्षमा,वीतरागता आदि। उक्त प्रेरक उद्बोधन राश्टसंत मुनिश्री पुलक सागर जी महाराज ने भोलानाथ षाहदरा मे आयोजित मां जिनवाणी षिक्षिण षिविर मे षिविरार्थियों को संबोधित करते हुए व्यक्त किए।
उन्होंने षिविर्थियों को विभाव व स्वभाव गुण को समझाते हुए कहा कि पानी मे षीलता उसका स्वाभाविक गुण है और उश्णता विभाव गुण है क्योकि पानी मे उश्णता आग के निमित्त से आती है। वैसे ही क्रोध आदि कशाय परिणाम दूसरो के निमित्त से होता है और क्षमा आदि अच्दे परिणाम अपने निमित्त से होते हैै।
मुनिश्री ने राग,द्वेश,मोह की परिभाशा बताते हुए कहा कि अच्छा लगना राग है, बुरा लगना द्वेश है और अपना मानने का भाव मोह है। ये तीनो ही आत्मा को दुख देने वाले है। राग द्वेश,मोह का नहीं होना ही वीतरागता है। वीतरागता आत्मा को षाष्वत सुख देने वाली मोक्ष देने वाली होती है।
मुनिश्री प्रसंगसागर जी ने किए केषलोच- संघस्थ प्रवक्ता विनय कुमार जैन ने बताया कि मां जिनवाणी षिक्षण षिविर की चहूं ओर प्रषंसा- राश्टसंत मुनिश्री पुलकसागर जी महाराज के अनुज गुरू भाई संघस्थ मुनिश्री प्रसंगसागर जी महाराज ने आज प्रातः 6 बजे केषलोच किए। इस अवसर पर भोलानाथ दिगम्बर जैन समाज के श्रद्धालूजन बड़ी संख्या मे उपस्थित थे। ज्ञात हो कि दिगम्बर जैन मुनि चार माह के अंतराल पर केषलोच किया करते है। राश्टसंत मुनिश्री पुलकसागर जी महाराज के पावन सानिध्य मे जितने भी पंचकल्याण, प्रवचन मालाएं या षिक्षण षिविरो का आयोजन किया जाता है उन सबमे अनुषासन व वक्त का विषेश ख्याल रखा जाता है। भोलानाथ नगर षाहदरा मे आयोजित मां जिनवाणी षिक्षण षिविर मे भी अनुषासन व वक्त की पाबंदी की मिषाल देखने को मिल रही है। प्रातः काल 7 बजे से षिविरार्थी पूजन के लिए एकत्रित होते है। मुनिश्री की कक्षा ठीक 8ः30 से प्रारंभ होती है और 9ः30 पर समाप्त हो जाती है।

बुधवार, 9 मई 2012

हमारे देश् से भू्रण हत्या बंद होना चाहिए -muni pulak sagar

राश्ट्रसंत जैन मुनि पुलकसागर जी महाराज ने किया सत्यमेव जयते का समर्थन और कहा हमारे देष से षीघ्र ही भू्रण हत्या बंद होना चाहिए -मुनि पुलकसागर
भ्रूण हत्या इस देश पर कलंक है। पालनहार ही मारणहार बन जाएंगे तो मानवीयता पर प्रष्न चिन्ह खड़ा हो जाएगा। जानबूझकर भ्रूण हत्या कराने वाली मां,भू्रण हत्या को प्रेरित करने वाला पति और भ्रूण हत्या करने वाला डॉक्टर ये तीनो हत्यारे है। इनके हाथ इंसानियत के खून से रंगे हुए है। जो सजा एक इंसान की हत्या करने पर मिलती है वही सजा भू्रण हत्या पर भी मिलना चाहिए। मै तो इतना ही कहंूगा कि अनचाही औलाद अगर गर्भ मे आ गई तो उसे मारे न उसे ना पाल सको तो मुझ जैसे संत के दरवाजे पर डाल देना पर उसे जन्म लेने का मौका जरूर देना। अभिनेता आमिर खान ने जो कन्याभू्रण हत्या पर सत्यमेव जयते स्टार प्लस चैनल के माध्यम से जो सामाजिक बुराईयों पर समाज का ध्यान आकर्शित किया है, निष्चित ही मानवीयता को झंकझोर कर रख दिया है। हांलाकि मै भी इस मिषन पर वर्शो से कार्य कर रहा हॅू पर मेरी आवाज को आमिर खान जैसे नेक दिल इंसान ने और भी बुलंद कर दिया है। इस मिषन पर मै और मेरा समर्थन हमेषा उनके साथ रहेगा। .............................................................................................................................................................................. गण्डा,ताबीज अंधविष्वास इससे दूर रहे- मुनि पुलकसागर षिविर के तीसरे दिन मुनिश्री ने दिलाई षपथ मिथ्यात्व से दूर रहेंगे षिविरार्थी दिल्ली 9 मई 2012 मां जिनवाणी षिक्षण षिविर के तीसरे दिन आज मुनिश्री पुलकसागर जी महाराज ने षिविरार्थीयो को संगत का प्रभाव बताते हुए मुनिश्री पुलकसागर जी महाराज ने कहा कि हमारे जीवन पर संगत का बहुत व्यापक असर पड़ता है। जिस प्रकार स्वाती नक्षत्र मे पानी की बॅूद अगर सीप मे पड़ जाए तो मोती,सर्प के मंुंह मे जहर, कैले के पौधे पर तो कपूर,गन्ने मे रस बन जाती है उसी प्रकार हमारी आत्मा पर बुरे कर्म अपने मे कसते है तो आत्मा भी मलिन होती है,और विशय वासना के वषीभूत होकर संसार सागर मे रमण करती रहती है। मुनिश्री ने षिविरार्थीयों को आगे संबोधित करते हुए कहा कि मै अपना जन्म दिन नही मनाता हॅू, क्योकि मैने दीक्षा संसार से मुक्त होने के लिए ली हे ना कि इसमे रमने के लिए। लोग कहते है कि मुनिश्री हम आपका जन्म दिन मनाना चाहते है तो मै उनसे केवल इतना ही कहता हॅू कि मनाना है तो दीक्षा दिवस मनाओ। भगवान के कल्याणक मनाओ। मुनिश्री ने आगे कहा कि तुमने जिन कुल मे जन्म लिया है तो इस जन्म को सफल करो,तंत्र,मंत्र से जीवन मे कभी भी खुषहाली नहीं आएगी,ना ही कोई तंत्र मंत्र जानने वाला बाबा तुम्हारे जीवन को सुखमय बना सकता है। षास्वत सुख अगर चाहते हो तो परम वीतराग मुद्रा के धारी जिनेन्द्र प्रभू की षरण मे आ जाओं तुम्हारा कल्याण हो जाएगा और निर्वाण पद को प्राप्त हो जाएगा।

मंगलवार, 8 मई 2012

भोलानाथ नगर मे मां जिनवाणी शिक्षिण शिविर का द्वितीय दिवस
दिल्ली 7 मई 2012 राष्टसंत मुनिश्री पुलकसागर जी महाराज एवं मुनिश्री प्रसंगसागर जी महाराज के पावन सानिध्य मे भोलानाथ शाहदरा मे आयोजित मां जिनवाणी षिक्षिण षिविर के द्वितीय दिवस मे शिविरार्थीयो के साथ-साथ अन्य श्रद्धालुओं की बेहताशा उपस्थित की कारण आज सामूदायिक भवन छोटा पड़ गया। मुनिश्री की अद्भुत शिक्षक कौशल गुण के कारण लोगो की उपस्थिती दिनो दिन बढ़ती जा रही है। इस अवसर पर मुनिश्री ने प्रभू पतित पावन मै अपावन चरण आऔ शरण जी,यॅू विरध आप निहार स्वामी मैट जावन मरण जी। की सरल व सुगम व्याख्या कर लोगो को धर्मामृत पिलाया।

शनिवार, 5 मई 2012

muni pulak sagar महाराज से विशेष बातचीत

मुनिश्री पुलकसागरजी महाराज से विशेष बातचीत संत दिशा बताते हैं चलना समाज को-मुनि पुलक सागर मुनिश्री पुलक सागरजी का कहना है कि संत का काम समाज को सही दिशा दिखाना है, लेकिन उस दिशा पर, उस राह पर आगे बढ़ने का काम तो समाज को ही करना होता है। संत यानी वो जिसे समय से पहले ज्ञान का आभास हो जाए, उसके दर्शन हो जाएं। संत न पैदा होते हैं, न बनाए जाते हैं, संत तो बन जाते हैं। संतई मन की एक बहुत विशिष्ट और उच्च अवस्था है। आज का युवा उत्थान और पतन के दोराहे पर खड़ा है। समय रहते यदि हमने उन्हें संस्कार न दिए तो हम उनके भविष्य के हत्यारे तो होंगे ही, साथ में अपना बुढ़ापा भी बिगाड़ लेंगे। ये संतों जिना ही माता-पिता और बुजुर्गों का भी दायित्व है कि वे युवाओं को संस्कारों से नवाजें और उन्हें इस दोराहे से आगे सही दिशा में बढ़ने का रास्ता सुझाएँ। इसके लिए जरूरी है कि बुजुर्गों में भी संस्कार हो। बात संस्कारों की हो या ज्ञान की, पूरी दुनिया में भारत का कोई मुकाबला नहीं है। सारी दुनिया में भारत वह सोने की चिड़िया है, जिसका सांस्कृतिक व आदर्शमय वैभव देखकर आज भी विदेशी ललचते हैं। प्रश्न: महाराजश्री संत समुदाय चाहे तो समाज की और देश की सूरत बदल सकता है, क्या यह सही है? मुनिश्री: संत यदि कुछ न बोले तो यह भी ठीक नहीं और कोई संत बोले और समाज की दिशा बदलने की बात कहे तो यह भी सही नहीं, क्योंकि जब तक सामने वाला खुद बदलना नहीं चाहे तब तक भगवान भी उसे बदल नहीं सकते। फिर भी मैं कहता सकता हूँ कि आज हमारे देश में जितनी भी इन्सानियत व नैतिकता मौजूद है, वह संतों की बदौलत है, वरना आप पड़ोसी देशों को देख सकते हैं, जहाँ संत नहीं। वहाँ न मानवीयता है, न रिश्ते होते हैं। संत समाज को केवल सही दिशा का ज्ञान करा सकते हैं, इसलिए सभी संत समाज को और लोगों को सही और गलत में फर्क समझाकर अच्छाई की राह दिखाने का काम कर सकते हैं। उसे मानना न मानना और उस पर चलना सामने वाले पर निर्भर करता है। प्रश्न: युवा पीढ़ी के साथ संस्कार और संगति की दिक्कत है। यदि सकूल-कॉलेजों में संतश्री के प्रवचन कराए जाएँ तो युवा पीढ़ी को भटकने से रोका जा सकता है? मुनिश्री: स्कूल-कॉलेजों में प्रवचन देने में कोई बुराई नहीं है, लेकिन आज के बच्चे किसके साथ उठते-बैठते हैं, उनका फैमिली बैकग्राउंड क्या है और वो किस माहौल में रह रहे हैं, इस बात का असर उन पर ज्यादा पड़ता है। बुनियादी बात यह है कि आज शिक्षा जीवन निर्वाह का सबब बन गई है। पढ़ाने वाला और पढ़ने वाले इसे आजीविका की तरह लेने लगे हैं, जबकि शिक्षा जीवन निर्वाह के जरिए से ज्यादा जीवन निर्माण की कला होनी चाहिए। संत बच्चों को प्रवचन देंगे तो उसका असर उन पर पड़ेगा पर वो तात्कालिक ज्यादा होगा। लम्बे समय तक असर के लिए माता-पिता को ध्यान रखनी चाहिए, ताकि युवा पीढ़ी भटके नहीं। प्रश्न: ऐसा क्यों है कि सुधार तो सभी चाहते हैं, लेकिन कामना यही करते हैं शुरुआत दूसरे करें मसलन लोग यह भी कहते मिलते हैं कि संत तो पैदा हो, मगर पड़ोसी के यहाँ? मुनिश्री: संत दो तरह के होते हैं। एक तो वह जो दुःखों से बनता है और दूसरा वह जो जीते जी मुक्ति के सुत्रा पाने के लिए साधना में रत हो जाता है। उसे दुःख से दुःखी और सुख से सुखी नहीं होना चाहिए। उसे तो हमेशा हँसते रहना आता है। असल में अधिक सुख की चाहत ही दुःख का कारण बनती है। फिर संत न पैदा होते हैं, न बनाए जा सकते हैं। संत वह होता है, जिसे समय से पहले ही ज्ञान प्राप्त हो जाता है। संत ज्ञानेश्वर को नौ साल की उम्र में ही संत कुंदकुंद को आठ वर्ष की अवस्था में ही ब्रह्मज्ञान का आभास हो गया था। इसी तरह संत कुंदकुंद को आठ वर्ष की अवस्था में ही सत्य का पता चल गया था। यों संत बनना हरेक के लिए जरूरी नहीं है। आप अपने मन को संत के समान बना लें तो इतना भी बहुत काफी है। प्रश्न ः युवा देश के कर्णधार और भविष्य हैं, उनके उत्थान और मार्गदर्शन के लिए क्या होना चाहिए? मुनिश्री: वास्तव में अब देश को युवा पीढ़ी ही देश का भविष्य तय करेगी। समस्या ये है कि आज का युवा उत्थान और पतन के दोराहे पर खड़ा है। उसके पास चलने की ऊर्जा और साहस दोनों है, मगर दिशादृष्टि नहीं है। यदि हमने यानी माता-पिता, गुरु और संत समुदाय ने उन्हें सही रास्ते का पता नहीं दिया तो उनका और देश का भविष्य संकटग्रस्त होगा। प्रश्न: आजकल संतों की जमातभी होने लगी, क्या यह उचित है? मुनिश्री: संतों की कोई जमात नहीं होती और जमात से हटकर चलने वाले और ऊँची सोच रखने वाले को ही संत कहते हैं। यदि उसे जमात के ही बंधन में रहना हो तो वो माता-पिता क्या बुरे हैं, जिन्होंने उसे पाल-पोसकर बड़ा किया? सो संत हर जमात से परे होते हैं और इलाका भीड़ भरा हो या सुनसान संतहर परिस्थिति में हमेशा अकेला होता है। प्रश्न: अपने अनुयायियों को आपका कोई सन्देश? मुनिश्री: संत कभी अपने अनुयायी या फॉलोअर नहीं बनाता। लोग उनके अनुयायी बन जाते हैं, फिर भी मैं यही कहना चाहता हूँ कि मेरे अनुयायी बनने से तुम्हारा भला नहीं होगा, क्योंकि मैं तुम्हारे किसी काम नहीं आऊँगा। हाँ, मेरे विचारों के अनुकूल बन जाओ, मेरे विचार तुम्हारे बहुत काम आएँगे। एक व्यक्ति अपने स्व का कल्याण कर लें यही बहुत है। खुद का कल्याण सबसे बड़ा जतन है और इसके बाद किसी दूसरे की कल्याण की चिन्ता की बात आती है। यूं यह शहर तो संतों का बहुत सम्मान करने वाला शहर है। दया, कृपा जैसी कोई चीज मिल भी जाती है, लेकिन वो सुकून नहीं देती है। प्रश्न: छोटे बच्चों को शिक्षा और संस्कार देना अति आवश्यक है? मुनिश्री: बच्चों को संस्कारयुक्त बनाया जाना चाहिए, लेकिन आजकल हम बच्चों पर संस्कार थोपने का काम कर रहे हैं। मेरा मानना है कि बच्चों के बजाए पहले बुजुर्गों में संस्कार होना चाहिए। बुजुर्ग यदि संस्कारों को पालेंगे और उस अनुरूप आचरण करेंगे तो वो अपने आप बच्चों में आएँगे। अभी संस्कार देने के नाम पर बच्चों से उनका बचपन छीना जा रहा है। वास्तव में देखा जाए तो बच्चों का बचपन कृष्ण जैसा होना चाहिए। फिर जवान राम जैसी और बुढ़ापा महावीर जैसा होना चाहिए। बचपन और जवानी के लिए युवाओं को सही मार्गदर्शन देना जरूरी है वरना बच्चे और युवा अपने उद्देश्य से भटक जाएँगे। प्रश्न: क्या कभी किसी बात से आप विचलित हुए हैं, ऐसा कोई संस्मरण बताएं। मुनिश्री: ऐसा तो कभी हुआ नहीं, फिर भी किसी को वेदना होती है तो मुझे कष्ट होता है और मुझसे किसी को पीड़ा पहुँचती है तो मैं विचलित हो जाता हूँ। प्रश्न: आप तो भारतवर्ष में भ्रमण करते रहते हैं, दूसरे देशों की अपेक्षा हम कहाँ हैं? मुनिश्री: बात संस्कार की हो, आदर्शों की हो, ज्ञान की हो या सभ्यता की, दुनिया में भारत का कोई मुकाबला नहीं है। भारत बहुत का कोई मुकाबला नहीं है। भारत बहुत संवेदनशील देश है। अभी जब मुम्बई, जयपुर जैसे शहरों में बम ब्लास्ट हुए तो सैकड़ों लोग सड़कों पर कराहते पाए गए, तब हम इतने संवेदनशील हो गए कि हमने यह नहीं देखा कि हिन्दू करहा रहा है या मुसलमान। हम एक दूसरे के जख्मों पर मरहम लगाने लगे। हम हमेशा दुश्मी रखने वाले पड़ोसी देश के साथ भी शान्ति की बात कर रहे हैं। बात चाहे भौतिकता की खोज हो या किसी भी तरह की रिसर्च की, भारत हर मामले में अग्रणी है। प्रश्न: जिस तरह से अलग-अलग धर्म के लोग हमारे यहाँ अपने अलग-अलग त्योहार मानते हैं, उसी तरह से यदि हम सब 15 अगस्त और 26 जनवरी मनाएँ तो कैसा रहेगा? मुनिश्री: इससे अच्छी कोई बात नहीं हो सकती है। अगर सभी धर्मों के लोग मजहब से ऊपर उठकर 15 अगस्त और 26 जनवरी देशभर में धूमधाम से मनाएँ तो इसमें क्या बुराई है। मैं 15 अगस्त और 26 जनवरी पर्व मनाने के लिए अपने प्रवचन में विशेष आग्रह ही नहीं करता, बल्कि जहाँ भी रहता हूँ अतिउत्साह से राष्ट्रीय पर्वों की महोत्सव के रूप में मनाता हूँ। यदि सभी धर्मों के संत एकजुट हो जाएँ और राष्ट्रीय पर्व मनाने का आह्नान करें तो बदलाव आ सकता है, लेकिन हर संत अपनी मजहबी दीवारों से घिरा हुआ है। आज वेलेंटाइन-डे भी मनाया जा रहा है और राष्ट्रीय पर्व की तरफ ध्यान कम है। प्रश्न: क्या कारण है कि जैन समुदाय में दूसरे समाज के लोग भी संत होते हैं और दिगम्बर सम्प्रदाय के संत कम होते हैं? मुनिश्री: ऐसा नहीं है। दिगम्बर जैन सम्प्रदाय में फिलहाल 1200 संत हैं। इसमें से केवल चार-पांच ही बाहरी हैं, शेष सभी यहीं के हैं। कठोर साधना और तपस्या के तरीके की तुलना नहीं की जा सकती। साधना से ही साधन और शान्ति नहीं मिलती, बल्कि मृत्यु का अनुभव जीते जी होना चाहिए। यही साधना है। प्रश्न: इलेक्ट्रॉनिक्स संचार साधनों के सम्बन्ध में आप कहेंगे? मुनिश्री: संचार के माध्यमों की ही बात है कि अब पूरे विश्व में कोई फर्क नहीं रह गया है। फर्क बस इतना है कि इन संचार साधनों का दुरुपयोग रुकना चाहिए। आज हमारे संचार साधनों और संस्कृति पर पाश्चात्य देशों का प्रभाव पड़ रहा है, जबकि हमें हमारी संस्कृति की ओर ध्यान देना चाहिए। प्रश्न: क्या आपके मन में भी मन्दिर या धर्मशाला आदि बनाने की बात कभी आई है? मुनिश्री: नहीं। मैं तो केवल मानवमात्रा के लिए कुछ करना चाहता हूँ और उसके लिए पुष्पगिरि में एक वात्सल्यधाम की स्थापना की गई है, जिसमें तीन वर्गों के बुजुर्गों को रखा जा रहा है। एक तो वे जिनकी कोई औलाद नहीं है, दूसरे वे जिनकी औलाद तो है, परन्तु वो उन्हें साथ नहीं रखना चाहती और तीसरे वे जिनकी औलादें विदेशों में हैं और वे यहाँ अकेले रहते हैं। इसी तरह विधवा, परित्यक्त महिलाएँ भी हैं और बच्चों को भी रखा गया है और सभी एक साथ रह रहे हैं। हमने अनाथाश्रम नाम रखने के बजाए वात्सल्यधाम नाम रखा है। फिलहाल यहाँ 40बच्चे एवं 21 बुजुर्ग निवास कर रहे हैं। इनमें से ज्यादातर जैन समुदाय के हैं, लेकिन इसमें जाति का कोई बंधन नहीं है। कभी-कभी मुझे लगता है कि लोग करुणा का भी दुरुपयोग करते हैं। हमारी करुणा वो अपनी स्वार्थसिद्धि में लगाने लगते हैं तो हमारा मिशन कमजोर होने लगता है। प्रश्न: मीडिया देश का चौथा स्तम्भ है, इसके विषय में आप क्या कहेंगे? मुनिश्री: मीडिया के बगैर दुनिया आज भी अधूरी है, क्योंकि लाखों लोगों तक अपनी आवाज और अपनी बात मीडिया के माध्यम से ही पहुँचती है। दशरथ और राम के वनवास के सम्बन्ध में भी अगर तुलसीदासजी रामायण नहीं लिखते तो शायद आज रामायण इतनी प्रसिद्ध नहीं होती, दशरथ के वो राम जो कर छोड़क वन में गए, वे फिर से रामायण के माध्यम से घर-घर वापस नहीं पहुँच पाते। तुलसीदास की तरह ही आज मीडिया की भूमिका है। प्रश्न: यदि आप संत नहीं होते, तो कवि होते? मुनिश्री: (हंसकर) मैं संत हूँ, इसलिए ही कवि हूँ, क्योंकि मेरी मान्यता है कि जो संत होता है वो कवि जरूर होता है, पर जो कवि होता है, वह संत हो यह जरूरी नहीं। कुंदकुंद, तुलसी, मीरा, सूर ये सब संत थे और कवि भी थे।

कर्महीन लोग जीवन मे उन्नति प्राप्त नहीं कर पाते- muni pulaksagar

कर्महीन लोग जीवन मे उन्नति प्राप्त नहीं कर पाते-मुनि पुलकसागर दिल्ली 5 मई 2012 रात को भी दिन निकल सकता है,दिन को भी रात हो सकती है,लोग कहते है,समय से पहले और भाग्य से अधिक किसी को कुछ नहीं मिलता लेकिन मेरी श्रद्धा कहती है कि गुरू की कृपा हो जाए तो समय से पहले और भाग्य से अधिक भी मिल सकता है। उक्त विचार राश्टसंत मुनिश्री पुलकसागर जी महाराज ने आज भोलानाथ नगर षाहदरा स्थित सामुदायिक भवन मे आयोजित ज्ञान गंगा महोत्सव के चौथेे दिन श्रावकों को संबोधित करते हुए व्यक्त किए। गुरू के महत्व को प्रतिपादित करते हुए मुनिश्री ने धर्मसभा को संबोधित करते हुए आगे कहा कि गुरू की कृपा से भौतिक सुख-संपदा तो छोड़ो मोक्ष लक्ष्मी को भी प्राप्त किया जा सकता है। मुनिश्री ने कहा कि भगवान की मूर्ति मौन है,षास्त्र मौन है आप जैसा चाहे अर्थ लगा सकते हो पर गुरू मौन नहीं होते है वे मुखर होते है जो तुम्हारे अहंकार पर चोट करते है। याद रखना साधू वही होता है जो तुम्हारे अहंकार पर चोट करे। साधू वह नहीं होता जो तुम्हारे अहंकार की पुश्टि करे। याद रखना मंदिर की मूर्ति कुछ समय पहले तक सड़क का पत्थर हुआ करता है लेकिन जब उस पर किसी षिल्पी की नजर पडती है तो मूर्ति का रूप ले लेता है लेकिन कोई सद्गुरू ही होता है जो उसमे भगवत्ता को प्रकट कर दिया करता है। मुनिश्री ने जीवन मे लक्ष्य बनाने की सीख देते हुए कहा कि हर व्यक्ति के जीवन मे एक न एक लक्ष्य अवष्य होना चाहिए,बिना लक्ष्य के जीवन मे उंचाईयॉ हासिल नहीं हो सकती है। यहां पर जितने भी लोग बैठे है सबका कोई ना कोई लक्ष्य अवष्य होगा। विद्यार्थीयों का लक्ष्य परीक्षा मे सफलता,व्यापारी का पैसा कमाना लक्ष्य हो सकता है लेकिन मै एक बात आपसे बड़ी विन्रमता के साथ कहना चाहता हॅू कि यह लक्ष्य तो चिता के साथ जलकर भस्म हो जाएगे,अगर जीवन मे लक्ष्य बनाना ही है तो निर्वाण को अपना लक्ष्य बनाओ, मोक्ष को अपना लक्ष्य बनाओ।

शुक्रवार, 4 मई 2012

इंसान चलना भूल गया- muni pulaksagar

दिल्ली 4 मई 2012 तमाम उंचे दरख्तो से बचकर चलता हॅू, मुझे पता है कि छाया इनके पास नहीं, गरीब की झोपड़ी मे सर छुपा सकते हो, अमीरों का तो कोई लिबास नहीं। आज बंगले उंचे लेकिन आदमी बोना हो गया है, किसी गरीब के घर मे पीने को एक गिलास पानी मिल सकता है लेकिन अमीर के पास मिल जाए इसकी गारंटी नहीं। उक्त विचार राश्टसंत मुनिश्री पुलकसागर जी महाराज ने आज भोलानाथ नगर षाहदरा स्थित सामुदायिक भवन मे आयोजित ज्ञान गंगा महोत्सव के तीसरे दिन श्रावकों को संबोधित करते हुए व्यक्त किए। उन्होंने धर्म को संबोधित करते हुए आगे कहा कि अगर आप गरीब है तो मै सुखी होना एक मंत्र देता हॅू आज से तुम अपने से गरीब आदमी को देखकर जीना षुरू कर दो और अमीरों को देखकर जीना छोड़ दो। तुम्हारा जीवन सुखमय हो जाएगा।
गर्दन मे लचक पड़ जाएगीः- निगाहे नीची रखकर चलने का संदेष देते हुए मुनिश्री ने कहा कि आज के आदमी को न जाने क्या हो गया है वह चलता तो जमीन पर लेकिन देखता आसमान में है। नजरे झुकाकर चलोगे तो जमीन पर पड़ी हुई अनमोल वस्तु भी मिल सकती है लेकिन नजरे उठाकर चलोगे तो ठोकर लग सकती है जिससे तुम जख्मी हो सकते हो। ज्यादा उपर देखकर जिओगे तो केवल गर्दन मे दर्द हो गया मिलेगा कुछ भी नहीं। मेरे भाई पक्षी भी आसमान मे उड़ता है तो निगाहे धरती पर ही जमा कर उड़ता है। जमीन से जुड़कर जिओः- मुनिश्री ने कहा कि आज के विज्ञान ने लोगो को पक्षिओं की तरह हवा मे उड़ना सिखा दिया,मछलियों की तरह पानी मे तैरना सिखा दिया लेकिन दुख तो इस बात का है कि आज आदमी जमीन पर चलना भूल गया हैं। व्यक्ति का जमीन से सबंध टूट गया है। जमीन से जुड़कर जीना विज्ञान नहीं सिखाएगा इसे सीखने के लिए तो हमे भगवान महावीर की षरण मे आना पड़ेगा। धर्म की षरण मे आना पड़ेगा धर्म की जमीन से जुड़कर चलना सिखाता है। अकड़ मुर्दे की पहचान हैः- अकड़ को मुर्दे की पहचान बताते हुए मुनिश्री ने कहा कि झुकेगा वही जिसमें जान है,अकड़ मुर्दे की खास पहचान है। षीष झुकाओगे तो आषीश मिलेगा। नजरे झुकाकर जिओगे तो दुनिया तुम्हें पलको पर बिठा लेगी और नजरो को उठाकर जिओगे तो यही दुनिया तुम्हें नीचा दिखा देगी। अहंकार से बचने एवं झुकने के फायदे बताते हुए कहा कि जिस प्रकार नदी किनारे लगे छोटे पौधे,बेले बाढ़ के समय झुक जाते है जबकि बड़े पेड़ अकड़ के खड़े रहते है,बाढ़ निकल जाने के बाद बेले फिर से लहलहाने लगती है जबकि पेड जड़ से उखड़ जाया करते है। तुम्हारी औकात क्या हैः- मुनिश्री ने रूपये,पैसो को हाथ का मैल बताते हुए कहा इस धरती पर एक से बढ़कर एक चक्रवर्ती,धनकुबेर आएं लेकिन उनका नाम निषान भी नहीं है फिर तुम किस बात पर अभिमान करते हो। लोग थोड़ा सा रूपया पैसा कमाकर अहंकार के वषीभूत होकर फूले नहीं समाते है लेकिन याद रखना असली दौलत प्रभू की भक्ति है। विनय कुमार जैन मो 9910938969

गुरुवार, 3 मई 2012

अपने आपको उपयोग बनाएं- muni pulak sagar

अपने आपको उपयोग बनाएं-मुनि पुलकसागर चातुर्मास हेतु श्रीफल भेट किए भोलानाथ नगर जैन समाज ने जीवन मे हर पल अपने आपको उपयोगी बनाएं रखिए। जब तक गाय दूध देती हे तब तक ही उसकी सेवा होती है,जब वह दूध देना बंद कर देती है तो वह भार लगने लगती है,बूढे़ बेल का क्या हाल होता है वह आप भली भांति जानते है। उक्त विचार राश्टसंत मुनिश्री पुलकसागर जी महाराज ने भोलानाथ नगर स्थित सामुदिय भवन मे आयोजित तीन दिवसीय ज्ञान गंगा महोत्सव के प्रथम दिन श्रद्धालुओं को संबोधित करते हुए व्यक्त किए। उन्होंने आगे कहा कि घर,परिवार,समाज के लिए आप कितने उपयोगी है यह देखा जाता है। उपयोगिता का सबंध अपरिचित से होता है और कोई आपसे तब तक नहीं जुड़ता तब तक उसे आपसे कोई फायदा न हो। एक पोधे को जिसमे न फल लगते है और न ही फूल आते हे तो उसे आप कब तक पानी से सीचोगे। कर्महीन इंसान को जीवन मे उंचाईयॉ हासिल नहीं होती है। संघस्थ प्रवक्ता विनय कुमार जैन ने बताया कि राश्टसंत मुनिश्री पुलकसागर जी गुरूदेव एवं मुनिश्री प्रसंगसागर जी महाराज के आगामी चातुर्मास हेतु सकल जैन समाज भोलानाथ नगर की ओर श्रीफल भेटकर मुनिश्री से निवेदन किया कि गुरूदेव आपका आगामी चातुर्मास भोलानाथ नगर को प्राप्त हो।

मंगलवार, 1 मई 2012

जन जागरण बहुत हो गया अब जैन जागरण की आवष्यकता

आज से लगभग 350 वर्श की पूर्व की ही तो बात है,जब हमारे भारतवर्श पर मुगलो की सत्ता थी। मुगल सल्तनत के द्वितीय षहंषाह अकबर के षासनकाल मे धर्म पर आधारित जनगणना की गई थी तब जैन मतालम्बियों की जनसंख्या साढ़े चार करोड़ के आसपास थी। चौक गए न आप....हॉ मै सच कह रहा हॅू उस समय हम साढ़े चार करोड़ थे लेकिन आज हम जनसंख्या के आंकड़ो पर नजर डाले तो हम सभी पंथो के जैन करीब 47 लाख ही बचे है। दुनिया मे कुछ और धर्म है जैसे फारसी,कन्फूयिस आदि जो अपना अस्तित्व को संभालने की जद्वोजहद मे लगे हुए है। गौर करने लायक बात तो यह है कि भगवान महावीर और महात्मा बौद्ध दोनो समकालीन थे लेकिन आपने कभी इस बात पर ध्यान दिया कि आज बौद्ध धर्म दुनिया के आठ से दष देषो का राश्टीय धर्म बन गया है लेकिन जैन धर्म हमारे देष मे ही टुकड़ो मे बॅट-बॅटकर लुप्त होने की कगार पर है। कहीं ऐसा न हो की षेर,मोर की तरह ही हमारे जैन धर्म को भारत सरकार संरक्षित धर्म का दर्जा न दे। लगातार कम होते जा रहे जैन धर्म को लोग इतिहास मे याद रखेंगे और लोग जब किताबो मे पढ़ेगे की जैन धर्म मे भगवान महावीर,आचार्य षांतिसागर,आचार्य संमतिसागर जी महाराज जैसे संत हुए है जो कठिन तपष्चरण करते थे,मासोपावासी थे। षायद इस पर भी लोग षंका करेंगे। वक्त रखते हुए जिसने अपने आपको नहीं संभाला इतिहास गवाह है उनका नाम गुम हो गया है। आखिर क्या किया जाए कि हम अपने गौरवषाली इतिहास और श्रमण संस्कृति को अक्षुण्य बनाएं रख सके। ऐसा नहीं है कि जैन समाज के संत मुनि इस दिषा मे कोई उत्कृश्ट कार्य नहंी कर रहे है। बेषक वे जैन धर्म को जीवंत बनाएं रखने के लिए मंदिर,मूर्तियो का जगह जगह निर्माण कर रहे है। इन सबसे बढ़कर एक संत भी जैन समाज में है जिन्होंने हमेषा दीन दुखियों एवं जैन धर्म की रक्षा के बारे मे ही चिंतन किया है। वे युवा है,युवाओं के आकर्शण के केन्द्र है, उनकी वाणी मे मिश्री घुली है और जिव्हा पर साक्षात सरस्वती विराजमान है ऐसे है संत है राश्टसंत मुनिश्री पुलकसागर जी गुरूदेव है। मुनिश्री पुलकसागर जी गुरूदेव का सोचना है कि आज हमारे देष मे बहुत तीर्थ है, मंदिर है लेकिन दुख की बात तो यह है कि उन तीर्थो पर भगवान जिनेन्द्र को अर्घ समर्पित करने के लिए श्रावक नहीं है,मंदिरो मे पूजा तो होती है लेकिन किराए के रखे हुए लोगो के द्वारा। जबकि षास्त्रो मे कहा कि चार पुरूशार्थ है अर्थ,दान,काम और मोक्ष व्यक्ति को स्वयं ही करने चाहिए। किराए पर रखे हुए लोगो के द्वारा हमारा धर्म कितने दिन जीवित रहेगा। मुनिश्री का मानना है अगर आप किसी मंदिर मे मूर्ति मे स्थापित करते हो तो रोज उस प्रतिमा की पूजा पाठ एवं अभिशेक करना चाहिए लेकिन दुर्भाग्य की बात तो यह है कि हमारी समाज मे 50 साल के बुजुर्ग को भी आठो अर्घ याद नहीं है,भगवान की पूजा किस प्रकार करना चाहिए उन्हें नहीं पता। ऐसे मे हम संतो का का कर्त्तव्य बनता है कि लोगो को जैन धर्म के मूल सिद्धंातो से अवगत कराएं। यह काम तो पंडितो को करना चाहिए लेकिन पंडित तो आजकल केवल मुनियों की बुराईयों एवं उनमे कमियों निकालने मे लगे हुए है। राश्टसंत मुनिश्री पुलकसागर जी महाराज ने वीणा उठाया है कि अब जैन समाज के हर बच्चे को मै बताएगे कि सच्चा जैन कौन होता है,जिनेन्द किसे कहते है, वे हर जैनी मे चाहते है कि उसे अपने धर्म पर गर्व होना चाहिए कि वह जैन है। मुनिश्री कहते है कि जन जागरण तो कर लिया अब वक्त आ गया है कि जैन जागरण हो। इसकी षुरूवात मुनिश्री ने मां जिनवाणी पत्राचार पाठ्यक्रम परीक्षा के माध्यम से कर दी है। पत्राचार पाठ्यक्रम मे प्रतिवर्श देष भर से पच्चीस से तीस हजार स्वाध्यायी परीक्षा देते है। आज महानगरो मे जैनो को धर्म के बारे मे ज्यादा जानकारी नहीं है इसके लिए मुनिश्री मां जिनवाणी षिक्षण का आयोजन दिल्ली की विभिन्न कॉलोनियों मे आगामी समय मे कर रहे है। 6 मई से 13 मई तक भोलानाथ नगर षाहदरा मे सात दिवसीय षिविर का आयोजन किया जा रहा है जिसमे करीब एक हजार से अधिक षिविरार्थी सम्मिलित हो रहे है। भोलानाथ नगर के पष्चात षंकर नगर मे एवं न्यू रोहतक रोड,नई दिल्ली मे भी षिविर का आयोजन किया जाएगा। इस बार मुनिश्री ने सोच लिया है कि दिल्ली को बदल के रख देंगे। विनय कुमार जैन सह संपादक पुलकवाणी 9910938969