सोमवार, 25 जून 2012

aarkshan ka vikram betal


आखिर कब तक ये आरक्षण का वेताल विक्रमादित्य के कंधे पर लटका रहेगा- विनय कुमार जैन जब सभी क्षेत्रो मे गुणवत्ता चाहिए फिल्मो में सुंदर नायिका चाहिए, कुष्ती में तगड़ा पहलवान चाहिए, क्रिकेट में जबरदस्त बल्लेबाज चाहिए, जब षादी में कमनीय पत्नी चाहिए तो एक डॉक्टर जो लोगो की जान बचाएगा और स्वास्थ्य रखा करेगा, बडे़ बडे़ षोध अनुसन्धान करेगा और देष का नाम उॅचा करेगा और मानवता को बहुत कुछ प्रदान भी करेगा, के लिए सबसे उच्च गुणवत्ता नहीं होना चाहिए? क्या ऐसे स्थानो पर आरक्षण को पूरी तरह हटा लिया नहीं जाना चाहिए और वहां पर आरक्षण के नाम पर राजनीति करने वालो पर कानूनी कार्यवाही नहीं करनी चाहिए? एक मौका मिलते ही चिकित्सको और स्वयं स्थापित समर्थ षिक्षिको को अपमानित करने का मौका न चूकने वाले मीडिया से मै ये पूछना चाहूॅगा कि ये गन्दी राजनीति षैक्षणिक केन्द्रों से दूर होगी या नहीं? पर जिस तरह से देष का हर कोना सड़ चुका है और लुहेड़ाबाजी करने वालो को कुछ भी मनमानी करने की छूट मिल गयी है अपने अलग ही पैमाने बनाने वाला मीडिया भ्रश्ट विचार फैलाने में पूरा योगदान कर रहा है उससे यही लगता है की हारे कुंठितो को अपनी भड़ास निकालने का मौका आगे भी मिलता रहेगा। आखिर देष के प्रबुद्ध, विचारषील और षिक्षितो को राज्य नीति एवं सामाजिक मार्गदर्षन के लिए वरीयता कब दी जाएगी? आखिर कब तक भ्रश्ट, गंवार, अपराधी और निकृश्ट राजनीतिज्ञ और उनके चेले चपाटे देष को पथभ्रश्ट करते रहेगे? आखिर कब तक ये आरक्षण का वेताल विक्रमादित्य के कंधे पर लटका रहेगा और समूचे देष को ष्मषान बनाये रहेगा? आखिर कब देष के अन्य प्रबुद्धो की ऑख खुलेगी। आखिर कब तक गुण और योग्यता का अपमान देष सहता रहेगा? आखिर कब तक एक अन्याय के नाम पर दूसरा बड़ा अन्याय किया जाता रहेगा? आखिर कब तक किसी परदादे के दोश की सजा उसके संतानो को दी जाती रहेगी? आखिर कब तक नेता और सरकारे अपनी अक्षमता को आरक्षण देकर जनता को मूर्ख बनाते रहेंगे? आखिर हम किस तरह की बराबरी चाहते है? या नेताओ के दुराग्रह से बराबरी आ जाएगी? आखिर कब बंद होगा ये षासकीय अत्याचार? विनय कुमार जैन ..............................................................................................................................................................................

रविवार, 24 जून 2012

janm jra mratu hai- muni pulaksagar


जन्म जरा मृत्यु बिमारी है -मुनि पुलकसागर
14 जून 2012 वे कर्म वर्गणाएॅ जो राग द्वेश के निमित्त से आत्मप्रदेषो के साथ मिलकर कर्म रूप परिणत होकर जीव के आत्म स्वभाव को ढक देती है। उन कार्माण वर्गणाओं को कर्म कहते है। उक्त पवित्र विचार राश्टसंत मुनिश्री पुलकसागर जी महाराज ने आज गुरूवार को न्यू रोहतक रोड मे नवहिंद पब्लिक स्कूल ऑडिटोरियम मे आयोजित मां जिनवाणी षिक्षण षिविर के पांचवे दिवस पर षिविरार्थियो को संबोधित करते हुए व्यक्त किए। मुनिश्री ने आगे षिविरार्थियों को संबोधित करते हुए कहा कि कर्म आठ प्रकार के होते है,ज्ञानावरणी,दर्षनावरणी,वेदनीय,मोहनीय,आयु,नाम,गोत्र और अंतराय। मुनिश्री ने कहा कि जिस कर्म के उदय से आत्मा के ज्ञान के गुण ढंक जाते है उन्हें ज्ञानावरणी कर्म कहते है। किसी ज्ञान के ज्ञान मे विघ्न डालने से पुस्तक फाडने से ,छिपा देने से ज्ञान का गर्व करने से जिनवाण मे संषय करने से ज्ञानावररणी कर्म का बंध होता है। जो कर्म आत्मा के दर्षन गुण को ढंकता है अर्थात प्रकट होने नहीं देता है उसे दर्षनावरणी कर्म कहते है,जिन दर्षन मे विघ्न डालना, किसी की आंख फोड देना, मुनियों को देखकर घृणा आदि करने से दर्षनावरणी के र्म का बंध होता है। मुनिश्री ने कहा कि जो कर्म हमे सुख दुख का वेदन करता है अर्थात अनुभव कराता है उसे वेदननीय कर्म कहते है। अपने व दूसरो के विशय में दुख करना,षोक करना रोग,पषुवध आदि असाता वेदनीय कर्म बंध के कारण है एवं दया करना,दान देना, संयम पालना, व्रत पालना, आदि साता वेदनीय कर्म के बंध के कारण है। मुनिश्री ने मोहनीय कर्म की परिभाशा देते हुए कहा कि जिस कर्म के उदय से आत्मा के सम्यक्त्व और चारित्र गुण का घात होता है। सच्चे देव षास्त्र गुरू और धर्म मे दोश लगाना मिथ्या देव षास्त्र गुरू की प्रषंसा करना, क्रोधादि कशाय करना, राग द्वेश करना मोहनीय कर्म के बंध का कारण है। मुनिश्री ने कहा कि जिस कर्म के उदय से जीव को चारो गतियों में से किसी एक गति में निष्चित समय तक रहना पडता है,उसे आयु कर्म कहते है। बहुत हिंसा करना, बहुत आरंभ करना,परिग्रह रखना,छल कपट करना, अषुभ आयु कर्म के बंध के कारण है, और व्रत पालन करना, षांतिपूर्वक दुख सहना आदि षुभ आयु कर्म के बंध के कारण है। नाम कर्म की को षिविरार्थियो को समझाते हुए कहा कि नाम कर्म के उदय से षरीर की प्राप्ती होती है। मन, वचन, काय को सरल रखना, धर्मात्मा को देखकर खुष होना, धोखा नहीं करना, षुभ नाम कर्म का कारण है। एवं त्रियोग कुटिल रखना, दूसरो को देखकर हंसना, उसी की नकल करना आदि अषुभ नामकर्म का कारण है। मुनिश्री ने गोत्र कर्म को समझाते हुए कहा कि गोत्र कर्म के उदय से प्राणी उच्च नीच कुल मे जन्म लेता है, उसे गोत्र कर्म कहते है। अपने गुण और दूसरों के अवगुण प्रकट करना, अश्ट मद करना, आदि नीच गोत्र का कारण है। एवं दूसरो के गुण और अपने अवगुण प्रकट करना अश्ट मद नहीं करना उच्च गोत्र कर्म का कारण है। मुनिश्री ने अंतिम कर्म अंतराय कर्म को समझाते हुए कहा कि जो कर्म दान,लाभ भोग,उपभोग, और षक्ति में विघ्न डालता है उसे अंतराय कर्म कहते है। मुनिश्री ने कहा कि दान देने से रोक देना, आश्रितों को धर्म साधन नहीं देना, किसी की मांगी वस्तु को नहीं देना, आदि अंतराय कर्म के कारण है।

ma jinwani sivir sampnna... muni pulaksagar ji


न्यू रोहतक रोड में सानंद सम्पन्न हुआ मां जिनवाणी षिक्षण षिविर जिनषरंण तीर्थ मे स्थापति होगी करोग बाग जैन समाज की ओर से 101 मूर्तियां
17 जून 2012 हिंसा, झूठ, चोरी, कुषील, परिग्रह, पाप, पुण्य, जीव, अजीव, सम्यक, मिथ्यात्व, रागी, द्वेशी और ऐसे ही जैन धर्म के अनेक विशयों की सूक्ष्म व्याख्या न्यू रोहतक रोड मे आयोजित सात दिवसीय मां जिनवाणी षिक्षण षिविर में पूज्य गुरूदेव मुनिश्री पुलकसागर जी गुरूदेव के मुखारविंद से षिविरार्थियों ने अर्जित की। वैसे तो जैन धर्मालम्बी इन विशयो को जानते है लेकिन मुनिश्री ने इन सबको जो गहराई से वर्णन किया है निष्चित ही यह ज्ञान समस्त षिविरार्थियो के लिए जीवन पर्यंत प्रेरणा प्रदायी बना रहेगा। षिविर सानंद सम्पन्नः- न्यू रोहतक रोड मे मुनिश्री के सानिध्य मे आयोजित 10 जून से 17 जून तक आठ दिवसीय मां जिनवाणी षिक्षण षिविर का आज सानंद समापन हो गया। इस अवसर पर विषेश योग्यता अर्जित करने वाले षिविरार्थियों को सम्मानित किया गया। इस षिविर के दोनो सत्रो मे करीब 550 षिविरार्थियों ने भाग लिया। जिनषरणं तीर्थ में दानदातारो की लगी होडः- मुनिश्री की पावन प्रेरणा से मुम्बई सूरत मेगाहायवे पर उपलाट ग्राम के नजदीक निर्मित किए जा रहे जिनषरणं तीर्थ मे 101 मूर्तियां करोग बाग की समस्त दिगम्बर जैन समाज की ओर से प्रदान करने की घोशणा इस अवसर पर अध्यक्ष अनिल जैन की ओर से की गई। साथ ही न्यू रोहतक रोड निवासी श्रीमति सुशमा जैन, श्रीमति अलका जैन, श्री वीरचंद्र बडजात्या उशा जैन, गजेन्द्र गीता जैन, विनोद उशा जैन, सुभाश जी सगुन जैन, नवीन जैन, जी पी जैन अतुल जैन आदि अन्य श्रावकगणों ने एक एक मूर्ति तीर्थ मे अपनी तरफ से स्थापित करने की घोशण की समस्त दानदातारों का स्वागत समिति के द्वारा किया गया। मां जिनवाणी पत्राचार पाठ्यक्रम का लक्की डॉः- पूज्य गुरूदेव मुनिश्री पुलकसागर जी गुरूदेव की प्रेरणा एवं आषीर्वाद से संचालित मां जिनवाणी पत्राचार पाठ्यक्रम मे सम्मिलित हुए लगभग 50 हजार स्वाध्यायियों का लक्की डॉ किया गया जिसमे दो लाख रूपये की नगद पुरूस्कार वितरित किये गये। इस अवसर पुलक जन चेतना मंच के रा.षिक्षा मंत्री श्री सोहनलाल कलावत भी मौजूद थे। श्री कलावत जी ने इस अवसर पर बताया कि पूरे भारत वर्श मे 50 हजार से अधिक स्वाध्यायी प्रति वर्श इस पत्राचार परीक्षा मे सम्मिलित होते है। आज के मेगा डॉ में 100 से अधिक भाग्यषाली स्वाध्यायियों को दो लाख से अधिक के नगद पुरूस्कार वितरित किये गये। प्रथम पुरूस्कार राषी 21 हजार रूपये श्रीमति रजनी जैन ऋशभदेव राजस्थान, द्वितीय पुरूस्कार राषी 11 हजार रूपये प्रिन्सी अल्पेष जैन अंधरी मुम्बई तथा तृतीय पुरूस्कार नगर 5 हजार रूपये सुश्री हीरल जैन झाबुआ मध्यप्रदेष को प्राप्त हुए।

sant hi samaj ko akta me bandh sakta hai- muni pulaksagar


संत ही समाज को एकता के सूत्र मे बांध सकते है- मुनि पुलकसागर न्यू राजेन्द्र नगर में हुआ दिगम्बर एवं ष्वेताम्बर संतो का मिलन 21 जून 2012 भगवान ना मंदिर मे मिलता है ना मस्जिद मे मिलता है, भगवान को बाहर खोजने की आवष्यकता नहीं है वह तो तुम्हारे अंतस मे ही विराजमान है, बस जरूरत है अपने अंतस मे झांकने की और भगवान तुम्हें मिल जाएगा। उक्त विचार राश्टसंत मुनिश्री पुलकसागर जी महाराज ने न्यू राजेन्द्रनगर स्थित जैन मंदिर मे श्रावको को संबोधित करते हुए व्यक्त किए। इस अवसर पर ष्वेताम्बर जैनाचार्य डॉ लोकेष मुनि जी एवं आचार्य सुषीलकुमार जी महाराज साब के सुषिश्य विवेक मुनि जी एवं सिद्धेष्वर मुनिजी भी एक मंच पर उपस्थित थे। मुिनश्री पुलकसागर जी महाराज ने धर्मसभा को आगे संबोधित करते हुए कहा कि जहां तक मै समझता हॅू कि भगवान महावीर अपने जीवन मे किसी भी मंदिर मे नहीं गए होगे उन्होंने तो अपने मन को मंदिर बनाने का प्रयास किया और जो अपने मन को मंदिर बना लेता है सारी दुनिया उसके मंदिर बनाने लग जाती है। आओ अपने मन को ही मंदिर बनाने का प्रयास करे। मुनिश्री ने संतो को समाज का सर्वोसर्वा बताते हुए कहा कि समाज को तोड़ने वाला कौन है, नीचे जो आप लोगे बैठे हो या उपर मंच पर जो संतगण बैठे है। यह बड़ा अकाट्य सत्य है कि समाज को टुकड़ो मे बांटने वाले संत ही है, बेझक इसे स्वीकार करना पडेगा। दिगम्बर, ष्वेताम्बर, तेरह पंथी, बीस पंथी, स्थानकवासी किसने बनाएं । बेषक यह संतो की ही देन है। याद रखना उपर का बटन अगर गलत होता है तो नीचे की बटन अपने गलत लगते है लेकिन उपर का वटन सही होता है तो अपने आप ही सारे बटन सही हो जाया करते है। अगर आज हम संत एक तख्त पर एक साथ बैठे है तो उसका यह परिणाम है कि सारा समाज एक जाजम पर आकर बैठ गया है अगर हम यहां एक साथ नहीं बैठेगे तो समाज भी एक साथ बैठने को राजी नहीं होगी। मुनिश्री ने कहा कि हमारे बुजुर्गो, हमारे पूर्वजों ने गलती की है, हम एक भगवान, एक धर्म के उपासक आज चार टुकड़ो मे बंट गये। संतो की परम्परा की के कारण समाज टूट गई है। जब संतो के कारण समाज टूटी है तो अब संतो का यह जिम्मा है कि वह समाज को एकता के सूत्र मे बांधे। याद रखना जो काटना जानता है वह जोड़ना भी जानता है। जिसने टुकडे किए है समाज के उन्हें ही एक करना पड़ेगा। मुनिश्री ने कहा कि समाज को एकता के सूत्र मे बंधने की जरूरत नहीं है हम संतो को एक होने की जरूरत है समाज तो खुद व खुद एकता के सूत्र मे बंध जाएगी। आज मुझे बहुत खुषी हुई की एक मंच पर ष्वेताम्बर संत एवं दिगम्बर संत एक साथ बैठे। मुनिश्री के संघस्थ प्रवक्ता विनय कुमार जैन ने बताया कि पूज्य गुरूदेव मुनिश्री पुलकसागर जी महाराज के प्रवचन के पहले भी विवेक मुनि जी महाराज साब ने अपने उद्गार व्यक्त करते हुए कहा कि मुनिश्री पुलकसागर जी महाराज का इस आश्रम पधारना बहुत ही सौभाग्य की बात है और इससे सामाजिक एकता को बल मिलेगा। इस अवसर पर डॉ लोकेष मुनि जी ने अपने उद्गारो सामाजिक एकता व अखण्डता पर बल दिया। मुनिश्री पुलकसागर जी महाराज का 21 एवं 22 जून को न्यू राजेन्द्र नगर मे प्रवास रहेगा तत्पष्चात मुनिश्री 23 जून को लालमंदिर मे एक दिवसीय प्रवास रहेगा। 24 जून से 30 जून तक कैलाषनगर गली नं. 12 मे प्रवास रहेगा। मुनिश्री भोलानाथ नगर मे चातुर्मास हेतु 1 जुलाई को प्रवेष करेगे। 8 जुलाई को चातुर्मास मंगल कलष की स्थापना दोपहर 1 बजे से नेपाल ग्राउण्ड कड़कडडूमा कोर्ट के पास होगी। विनय कुमार जैन फोटो कैप्षन- बांए से सिद्धेष्वर मुनि जी, डॉ लोकेष मुनिश्री, विवेक मुनिजी, राश्टसत मुनिश्री पुलकसागर जी गुरूदेव, मुनिश्री प्रसंगसागर जी महाराज

mot jeewan ka atal satya- muni pulaksagar ji


मृत्यु जीवन का अटल व अंतिम सत्य- मुनि पुलकसागर 23 जून को मुनिश्री का लालमंदिर मे प्रवास
22 जून 2012 संयासी और संसारी दोनो इस संसार मे रहते है, संयासी संसार से पार होता है लेकिन संसारी इसमे उलझता जाता है। उक्त विचार राश्टसंत मुनिश्री पुलकसागर जी महाराज ने न्यू राजेन्द्रनगर स्थित जैन मंदिर मे श्रावको को संबोधित करते हुए व्यक्त किए। इस अवसर पर ष्वेताम्बर जैनाचार्य सुषीलकुमार जी महाराज साब के सुषिश्य विवेक मुनि जी एवं सिद्धेष्वर मुनिजी भी एक मंच पर उपस्थित थे। मुिनश्री पुलकसागर जी महाराज ने धर्मसभा को आगे संबोधित करते हुए कहा कि संयासी इस संसार मे इस तरह रहता है जैसे मख्खन मे सिर का बाल। मख्खन मे से अगर बाल को बाहर निकालना हो तो आराम से वह बाहर आ जाता है लेकिन संसारी संसार मे गोबर के उपले मे फंसे हुए बाल की तरह होता है जो टूट तो जाता है लेकिन उपले मे से बाल वापिस निकलता नहीं है। संसारी जीव भी संसार की विशय वासना मे ऐसा उलझ जाता है कि वह नहीं निकल पाता। दबे दबे पांव मौत आती है आने दो आफत मिट जाये तो मन मत घबराने दो मृत्यु से अंत नहीं, प्राण मुखर होते है देह बदल जाने दो खेल खेल मे जब खिलौनी टूट जाता है बालक रो देता है, ज्ञानी मुस्कुराता है है आत्मा के जौहरी को इस बात का फर्क कहां कौन जन्म लेता है, कौन मृत्यु पाता है। मुनिश्री कहा कि जीवन मे धन, दौलत, रूपया, पैसा, नौकरी कमा सको या ना कमो सको। जीवन मे उंचाईयो प्राप्त कर सको या ना करो लेकिन मौत जरूर आएगी। मौत सभी को एक ना दिन आएगी चाहे वो संसारी हो या संयासी। संयासी और संसारी मे केवल इतना ही अंतर है कि जब भी संयासी की मौत आती है तो उसकी मृत्यु साधना मे होती है लेकिन संसारी की मृत्यु वासना के संस्तर पर होती है। विनय कुमार जैन फोटो कैप्षन- बांए से सिद्धेष्वर मुनि जी,विवेक मुनिजी, राश्टसत मुनिश्री पुलकसागर जी गुरूदेव, मुनिश्री प्रसंगसागर जी महाराज

pulaksagar

राष्टसंत मुनिश्री पुलकसागर जी महाराज अभी कैलाषनगर गली नं.12 स्थित श्री दिगम्बर जैन मंदिर मे प्रवासरत है। मुनिश्री का यहां प्रवास 30 जून तक रहेगा। भोलानाथनगर मे चातुर्मास हेतु भव्य मंगल प्रवेष 1 जुलाई को प्रातः 7 बजे होगा। प्रस्तुत है मुनिश्री पुलकसागर जी गुरूदेव से भेटवार्ता
प्रष्नः- हथियार के प्रहार से भी ज्यादा पीड़ादायक क्या है? मुनिश्री:-उपेक्षाए प्रष्न:-सच्चा पछतावा कब होता है? मुनिश्री:- जब हमे पता चलता है कि हम गलत थे। प्रष्न:-क्या जहां लहू के संबंध होते है वहां प्रेम होता ही है? मुनिश्री:-प्रेम का संबंध लहू से नहीं आत्मीयता व विश्वास से होता है। प्रष्न:-अपने ऊपर होने वाले अन्याय से कैसे बचे? मुनिश्री:-यदि तुम्हें लगता है कि सचमुच ही मुझ पर अन्याय हो रहा है तो मेरी राय है अन्याय करना व सहना दोनो ही अपराध है उनका डटकर मुकाबला करो। प्रष्न:-अहंकार का मेरू कैसे पिघला सकते है? मुनिश्री:-दिन मे एक बार समय निकालकर किसी जलती चिता या अर्थी को देख लिया करो। प्रष्न:-माता पिता के भूतकाल के उपकार एवं वर्तमान के चिड़चिड़े स्वभाव के साथ स्वस्थतापूर्वक कैसे जिया जाये? मुनिश्री:-याद करो जब बचपन मे तुम चिड़चिड़े थे तब भी माता पिता तुम्हें प्यार करते थे आज जब वो चिड़चिडे है तब भी उनका तुम्हें सम्मान करना चाहिये। प्रष्न:-जीवन मे सतत प्रसन्नता का अनुभव करने हेतु क्या करना चाहिये? मुनिश्री:-हर परिस्थिती मे अपने आपको सौभाग्यशाली महसूस करे। सोचे कि मै किस्मत वाला हॅू जो मनुष्य बना हॅू। प्रष्न:-हृदय की भाषा व बुद्धि की भाषा मे क्या अंतर है?
मुनिश्री:-हृदय आदमी को भावुक करता है और बुद्धि तर्क पैदा करती है। प्रष्न:-अपने एकलव्य जैसे भक्तो के लिए आपका क्या संदेश हो सकता है? मुनिश्री:- मेरे एकलव्य भक्तो! मै तुम्हें विश्वास दिलाता हॅू कि मै वह द्रोणाचार्य नहीं बनूंगा जो तुमसे तुम्हारा अंगूठा मांग लूंगा। मगर हां तुम्हें जरूरत पड़े तो मेरा अंगूठा मांग लेना। प्रष्न:-व्यक्ति के मन मे पल-पल अत्यंत अशुभ विचार क्यो आते है? मुनिश्री:-जब किसी व्यक्ति का अतीत गहन अशुभ मे बीतता है तो वही अशुभ अतीत उसे अपनी ओर खीचता है और अशुभ विचार उठने लगते है। प्रष्न:-अच्छा लगना या चाहने मे क्या अंतर है? मुनिश्री:- चाहत का जन्म अच्छे की कोख से होता है इसलिए दोनो मे फर्क न करके आगाढ़ संबंध समझना चाहिये। प्रष्न:-माता पिता एवं गुरू को धन्यवाद किस प्रकार दिया जा सकता है? मुनिश्री:- जीवन भर माता पिता की सेवा एवं गुरू की आज्ञा का पालन करो। प्रष्न:-अदालत पर गीता पर हाथ रखकर कसम क्यो खिलाई जाती है? मुनिश्री:- अदालत मे सिवाय लड़ाई के कुछ नहीं होता और गीता का जन्म लड़ाई के मैदान मे ही हुआ है। प्रष्न:-समस्या ग्रसित वर्तमान सामाजिक परिवेश का सजीव चित्रण कैसे कर लेते है? मुनिश्री:- मै कैमरे की तरह समाज की समस्याओं को टकटकी लगाकर देखता हॅू और जब प्रवचन सभा रूपी डी.व्ही.डी. से मेरा कनेक्शन हो जाता है तो मै जो देखता हॅू उसे दिखा देता हॅू। प्रष्न:-आपके जीवन का अद्भुत व आद्वितीय क्षण कौन सा है? मुनिश्री:- मेरी साधना के हर पल आद्वितीय और अद्भुत है। प्रष्न:-भू-गर्भ से प्रतिमाओं का मिलना क्या वाकई चमत्कार है? मुनिश्री:- प्रतिमा चमत्कार है या नहीं ऐ तो नहीं कह सकता पर जो प्रतिमा निकालता है उसकी वाह-वाह का चमत्कार जरूर हो जाता है। प्रष्न:-इंसान को खाने व पीने जैसी कौन सी चीजे है? मुनिश्री:- आज के परिवेश मे खाने के लिए दूसरो की दोलत पीने के लिए अपनो का खून यह चाहिये कि खाने के लिए अपनी बुराईयां और पीने के लिए दूसरी की कमजोरियां होना चाहिये। प्रष्न:-लगातार पांच पंचकल्याणक क्या शतक लगाने की तैयारी? मुनिश्री:- शतक तो नहीं लगाना है पर मै यह सोचता हॅू कि शायद मै भगवान को अच्छा लगने लगा हॅू और उनका कृपा पात्र बन गया हॅू। प्रष्न:-गुरूदेव हमे जीवन मे क्या संग्रहण करना चाहिये? मुनिश्री:-हमे जीवन मे वह संग्रहण करना चाहिये जो दूसरो के लिए आदर्श बने। प्रष्न:-सच्चा तपस्वी आप किसे कहेगे? मुनिश्री:- जो समाज की नहीं अपनी नजरो मे ईमानदार हो। जो अपने संयास के प्रति वफादार हो। प्रष्न:-विचारो की उथल-पुथल को कैसे शांत करे? मुनिश्रीः- जिसके प्रति विचारो मे उथल-पुथल है उसके साथ पल भर भी देर किये बिना अपने विचारो को रखने से। gDw1tujNI/AAAAAAAAAcY/GWDWT5kr4og/s1600/1.jpg" imageanchor="1" style="clear:left; float:left;margin-right:1em; margin-bottom:1em"> ः-विनय कुमार जैन

बुधवार, 13 जून 2012

janam jra mratu bimari hai- muni pulaksagar

जन्म जरा मृत्यु बिमारी है -मुनि पुलकसागर 14 जून 2012 वे कर्म वर्गणाएॅ जो राग द्वेश के निमित्त से आत्मप्रदेशो के साथ मिलकर कर्म रूप परिणत होकर जीव के आत्म स्वभाव को ढक देती है। उन कार्माण वर्गणाओं को कर्म कहते है। उक्त पवित्र विचार राष्टसंत मुनिश्री पुलकसागर जी महाराज ने आज गुरूवार को न्यू रोहतक रोड मे नवहिंद पब्लिक स्कूल ऑडिटोरियम मे आयोजित मां जिनवाणी शिक्षण षिविर के पांचवे दिवस पर शिविरार्थियो को संबोधित करते हुए व्यक्त किए। मुनिश्री ने आगे शिविरार्थियों को संबोधित करते हुए कहा कि कर्म आठ प्रकार के होते है,ज्ञानावरणी,दर्शनावरणी,वेदनीय,मोहनीय,आयु,नाम,गोत्र और अंतराय। मुनिश्री ने कहा कि जिस कर्म के उदय से आत्मा के ज्ञान के गुण ढंक जाते है उन्हें ज्ञानावरणी कर्म कहते है। किसी ज्ञान के ज्ञान मे विघ्न डालने से पुस्तक फाडने से ,छिपा देने से ज्ञान का गर्व करने से जिनवाणी मे संशय करने से ज्ञानावररणी कर्म का बंध होता है। जो कर्म आत्मा के दर्शन गुण को ढंकता है अर्थात प्रकट होने नहीं देता है उसे दर्शनावरणी कर्म कहते है,जिन दर्शन मे विघ्न डालना, किसी की आंख फोड देना, मुनियों को देखकर घृणा आदि करने से दर्शनावरणी के कर्म का बंध होता है। मुनिश्री ने कहा कि जो कर्म हमे सुख दुख का वेदन करता है अर्थात अनुभव कराता है उसे वेदननीय कर्म कहते है। अपने व दूसरो के विषय में दुख करना,शोक करना रोग,पशुवध आदि असाता वेदनीय कर्म बंध के कारण है एवं दया करना,दान देना, संयम पालना, व्रत पालना, आदि साता वेदनीय कर्म के बंध के कारण है। मुनिश्री ने मोहनीय कर्म की परिभाषा देते हुए कहा कि जिस कर्म के उदय से आत्मा के सम्यक्त्व और चारित्र गुण का घात होता है। सच्चे देव शास्त्र गुरू और धर्म मे दोष लगाना मिथ्या देव शास्त्र गुरू की प्रशंसा करना, क्रोधादि कषाय करना, राग द्वेष करना मोहनीय कर्म के बंध का कारण है। मुनिश्री ने कहा कि जिस कर्म के उदय से जीव को चारो गतियों में से किसी एक गति में निश्चित समय तक रहना पडता है,उसे आयु कर्म कहते है। बहुत हिंसा करना, बहुत आरंभ करना,परिग्रह रखना,छल कपट करना, अशुभ आयु कर्म के बंध के कारण है, और व्रत पालन करना, शांतिपूर्वक दुख सहना आदि शुभ आयु कर्म के बंध के कारण है। नाम कर्म की को शिविरार्थियो को समझाते हुए कहा कि नाम कर्म के उदय से शरीर की प्राप्ती होती है। मन, वचन, काय को सरल रखना, धर्मात्मा को देखकर खुश होना, धोखा नहीं करना, शुभ नाम कर्म का कारण है। एवं त्रियोग कुटिल रखना, दूसरो को देखकर हंसना, उसी की नकल करना आदि अशुभ नामकर्म का कारण है। मुनिश्री ने गोत्र कर्म को समझाते हुए कहा कि गोत्र कर्म के उदय से प्राणी उच्च नीच कुल मे जन्म लेता है, उसे गोत्र कर्म कहते है। अपने गुण और दूसरों के अवगुण प्रकट करना, अष्ट मद करना, आदि नीच गोत्र का कारण है। एवं दूसरो के गुण और अपने अवगुण प्रकट करना अष्ट मद नहीं करना उच्च गोत्र कर्म का कारण है। मुनिश्री ने अंतिम कर्म अंतराय कर्म को समझाते हुए कहा कि जो कर्म दान,लाभ भोग,उपभोग, और शक्ति में विघ्न डालता है उसे अंतराय कर्म कहते है। मुनिश्री ने कहा कि दान देने से रोक देना, आश्रितों को धर्म साधन नहीं देना, किसी की मांगी वस्तु को नहीं देना, आदि अंतराय कर्म के कारण है। विनय कुमार जैन

मंगलवार, 12 जून 2012

pooja sadev adhik guno walo ki hoti hai -muni pulaksagar

पूजा सदैव अधिक गुणों वालो की होती है- मुनि पुलकसागर 12 जून 2012 दिल्ली, कभी अपने आप से प्रश्न करना की मै कौन हॅू आप चमडी हो, खून हो, मांस हो, हड्डी तुम हो। अगर इनमे से तुम कुछ हो तो इनके क्षतिग्रस्त हो जाने पर हम मरते नही है इसलिए इनमे से तुम कुछ भी नहीं हो। उक्त प्रेरक विचार राष्टसंत मुनिश्री पुलकसागर जी महाराज ने मंगलवार को न्यू रोहतक रोड स्थित नवहिंद पब्लिक स्कूल के ऑडिटोरियम मे आयोजित मां जिनवाणी शिक्षण शिविर के तृतीय दिवस पर शिविरार्थियों को संबोधित करते हुए व्यक्त किए। उन्होंने शिविरार्थियो को संबोधित करते हुए आगे कहा कि अपना हाथ किसी को क्षति पहुंचा सकता है और करूणा, आशीर्वाद भी बन जाता है, शरीर भी बोलता है केवल जुवान नही बोलती हैं। यही हाथ शराब भी ले सकता है और गंधोदक भी ले सकता है। हमारा हाथ क्या ग्रहण करेगा उसको जो यह आदेश देता है वह तुम हो। जो आंखे देख रही है वह तुम नही हो अपितु जो उन आंखो मे देखने की शक्ति प्रदान कर रहा है वह तुम हो। मुनिश्री ने आगे शिविरार्थियो को संबोधित करते हुए कहा कि याद रखना मुर्दे भोजन ग्रहण नहीं करते केवल जीवित इंसान ही भोजन ग्रहण कर सकते है। दुनिया मे सारा खेल शक्तियों का है और मानव शरीर मे सारी खेल आत्मा का है। शक्तिविहीन कुछ भी कार्य करने मे असमर्थ होता है उसी प्रकार जब आत्मा हमारे शरीर से निकल जाती है तो शरीर भी कुछ काम का नही होता है। मुनिश्री ने कहा कि संसारी भी मै हॅू, मोक्ष जाने वाला भी मै हॅू, मै ही नर्क गति, स्वर्ग गति को प्राप्त करता हॅू। मै ही कर्मो का बंध करने वाला और नाश करने वाला हॅू। भीतर जो शक्ति है पावर है वह आत्मा है। आत्मा अलग से कोई वस्तु नहीं है भीतर की उर्जा की आत्मा है। मै निज मे रहने वाला हूॅ पर से मेरा संबंध नहीं। मुनिश्री ने आत्मा के अस्तित्व को उदाहरण के द्वारा समझाते हुए कहा कि वायर के अंदर पावर है जिससे आपके टी व्ही पंखे कूलर चल रहे है लेकिन वह पावर दिखता नहीं है। दिखता नही है फिर भी होता है, वैसी ही हमारी आत्मा दिखती नहीं है लेकिन होती है, आत्मा से ही शरीर से उर्जा मिलती है, आत्मा के द्वारा ही हमे सुख, दुख, की अनुभूति होती है। मुनिश्री ने कहा कि अधिक गुण वाला कम गुण वाले को अपने जैसे बना लेता है। जिस प्रकार लोहे के टुकडे को चुम्बक बनाने के लिए उसको चुम्बक के पास रखना पडता है, जब तक लोहे का टुकडा चुम्बक की शरण मे नहीं आएगा तब तक वह चुम्बक नही बन पाएगा। इसी प्रकार जब तक तुम भगवान के निकट नहीं आओगे तो तुम भी भगवान नहीं बन पाओगे। दूर रहोगे तो उनकी पावर तुम तक नहीं आ पाएगी। मुनिश्री ने कहा कि तुम जैन तो लेकिन जैनी बनने के लिए तुम्हें भगवान जिनेन्द्र के पास जाना पडेगा।

गुरुवार, 7 जून 2012

adhmari samaj poori tarah se mar jaye- muni pulaksagar


अधमरी समाज पूरी तरह से मर जाए या जिंदा हो जाये- मुनि पुलकसागर कुछ काम करके जाना दुनिया मे आने वाले जाते है लाखो लोग बेकार खाने वाले। दिल्ली 8 जून 2012 जो समय एक बार हाथ से निकल जाता है वह दोबारा लौटकर नही आता, एक बार दिन गुजर जाता है या रात बीत जाती है तो वह फिर से वापिस नहीं आती। समय किसी का नौकर नही है बल्कि समय ने सारी दुनिया को अपना नौकर बना रखा है। उक्त प्रेरक विचार राष्टसंत मुनिश्री पुलकसागर जी महाराज ने शुक्रवार को नवहिन्द पब्लिक स्कूल के ऑडिटोरिय मे आयोजित तीन दिवसीय ज्ञान गंगा महोत्सव के द्वितीय दिवस पर श्रावको को संबोधित करते हुए व्यक्त किए। उन्हांेने धर्मसभा को संबोधित करते हुए आगे कहा कि लोग कहते हे कि मै समय काट रहा हॅू बल्कि सच तो यह है कि समय हमारी जिंदगी को काट रहा है। समय सोते जागते अपना काम करता रहता है हर पल हमारी मुठ्ठी से रेत की तरह खिसकता जा रहा है, इसलिए समय की कीमत समझो, नादान होते है वे लोग जो समय की कीमत नही समझते। मुनिश्री ने जीवन के तीन आयाम बचपन, जवानी और बुढापे की तुलना घडी के कांटो से करते हुए कहा कि आपने कभी ख्याल किया घडी मे तीन कांटे हाते है सेकेण्ड, मिनिट और घंटे का। सेकेण्ड का कांटा पतला होता है वह बहत तेज भागता, मिनिट का कांटा चलता है भागता नही है और तीसरा कांटा घंटे का होता है जो ना तो भागता है और ना चलते हुए दिखता है। हमारा बचपन भी सेकण्ड के कांटे की तरह होता है जो जल्दी बीत जाता है, बचपन कैसे बीत जाता है पता ही नहीं चलता है, जवानी मिनिट के कांटे की तरह होती है और बुढापा घंटे की कांटे की तरह होता है जो बहुत धीमा घिसकता है। बस घडी की तरह हमारी जिंदगी होती है। बचपन जवानी कब चली जाताी है पता नही चलता है लेकिन बुढापा घिसट घिसट कर अपनी यात्रा पूरी करती है। मुनिश्री ने जीवन जीवन को परीक्षा पेपर बताते हुए कहा कि आप जब कभी परीक्षा देने जाते तो वह पेपर तीन घंटे का होता है। पहला घंटा जब होता है तो घंटी बजती है वह हमे याद दिलाता है कि दो घंटे बचे है लिखने की स्पीट बढा दो। दो घंटे बीत जाने के बाद सिर्फ एक घंटे बाकी है रिविजन कर लो। और तीसरा घंटा बजने के बाद कुछ भी शेष नही बचता है, हमारी जिंदगी के परीक्षा मे भी तीन घंटे होते है बचपन जवानी और बुढापा जब हमारी तीसरे पन का घंटा बजता है तो यमराज रूपी परीक्षक आता है और जिंदगी का पेपर छीनकर ले जाता है। मुनिश्री ने कहा कि बचपन अपने साथ जवानी को लाता है, जवानी बुढ़ापे को साथ लाती है लेकिन ध्यान रखना बुढापे के बाद कुछ नहीं आता है केवल मौत ही आती है। इस दुनिया मे जिसने भी जन्म लिया है उसको एक दिन इस दुनिया से जाना पडेगा चाहे वह राजा हो या रंक। सभी को एक दिन इस दुनिया से जाना है। लेकिन आपने इस बात पर कभी गौर किया की किसी किसी के जीवन मे जन्म से लेकर मृत्यु तक के बीच मे ऐसा क्या घट जाता है कि उस व्यक्ति को सारी दुनिया जानती है। मुनिश्री ने जीवन मे सफलता के सूत्र के रहस्य का उद्घाटन करते हुए कहा कि जितना भी समय मिला है उसमे कुछ ऐसा कार्य करो ताकि दुनिया तुम्हें याद रखे। मुनिश्री ने उदाहरण के द्वारा समझाया कि आज से 2600 साल पहले हुए भगवान महावीर की मॉ त्रिशला को सभी जानते है, लेकिन आप लोग तो उनसे कभी नही मिले फिर उन्हें पूरा जानता हो जब की पडोस मे रहने वाले को नही जानते। दोनो मे अंतर इतना है कि उन्होने जीवन मे ऐसा कार्य किया है जिनसे सारी दुनिया जानती है। तुम भी अपने जीवन मे ऐसे कार्य करके जाओ कि दुनिया भी हजारो वर्षो तक याद रखे। मुनिश्री ने महापुरूषो के सुकृत्यों के माध्यम से श्रद्धालुओं को उपदेश देते हुए कहा कि डॉ भीमराव अम्बेडकर ने भारत का सविधान, आचार्य कुंदकुंद, गौतम गणधर को उनकी लेखनी के कारण दुनिया उन्हें याद किया करती है। भगवान महावीर, भगवान राम ने कुछ नहीं लिखा लेकिन उन्होंने ऐसे कृत्य किये है जिससे उनके चरित्र को समेटने के लिए हजारो पृष्ठ के ग्रंथ भी कम पडते है। दुनिया मे अपना नाम अमर करने का एक ही सूत्र है कि कुछ लिख जाओ या कुछ ऐसा करके जाओ कि दुनिया तुम पर कुछ लिखने लगे। दुनिया मे राम और रावण दोनो का याद किया जाता है लेकिन जब रावण को याद किया जाता है तो पुतले जलाएं जाते है और जब राम को याद किया जाता है तो मंदिर बनाएं जाते है। मुनिश्री ने अधमरे लोगो को समाज के विकास का अवरोध मानते हुए कहा कि अधमरा आदमी दुनिया का सबसे खतरनाक होता है आदमी अधमरा न जिएं उन्हें मर जाना चाहिए मर जाएंगे तो नई समाज का निर्माण हो जाएगा। आज समाज का विकास इन्हीं अधमरे लोगो के कारण ही रूका हुआ है। यह अधमरा समाज पूरी तरह से जिंदा हो जाये या पूरी तरह से मर जाये। परिवार, समाज व राष्ट का विकास तभी हो पाएगा जब समाज इन अधमरे लोगो से मुक्त होगी। याद रखना पानी 100 डिग्री के तापमान पर ही भाप बनती है गुनगुना पानी कभी भाप नही बनता है। विनय कुमार जैन संघस्थ प्रवक्ता 9910938969

arakshan band kro-vinay jain


बुधवार, 6 जून 2012

jeevan me moska pane ka lakshya banao- muni pulak sagar

जीवन मे मोक्ष पाने का लक्ष्य बनाओं-मुनि पुलकसागर 7 जून से 10 जून तक बहेगी ज्ञान गंगा न्यू रोहतक रोड मे जून 6 मई 2012 रात को भी दिन निकल सकता है,दिन को भी रात हो सकती है,लोग कहते है,समय से पहले और भाग्य से अधिक किसी को कुछ नहीं मिलता लेकिन मेरी श्रद्धा कहती है कि गुरू की कृपा हो जाए तो समय से पहले और भाग्य से अधिक भी मिल सकता है। उक्त विचार राष्टसंत मुनिश्री पुलकसागर जी महाराज ने आज छप्परवाला दिगम्बर जैन मंदिर के हॉल मे श्रावकों को संबोधित करते हुए व्यक्त किए। गुरू के महत्व को प्रतिपादित करते हुए मुनिश्री ने धर्मसभा को संबोधित करते हुए आगे कहा कि गुरू की कृपा से भौतिक सुख-संपदा तो छोड़ो मोक्ष लक्ष्मी को भी प्राप्त किया जा सकता है। मुनिश्री ने कहा कि भगवान की मूर्ति मौन है,शास्त्र मौन है आप जैसा चाहे अर्थ लगा सकते हो पर गुरू मौन नहीं होते है वे मुखर होते है जो तुम्हारे अहंकार पर चोट करते है। याद रखना साधू वही होता है जो तुम्हारे अहंकार पर चोट करे। साधू वह नहीं होता जो तुम्हारे अहंकार की पुश्टि करे। याद रखना मंदिर की मूर्ति कुछ समय पहले तक सड़क का पत्थर हुआ करता है लेकिन जब उस पर किसी शिल्पी की नजर पडती है तो मूर्ति का रूप ले लेता है लेकिन कोई सद्गुरू ही होता है जो उसमे भगवत्ता को प्रकट कर दिया करता है। मुनिश्री ने जीवन मे लक्ष्य बनाने की सीख देते हुए कहा कि हर व्यक्ति के जीवन मे एक न एक लक्ष्य अवश्य होना चाहिए,बिना लक्ष्य के जीवन मे उंचाईयॉ हासिल नहीं हो सकती है। यहां पर जितने भी लोग बैठे है सबका कोई ना कोई लक्ष्य अवश्य होगा। विद्यार्थीयों का लक्ष्य परीक्षा मे सफलता,व्यापारी का पैसा कमाना लक्ष्य हो सकता है लेकिन मै एक बात आपसे बड़ी विन्रमता के साथ कहना चाहता हॅू कि यह लक्ष्य तो चिता के साथ जलकर भस्म हो जाएगे,अगर जीवन मे लक्ष्य बनाना ही है तो निर्वाण को अपना लक्ष्य बनाओ, मोक्ष को अपना लक्ष्य बनाओ। संघस्थ प्रवक्ता विनय कुमार जैन ने बताया कि मुनिश्री पुलकसागर जी महाराज के सानिध्य मे न्यू रोहतक रोड मे 7 जून से 9 जून तक ज्ञान गंगा प्रवचन का आयोजन होगा तथा 10 जून से 17 जून मां जिनवाणी शिक्षण षिविर के तृतीय भाग का आयोजन किया जाएगा। मां जिनवाणी शिक्षण शिविर के फार्म श्री दिगम्बर जैन मंदिर न्यू रोहतक रोड मे प्राप्त किये जा सकते है।

रविवार, 3 जून 2012

santhi man ki sabse badi dolat- muni pulaksagar

षांति मन की सबसे बडी संपदा-मुनि पुलकसागर मुनिश्री 3 जून तक त्रिनगर मे
दिल्ली 3 जून 2012 मन की षांति संपदा सबसे बडी संपदा और अषांति सबसे बडी दरिद्रता है, षांति जीवन में है जीवन स्वर्ग नहीं तो नर्क के समान होता है, जीवन मे अगर षांति है तो अभावो मे आनंद बरसता है, यदि अषांति हुई तो साधन होने के बाद भी जीवन मे आनंद नही होता है। उक्त विचार राश्ट्रसंत मुनिश्री पुलकसागर जी महाराज ने त्रिनगर स्थित जैन धर्मषाला के हॉल मे रविवार को श्रावको को संबोधित करते हुए व्यक्त किए। इससे पूर्व षनिवार की षाम को षास्त्री नगर मे ष्वेताम्बर साध्वियो मे संसघ जैन धर्मषाला मे पधारकर मुनिश्री से आषीर्वाद प्राप्त कर तत्व चर्चा की। मुनिश्री ने धर्मसभा को संबोधित करते हुए आगे कहा कि जहां षांति होती है वही सच्चा धर्म होता है और जहां अषांति होती है वही अधर्म होता है। यदि आपके पास सब कुछ है और षांति नही है तो जीवन व्यर्थ है। मुनिश्री ने षांति को षीतलता का सरोवर बताते हुए कहा कि षांति तो षीतलता का वेा सरोवर है जिसके तट पर हर राहगीर बैठकर षीतलता प्राप्त करना चाहता है और अषंाति पेड के ठूंठ की तरह है जिस पर न तो पुश्प है और न हरी पत्तियॉ इसलिए कोई भी उसके पास जाना नही चाहता। मुनिश्री ने कहा कि सरोवर मे तपन के बाद सूख जाता है तो उसमे दरारे पड जाती है मन भी हमारा सरोवर के समान है अगर इसमे दरारे पड गई तो परिवार बिखर जाएगा। याद रखना सावन आने पर सरोवर की दरारें तो भर जाती है लेकिन मन मे आई दरारें कभी नहीं भरती। विनय कुमार जैन 9910938969