शनिवार, 28 अप्रैल 2012

मुनिश्री पुलक सागर जी के सानिध्य में सूरजमल विहार में धूमधाम से निकली श्रीजी की रथयात्रा एकता ही मेरा मिषन है-मुनि पुलकसागर 29 अप्रैल 2012 आज से 2600 वर्ष पूर्व इस धरती पर भगवान महावीर का अवतरण हुआ था जब से लेकर अब तक हम कई खण्डो मे विभाजित हो गये। कई पंथो,सम्प्रदायो मे बंट गये। इन 2600 वर्षो मे
जैन समाज टूटा ही है आज जरूरत है कि हम एकता का परिचय दे। उक्त विचार मुनिश्री पुलकसागर जी महाराज ने रविवार को सूरजमल विहार मे 7 वी रथयात्रा के अवसर पर श्रद्धालुओं को संबोधित करते हुए व्यक्त किए। इस अवसर पर बैण्ड बाजों के साथ षोभायात्रा निकाली गई जिसमे रथ पर श्री जी को विराजमान किया गया। षोभयात्रा कॉलोनी के विभिन्न मार्गो से होते हुए वापिस जैन मंदिर के समीप निर्मित पाण्डाल मे पहुंची जहां जाकर धर्मसभा मे परिवर्तित हंो गई। इस अवसर पर मुनिश्री पुलकसागर जी गुरूदेव ने अपने अमृतमयी वचनों से लोगो की ज्ञान की प्यास को संतृत्प किया। मुनिश्री आगे धर्मसभा को संबोधित करते हुए कहा कि अपने पंथ,सम्प्रदाय को मंदिरो तक सीमित रखे और जैन कहलाने मे गौरव महसूस करे। आए 2600 वर्षो मे जितना विखराव हुआ आगामी 2़6 वर्षो मे एकता के साथ रह ले। अगर हम 26 वर्ष तक एकता के साथ रह लिये तो 2600 वर्षो के विखराव के नुकसान की भरपाई आराम से कर पायेगे। मेरा यही मिशन है कि सब एक हो,एकता के सूत्र मे बंधे। एकता का पाठ पढ़ाते हुए मुनिश्री ने कहा कि कहते है भगवान महावीर जहां तपस्या किया करते थे वहां शेर और गाय एक घाट पर पानी पिया करते थे। मुझमे इतना सक्षम तो नही लेकिन मै जिस शहर या नगर मे जाता हॅू,वहां पर होने वाली मेरी सभाओ मे कौन हिन्दु है कौन मुसलमान है और कौन जैन है इसकी पहचान मुश्किल हो जाया करती है। एकता ही मेरा मिशन है मेरा उद्देश्य है। अगर आपका दूसरे मजहब के प्रति आस्था या श्रद्धा के भाव नही है तो मत करो उनकी भक्ति मगर याद रखो जब भी किसी देवस्थान या आस्था के केन्द्र के सामने से गुजरो तो अपने अहंकार को त्यागकर के गुजरो क्योकि वो भी किसी की आस्था का,श्रद्धा का केन्द्र हुआ करता है। मुनिश्री ने कहा कि हमसे अच्छे तो वे पंरिेदे होते है जो कभी मंदिर पर तो कभी मस्जिद पर बैठा करते है। मुनिश्री ने अहिंसा की सूक्ष्म परिभाशा देते हुए कहा कि केवल चिटी,कीड़े मकोड़े की रक्षा करना ही अहिंसा नही है। बल्कि वैचारिक अहिंसा का होना भी बहुत जरूरी है। भगवान महावीर ने द्रव्य हिंसा से ज्यादा भाव हिंसा को महत्व दिया है। मुनिश्री ने गांधी जी के तीन बंदरो का उदाहरण देते हुए कहा कि-गांधी जी के तीन बंदर थे जिनका कहना था कि बुरा मत देखो,बुरा मत सुनो,और बुरा मत बोलो। भगवान महावीर ने भी एक बंदर का जिक्र किया है जो अपनी छाती पर हाथ रखे हुए है और कहा रहा है बुरा मत सोचो। जो आदमी बुरा नही सोचता वो न तो बुरा देखेगा,न बुरा सुनेगा और न ही बुरा बोलेगा। विनय कुमार जैन

जैन धर्म-मॉल अच्छा पैंकिग खराब- muni pulaksagar

मुनिश्री पुलकसागर जी महाराज सूरजमल विहार मंे 29 को रथयात्रा जैन धर्म-मॉल अच्छा पैंकिग खराब-मुनिश्री पुलकसागर जी दिल्ली 28 अप्रैल 2012 राश्टसंत मुनिश्री पुलकसागर जी महाराज एवं मुनिश्री प्रसंगसागर जी महाराज का आज सूरजमल विहार मे भव्य आगमन हुआ यहां पर इनका दो दिवसीय प्रवास है। सकल जैन समाज के श्रद्धालुओं ने मुनिद्वय की आरती एवं पादप्रक्षालन कर आषीर्वाद प्राप्त किया। इस अवसर पर मुनिश्री ने धर्मसभा को संबोधित किया। जो कार्य कर चुके हो वह फिर से करने का कोई महत्व नहीं होता है महत्व तो उस कार्य का होता है जो तुमने आज तक न किया हो। इतिहास भी उन्हीं के बनते है जिन्होंने कुछ अलग हट के कार्य किया हो। छोटे कार्यो से नहीं बडे़ कार्यो से इंसान की पहचान बनती है। याद रखना अगर जीवन मे उपलब्ध्यिॉ हासिल करना चाहते हो तो अपने हौसलो को भी बुलंद रखिएं। उक्त प्रेरक विचार राश्टसंत मुनिश्री पुलकसागर जी महाराज ने सूरजमल विहार स्थित दिगम्बर जैन मंदिर के हॉल मे धर्मसभा को संबोधित करते हुए व्यक्त किए। माल अच्छा पैकिंग घटिया- मुनिश्री ने धर्मप्रभावना का उपदेष देते हुए धर्म को जीवित रखने के लिए इसका प्रचार प्रसार करना बहुत जरूरी है, तभी तो तीर्थकर जब उपदेष देते है तो उनका समवषरण जंगल मे लगकर षहरों मे लगा करता था,भगवान की दिव्य देषना को सुनने के लिए मात्र जैन ही नहीं अपितु चारो गतियों के जीव समवषरण मे उपस्थित होकर स्वयं का कल्याण किया करते थे। वर्तमान परिपेक्ष्य मे भी जैन धर्म के प्रचार प्रसार की बहुत जरूरत है। मुनिश्री ने चुटकी लेते हुए कहा कि जैन धर्म के पास माल‘धर्म’ तो बहुत अच्छा है लेकिन इसकी पैकिंग खराब है। सातवीं रथयात्रा मुनिश्री के सानिध्य मे- संघस्थ प्रवक्ता विनय कुमार जैन ने बताया कि मुनिश्री पुलकसागर जी महाराज एवं मुनिश्री प्रसंगसागर जी महाराज के पावन सानिध्य मे रविवार 29 अप्रैल 2012 को प्रातः 8 बजे सूरजमल विहार मे वृहद रथयात्रा का आयोजन किया जा रहा है। रथयात्रा जैन मंदिर से षुरू होकर कॉलोनी के विभिन्न मार्गो से होते हुए वापिस सूरजमल विहार दिगम्बर जैन मंदिर पहुंचेगी जहां पर श्री जी का अभिशेक एवं मुनिश्री पुलकसागर जी महाराज के मंगलमयी उद्बोधन होगे।

गुरुवार, 26 अप्रैल 2012

कर्मो का फल जरूर भोगना पड़ता है- muni pulak sagar

मुनिश्री पुलकसागर जी महाराज ऋशभ विहार मे मुनिश्री कॉलोनी कॉलोनी मे जाकर बहा रहे है आध्यात्म की गंगा
दिल्ली 26 अप्रैल 2012 राश्टसंत मुनिश्री पुलकसागर जी महाराज एवं मुनिश्री प्रसंगसागर जी महाराज का आज ऋशभविहार मे भव्य आगमन हुआ यहां पर इनका दो दिवसीय प्रवास है। सकल जैन समाज के श्रद्धालुओं ने मुनिद्वय की आरती एवं पादप्रक्षालन कर आषीर्वाद प्राप्त किया। इस अवसर पर मुनिश्री ने धर्मसभा को संबोधित किया। मुनिश्री पुलकसागर जी महाराज ने धर्मसभा को संबोधित करते हुए कहा कि पागलखाने मे एक पागल व्यक्ति पत्र लिख रहा था उससे किसी ने पूछा कि भाई पत्र मे क्या लिख रहे हो,उसने कहा पता नहीं। पागल ने कहा कि मै अभी पत्र लिख रहा हॅू फिर से लिफापे मे बंद करके लेटर बॉक्स मे अपने ही पते पर डालूॅगा फिर जब यह लेटर मेरे ही पास आएगा तब पढूंगा कि इसमे क्या लिखा है। मान्यवर तुम भी तो यही कर रहे हो,सुबह से षाम तक कर्मो का पत्र लिखते रहते हो, तुम्हें पता ही नहीं चलता कि तुम किस प्रकार के कर्म कर रहे हो,तुम्हें तो पता जब चलता है जब कर्माे का फल तुम्हारे सामने आता है। याद रखना जीवन मे कुछ मिले ना मिले लेकिन कर्मो का फल जरूर भोगना पड़ता है। मुनिश्री का मानना है कि आज जैन समाज के श्रद्धालूगण अपनी पहचान भूलते जा रहे है,वे धर्म व संस्कृति से दूर हो रहे है। याद रखना वह संस्कृति व धर्म ज्यादा दिन जिंदा नहीं रहते जिसके मानने वाले लोग उसे भूलने लगते है। मुनिश्री ने ही अपने इस बार के दिल्ली प्रवास मे यहां के श्रद्धालुओं को जैन धर्म एवं आगम की सुगम व सरल व्याख्या करके लोगो को सत्पथ पर लाने का प्रयास कर रहे है। मुनिश्री अभी जिस भी कॉलोनी मे प्रवास करते है वहां पर आगम पर ही प्रवचन व व्याख्न हो रहे है,हजारो की संख्या मे लोग उमड़े चले आते है। साथ ही दोपहर मे तीन बजे से मूलाचार की कक्षा भी चल रही है जिसमे सैकडो लोग प्रतिदिन उपस्थित हो रहे है।

बुधवार, 25 अप्रैल 2012

vinay jain se khas bat......... जन-जन में लोकप्रिय हो चुके विचार क्रांति,सुधार क्रांति व चरित्र क्रांति के अग्रदूत राश्टसंत मुनि श्री पुलकसागर जी गुरूदेव से आज किसी परिचय के मोहताज नहीं है। कई लोग उनसे मिल चुके है,कई लोग मिडिया अथवा अन्य किसी माध्यम से मुनिश्री से जुड़े है। लेकिन सभी उनके ब्राहृा रूप से परिचित है। उनके उदार दिल में बसी विराट संवेदनांए और भावनाएं अभी भी लोंगो के लिए जिज्ञासा का विशय है। इसी जिज्ञासा को षांत करने के लिए पेष है यह विषेश साक्षात्कार.... प्रष्न आपके जीवन की सबसे बडी खुषी? मुनिश्री- मैं मनुश्य हॅू,भारत मे जन्म मि
ला और संत बना। प्रष्न-जीवन मे सबसे ज्यादा किससे प्रभावित? मुनिश्री-मेरी जन्मदात्री मां गोपीबाई जिन्होंने मुझे धार्मिक संस्कार दिए। प्रष्न-आप किस बात से सबसे ज्यादा डरते है? मुनिश्री- जाने अनजाने मे किसी का अहित न हो जाये। किसी का दिल न दुख जाये। प्रष्न-आपका प्रिय स्वपन क्या है? मुनिश्री- सारी दुनिया परस्पर प्रेम मे रंग जाए। कोई किसी का दुष्मन न हो। प्रष्न-आप कैसे व्यक्ति को पसंद करते है? मुनिश्री-जो संकीर्ण विचारधारा से उपर उठकर उदात्त चिंतन रखता हो। प्रष्न- आप कभी झूठ बोलते है? मुनिश्री- अहिंसा धर्म की रक्षार्थ बोलना पड़े या पवित्र उद्देष्य की पूर्ति मे बोलना पड़ जाए तब, बाद मे अनिर्वाय रूप से प्रायष्चित भी होता है। अन्यथा नहीं। प्रष्न- क्या आप कभी रोते है? मुनिश्री- मैं स्वयं एक बहुत ही संवेदनषील व भावुक हृदय हॅू। संवेदनषीलता के क्षणों मे आंखे डबडबा जाती है। प्रष्न-जिंदगी मे कभी कोई अफसोस होता है? मुनिश्री-हॉ,जब जब स्वार्थ सामने आया,तब तब अफसोस हुआ। प्रष्न-फुर्सत के क्षणों मे आप क्या करते है? उत्तर-एकांत के,अवकाष क्षणों मे मै आत्मचिंतन मनन या मंथन करता हॅू। अपने भक्तगणों के साथ बाते करता हॅू या फिर किताबे पढता हॅू। प्रष्न- आपको किस बात पर हॅसी आती है? मुनिश्री-जब लोग मुझे भगवान मानने लगते हैं जबकि मै साधारण व्यक्ति हॅू। प्रष्न-आपको दूसरे के चरित्र मे क्या पसंद है? मुनिश्री-सच्चाई,ईमानदारी और सरलता। प्रष्न- भारतीय संस्कृति मे आपको कौन सा चरित्र पसंद है? मुनिश्री-प्रथम तीर्थंकर ऋशभदेव,मर्यादा पुरूर्शोत्तम राम,भगवान महावीर और महात्मा गांधी। प्रष्न-आप अपना आदर्ष किसे मानते है? मुनिश्री-आचार्य गुरूवर पुश्पदंतसागर जी महाराज एवं मुनिश्री तरूणसागर जी महाराज। प्रष्न-आध्यात्मिक क्षेत्र मे आप सबसे ज्यादा किससे प्रभावित है? मुनिश्री-आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज की जीवन चर्या और अर्न्तबाह्य एकता से। प्रष्न- देष का सबसे बड़ा दुष्मन किसे मानते है? मुनिश्री-देष के गद्दारो को। प्रष्न- किसी भी देष की उन्नति के लिए आप किन चीजो को महत्वपूर्ण मानेगे? मुनिश्री- चार चीजो को। 1 अपने देष अपनी भाशा और अपनी संस्कृति पर गर्व होना चाहिए। 2 विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी की अच्छी बुनियाद और जीवन के हर क्षेत्र मे इनका इस्तेमान । 3 अर्थव्यव्स्था मजबूत हो। 4 देष की सुरक्षा व्यवस्था मजबूत हो। प्रष्न- धर्म को किससे हानि हो सकती है? मुनिश्री-नकली धर्मात्माओं और कट्टरवाद से। प्रष्न-क्या आप साधना से संतुश्ट है? मुनिश्री-नहीं,हमेषा साधना अधूरी ही लगती है। प्रष्न- आपकी नजर मे आपकी सबसे बडी कमजोरी क्या है जिसने आपको दुखी किया है? मुनिश्री-सभी पर जल्दी विष्वास कर लेना और उसे अपना षुभचिंतक समझने लगना। प्रष्न-आप किस रूप मे याद किया जाना चाहेंगे? मुनिश्री- हर आदमी अपने आपको अच्छे भले आदमी के रूप मे किया जाना पसंद करना चाहूंगा। प्रष्न-पुनर्जन्म लेना हो तो किस रूप मे लेना चाहेगे? मुनिश्री- फिर मनुश्य बनूॅ,फिर संत बनूॅ। मददगार बनूॅ,मुक्तिदूत बनॅू और भारत मे ही पैदा होउॅ। प्रष्न-परेषानी मे किसकी बाते सुनते है? मुनिश्री-अपने दिल की। प्रष्न- आपकी सबसे बडी खासियत? मुनिश्री- आसानी से धोखा खा जाना। प्रष्न- क्या आप भाग्य पर भरोसा करते है? मुनिश्री- पुरूशार्थ के बाद भाग्य पर ही भरोसा करता हॅू। प्रष्न- सुख-दुख के पल किसके साथ बांटते है? मुनिश्री-अपने अच्छे भक्तो के साथं प्रष्न- आपके प्रवचनो का विशय खासकर सामाजिक होता है,क्यो? मुनिश्री- किसी भी आध्यात्मिक बात के लिए आदमी को मानसिक रूप से तैयार होना आवष्यक है,जब तक आदमी अपनी सामाजिक समस्याओं में उलझा रहेंगा पारिवारिक अषांति से ग्रस्त रहेगा,तब तक उसे अध्यात्म की बाते समझ नहीं आ सकती। प्रष्न- आपका मिषन? मुनिश्री- कॉपते अधरो को मुस्कान देना है,जिसके लिए वात्सल्य धाम का सृजन पुश्पगिरि तीर्थ में चल रहा है। प प्रष्न- आपके प्रवचनो का उद्देष्य क्या है? मुनिश्री- सर्वजन हिताय,सर्वजन सुखाय व सत्यम षिवमं सुन्दरम की स्थापना। तृश्णा मरीचिका के पीछे भटकती दुखी आहत मानवता को सुख की राह बताना। प्रष्न-आपकी नजरो मे संत कैसा होना चाहिए? मुनिश्री-समाज व राश्ट को दिषा देने वाला युगधर्म परिचायक होना चाहिए। प्रष्न-भौतिकवाद और आकर्शण के युग मे आप धर्म के क्षेत्र मे कैसे आयें? मुनिश्री- षुरू से ही मेरी रूचि धर्म मे रही है,मेरे पारिवारिक संस्कार से मुझे लगा मेरे जीवन का वास्तविक उद्देष्य धर्म और संस्कृति मे ही निहित है। प्रष्न-वर्तमान मे सामाजिक,सांस्कृतिक विघटन के लिए आप किसे जिम्मेदार मानते है? मुनिश्री- व्यक्तिवाद को। प्रष्न- समाज सुधार की दिषा मे आपके प्रयत्न? मुनिश्री- पदविहार द्वारा जनसंपर्क कर व्यक्तिषः सुधार,धर्मसभाओ व प्रवचनों संस्कार षिविरो व नैतिक षिक्षा द्वारा।

मंगलवार, 24 अप्रैल 2012

संत श्रावक का मन संभालते है-

संत श्रावक का मन संभालते है-मुनि पुलकसागर
दिल्ली 24 अप्रैल 2012 श्रावक संत का तन और संत श्रावक का मन संभाले तभी हमारी श्रमण संस्कृति दीर्घ काल तक अक्षुण्य रह सकती है। साधू-संतो को आहार दान करना उनकी वैयावृत्ति करना श्रावक का परम कर्त्तव्य है एवं जब श्रावक का मन संसार की विशय वासनाओं मे जकड़ने लगे तो संतो का कर्त्तव्य है कि वे उसे सद्मार्ग दिखलायें। उक्त विचार राश्टसंत मुनिश्री पुलकसागर जी महाराज ने मंगलवार को नवीन षाहदरा स्थित जैन धर्मषाला मे व्यक्त किए। मुनिश्री इस समय नवीन षाहदरा मे विराजमान है तथा उनका 25 अप्रैल तक यही प्रवास है। 26 अप्रैल को प्रातः 7 बजे मुनिद्वय ऋशभविहार के लिए मंगल विहार करेंगे। उन्होंने धर्मसभा को संबोधित करते हुए कहा कि आज ही वह पवित्र व पावन दिवस है जब महामुनि ऋशभनाथ की प्रथम पारणा राजा श्रेयांस ने करवाई थी। लोगो को पता नहीं था कि दिगम्बर संत का पड़गाहन किस प्रकार किया जाना चाहिए इसलिए भगवान लगातार छह माह तक विधी न मिलने के कारण निराहार रहे। मुनिश्री ने कहा कि आज भी समाज लोग नवद्या भक्ति को भूलते जा रहे है। अपने बच्चों को वसियत सौपने के साथ साथ नवद्या भक्ति की नसियत भी सौपते जाना ताकि आने वाले समय मे तुम्हारे बच्चे जिनेन्द्र की पूजन एवं मुनियों की भक्ति करते रहे, उनकी सेवा करते रहे।

सोमवार, 23 अप्रैल 2012

pulak vani


क्या कोई गारंटी थी कि

क्या लड़कियो का जन्म गर्भपात,बलात्कार,छेड़छाड़, दहेज की बली चढ़ाने के लिए हुआ है? पिता ने बेटे की चाह मे तीन माह की बेटी को मार डाला मै अभी अभी तो दिल्ली जाने के लिए रेल पर सवार हुआ था,मैने आदत अनुसार यात्रा के लिए कुछ पुस्तके खरीदी। पुस्तक के पेज पलटते जा रहा था मेरा अचानक आफरीन की फोटो पर नजर गई, सिर चकरा गया और एक लंबी सोच मे डूब गया। रेल अपनी गति से मंजिल की ओर आगे भाग रही थी पर मेरा मस्तिश्क अतीत की ओर खिचा चला जा रहा था,कि कितना तरसते है औलाद के लिए जिनकी कोई संतान नहीं होती है, मेरे परिचित मे ऐसे ही एक सज्जन है जिनकी कोई संतान नहीं है,वे कोई बच्चा गोद लेना चाहते है। लेकिन मै तो उस आफरीन के बारे मे सोच रहा था आफरीन नही रही,एक हप्ते तक वह जिंदगी के लिए संघर्श करती रही,एक पल को लगा भी कि वह लड़ाई जीत लेगी,लेकिन वह सुनहरा भ्रम जैसे टूट जाने के लिए ही था,बंगलुरू के एक अस्पताल मे आफरीन ने आखिकार दम तोड दिया। कौन थी बेबी आफरीन कहां से आई थी। कहां चली गई। तीन महिने की नन्ही सी जान जिसे उसके पिता ने बड़ी बेरहमी से मारा था मासूम षरीर पर पिटाई व जलाएं जाने के दर्दनाक निषान थे। आखिर यह किस बात का अपराध की सजा थी। आफरीन की गलती क्या थी। गलतियों की फेहरिस्त बहुत लंबी है,आफरीनों की फेहरिस्त भी कोई कम लंबी नहीं है,बंगलुरू के एक मामूली बढ़ई 22 वर्शीय फारूख और 19 साल की रेषमा बनाू के घर पैदा हुई आफरीन की गलती यह थी कि वह लडका बनकर पैदा नहीं हुई और उसके पिता को इस देष के अधिकांष मर्दो की तरह ही लडके की चाहत थी उसकी गलती यह भी थी कि वह तीसरी दुनिया के बेहद चमकीले से दिखने वाले लेकिन निहायत पिछड़े और सामंती मुल्क में पैदा हुई,जहां आज भी छोटी बच्चियों और महिलाओं के साथ होने वाले अपराधों का आंकड़ा बहुत ज्यादा है,इन गलतियों की जो सजा उसने चुकाई, उसे देखकर-सुनकर पता नहीं, इस आजाद और रौषनख्याल मुल्क में किसी की रातों की नींद तबाह होती भी है या नहीं? हालंाकि उस समय पूरा देष न्यूज चैनलो के कैमरो के सामने मातम में डूबा सा जान पड़ रहा था, सब दुखी वक्तत्य दे रहे थे, दिल्ली की ओहदेदार कुर्सियों पर बैठी रसूखदार महिलाएं षोक व्यक्त कर रही थी ले
किन सिर्फ षोक व्यक्त कर रही हैं,कर कुछ नहीं रहीं थी क्योंकि फलक और बेबी आफरीनों की सूची में हर दिन एक नया नाम जुडता ही जा रहा है,देष का आर्थिक विकास का गाना गाने वाली सरकारे कागजो व आंकड़ो के दावों से दुनिया हैरान है सब चीख चीखकर कह रहे हे कि हिंदुस्तान तेजी से दुनिया के सबसे अमीर देषों की सूची मे षुमार होने की दिषा मे बढ़ रहा है,2011 की जनगणना बताती है कि इस देष के लोगों की खरीद क्षमता मे जबरदस्त इजाफा हुआ है,लेकिन कोई इस बात का हल्ला क्यों नहीं करता कि इसी जनगणना के मुताबिक भारत मे लिंगानुपात मे जबरदस्त गिरावट आई है, 2001 की जनगणना मे जहां 1000 लड़को पर 927 लड़कियां थी वहीं इस बार यह संख्या 914 रह गई है, यह आजादी के बाद हिंदुस्तान के अब तक के इतिहास का सबसे खराब चाइल्ड सेक्स रेष्यों है, यूनिसेफ की हाल की एक रिपोर्ट के मुताबिक हिंदुस्तान की अब तक की कुल आबादी से 5 करोड लड़कियां और महिलाएं गायब हो चुकी है,ये वे लड़कियां है जो भू्रणहत्या,षिषुहत्या से लेकर दहेज,बलात्कार और ऑनर किलिंग के नाम पर मार डाली गई है,यूनीसेफ की रिपोर्ट कहती है कि भारत मे गैरकानूनी तरीके से लिंग परीक्षण और गर्भपात का काम 1000 करोड़ रू. की बड़ी इंडस्टी मे तब्दील हो चुका है। क्या बेबी आफरीन खुषकिस्मत थी,जो पैदा होने के पहले हीं लिंग परीक्षण करवाकर नहीं मार डाली गई? क्या हुआ,जो वह पैदा हो भी गई? क्या कोई गारंटी थी कि लड़की बनकर पैदा हुई तो इस तरह तीन माह की उम्र मे पीटने और जलाए जाने से नहीं मरेंगी? और जो इस तरह नहीं भी मरती तो क्या गांरटी कि कभी सड़क चलते सुनसान अंधेरे कोने मे उसके साथ रेप न हो जाता और मारकर फंेक न दिया जाता? बड़ी होती आफरीन के साथ कभी घर का कोई पुरूश रिष्तेदार षर्मनाक हरकत न करता?कभी सड़क चलते लड़की होने के कारण उसे छेड़ा न जाता? कभी कोई पुरूश प्रेम प्रस्ताव ठुकराने या तलाक मांगने पर उसके मुंह पर तेजाब न फंेक देता? कभी कोई दलाल अगवाकर उसे कमाठीपुरा या जीबी रोड़ के कोठों में नहीं बेच देता? क्या गांरटी कि कभी उसे दहेज के लिए जलाकर मान न डाला जाता? पति षराब पीकर पीटता नहीं? और एक दिन ऐसे ही उसके पेट से बच्चे का लिंग परीक्षण न करवाया जाता और जो बेटी होती तो पैदा होने के पहले ही उसे मान न डाला जाता? क्या गांरटी है? कोई गांरटी नहीं क्योंकि दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र आजादी के 64 साल बाद भी ऐसी कोई गारंटी नहीं देता है, फलक और आफरीन खो गई? पता नहीं,ऐसी कितनी फलक और आफरीन आने वाले कितनी सदियांे तक खोती रहेंगी? हम नहीं जानते, आफरीन कि तुम्हारी मौत पर मातम मनाएं या राहत महसूस करें, एक तकलीफ की बेषक तुम गवाह बनीं, लेकिन ऐसी जाने कितनी तकलीफों से बच गईं, जो तुम्हारे खाते मे आती ही आती, उन तकलीफों का आना कुछ उसी तरह तय था,जैसे तुम्हारा लड़की होना तय था। मेरीे प्यारी बेबी फलक और आफरीन मै कभी अपनी बच्चों के साथ ऐसा बर्ताव नहीं करूंगा, क्योंकि मै भी किसी जीवात्मा का पिता बनने वाला हॅू और मुझे विष्वास ही की सुधी पाठक भी विचारो से सहमत होगे। दिव्य आत्मओ के लिए मेरे अनेको प्रणाम....जन्न्त नसीब हो मेरी बेटियां को ......आमीन..................णमो जिणाम्... विनय कुमार जैन 9910938969,

एक वार्ता सांध्य महालक्ष्मी से

एक वार्ता सांध्य महालक्ष्मी से
प्रष्नः- एक मंच पर दो संत नहीं बैठ पाते । दोशी कौन समाज या श्रमण? मुनिश्री- न समाज ना ही श्रमण दोशी है मन की संकीर्णता। जरूरी नहीं कि मंच पर एक होने से मन से भी एक हो जाये। हां यह जरूरी है मन से एक हो जाये तो मंच पर बैठे या न बैठे कोई फर्क नहीं पड़ता। मंच की नहीं मन की एकता जरूरी हैं। प्रष्नः-भगवान को मानने वालो की संख्या लगातार बढ़ रही है पर भगवान को मानने वालो की संख्या लगातार घट रही है,ऐसा क्यों? मुनिश्री- कहीं न कहीं धर्मात्माओं की इसमे भूल रही है उन्होंने लोगो को भगवान से तो परिचय कराया पर भगवत्ता से अपरिचित रखा है,काष भगवत्ता का सम्यक परिचय करा देते तो आज भगवान को मानने वालो की संख्या बढ़ गई होती। प्रष्नः-सरल हो जाना धर्म है पर इसका मार्ग कठिन है? मुनिश्री-यह नियम हैं कि कठिन मार्ग से ही सरल मार्ग निकलता है,लॉग रोड़ से ही षॅार्ट कट निकलता है। प्रष्न- भगवान के पास हर कोई कुछ छोड़ने नहीं,मांगने आता है, और मांगता भी वही है, जो भगवान ने छोड़ दिया है, जो भगवान ने पाया वो क्यो नहीं मांग पाते? मुनिश्री- क्षुद्र से जिनका परिचय है वे क्षुद्रता के अलावा क्या मांग सकते है। विराटता से जिसका परिचय है वह विराटता की अभिलाशा रखता है और जो क्षुद्र और विराटता के उपर उठ जाता है वह भगवान बन जाता है,उसे मांगने की जरूरत नहीं पड़ती है। प्रष्न-दूसरे के दुख मे सुख दूसरे के सुख मे दुख अनुभव क्यो महसूस करते है? मुनिश्री-भीतर का खालीपन जब हम नहीं भर पाते तब ईर्श्या पैदा होती है,और यही सुख वर्दास्त नहीं कर पाती। प्रष्न- ऐसा कहा जाता है, कि दिल्ली की अपेक्षा म.प्र. राजस्थान के लोगो की भक्ति ज्यादा अनुकरणीय है, भक्त भी ज्यादा है। पर क्षेत्रपाल के अनुपात में छोटी दिल्ली में भी मंदिर ज्यादा है और संतो का आगमन भी ज्यादा रहता है,यह अतिष्योक्ति क्यों? मुनिश्री-भक्ति मे अनुपात नहीं देखा जाता भक्ति तो भक्ति है, फिर भी क्षेत्र, वातावरण और माहौल का भी विचारों पर फर्क पड़ता है। यह तो मानना ही पड़ेगा कि बहिरंग परिस्थितियॉ ना चाहकर भी अंतरंग को प्रभावित करती ही है।

बुधवार, 18 अप्रैल 2012

mahaveer ka...

तीर्थकर का पद प्रसाद मे नहीं मिलता- मुनि पुलकसागर
दिल्ली 25 मार्च 2012 आज का यह बहुत पवित्र और पावन दिन है कि प्रथम तीर्थंकर भगवान ऋशभदेव का जन्म हुआ है। वे भगवान ऋशभदेव जिन्होंने जैन संस्कृति,श्रमण परम्परा और रत्नत्रय की ध्वजा आसमान मे लहराई। जब भी महापुरूश इस धरती पर जन्म लेते है तो वे भटकती मानवता को राह दिखाने के लिए आते है। याद रखना कि तीर्थकर कोई चमत्कार या माया नहीं होते है तीर्थकर तो तपस्या व साधना का नाम हुआ करता है। तीर्थकर का पद प्रसाद मे नहीं अपितु कठिन त्याग व साधना के बल पर मिला करता है। उक्त विचार राश्टसंत मुनिश्री पुलकसागर जी महाराज ने रविवार को बिहारी कॉलोनी स्थित अभिमन्यू पार्क मे आयोजित ज्ञान गंगा महोत्सव के समापन दिवस पर भगवान ऋशभदेव की जन्म जयंति के उपलक्ष्य मे प्रकट किए। मुनिश्री के प्रवचन के पष्चात एक विषाल विहारी कॉलोनी से निकाला गया जिसमे रथ पर श्रीजी को विराजमान किया गया जो यमुना पार के विभिन्न मार्गो से निकलता हुआ वापिस विहारी कॉलोनी पहुंचा जहां श्री जी की पूजा अर्चन की गई। जुलूस मे मुनिश्री ससंघ सम्मिलित हुए। तीर्थंकर जीवन जीने की कला सिखाते हैः- उन्होंने आगे कहा कि तीर्थकर धरती की ऐसी संपदा हुआ करती है,जो लोगो को कल्याण का मार्ग दिखाते है और निर्वाण का मार्ग दिखाते है। लोगो को जीवन जीने की कला सिखाते है। भगवान ऋशभदेव नहीं होते तो महावीर नहीं होते। महावीर नहीं होते तो आचार्य कुंदकुंद नहीं होते और आचार्य कुंद कुंद नहीं तो आचार्य षांतिसागर,आचार्य विद्यासागर,आचार्य पुश्पदंतसागर जी महाराज भी नहीं होते। नारी की पर्याय तभी सार्थक होगी जब...ः- मुनिश्री ने कहा कि आज के ही दिन नाभिराय के घर मरूदेवी की कोख से भगवान ऋशभदेव का जन्म हुआ था। ध्यान रखना सौ सौ नारी सौ सौ सुत को जनती रहती सौ सौ ठौर,तुम से सुत को जननी वाली जननी महती....। धन्य होती है वह मां जो तीर्थकर जैसे सुत को जन्म देती है। यदी किसी नारी की कोख से तीर्थकर का जन्म हो जाता है तो नारी की पर्याय सार्थक हो जाती है। मुनिश्री ने इस पखवाडे को पवित्र बताते हुए कहा कि यह पखवाडा बहुत ही पवित्र है क्योकि आज हम भगवान ऋशभदेव का जन्मोत्सव मना रहे है थोडे दिनो बाद राम नवमी,हनुमान जयंति फिर महावीर जयंति मनाएंगे। इस पखवाडे मे बडे बडे महापुरूश के जन्म हुए है। यह मेरा सौभाग्य है कि मुझे भगवान ऋशभदेव की जयंति और महावीर जयंति मनाने का सौभाग्य दिल्ली मे मिला। संयास लेने मे उम्र का बंधन नहींः- मुनिश्री ने भगवान ऋशभदेव और महावीर स्वामी के जीवन मे सूक्ष्म से सूक्ष्म अंतर बताते हुए कहा कि दोनो की मंजिल एक थी लेकिन रास्ते थोडे अलग थे। भगवान ऋशभदेव की आयू सबसे अधिक और सबसे कम आयू तीर्थंकर महावीर स्वामी की होती है। दोनो महापुरूशो ने सिखा दिया कि 84 लाख वर्श की आयू लेकर बुढापे मे भी संयास लिया जा सकता है और भगवान महावीर भरी जवानी मे संयास लेकर साबित कर देते हे कि संयास लेने के लिए उम्र का केाई बंधन नहीं होता है। दोनो महापुरूशों ने प्रकृति का बैलंेस बनाएं हुए है। जहां भगवान ऋशभदेव की दो षादियां हुई थी वही भगवान महावीर ब्रह्मचर्य का पालन करते हुए संयास को ग्रहण करते है। भगवान ऋशभदेव ऐसे तीर्थंकर हुए जिन्होंने सबसे पहले नारी षिक्षा की आवाज उठाई। भगवान ऋशभदेव को छह महिने तक आहार नहीं मिल पाया था वही भगवान महावीर स्वामी को विधि न मिलने के कारण आहार नहीं मिल पाया था। भगवान ऋशभदेव कैलाष पर्वत से मोक्ष जाते है जबकि भगवान महावीर समतल पावापुरी के उद्यान से मोक्ष जाते है,भगवान महावीर जहां से मोक्ष जाते है उस जगह की देवताओं ने इतनी भस्म लगाई की उस जगह आज सरोवर बन गया है। दोनो तीर्थकरों के जीवन को तो देखो जब दोनो का पारणा होता है तो भगवान ऋशभदेव को सरस इक्षु रस से पारणा कराया जाता है वही भगवान महावीर को नीरस उडद के छिल्लो से चंदना आहार कराती है। जैन कभी भिखारी नहीं होताः- मुनिश्री ने कहा कि जैसा जीवन तीर्थंकरो का होता है वैसा जीवन किसी का नहीं होता है। हम सौभाग्यषाली है कि हमने भगवान महावीर के वंष मे जन्म लिया है। हमारी परम्परा इतनी पवित्र पावन है कि जैन कुल मे जन्म लेना वाला जीव इतना पुण्यषाली तो होता है कि उसे भीख मांगकर गुजारा नहीं करना पड़ता हैं। आप देख घर व बाजार मे देख सकते हो कि इतने सारे भिखारियों मे से एक भी भिखारी जैन नहीं मिलेगा। जैन रिक्षा चलाकर मेहनत मजदूरी करके अपना गुजारा कर लेता है लेकिन कभी भीख नहीं मांगा करता है। कही आपके बच्चे अभक्ष्य तो नहीं खाने लगेः- याद रखना मानव तन र्मुिष्कल से मिलता है उससे ज्यादा मुष्किल से जैन कुल मिला करता है। ध्यान रखना कही आपके बच्चे अंडे जैसे अभक्ष्य चीजे यार दोस्तो के साथ नहीं खाने लगे है। मान्यवर ताली बजाने से काम नहीं चलेगा जैन के यहां पैदा हुए हो तो थोडा जैनत्व अपने आप मे पैदा करो। जैन घर मे पैदा होकर भी अगर तुम्हारे संस्कार गलत हो गए तो जैन कहलाने से कोई फायदा नहीं है। मुझे बहुत अफसोस होता है जब हमे अपनी धर्मसभा मे जैनो से रात्रि भोजन न करने का उपदेष देना पड़ता है और हैरानी इस बात की अब हमे जैन बच्चों को बताना पड़ता है कि अंडे मांसाहारी और इनका त्याग करना चाहिए।

karmo ka fal..

कर्मो का फल सभी को भोगना पडता है- मुनि पुलकसागर भोलानाथनगर षाहदरा जैन समाज ने चातुर्मास हेतु मुनिश्री को श्रीफल भेट किया हमे इंसान होने का अहसास होना चाहिए,केवल
सांसो के दम पर जीवन नहीं होता है,सांसो की दम पर तो कोमा मे पडा आदमी भी जी लिया करता है लेकिन उसे जिंदगी का कोई अहसास नहीं होता है। जिंदगी मौत की अमानत है और एक दिन मौत अपनी अमानत ले जाएगी इसलिए जीना है तो होष पूर्वक जीओ। उक्त विचार राश्टसंत मुनि पुलकसागर जी महाराज ने बिहारी कॉलोनी स्थित अभिमन्यू पार्क मे आयोजित ज्ञान गंगा महोत्सव के छठवे दिन षनिवार को अथाह जनसमुदाय को संबोधित करते हुए व्यक्त किए। ज्ञात हो कि पूज्य मुनिश्री पुलकसागर जी महाराज एवं मुनिश्री प्रसंगसागर जी महाराज का बिहारी कालोनी आगमन पंचकल्याणक प्रतिश्ठा महोत्सव के निमित्त हुआ है। बिहारी कॉलोनी षाहदरा मे पूज्य मुनिद्वय के सानिध्य मे पंचकल्याणक प्रतिश्ठा महोत्सव 6 अप्रेल 2012 से 11 अप्रेल तक आयोजित किया जाएगा। सुबह उठने की आदत डालोः- उन्होंने आगे धर्मसभा को संबोधित करते हुए कहा कि ब्रह्म मुहूर्त मे उठ जाना चाहिए क्योकि सुबह के वक्त दिमाग मे कोई तनाव नहीं होता है और पढ़ने वाले विद्यार्थीयों को यही सलाह दूंगा कि सुबह के वक्त पढ़ाई करोगे तो जल्दी याद होगा क्योकि सुबह के वक्त दिमाग बोझिल नहीं होता है। ऐसा कोई भी धर्म नहीं है जिसमे सुबह के वक्त प्रार्थना के वक्त ना कहा गया हो। इस्लाम मे अजान,गिरिजाघर मे प्रार्थना,मंदिर मे आरती एवं जिनालय मे अभिशेक पाठ के स्वर गुंजायमान होने लगते है। कर्म का लेख मिटे नहीं भाई रेः- जिंदगी मे माता पिता,गुरू और भगवान से डरो या न डरो लेकिन अपने कर्मो से जरूर डरना क्योकि कर्म किसी को भी नहीं छोडते,सभी को अपने कर्माे का फल भोगना पडता है। ऐसा कौन है जिसे कर्मो का फल न भोगना पडा हो। आम आदमी की बात क्या कहे राम,कृश्ण,बुद्ध महावीर सभी को कर्मो का फल भोगना पड़ता है। सब ने कर्मो का फल भोगा है। जो करोग वही फल मिलेगा। कोई लाख करे चतुराई कर्म का लेख मिटे नहीं भाई। जरा समझो इसकी सच्चाई रे..कर्म का लेख मिटे न भाई। इस दुंनिया मे कर्म के आगे चले न किसी का उपाय कागज हो तो हर कोई वांचे,कर्म न वांचा जाएं। चाहे हो राजा या चाहे भिखारी ठोकरे सभी ने यहां खाई रे कर्म का लेख मिटे न रे भाई...... ध्यान रखिएं कर्मो का लिखा कभी मिटता नहीं है। याद रखना जब तुम इस धरती से जाओगे तो तुम्हारे साथ कुछ नहीं जाएगा। सब यही पडा का पडा रह जाएगा। केवल कर्म उसके साथ जाएंगे। मुनिश्री ने दान का महत्व बताते हुए कहा कि जितना दान दोगे उससे दस गुना लौटकर वापिस आएगा। रावण और भरत चक्रवती दोनो के पास स्वर्ण था। रावण अपने स्वर्ण से सोने की लंका बना लिया करता है जबकि चक्रवर्ती भरत सोने के 72 जिनालयो का निर्माण करते है। जिस रावण के एक लाख पूत और सवा लाख नाती थे आज उसके खानदान मे उसकी ही मजार पर कोई दिया जलाने वाला नहीं है। चातुर्मास हेतु श्रीफल भेट किएः- संघस्थ प्रवक्ता विनय कुमार जैन ने बताया कि राश्टसंत मुनिश्री पुलकसागर जी महाराज एवं मुनिश्री प्रसंगसागर जी महाराज के आगामी चातुर्मास के लिए भोलानाथ नगर जैन समाज की ओर से श्रीफल भेटकर निवेदन किया गया। ज्ञात हो कि 12 वर्श पष्चात मुनिश्री के भोलानाथ नगर मे दो चातुर्मास हो चुके है।