12 जून 2012 दिल्ली, कभी अपने आप से प्रश्न करना की मै कौन हॅू आप चमडी हो, खून हो, मांस हो, हड्डी तुम हो। अगर इनमे से तुम कुछ हो तो इनके क्षतिग्रस्त हो जाने पर हम मरते नही है इसलिए इनमे से तुम कुछ भी नहीं हो। उक्त प्रेरक विचार राष्टसंत मुनिश्री पुलकसागर जी महाराज ने मंगलवार को न्यू रोहतक रोड स्थित नवहिंद पब्लिक स्कूल के ऑडिटोरियम मे आयोजित मां जिनवाणी शिक्षण शिविर के तृतीय दिवस पर शिविरार्थियों को संबोधित करते हुए व्यक्त किए।
उन्होंने शिविरार्थियो को संबोधित करते हुए आगे कहा कि अपना हाथ किसी को क्षति पहुंचा सकता है और करूणा, आशीर्वाद भी बन जाता है, शरीर भी बोलता है केवल जुवान नही बोलती हैं। यही हाथ शराब भी ले सकता है और गंधोदक भी ले सकता है। हमारा हाथ क्या ग्रहण करेगा उसको जो यह आदेश देता है वह तुम हो। जो आंखे देख रही है वह तुम नही हो अपितु जो उन आंखो मे देखने की शक्ति प्रदान कर रहा है वह तुम हो।
मुनिश्री ने आगे शिविरार्थियो को संबोधित करते हुए कहा कि याद रखना मुर्दे भोजन ग्रहण नहीं करते केवल जीवित इंसान ही भोजन ग्रहण कर सकते है। दुनिया मे सारा खेल शक्तियों का है और मानव शरीर मे सारी खेल आत्मा का है। शक्तिविहीन कुछ भी कार्य करने मे असमर्थ होता है उसी प्रकार जब आत्मा हमारे शरीर से निकल जाती है तो शरीर भी कुछ काम का नही होता है।
मुनिश्री ने कहा कि संसारी भी मै हॅू, मोक्ष जाने वाला भी मै हॅू, मै ही नर्क गति, स्वर्ग गति को प्राप्त करता हॅू। मै ही कर्मो का बंध करने वाला और नाश करने वाला हॅू। भीतर जो शक्ति है पावर है वह आत्मा है। आत्मा अलग से कोई वस्तु नहीं है भीतर की उर्जा की आत्मा है। मै निज मे रहने वाला हूॅ पर से मेरा संबंध नहीं।
मुनिश्री ने आत्मा के अस्तित्व को उदाहरण के द्वारा समझाते हुए कहा कि वायर के अंदर पावर है जिससे आपके टी व्ही पंखे कूलर चल रहे है लेकिन वह पावर दिखता नहीं है। दिखता नही है फिर भी होता है, वैसी ही हमारी आत्मा दिखती नहीं है लेकिन होती है, आत्मा से ही शरीर से उर्जा मिलती है, आत्मा के द्वारा ही हमे सुख, दुख, की अनुभूति होती है।
मुनिश्री ने कहा कि अधिक गुण वाला कम गुण वाले को अपने जैसे बना लेता है। जिस प्रकार लोहे के टुकडे को चुम्बक बनाने के लिए उसको चुम्बक के पास रखना पडता है, जब तक लोहे का टुकडा चुम्बक की शरण मे नहीं आएगा तब तक वह चुम्बक नही बन पाएगा। इसी प्रकार जब तक तुम भगवान के निकट नहीं आओगे तो तुम भी भगवान नहीं बन पाओगे। दूर रहोगे तो उनकी पावर तुम तक नहीं आ पाएगी। मुनिश्री ने कहा कि तुम जैन तो लेकिन जैनी बनने के लिए तुम्हें भगवान जिनेन्द्र के पास जाना पडेगा।
मंगलवार, 12 जून 2012
pooja sadev adhik guno walo ki hoti hai -muni pulaksagar
पूजा सदैव अधिक गुणों वालो की होती है- मुनि पुलकसागर
12 जून 2012 दिल्ली, कभी अपने आप से प्रश्न करना की मै कौन हॅू आप चमडी हो, खून हो, मांस हो, हड्डी तुम हो। अगर इनमे से तुम कुछ हो तो इनके क्षतिग्रस्त हो जाने पर हम मरते नही है इसलिए इनमे से तुम कुछ भी नहीं हो। उक्त प्रेरक विचार राष्टसंत मुनिश्री पुलकसागर जी महाराज ने मंगलवार को न्यू रोहतक रोड स्थित नवहिंद पब्लिक स्कूल के ऑडिटोरियम मे आयोजित मां जिनवाणी शिक्षण शिविर के तृतीय दिवस पर शिविरार्थियों को संबोधित करते हुए व्यक्त किए।
उन्होंने शिविरार्थियो को संबोधित करते हुए आगे कहा कि अपना हाथ किसी को क्षति पहुंचा सकता है और करूणा, आशीर्वाद भी बन जाता है, शरीर भी बोलता है केवल जुवान नही बोलती हैं। यही हाथ शराब भी ले सकता है और गंधोदक भी ले सकता है। हमारा हाथ क्या ग्रहण करेगा उसको जो यह आदेश देता है वह तुम हो। जो आंखे देख रही है वह तुम नही हो अपितु जो उन आंखो मे देखने की शक्ति प्रदान कर रहा है वह तुम हो।
मुनिश्री ने आगे शिविरार्थियो को संबोधित करते हुए कहा कि याद रखना मुर्दे भोजन ग्रहण नहीं करते केवल जीवित इंसान ही भोजन ग्रहण कर सकते है। दुनिया मे सारा खेल शक्तियों का है और मानव शरीर मे सारी खेल आत्मा का है। शक्तिविहीन कुछ भी कार्य करने मे असमर्थ होता है उसी प्रकार जब आत्मा हमारे शरीर से निकल जाती है तो शरीर भी कुछ काम का नही होता है।
मुनिश्री ने कहा कि संसारी भी मै हॅू, मोक्ष जाने वाला भी मै हॅू, मै ही नर्क गति, स्वर्ग गति को प्राप्त करता हॅू। मै ही कर्मो का बंध करने वाला और नाश करने वाला हॅू। भीतर जो शक्ति है पावर है वह आत्मा है। आत्मा अलग से कोई वस्तु नहीं है भीतर की उर्जा की आत्मा है। मै निज मे रहने वाला हूॅ पर से मेरा संबंध नहीं।
मुनिश्री ने आत्मा के अस्तित्व को उदाहरण के द्वारा समझाते हुए कहा कि वायर के अंदर पावर है जिससे आपके टी व्ही पंखे कूलर चल रहे है लेकिन वह पावर दिखता नहीं है। दिखता नही है फिर भी होता है, वैसी ही हमारी आत्मा दिखती नहीं है लेकिन होती है, आत्मा से ही शरीर से उर्जा मिलती है, आत्मा के द्वारा ही हमे सुख, दुख, की अनुभूति होती है।
मुनिश्री ने कहा कि अधिक गुण वाला कम गुण वाले को अपने जैसे बना लेता है। जिस प्रकार लोहे के टुकडे को चुम्बक बनाने के लिए उसको चुम्बक के पास रखना पडता है, जब तक लोहे का टुकडा चुम्बक की शरण मे नहीं आएगा तब तक वह चुम्बक नही बन पाएगा। इसी प्रकार जब तक तुम भगवान के निकट नहीं आओगे तो तुम भी भगवान नहीं बन पाओगे। दूर रहोगे तो उनकी पावर तुम तक नहीं आ पाएगी। मुनिश्री ने कहा कि तुम जैन तो लेकिन जैनी बनने के लिए तुम्हें भगवान जिनेन्द्र के पास जाना पडेगा।
12 जून 2012 दिल्ली, कभी अपने आप से प्रश्न करना की मै कौन हॅू आप चमडी हो, खून हो, मांस हो, हड्डी तुम हो। अगर इनमे से तुम कुछ हो तो इनके क्षतिग्रस्त हो जाने पर हम मरते नही है इसलिए इनमे से तुम कुछ भी नहीं हो। उक्त प्रेरक विचार राष्टसंत मुनिश्री पुलकसागर जी महाराज ने मंगलवार को न्यू रोहतक रोड स्थित नवहिंद पब्लिक स्कूल के ऑडिटोरियम मे आयोजित मां जिनवाणी शिक्षण शिविर के तृतीय दिवस पर शिविरार्थियों को संबोधित करते हुए व्यक्त किए।
उन्होंने शिविरार्थियो को संबोधित करते हुए आगे कहा कि अपना हाथ किसी को क्षति पहुंचा सकता है और करूणा, आशीर्वाद भी बन जाता है, शरीर भी बोलता है केवल जुवान नही बोलती हैं। यही हाथ शराब भी ले सकता है और गंधोदक भी ले सकता है। हमारा हाथ क्या ग्रहण करेगा उसको जो यह आदेश देता है वह तुम हो। जो आंखे देख रही है वह तुम नही हो अपितु जो उन आंखो मे देखने की शक्ति प्रदान कर रहा है वह तुम हो।
मुनिश्री ने आगे शिविरार्थियो को संबोधित करते हुए कहा कि याद रखना मुर्दे भोजन ग्रहण नहीं करते केवल जीवित इंसान ही भोजन ग्रहण कर सकते है। दुनिया मे सारा खेल शक्तियों का है और मानव शरीर मे सारी खेल आत्मा का है। शक्तिविहीन कुछ भी कार्य करने मे असमर्थ होता है उसी प्रकार जब आत्मा हमारे शरीर से निकल जाती है तो शरीर भी कुछ काम का नही होता है।
मुनिश्री ने कहा कि संसारी भी मै हॅू, मोक्ष जाने वाला भी मै हॅू, मै ही नर्क गति, स्वर्ग गति को प्राप्त करता हॅू। मै ही कर्मो का बंध करने वाला और नाश करने वाला हॅू। भीतर जो शक्ति है पावर है वह आत्मा है। आत्मा अलग से कोई वस्तु नहीं है भीतर की उर्जा की आत्मा है। मै निज मे रहने वाला हूॅ पर से मेरा संबंध नहीं।
मुनिश्री ने आत्मा के अस्तित्व को उदाहरण के द्वारा समझाते हुए कहा कि वायर के अंदर पावर है जिससे आपके टी व्ही पंखे कूलर चल रहे है लेकिन वह पावर दिखता नहीं है। दिखता नही है फिर भी होता है, वैसी ही हमारी आत्मा दिखती नहीं है लेकिन होती है, आत्मा से ही शरीर से उर्जा मिलती है, आत्मा के द्वारा ही हमे सुख, दुख, की अनुभूति होती है।
मुनिश्री ने कहा कि अधिक गुण वाला कम गुण वाले को अपने जैसे बना लेता है। जिस प्रकार लोहे के टुकडे को चुम्बक बनाने के लिए उसको चुम्बक के पास रखना पडता है, जब तक लोहे का टुकडा चुम्बक की शरण मे नहीं आएगा तब तक वह चुम्बक नही बन पाएगा। इसी प्रकार जब तक तुम भगवान के निकट नहीं आओगे तो तुम भी भगवान नहीं बन पाओगे। दूर रहोगे तो उनकी पावर तुम तक नहीं आ पाएगी। मुनिश्री ने कहा कि तुम जैन तो लेकिन जैनी बनने के लिए तुम्हें भगवान जिनेन्द्र के पास जाना पडेगा।
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