14 जून 2012 वे कर्म वर्गणाएॅ जो राग द्वेश के निमित्त से आत्मप्रदेशो के साथ मिलकर कर्म रूप परिणत होकर जीव के आत्म स्वभाव को ढक देती है। उन कार्माण वर्गणाओं को कर्म कहते है। उक्त पवित्र विचार राष्टसंत मुनिश्री पुलकसागर जी महाराज ने आज गुरूवार को न्यू रोहतक रोड मे नवहिंद पब्लिक स्कूल ऑडिटोरियम मे आयोजित मां जिनवाणी शिक्षण षिविर के पांचवे दिवस पर शिविरार्थियो को संबोधित करते हुए व्यक्त किए।
मुनिश्री ने आगे शिविरार्थियों को संबोधित करते हुए कहा कि कर्म आठ प्रकार के होते है,ज्ञानावरणी,दर्शनावरणी,वेदनीय,मोहनीय,आयु,नाम,गोत्र और अंतराय। मुनिश्री ने कहा कि जिस कर्म के उदय से आत्मा के ज्ञान के गुण ढंक जाते है उन्हें ज्ञानावरणी कर्म कहते है। किसी ज्ञान के ज्ञान मे विघ्न डालने से पुस्तक फाडने से ,छिपा देने से ज्ञान का गर्व करने से जिनवाणी मे संशय करने से ज्ञानावररणी कर्म का बंध होता है।
जो कर्म आत्मा के दर्शन गुण को ढंकता है अर्थात प्रकट होने नहीं देता है उसे दर्शनावरणी कर्म कहते है,जिन दर्शन मे विघ्न डालना, किसी की आंख फोड देना, मुनियों को देखकर घृणा आदि करने से दर्शनावरणी के कर्म का बंध होता है।
मुनिश्री ने कहा कि जो कर्म हमे सुख दुख का वेदन करता है अर्थात अनुभव कराता है उसे वेदननीय कर्म कहते है। अपने व दूसरो के विषय में दुख करना,शोक करना रोग,पशुवध आदि असाता वेदनीय कर्म बंध के कारण है एवं दया करना,दान देना, संयम पालना, व्रत पालना, आदि साता वेदनीय कर्म के बंध के कारण है।
मुनिश्री ने मोहनीय कर्म की परिभाषा देते हुए कहा कि जिस कर्म के उदय से आत्मा के सम्यक्त्व और चारित्र गुण का घात होता है। सच्चे देव शास्त्र गुरू और धर्म मे दोष लगाना मिथ्या देव शास्त्र गुरू की प्रशंसा करना, क्रोधादि कषाय करना, राग द्वेष करना मोहनीय कर्म के बंध का कारण है।
मुनिश्री ने कहा कि जिस कर्म के उदय से जीव को चारो गतियों में से किसी एक गति में निश्चित समय तक रहना पडता है,उसे आयु कर्म कहते है। बहुत हिंसा करना, बहुत आरंभ करना,परिग्रह रखना,छल कपट करना, अशुभ आयु कर्म के बंध के कारण है, और व्रत पालन करना, शांतिपूर्वक दुख सहना आदि शुभ आयु कर्म के बंध के कारण है।
नाम कर्म की को शिविरार्थियो को समझाते हुए कहा कि नाम कर्म के उदय से शरीर की प्राप्ती होती है। मन, वचन, काय को सरल रखना, धर्मात्मा को देखकर खुश होना, धोखा नहीं करना, शुभ नाम कर्म का कारण है। एवं त्रियोग कुटिल रखना, दूसरो को देखकर हंसना, उसी की नकल करना आदि अशुभ नामकर्म का कारण है।
मुनिश्री ने गोत्र कर्म को समझाते हुए कहा कि गोत्र कर्म के उदय से प्राणी उच्च नीच कुल मे जन्म लेता है, उसे गोत्र कर्म कहते है। अपने गुण और दूसरों के अवगुण प्रकट करना, अष्ट मद करना, आदि नीच गोत्र का कारण है। एवं दूसरो के गुण और अपने अवगुण प्रकट करना अष्ट मद नहीं करना उच्च गोत्र कर्म का कारण है।
मुनिश्री ने अंतिम कर्म अंतराय कर्म को समझाते हुए कहा कि जो कर्म दान,लाभ भोग,उपभोग, और शक्ति में विघ्न डालता है उसे अंतराय कर्म कहते है। मुनिश्री ने कहा कि दान देने से रोक देना, आश्रितों को धर्म साधन नहीं देना, किसी की मांगी वस्तु को नहीं देना, आदि अंतराय कर्म के कारण है।
विनय कुमार जैन
12 जून 2012 दिल्ली, कभी अपने आप से प्रश्न करना की मै कौन हॅू आप चमडी हो, खून हो, मांस हो, हड्डी तुम हो। अगर इनमे से तुम कुछ हो तो इनके क्षतिग्रस्त हो जाने पर हम मरते नही है इसलिए इनमे से तुम कुछ भी नहीं हो। उक्त प्रेरक विचार राष्टसंत मुनिश्री पुलकसागर जी महाराज ने मंगलवार को न्यू रोहतक रोड स्थित नवहिंद पब्लिक स्कूल के ऑडिटोरियम मे आयोजित मां जिनवाणी शिक्षण शिविर के तृतीय दिवस पर शिविरार्थियों को संबोधित करते हुए व्यक्त किए।
उन्होंने शिविरार्थियो को संबोधित करते हुए आगे कहा कि अपना हाथ किसी को क्षति पहुंचा सकता है और करूणा, आशीर्वाद भी बन जाता है, शरीर भी बोलता है केवल जुवान नही बोलती हैं। यही हाथ शराब भी ले सकता है और गंधोदक भी ले सकता है। हमारा हाथ क्या ग्रहण करेगा उसको जो यह आदेश देता है वह तुम हो। जो आंखे देख रही है वह तुम नही हो अपितु जो उन आंखो मे देखने की शक्ति प्रदान कर रहा है वह तुम हो।
मुनिश्री ने आगे शिविरार्थियो को संबोधित करते हुए कहा कि याद रखना मुर्दे भोजन ग्रहण नहीं करते केवल जीवित इंसान ही भोजन ग्रहण कर सकते है। दुनिया मे सारा खेल शक्तियों का है और मानव शरीर मे सारी खेल आत्मा का है। शक्तिविहीन कुछ भी कार्य करने मे असमर्थ होता है उसी प्रकार जब आत्मा हमारे शरीर से निकल जाती है तो शरीर भी कुछ काम का नही होता है।
मुनिश्री ने कहा कि संसारी भी मै हॅू, मोक्ष जाने वाला भी मै हॅू, मै ही नर्क गति, स्वर्ग गति को प्राप्त करता हॅू। मै ही कर्मो का बंध करने वाला और नाश करने वाला हॅू। भीतर जो शक्ति है पावर है वह आत्मा है। आत्मा अलग से कोई वस्तु नहीं है भीतर की उर्जा की आत्मा है। मै निज मे रहने वाला हूॅ पर से मेरा संबंध नहीं।
मुनिश्री ने आत्मा के अस्तित्व को उदाहरण के द्वारा समझाते हुए कहा कि वायर के अंदर पावर है जिससे आपके टी व्ही पंखे कूलर चल रहे है लेकिन वह पावर दिखता नहीं है। दिखता नही है फिर भी होता है, वैसी ही हमारी आत्मा दिखती नहीं है लेकिन होती है, आत्मा से ही शरीर से उर्जा मिलती है, आत्मा के द्वारा ही हमे सुख, दुख, की अनुभूति होती है।
मुनिश्री ने कहा कि अधिक गुण वाला कम गुण वाले को अपने जैसे बना लेता है। जिस प्रकार लोहे के टुकडे को चुम्बक बनाने के लिए उसको चुम्बक के पास रखना पडता है, जब तक लोहे का टुकडा चुम्बक की शरण मे नहीं आएगा तब तक वह चुम्बक नही बन पाएगा। इसी प्रकार जब तक तुम भगवान के निकट नहीं आओगे तो तुम भी भगवान नहीं बन पाओगे। दूर रहोगे तो उनकी पावर तुम तक नहीं आ पाएगी। मुनिश्री ने कहा कि तुम जैन तो लेकिन जैनी बनने के लिए तुम्हें भगवान जिनेन्द्र के पास जाना पडेगा।
कुछ काम करके जाना दुनिया मे आने वाले
जाते है लाखो लोग बेकार खाने वाले।
दिल्ली 8 जून 2012 जो समय एक बार हाथ से निकल जाता है वह दोबारा लौटकर नही आता, एक बार दिन गुजर जाता है या रात बीत जाती है तो वह फिर से वापिस नहीं आती। समय किसी का नौकर नही है बल्कि समय ने सारी दुनिया को अपना नौकर बना रखा है।
उक्त प्रेरक विचार राष्टसंत मुनिश्री पुलकसागर जी महाराज ने शुक्रवार को नवहिन्द पब्लिक स्कूल के ऑडिटोरिय मे आयोजित तीन दिवसीय ज्ञान गंगा महोत्सव के द्वितीय दिवस पर श्रावको को संबोधित करते हुए व्यक्त किए।
उन्हांेने धर्मसभा को संबोधित करते हुए आगे कहा कि लोग कहते हे कि मै समय काट रहा हॅू बल्कि सच तो यह है कि समय हमारी जिंदगी को काट रहा है। समय सोते जागते अपना काम करता रहता है हर पल हमारी मुठ्ठी से रेत की तरह खिसकता जा रहा है, इसलिए समय की कीमत समझो, नादान होते है वे लोग जो समय की कीमत नही समझते।
मुनिश्री ने जीवन के तीन आयाम बचपन, जवानी और बुढापे की तुलना घडी के कांटो से करते हुए कहा कि आपने कभी ख्याल किया घडी मे तीन कांटे हाते है सेकेण्ड, मिनिट और घंटे का। सेकेण्ड का कांटा पतला होता है वह बहत तेज भागता, मिनिट का कांटा चलता है भागता नही है और तीसरा कांटा घंटे का होता है जो ना तो भागता है और ना चलते हुए दिखता है। हमारा बचपन भी सेकण्ड के कांटे की तरह होता है जो जल्दी बीत जाता है, बचपन कैसे बीत जाता है पता ही नहीं चलता है, जवानी मिनिट के कांटे की तरह होती है और बुढापा घंटे की कांटे की तरह होता है जो बहुत धीमा घिसकता है। बस घडी की तरह हमारी जिंदगी होती है। बचपन जवानी कब चली जाताी है पता नही चलता है लेकिन बुढापा घिसट घिसट कर अपनी यात्रा पूरी करती है।
मुनिश्री ने जीवन जीवन को परीक्षा पेपर बताते हुए कहा कि आप जब कभी परीक्षा देने जाते तो वह पेपर तीन घंटे का होता है। पहला घंटा जब होता है तो घंटी बजती है वह हमे याद दिलाता है कि दो घंटे बचे है लिखने की स्पीट बढा दो। दो घंटे बीत जाने के बाद सिर्फ एक घंटे बाकी है रिविजन कर लो। और तीसरा घंटा बजने के बाद कुछ भी शेष नही बचता है, हमारी जिंदगी के परीक्षा मे भी तीन घंटे होते है बचपन जवानी और बुढापा जब हमारी तीसरे पन का घंटा बजता है तो यमराज रूपी परीक्षक आता है और जिंदगी का पेपर छीनकर ले जाता है।
मुनिश्री ने कहा कि बचपन अपने साथ जवानी को लाता है, जवानी बुढ़ापे को साथ लाती है लेकिन ध्यान रखना बुढापे के बाद कुछ नहीं आता है केवल मौत ही आती है। इस दुनिया मे जिसने भी जन्म लिया है उसको एक दिन इस दुनिया से जाना पडेगा चाहे वह राजा हो या रंक। सभी को एक दिन इस दुनिया से जाना है। लेकिन आपने इस बात पर कभी गौर किया की किसी किसी के जीवन मे जन्म से लेकर मृत्यु तक के बीच मे ऐसा क्या घट जाता है कि उस व्यक्ति को सारी दुनिया जानती है।
मुनिश्री ने जीवन मे सफलता के सूत्र के रहस्य का उद्घाटन करते हुए कहा कि जितना भी समय मिला है उसमे कुछ ऐसा कार्य करो ताकि दुनिया तुम्हें याद रखे। मुनिश्री ने उदाहरण के द्वारा समझाया कि आज से 2600 साल पहले हुए भगवान महावीर की मॉ त्रिशला को सभी जानते है, लेकिन आप लोग तो उनसे कभी नही मिले फिर उन्हें पूरा जानता हो जब की पडोस मे रहने वाले को नही जानते। दोनो मे अंतर इतना है कि उन्होने जीवन मे ऐसा कार्य किया है जिनसे सारी दुनिया जानती है। तुम भी अपने जीवन मे ऐसे कार्य करके जाओ कि दुनिया भी हजारो वर्षो तक याद रखे।
मुनिश्री ने महापुरूषो के सुकृत्यों के माध्यम से श्रद्धालुओं को उपदेश देते हुए कहा कि डॉ भीमराव अम्बेडकर ने भारत का सविधान, आचार्य कुंदकुंद, गौतम गणधर को उनकी लेखनी के कारण दुनिया उन्हें याद किया करती है। भगवान महावीर, भगवान राम ने कुछ नहीं लिखा लेकिन उन्होंने ऐसे कृत्य किये है जिससे उनके चरित्र को समेटने के लिए हजारो पृष्ठ के ग्रंथ भी कम पडते है। दुनिया मे अपना नाम अमर करने का एक ही सूत्र है कि कुछ लिख जाओ या कुछ ऐसा करके जाओ कि दुनिया तुम पर कुछ लिखने लगे। दुनिया मे राम और रावण दोनो का याद किया जाता है लेकिन जब रावण को याद किया जाता है तो पुतले जलाएं जाते है और जब राम को याद किया जाता है तो मंदिर बनाएं जाते है।
मुनिश्री ने अधमरे लोगो को समाज के विकास का अवरोध मानते हुए कहा कि अधमरा आदमी दुनिया का सबसे खतरनाक होता है आदमी अधमरा न जिएं उन्हें मर जाना चाहिए मर जाएंगे तो नई समाज का निर्माण हो जाएगा। आज समाज का विकास इन्हीं अधमरे लोगो के कारण ही रूका हुआ है। यह अधमरा समाज पूरी तरह से जिंदा हो जाये या पूरी तरह से मर जाये। परिवार, समाज व राष्ट का विकास तभी हो पाएगा जब समाज इन अधमरे लोगो से मुक्त होगी। याद रखना पानी 100 डिग्री के तापमान पर ही भाप बनती है गुनगुना पानी कभी भाप नही बनता है।
विनय कुमार जैन
संघस्थ प्रवक्ता 9910938969
7 जून से 10 जून तक बहेगी ज्ञान गंगा न्यू रोहतक रोड मे
जून 6 मई 2012 रात को भी दिन निकल सकता है,दिन को भी रात हो सकती है,लोग कहते है,समय से पहले और भाग्य से अधिक किसी को कुछ नहीं मिलता लेकिन मेरी श्रद्धा कहती है कि गुरू की कृपा हो जाए तो समय से पहले और भाग्य से अधिक भी मिल सकता है। उक्त विचार राष्टसंत मुनिश्री पुलकसागर जी महाराज ने आज छप्परवाला दिगम्बर जैन मंदिर के हॉल मे श्रावकों को संबोधित करते हुए व्यक्त किए।
गुरू के महत्व को प्रतिपादित करते हुए मुनिश्री ने धर्मसभा को संबोधित करते हुए आगे कहा कि गुरू की कृपा से भौतिक सुख-संपदा तो छोड़ो मोक्ष लक्ष्मी को भी प्राप्त किया जा सकता है।
मुनिश्री ने कहा कि भगवान की मूर्ति मौन है,शास्त्र मौन है आप जैसा चाहे अर्थ लगा सकते हो पर गुरू मौन नहीं होते है वे मुखर होते है जो तुम्हारे अहंकार पर चोट करते है। याद रखना साधू वही होता है जो तुम्हारे अहंकार पर चोट करे। साधू वह नहीं होता जो तुम्हारे अहंकार की पुश्टि करे। याद रखना मंदिर की मूर्ति कुछ समय पहले तक सड़क का पत्थर हुआ करता है लेकिन जब उस पर किसी शिल्पी की नजर पडती है तो मूर्ति का रूप ले लेता है लेकिन कोई सद्गुरू ही होता है जो उसमे भगवत्ता को प्रकट कर दिया करता है।
मुनिश्री ने जीवन मे लक्ष्य बनाने की सीख देते हुए कहा कि हर व्यक्ति के जीवन मे एक न एक लक्ष्य अवश्य होना चाहिए,बिना लक्ष्य के जीवन मे उंचाईयॉ हासिल नहीं हो सकती है। यहां पर जितने भी लोग बैठे है सबका कोई ना कोई लक्ष्य अवश्य होगा। विद्यार्थीयों का लक्ष्य परीक्षा मे सफलता,व्यापारी का पैसा कमाना लक्ष्य हो सकता है लेकिन मै एक बात आपसे बड़ी विन्रमता के साथ कहना चाहता हॅू कि यह लक्ष्य तो चिता के साथ जलकर भस्म हो जाएगे,अगर जीवन मे लक्ष्य बनाना ही है तो निर्वाण को अपना लक्ष्य बनाओ, मोक्ष को अपना लक्ष्य बनाओ।
संघस्थ प्रवक्ता विनय कुमार जैन ने बताया कि मुनिश्री पुलकसागर जी महाराज के सानिध्य मे न्यू रोहतक रोड मे 7 जून से 9 जून तक ज्ञान गंगा प्रवचन का आयोजन होगा तथा 10 जून से 17 जून मां जिनवाणी शिक्षण षिविर के तृतीय भाग का आयोजन किया जाएगा। मां जिनवाणी शिक्षण शिविर के फार्म श्री दिगम्बर जैन मंदिर न्यू रोहतक रोड मे प्राप्त किये जा सकते है।